चंडीगढ़: पंजाब विजीलैंस ब्यूरो ने करोड़ों रुपये के कथित अमरूद के बाग मुआवजा घोटाले में आईएएस अधिकारी राजेश धीमान की पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
शनिवार को मोहाली में दर्ज एफआईआर के अनुसार, धीमान की पत्नी जसमीन कौर उन 18 आरोपियों में से एक हैं, जिन्होंने मोहाली के बकरपुर गांव में अमरूद के बागों के अधिग्रहण के लिए फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकार से मुआवजे के रूप में कथित तौर पर करोड़ों रुपये लिए थे.
एफआईआर में कहा गया है कि आरोपी को मिला कुल मुआवजा 86 करोड़ रुपये से अधिक का है, जबकि धीमान की पत्नी को मुआवजे के रूप में 1.17 करोड़ रुपये मिले थे.
धीमान, जिन्हें कुछ साल पहले प्रांतीय सिविल सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रमोट किया गया था, वर्तमान में फिरोजपुर के उपायुक्त के रूप में तैनात हैं.
उन्होंने यह कहते हुए आरोपों को खारिज कर दिया कि उनकी पत्नी द्वारा जमीन की खरीद एक वास्तविक लेन-देन थी.
आरोपियों में बाकरपुर के एक सेवानिवृत्त उप निदेशक और तत्कालीन पटवारी समेत उद्यान विभाग के तीन अधिकारी शामिल हैं. विजिलेंस अधिकारियों ने बताया कि एक प्रापर्टी डीलर समेत सात आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है.
एफआईआर की एक कॉपी जो दिप्रिंट के पास है, में कहा गया है कि जब 2016 से गमाडा द्वारा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही थी तब धीमान ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी, मोहाली में एक वरिष्ठ पद (अतिरिक्त मुख्य प्रशासक) पर तैनात थे. आरोपी का गमाडा में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों से भी संपर्क था.
एफआईआर में कहा गया है कि आरोपियों ने धीमान सहित इन अधिकारियों से आसन्न अधिग्रहण के बारे में पूर्व सूचना एकत्र की और अधिग्रहण के तहत जमीन खरीदी.
धीमान ने कहा कि वह 2018 में गमाडा में तैनात थे और उस समय क्षेत्र में चल रहे भूमि अधिग्रहण की जानकारी लगभग सब को ही थी. धीमान ने शनिवार को दिप्रिंट को बताया, “2017 में, तत्कालीन आवास मंत्री ने क्षेत्र में एक आवास परियोजना की घोषणा की थी, और हर कोई यह बात जानता था कि उस क्षेत्र में जल्द ही भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा.”
एफआईआर में कहा गया कि इस तथ्य के बावजूद कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 11 के तहत अधिसूचना पहले ही जारी की जा चुकी थी, अभियुक्तों ने अपनी भूमि के अधिग्रहण के लिए सरकार से मुआवजा हासिल करने के लिए अवैध रूप से जमीन खरीदी, जो कि मूल लागत से बहुत अधिक थी.
एफआईआर में कहा गया है कि अवैध रूप से जमीन खरीदने के अलावा, अभियुक्तों ने यह दिखा कर सरकार को धोखा दिया कि उनकी जमीन पर अमरूद के घने बाग मौजूद थे. परिणाम यह हुआ कि अभियुक्तों को अपने आय के लिए अतिरिक्त मुआवजा भी मिला, जो उन्होंने इन बागों से अगले 20 वर्षों में अर्जित की होगी.
धीमान ने कहा कि जब उनकी पत्नी ने 2018 में जमीन खरीदी थी, तो यह पहले से ही एक बगीचे के खेत के रूप में पंजीकृत थी और खेतों का आकलन बागवानी विभाग द्वारा किया गया था. उन्होंने कहा, “मैंने अधिग्रहण से जुड़ी किसी फाइल को नहीं देखा, न ही मैंने मूल्यांकन बढ़ाने के लिए किसी से संपर्क किया. जब तक मुआवजे की घोषणा की गई, तब तक मैं गमाडा छोड़ चुका था.”
एफआईआर में आगे कहा गया है कि कुछ मामलों में आरोपियों ने जमीन नहीं खरीदी, लेकिन गांव के पटवारी की मदद से खुद को उस जमीन का पट्टाधारक दिखाने में कामयाब रहे, जिस पर उन्होंने अमरूद के पेड़ लगाए थे. ऐसे मामलों में, उन्हें इन बागों से अनुमानित आय के लिए करोड़ों का मुआवजा तब भी मिला, जब उनके पास जमीन नहीं थी.
एफआईआर के अनुसार मुआवजे को बढ़ाने के लिए, आरोपी बागवानी विभाग से फर्जी मूल्यांकन प्रमाणपत्र हासिल करने में भी कामयाब रहे थे.
इसमें आगे कहा गया कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक एकड़ भूमि में 132 से अधिक अमरूद के पेड़ नहीं हो सकते. लेकिन, मुआवजे की मांग के लिए अगले 20 वर्षों में अनुमानित आय बढ़ाने के लिए आरोपियों ने प्रति एकड़ 2,000 से 2,500 पेड़ लगाए गए थे.
घोटाले में शामिल बागवानी अधिकारियों ने कथित रूप से प्रमाण पत्र दिया कि इन बागों में उगने वाले अमरूद बहुत उच्च गुणवत्ता वाले हैं, जो मालिकों को बढ़े हुए मुआवजे के योग्य भी बनाते हैं.
(संपादन: अलमिना खातून)
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