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Monday, 23 December, 2024
होमदेश'अगर आप चाहते हैं कि हम जजों की नियुक्ति करें, तो करेंगे.' कानून मंत्री की टिप्पणी पर SC का ऐतराज

‘अगर आप चाहते हैं कि हम जजों की नियुक्ति करें, तो करेंगे.’ कानून मंत्री की टिप्पणी पर SC का ऐतराज

रविवार को एक टीवी चैनल के शिखर सम्मेलन में, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली, जिसके तहत शीर्ष अदालत और देश के उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति होती हैं, में कुछ खामियां हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू के इस बयान की ‘सराहना’ नहीं की कि कॉलेजियम ‘अपने दम पर जजों की नियुक्ति कर सकता है और वही इसे चला सकता है’.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ए.एस. ओका की पीठ ने कहा कि उन्हें हमें यह शक्ति देने दीजिये और फिर हम ऐसा ही करेंगे.

कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला करते हैं.

सोमवार को, अदालत ने सरकार को कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को मंजूरी दिलाने के लिए न्यायिक आदेश पारित करने के प्रति आगाह भी किया.

उसी सुनवाई में, पीठ ने केंद्र सरकार को याद दिलाया कि उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए देश का मौजूदा कानून कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से है. हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा इसका उल्लंघन किया जा रहा है.

न्यायाधीशों ने कानून मंत्री के एक दिन पुराने बयान का जिक्र करते हुए आगे कहा कि वे सरकार द्वारा की जा रही स्पष्ट अवज्ञा और यहां तक कि ‘उच्च पद पर आसीन लोगों द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों के प्रति ‘धैर्य’ का रुख रखे हुए हैं.

पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, ‘एनजेएसी (नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन) के द्वारा संवैधानिक अधिकार जुटाए न जा सकने से सरकार नाखुश दिख रही है, पर देश के कानून का पालन न करने की यह वजह नहीं हो सकती है.’

टाइम्स नाउ शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, रिजिजू ने इस धारणा पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी कि केंद्र सरकार कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को दबाये बैठा है. मंत्री ने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ खामियां हैं.

रिजुजू ने कहा था, ‘ऐसा मत कहिए कि हम फाइलों को दबाये बैठे हैं, लेकिन अगर आप ऐसा कहना ही चाहते हैं, तो अपने दम पर जज नियुक्त करें और सारा काम चलाएं.’

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने मंत्री रिजिजू की टिप्पणी की तरफ पीठ का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करने का आग्रह किया.

सिंह द्वारा किये गए इसी उल्लेख पर अदालत ने शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा दोहराये गए नामों को मंजूरी नहीं देने के लिए केंद्र के खिलाफ दायर 2021 की अवमानना याचिका पर ध्यान दिया. केंद्र की आपत्तियों के बावजूद शीर्ष नियुक्ति निकाय ने इन नामों को मंजूरी दे दी थी. मेमोरेंडम ऑफ प्रॉसिजर (एमओपी) के अनुसार, सरकार उन्हें अधिसूचित करने के लिए बाध्य है.


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सिंह ने पीठ से कहा था कि कानून मंत्री कह रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय को (नियुक्ति के लिए) अधिसूचना जारी करने दीजिए. इस पर जस्टिस कौल ने कहा, ‘उन्हें (सरकार को) हमें यह शक्ति देने दीजिए.’

इसके बाद वेंकटरमणि की ओर रुख करते हुए, न्यायमूर्ति कौल ने कहा: ‘हमने प्रेस की सभी ख़बरों को नजरअंदाज कर दिया है, लेकिन यह किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति की तरफ से आया है, (उन्हें) इसे नहीं करना चाहिए था. अगर हमें (निर्णय लेना) है, तो हम जरूर लेंगे.’

वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र की ओर से उपस्थित थे, ने अदालत को यह समझाने का प्रयास किया कि मीडिया रिपोर्टों की तरफ इशारा करना गलत होगा, पीठ ने यह कहकर जवाब दिया कि यह बयान एक ‘साक्षात्कार’ के दौरान दिया गया था, और इसलिए, इस बात से ‘इनकार करना मुश्किल है’ कि आपने क्या कहा है.’

‘नामों को दबा कर बैठी नहीं रही सकती है सरकार’

पीठ ने यह भी कहा कि (नियुक्ति) कानून को लेकर कई लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन जब तक यह कायम है, यही देश का कानून है. इसने दोनों कानून अधिकारियों से रचनात्मक भूमिका निभाने की कामना की और सरकार को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि ‘इस अदालत द्वारा निर्धारित देश के कानून’ का पालन किया जाए.

जस्टिस कौल ने वेंकटरमणि और मेहता दोनों से कहा, ‘सुनिश्चित कीजिये कि काम का कुछ हिस्सा पूरा हो.’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘वे उच्च पदों पर आसीन हैं, सरकार को उनकी बात सुननी चाहिए, वे सरकार को हमारी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सक्षम और वरिष्ठ अधिकारी हैं.’

न्यायाधीशों ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि अतीत में सरकार ने ‘एक दिन’ में कार्रवाई की है और नामों को मंजूरी दे दी है. यह संदर्भ शीर्ष अदालत के साथ-साथ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए कुछ नामों को अतीत में दी गई फास्ट-ट्रैक मंजूरी के प्रति था.

न्यायाधीशों ने कहा, ‘एक बार नामों को दोहराए जाने के बाद, इस तरह से नाम दबाये रखना लक्ष्मण रेखा को पार करना है. इससे क्या होता है कि आप वरिष्ठता को पूरी तरह से बिगाड़ कर रख देते हैं, कॉलेजियम इस सब पर विचार करता है.’ साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को नियुक्तियों में देरी करने के लिए ‘प्रोत्साहित’ नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह एक गलत उदाहरण पेश करेगा और जनता को बड़े पैमाने पर कानून का उल्लंघन करने का विचार देगा.

जस्टिस कौल ने सवाल किया, ‘तथ्य यह है कि एनजेएसी के पास संवैधानिक अधिकार नहीं है, पर यह देश के कानून का पालन नहीं करने का कोई कारण नहीं हो सकता है. आइए इसके दुष्परिणामों को देखते हैं. कभी-कभी, आपके (सरकार) द्वारा बनाये गए किसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखा जाता है. समाज का एक वर्ग (हमेशा) ऐसा हो सकता है जो नाखुश होगा. क्या वह वर्ग (समाज का) कह सकता है कि हम कानून का पालन नहीं करेंगे.’

पीठ ने जोर देकर कहा कि सरकार इन नामों को दबा कर बैठ नहीं सकती है और उसके पास केवल दो विकल्प हैं – या तो नियुक्तियों को अधिसूचित करें या पुनर्विचार के लिए आपत्तियों के साथ वापस भेजें. और, अगर नामों को फिर से दोहराया जाता है, तो सरकार को नियुक्ति को अंतिम रूप देना ही होता है.

पीठ ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि ‘अच्छे अधिवक्ताओं’ द्वारा न्यायपालिका का विकल्प न चुनने का प्राथमिक कारण नामों को मंजूरी देने में अस्पष्ट तौर पर देरी है. दोनों न्यायाधीशों ने कानून के अधिकारियों से कहा कि वकीलों को पीठ में शामिल होने के लिए राजी करना मुश्किल हो रहा है और इससे न्यायिक नियुक्तियों की ‘गुणवत्ता’ नीचे आ सकती है, जो ‘किसी के हित में नहीं है’.

न्यायमूर्ति कौल ने साल 2020 के एक फैसले का उल्लेख किया जिसमें नियुक्तियों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय की गई थी. उनमें से एक ने केंद्र सरकार को उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए उम्मीदवारों की जांच पूरी करने के लिए 4 महीने का समय दिया था, इससे पहले कि इसे बाद के अंतिम अनुमोदन के लिए शीर्ष अदालत के कॉलेजियम में भेजा जाए. इसी परीक्षण प्रक्रिया में उम्मीदवार की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी एकत्र करना शामिल है.

न्यायाधीशों ने वकील से कहा कि दरअसल जमीनी हकीकत यह है कि नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है. खंडपीठ के अनुसार, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा भेजे गए 68 नाम सरकार के पास (मंजूरी के लिए) पड़े हैं. उनमें से कुछ चार महीने से अधिक समय से उसके पास हैं. पीठ ने कहा, ‘बिना किसी आपत्ति के कुछ नाम वापस किये जाने से हताशा होती है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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