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शनिवार, 21 जून, 2025
होमदेशहाई कोर्ट के आदेश के बाद मुंब्रा में अवैध दुकानें और घर ढहाए गए—खरीदारों को उठाना पड़ रहा है नुकसान

हाई कोर्ट के आदेश के बाद मुंब्रा में अवैध दुकानें और घर ढहाए गए—खरीदारों को उठाना पड़ रहा है नुकसान

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'बेईमान बिल्डरों' और ठाणे नगर निगम के अधिकारियों को 'अपने आशीर्वाद से' निर्माण की अनुमति देने के लिए कड़ी फटकार लगाई.

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मुंब्रा, ठाणे: शाह मोहम्मद उदास नजरों से उस मलबे को देख रहे हैं, जो कभी मदीना कॉम्प्लेक्स में उनकी किराना दुकान हुआ करती थी. अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर बेचैन शाह मोहम्मद पिछले दो दिन से न तो ठीक से सो पाए हैं और न ही कुछ खा पाए हैं.

“पांच महीने पहले मैंने यह दुकान इसलिए बनाई थी कि कम तनख्वाह वाली नौकरी छोड़कर बिज़नेस शुरू करूं. इसमें मैंने 16 लाख रुपये लगाए थे, जिनमें से 4 लाख रुपये का कर्ज़ है. लेकिन अब सब कुछ बर्बाद हो गया. मेरी सारी बचत खत्म हो गई. अब मेरे पास कुछ नहीं बचा. सब कुछ फिर से शुरू करना होगा,” 36 साल के मोहम्मद कहते हैं और आंसू पोंछते हैं.

शाह मोहम्मद उन सैकड़ों लोगों में से हैं जिन्होंने ठाणे के बाहरी इलाके मुंब्रा के पास शील गांव में घर या दुकान ख़रीदी थी. यह इलाका निम्न आय वर्ग के परिवारों से भरा हुआ है और यहां के घरों की औसत कीमत करीब 20 लाख रुपये थी.

12 जून को बॉम्बे हाई कोर्ट ने शील दाईघर इलाके में बनीं 17 अवैध इमारतों पर सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया, जिसके बाद पांच एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर बनीं ये इमारतें गिरा दी गईं. यह ज़मीन एक बुज़ुर्ग महिला के नाम पर थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले को “ऐसा मामला बताया जो अदालत के ज़मीर को झकझोर देता है.”

इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन 17 जून को शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और हाई कोर्ट की “साहसी पहल” की सराहना की.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने कहा, “यह हैरान करने वाली बात है कि कुछ लोग इतनी हिम्मत करके इस अदालत में चले आते हैं. पहली बार हाई कोर्ट जागा है और क़ानून का राज स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. आपने बिना मंज़ूरी के कितनी इमारतें बना ली हैं? कृपया जाइए. जब तक आप इन बेईमान बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते, ये सिलसिला चलता रहेगा. लोग आपकी आड़ में लड़ाई लड़ते रहेंगे, और इसे रोका जाना चाहिए.”

दोनों अदालतों ने कहा कि अगर इसे नहीं रोका गया, तो ठाणे और मुंबई में इस तरह के अवैध निर्माण तेजी से फैल सकते हैं. हाई कोर्ट ने यह भी कहा, “ऐसा निर्माण सरकार और नगर निगम अधिकारियों की सहमति के बिना नहीं हो सकता. यह चौंकाने वाला है कि जिन लोगों ने बड़े पैमाने पर ऐसा निर्माण किया है, वे इतनी भारी रकम खर्च कर सकते हैं और फिर मासूम फ्लैट खरीददारों को धोखा देकर ऐसे निर्माण में फ्लैट/झोपड़ी खरीदने के लिए मजबूर कर सकते हैं,” हाई कोर्ट ने 12 जून के अपने आदेश में यह टिप्पणी की. दिप्रिंट के पास इस आदेश की कॉपी है.

यह इलाका कल्याण ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में आता है और वर्तमान विधायक शिवसेना शिंदे गुट के राजेश मोरे हैं. दिप्रिंट ने मोरे से संपर्क करने के लिए कॉल किए. जब हमें उनकी प्रतिक्रिया मिलेगी, तो रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

अदालत ने ठाणे नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही पर भी नाराज़गी जताई.

अदालत ने टिप्पणी की, “स्थिति इतनी गंभीर है कि यह मानना मुश्किल हो जाता है कि अवैध निर्माण के मामलों में कहीं कोई क़ानून का राज है और क्या ठाणे नगर निगम को यह पता भी है कि उनके पैरों तले और उनके अधिकारियों की नज़रों के सामने क्या हो रहा है.”

अदालत ने कहा कि सिर्फ पुलिस में शिकायत दर्ज कराना और नोटिस देना तब पर्याप्त नहीं होता जब अवैध निर्माण लंबे समय से चल रहा हो. अदालत ने 12 जून को अपना आदेश सुनाते हुए कहा, “मामले की गंभीरता को देखते हुए, यह ज़मीन कब्जाने का साफ मामला है और यह भी साफ है कि शिकायतों पर नगर निगम के अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया. आज हमें यह भी नहीं पता कि ऐसे कितने अवैध निर्माण अनदेखे रह गए हैं, जिन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है, खासकर उन मासूम घर खरीदारों के हित में, जो अपनी जिंदगी की पूंजी लगाकर ऐसे अवैध और बिना अनुमति के निर्माण में मकान खरीदते हैं, जहां न निर्माण की क़ानूनी स्थिति तय है और न ही गुणवत्ता.”

अदालत ने ठाणे के प्रधान जिला न्यायाधीश से कहा है कि वे एक न्यायिक अधिकारी नियुक्त करें, जो अवैध निर्माण के पीछे शामिल लोगों की जांच करें. रिपोर्ट छह हफ्ते में सौंपनी होगी.

दिप्रिंट ने इस पर प्रतिक्रिया के लिए ठाणे नगर आयुक्त सौरभ राव से कॉल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

शिल ठाणे जिले में है, जो ठाणे शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर है. यह मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र का हिस्सा है और वर्षों से मुंबई की बढ़ती आबादी का भार संभालता रहा है. शिल और मुंब्रा की आबादी में ज़्यादातर लोग निम्न आय वर्ग से आते हैं, जो राजमिस्त्री, मज़दूर, बढ़ई, ड्राइवर जैसे काम करते हैं और हर दिन मुंबई आते-जाते हैं.

जीवन दांव पर

हालांकि अदालत अधिकारियों को फटकार लगा रही है, लेकिन मदीना कॉम्प्लेक्स में रहने वाले हज़ारों लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गई है. उनके कॉम्प्लेक्स तक जाने वाली सड़क अब एक कच्ची सड़क बन गई है, जिसमें सिर्फ़ रेत और पत्थर बिखरे हुए हैं. जहां पहले 17 अवैध इमारतें थीं, वह इलाका अब मलबा और टूटे हुए ढांचों में तब्दील हो गया है.

एक समय जो इलाका ख़रीदारों और बच्चों की हंसी से गुलजार रहता था, वहां अब सिर्फ़ जेसीबी और ट्रैक्टर की आवाज़ें सुनाई देती हैं.

तोड़फोड़ की कार्रवाई 12 जून को शुरू हुई, उसी दिन जब हाई कोर्ट ने आदेश दिया था. रहवासियों का कहना है कि उन्हें कोई आधिकारिक नोटिस नहीं मिला. उन्हें सिर्फ़ मौखिक रूप से बताया गया कि परिसर खाली कर दें.

जिनके मकान अब तक नहीं टूटे हैं, वे डर के साए में जी रहे हैं. दिप्रिंट से बात करने वाले ज़्यादातर लोग काम पर नहीं गए थे, बल्कि अपने घरों के बाहर जमा होकर आपात योजना बना रहे थे. वैसे भी उनके घरों के अंदर घुटन है, क्योंकि जिस दिन से तोड़फोड़ शुरू हुई है, उसी दिन से बिजली काट दी गई है.

फर्नीचर इंडस्ट्री में काम करने वाले 29 वर्षीय अब्दुल रहमान ख़ान ने पूछा, “जब ये इमारतें बन रही थीं, तब अधिकारियों को ये अवैध क्यों नहीं लगीं? उन्होंने इसे होने क्यों दिया? अब हमसे क्यों बदला लिया जा रहा है, जब गड़बड़ी अधिकारियों और बिल्डरों ने की?”

ख़ान ने 8 महीने पहले यूपी में अपनी पुश्तैनी ज़मीन गिरवी रखकर और दोस्तों से कर्ज़ लेकर 19 लाख रुपए में एक घर ख़रीदा था. अब उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे पैसे कैसे लौटाएंगे, क्योंकि उनका एक महीने का बच्चा भी है जिसकी देखभाल करनी है.

इसी तरह की कहानी है 26 वर्षीय फार्मासिस्ट एजाज़ ख़ान की, जिन्होंने एक साल पहले घर ख़रीदा था और अब उनके पास पांच महीने का बच्चा है. “मैंने एग्रीमेंट से पहले सारे कागज़ात देखे थे. सब कुछ सही लग रहा था, इसलिए घर ले लिया. अब जब से बिजली कटी है, मेरे बच्चे के पूरे शरीर पर मच्छरों के काटने के निशान हैं. अगर मेरा घर तोड़ दिया गया, तो मैं अपनी दूध पिलाती पत्नी और छोटे बच्चे के साथ कहां जाऊं?” उन्होंने पूछा.

खालिद मोहम्मद, जो एक टूटी हुई इमारत के मलबे पर बैठे थे, ने दिप्रिंट को बताया कि वे बिल्डर के दोस्त हैं. उन्होंने कहा, “यहां बिल्डरों पर अंडरवर्ल्ड कनेक्शन, ज़मीन कब्ज़ा और लैंड माफिया जैसे जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, ये सब बेबुनियाद हैं.” उन्होंने कहा, “इन इमारतों और इनके निर्माण के बारे में सबको पता था। फिर पहले किसी ने कुछ क्यों नहीं कहा? पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया? इस सब में नुकसान सिर्फ़ हमारा हुआ है—हम लोगों का, जिन्होंने मेहनत की कमाई लगाकर घर और दुकानें ख़रीदी थीं.”

एक और चिंता मानसून की है. “जब लगातार बारिश हो रही है, तो हमें घर खाली करने के लिए क्यों कहा जा रहा है? आमतौर पर अदालत समय देती है. इस मामले में इतनी जल्दबाज़ी क्यों? हमें वैकल्पिक जगह खोजने के लिए थोड़ा समय तो दिया जाना चाहिए,” यह कहना है 20 वर्षीय छात्र परवेज़ ख़ान का, जिनके पिता टैक्सी चलाते हैं.

हाई कोर्ट में यह मामला अब भी चल रहा है और 19 जून की पिछली सुनवाई में अदालत ने ठाणे नगर निगम के कमिश्नर से कहा कि जो अधिकारी इसमें शामिल हैं, उनके खिलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए. अगली सुनवाई 26 जून को होनी है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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