नई दिल्ली: भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के करीब दर्जन भर छात्र दिल्ली कैंपस में भूख हड़ताल पर बैठे हैं. उनकी भूख हड़ताल सस्ती शिक्षा के लिए है. हड़ताल में शामिल ज़्यातादर छात्र ऐसे हैं, जिन्हें निलंबित कर दिया गया है. प्रशासन का कहना है कि तकनीकी तौर पर वो निलंबित नहीं हैं. हड़ताल करने वाले बच्चों का दावा है कि सस्ती शिक्षा पर एक टॉक शो रखने के लिए संस्थान ने 11 छात्रों को निलंबित कर दिया.
दरअसल, बीते 9 फरवरी को आईआईएमसी में आईआईएमसी एलुम्नाई एसोसिएशन (आईआईएमसीएए) ने कनेक्शन नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जो हर साल होता है. वर्तमान सत्र के कुछ छात्रों ने इस आयोजन के एक दिन पहले प्रशासन से इसकी अनुमति मांगी कि वो संस्थान के भीतर सस्ती शिक्षा पर आयोजन के दिन एक टॉक शो आयोजित करना चाहते हैं.
संस्थान ने अनुमति देने से मना कर दिया और कहा कि आयोजन करने वाले छात्रों पर अनुशासनात्मक कारवाई की जाएगी. इसके बाद भी कुछ छात्रों ने कार्यक्रम का आयोजन किया. आईआईएमसी ने अगले दिन उन पर कार्रवाई करते हुए, उन्हें निलंबित कर दिया और अगले पांच दिन में यह जवाब मांगा है कि आगे उनपर कार्रवाई क्यों न की जाए?
संस्थान ने इसे कोड ऑफ कंडक्ट का वॉयलेशन बताया और छात्रों से पूछा कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए. इसके बाद जवाब देने वाले दो छात्रों का निलंबन वापस ले लिया गया. लेकिन, सामूहिक तौर पर जवाब देने वाले बाकी के छात्र अभी भी निलंबित हैं.
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हालांकि, संस्थान के एक प्रोफेसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि तकनीकी रूप से छात्र अब निलंबित नहीं हैं क्योंकि जवाब नहीं देने का बाद उनके निलंबन की जो समय सीमा बढ़ाई गई थी, वो बृहस्पतिवार को समाप्त हो गई. उन्होंने कहा, ‘इसके बाद कोई नया आदेश जारी नहीं किया गया जिसका मतलब है कि छात्र अब निलंबित नहीं हैं.’
सस्ती शिक्षा को लेकर दिसंबर में चला छात्रों का विरोध प्रदर्शन इस वादे के साथ खत्म हुआ कि मसले पर एक्सिक्यूटिव काउंसिल की आपातकालीन मीटिंग बुलाई जाएगी और जबतक फीस पर कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक फीस का कोई सर्कुलर नहीं आएगा. छात्रों का कहना है कि उनके निलंबन के तुरंत बाद फीस से जुड़ा सर्कुलर आ गया.
आईआईएमसी के चेयरमैन रवि मित्तल ने डीजी धतवलिया को निर्देश दिया था कि मामले पर वो एक कमेटी बनाएं और फीस के मामले का अध्ययन कर 2 मार्च तक रिपोर्ट सौंपे. इस पर एक प्रदर्शनकारी छात्र ऋषिकेश कुमार ने कहा, ‘हमारा शक है कि वो कमेटी बनी भी है या नहीं क्योंकि एक फैकल्टी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया था कि ऐसी कोई कमेटी की जानकारी नहीं है.’
हालांकि, संस्थान के एक प्रोफेसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस कमेटी का गठन कर दिया गया है. जिसमें एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल के दो सदस्यों के अलावा आईआईटी दिल्ली समेत बाहर के लोग भी शामिल हैं. फ़ीस के मामले पर कमेटी को अपनी रिपोर्ट दो महीने में एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल को सौंपनी है जिसके बाद आगे का फ़ैसला लिया जाएगा.
छात्रों की मांग है कि जबतक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आती तब तक दूसरे सेमेस्टर के फीस सर्कुलर को फिर से रद्द किया जाए और उन्हें कमेटी के अब तक के काम की जानकारी दी जाए. साथ ही सारे छात्रों का निलंबन बिना शर्त वापस लिया जाए. इन छात्रों को जेएनयू स्टूडेंट यूनियन का भी समर्थन प्राप्त है.
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हालांकि, लंबे समय से सस्ती शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ने वाले जेएनयू के छात्र जब शिक्षा मंत्रालय और अपनी यूनिवर्सिटी को इसके लिए नहीं मना सकें, तो दिल्ली हाई कोर्ट चले गए. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार खुद को शिक्षा से अलग नहीं कर सकती.
आईआईएमसी के छात्रों का भी यही कहना है कि अगर संस्थान उनकी मांग नहीं मानता तो वो भी हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी में हैं.
हालांकि, बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर संस्थान के एक अन्य शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सातवें वेतन आयोग के समय सरकार ने सभी संस्थानों को ये साफ़ कह दिया था कि उन्हें अपने ख़र्च का 30 प्रतिशत स्वयं निकालना होगा.
उन्होंने कहा, ‘इसके लिए हमने कैंपस में दुकान-बैंक खुलवाने से लेकर मोबाइल टावर लगवाने और ऑडिटोरियम को किराए पर देने तक का काम किया फ़िर भी 30 प्रतिशत ख़र्च निकालना मुश्किल है.’ उनकी मानें तो फ़ीस बढ़ाना संस्थान के लिए कोई विकल्प नहीं बल्कि मजबूरी है.