नई दिल्ली: मोदी सरकार की ‘कड़ी आपत्तियों’ के बावजूद, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा को बिजनेस स्कूल के प्रमुख के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 28 मार्च को शर्मा को उनकी शैक्षणिक योग्यता को छिपाने और गलत तरीके से प्रस्तुत करने के लिए, एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
शर्मा अपने रिकॉर्ड में दर्शायी शैक्षणिक योग्यता और साथ ही अपनी योग्यता में कथित अनियमितताओं को लेकर जांच के दायरे में हैं. उनकी नियुक्ति के खिलाफ पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में दायर एक याचिका के अनुसार, उन्होंने संस्थान को इससे संबंधित कोई दस्तावेज जमा नहीं कराए हैं.
मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि शर्मा को फरवरी 2017 में आईआईएम-रोहतक का निदेशक नियुक्त किया गया था. उनका मौजूदा कार्यकाल इस साल 28 फरवरी को पूरा हो गया. उसी दिन, शिक्षा मंत्रालय के एक प्रतिनिधि के साथ संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में बोर्ड ने शर्मा को नए कार्यकाल के लिए नियुक्त करने का फैसला किया, जबकि मंत्रालय ने उनकी योग्यता में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया था.
भारतीय प्रबंधन संस्थान अधिनियम, 2017 आईआईएम को अपने निदेशकों की नियुक्ति को लेकर व्यापक अधिकार देता है. हालांकि, अधिनियम कहता है, ‘बोर्ड इस अधिनियम के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अपना काम करेगा और केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह होगा.’
जे डी श्रॉफ की अध्यक्षता वाले आईआईएम रोहतक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव और उच्च शिक्षा सचिव भी हैं.
दिप्रिंट की तरफ से संपर्क किए जाने पर, शर्मा के वकील विवेक सिंगला ने कहा, ‘प्रो. धीरज शर्मा ने मंत्रालय को स्नातक की डिग्री उपलब्ध नहीं कराई थी, इस आधार पर उन्हें कारण बताओ (नोटिस) जारी किया गया है. ये आरोप आधारहीन है क्योंकि प्रो. धीरज शर्मा ने मंत्रालय को भेजे अपने जवाब में, 30 मार्च 2016 को अन्य दस्तावेजों के साथ अपनी स्नातक की डिग्री भी मेल की थी. उक्त ईमेल को कोर्ट के समक्ष रखा गया है.’
सिंगला ने आगे कहा कि निदेशक पद के लिए जारी विज्ञापन में आवेदन के दो तरीके थे—एक-आवश्यक योग्यता पूरी करने वाले आवेदक आवेदन कर सकते हैं और दूसरा-प्रबंधन और प्रबंधन शिक्षा के क्षेत्र से दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा नामांकन के माध्यम से.
सिंगला ने कहा, ‘प्रो. शर्मा विश्व स्तर पर सबसे प्रमुख प्रबंधन शोधकर्ताओं में से एक हैं. पूरा विवाद आईआईएम-रोहतक के बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से दायर एक प्रॉक्सी याचिका के कारण उपजा है. कारण बताओ नोटिस जारी करने का कोई आधार नहीं है.’
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शर्मा के खिलाफ ‘कानूनी विकल्प तलाश रही सरकार’
2019 में, शर्मा की नियुक्ति को चुनौती देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें शैक्षणिक योग्यताओं में विसंगतियों की बात कही गई थी. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शर्मा ने ग्रेजुएशन में फर्स्ट डिविजन हासिल नहीं की है, जबकि आईआईएम निदेशक पद पर नियुक्त होने के लिए यह एक अनिवार्य योग्यता है. उस समय, मंत्रालय ने शर्मा की नियुक्ति में किसी तरह की अनियमितता से इनकार करते हुए कोर्ट से कहा था कि नियुक्ति में ‘उचित प्रक्रिया’ का पालन किया गया है.
हालांकि, सरकार ने इस महीने की शुरुआत में कोर्ट में स्वीकारा कि शर्मा की नियुक्ति पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करती है. 2021 में, मंत्रालय ने शर्मा को तीन बार पत्र लिखकर उनसे अपने स्नातक प्रमाणपत्र जमा करने को कहा था. शैक्षणिक प्रमाणपत्र इस साल फरवरी के अंतिम सप्ताह में मंत्रालय को मिले थे. जिससे पता चला कि बैचलर डिग्री में उनकी सेकेंड डिविजन थी. जबकि निदेशक बनने के लिए फर्स्ट क्लास बैचलर डिग्री की जरूरत होती है.
मंत्रालय के सूत्र ने बताया, ‘जब हमें पता चला कि उनके पास सेकेंड डिवीजन वाली बैचलर डिग्री है तो इस मसले को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के समक्ष उठाया गया. हमने कहा था कि शर्मा ने सरकार से इस महत्वपूर्ण जानकारी को छिपाया है, और उन्हें निदेशक के रूप में नई नियुक्ति नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन मंत्रालय की आपत्ति को खारिज कर दिया गया.’
सूत्र ने कहा कि मंत्रालय अब शर्मा के खिलाफ कानूनी विकल्प तलाश रहा है.
सूत्र ने बताया, ‘सच यह है कि वह एक निदेशक के पद के लिए योग्य नहीं थे और वह अभी भी पद पर बने हुए हैं. उन्होंने अनैतिक भ्रष्टाचार का काम किया है. उन्होंने अपने पद पर रहते हुए जो वित्तीय लाभ हासिल किए वो अनुचित है. हम उनके कारण बताओ नोटिस का जवाब देने का इंतजार कर रहे हैं. साथ ही यह भी पता लगा रहे हैं कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है.’
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