scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमदेशमहिला अधिकारी ने परिवारों को दी 'लवेरिया' से लड़कियों को बचाने की टिप्स

महिला अधिकारी ने परिवारों को दी ‘लवेरिया’ से लड़कियों को बचाने की टिप्स

इस पोस्ट में विजातीय प्रेम विवाहों को रोकने की सारी जिम्मेदारी लड़कियों के ऊपर ही छोड़ दी गई है. लड़को के लिए पोस्ट में एक भी टिप नहीं है.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते लड़कियों को लवेरिया से बचाने के उपायों वाली पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी. दिप्रिंट ने इस पोस्ट को लिखने वाली पूर्व डीएसपी रेखा जैन से भी बात की. रेखा जैन ने फोन उठाते ही सबसे पहले नाम पूछा, फिर सरनेम भी पूछा और किस राज्य से हूं, भी पूछा. उसके बाद उन्होंने बताया, ‘मैं फेसुबक पर नहीं हूं. पोस्ट में लिखी गई बातें मेरी ही हैं जो व्हॉटसऐप के ज़रिए सोशल मीडिया पर पहुंचती हैं.’

वो आगे कहती हैं, ‘लड़कियों के साथ बलात्कार होने पर लड़कियों का ही तो नुकसान होता है. इस पोस्ट में क्या गलत है?’

क्या थी ये विवादास्पद पोस्ट?

पोस्ट के शुरू में लिखा था, ‘मैं पुलिस की नौकरी में 25 साल के अनुभव के साथ कह सकती हूं कि ऐसा होने से पहले ही रोका जा सकता है.’ आगे इसमें घर परिवार से लेकर मोहल्ले और रिश्तेदारों पर घर की लड़कियों पर विशेष नजर रखने के लिए कहा गया है. पूर्व डीएसपी होने के नाते रेखा जैन ने बताया है कि उन्होंने बहुत सी भागी हुई लड़कियां पकड़ी हैं और ये पोस्ट उसी रिसर्च का नतीजा है.

बच्चियों के विषय में पूर्व डीएसपी और महिला नाम के साथ लिखे गए पोस्ट को वैधता आसानी से मिल गई और लोगों ने इसे शेयर किया. इस पोस्ट के मुख्य कुछ प्वॉइंट इस प्रकार हैं- अगर लड़की एकांत में रहने लगी हो, अगर लड़की की नई सहेलियां बनने लगी हों और घर आने लगी हों, लड़की ने सजना धजना शुरू कर दिया हो, लड़की फोन पर रहने लगी हो, शाम को ही किताब लेने जाना या टीचर के यहां जाना, खर्चा बढ़ जाना.

प्रीति भारद्वाज की पोस्ट.

इस पोस्ट के मुताबिक अगर ये सब लक्षण आपकी बिटिया में हैं. तो वो निश्चित ही लवेरिया का शिकार हो गई है. साथ ही माता-पिता और अभिभावकों को भी हिदायत दी गई है कि अपने बच्ची की खरीदारी खुद करवाएं, छप पर घूमने के समय नजर रखें, कल्चर प्रोग्राम, स्पेशल क्लास से लेकर हर चीज पर ध्यान दें.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

भाई बहन के रिश्ते को लेकर भी नसीहत दी गई है कि अगर भाई भी लवेरिया में पड़ गया होगा. तो वो बहन की तरफदारी करेगा. अगर वो ठीक रास्ते पर होगा तो उसकी और बहन की नहीं पटेगी. साथ ही माता-पिता को भी पति-पत्नी की तरह ना रहने की सलाह दी गई है.

हरियाणा महिला आयोग की वाइस चेयरपर्सन प्रीति भारद्वाज का पक्ष

प्रीति भारद्वाज ने इसे अपने फेसबुक पेज शेयर किया तो चौरतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा. प्रीति कुसुम नाम की एक महिला ने पूछा कि एक सम्मानजनक पद पर बैठी महिला ऐसी बातें शेयर करेंगी तो आम लोगों में क्या मैसेज जाएगा? एक और महिला ने कमेंट करके पूछा कि 21वीं सदी की महिलाओं के लिए इस तरह के टिप्स कैसे दिए जा रहे हैं.

प्रीति भारद्वाज की पोस्ट.

लोगों द्वारा इस पोस्ट की आलोचना करने के बाद प्रीति भारद्वाज ने माफी मांगते हुए ये पोस्ट डिलीट कर दी. प्रीति ने दिप्रिंट से बात करते हुए बताया, ‘पोस्ट शेयर करने के पीछे मेरी खराब मंशा नहीं थी. मेरे पेज पर मैं हमेशा अच्छा काम शेयर करती हूं. लोगों को आपत्ति हुई तो मैंने पोस्ट हटा ली. साथ ही माफी भी मांगी.’

विजातीय प्रेम विवाह से इतनी दिक्कत क्यों?

इस पोस्ट पर पुरुषों ने भी सवाल उठाए. कमाल की बात ये हुई कि विजातीय प्रेम विवाहों को रोकने की सारी जिम्मेदारी लड़कियों के ऊपर ही छोड़ दी गई है. लड़को के लिए इस पोस्ट में एक भी टिप नहीं है.

रेखा जैन इस बारे में कहती हैं, ‘लड़कों का तो कोई नुकसान नहीं होता. सारा नुकसान लड़कियों का ही होता है. इसलिए लड़कियों को ही समझाना जरूरी है. आजकल रेप की घटनाएं भी बढ़ गई हैं. लड़को का तो रेप नहीं होता.’

जब मैंने उन्हें ध्यान दिलाया कि पोस्ट विजातीय विवाह और लवेरिया से बचाने के बारे मेंं है तो वो कहती हैं, ‘हां, तो विजातीय विवाह सफल ही कहां होते हैं. भारतीय संस्कृति जब तक नहीं सिखाई जाएगी तब तक ये केस ऐसे ही होते रहेंगे. अगर लड़कियों को सुरक्षित रखना है तो ये सब तो मानना ही पड़ेगा. मैंने वकालत, दो-दो पीएचडी और कई साल जेल में डीएसपी के तौर पर बिताए हैं. मैं मनोविज्ञान भी जानती हूं.’

जातीय ढांचे के टूटने से भला क्या दिक्कत?

ये बात सच है कि पितृसत्ता को ढोने वालों में महिलाएं भी शामिल हैं. ये खतरनाक तब हो जाता है. जब वो महिलाएं सम्मानजनक पदों पर हों. ऐसे में उनकी बातों को वैधता मिल जाती है. मीटू आंदोलन के दौरान भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. जब आरोपी पुरुषों का बचाव करने महिलाएं सामने आ गई थीं. अचानक से सब महिलाओं बुरे अनुभवों पर सवाल उठाए जाने लगे. समाज की फैली हर बुराई का अंत औरतों पर पाबंदी से मान लिया जाता है. बच्चियों के खान-पान से लेकर पहनावे और उसके निजी समय पर अंकुश लगाने वाली ये पोस्ट ना शेयर करने लायक है ना ही ऐसे विचार हमारे समाज में जगह देने लायक. जातीय ढांचा जितना जल्दी टूटे, टूट जाना चाहिए.

share & View comments