गुरुग्राम: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भारत के महासर्वेक्षक को यमुना नदी के बदलते रुख और उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा पर इसके प्रभाव को समझने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा है कि महासर्वेक्षक को नदी के किनारों पर चल रहे ज़मनी के विवादों को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों की राजस्व एजेंसियों की सहायता से नदी के बदलते रुख की जांच करनी चाहिए.
कोर्ट ने पाया कि समय के साथ नदी ने अपना रास्ता बदल लिया है, जिससे हरियाणा और उत्तर प्रदेश दोनों के क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं.
इसने दोनों राज्यों के बीच सीमा स्तंभों की स्थापना और सभी प्रासंगिक आर्काइव्स को अपडेट करने का भी आदेश दिया है. कोर्ट ने टिप्पणी की कि हालांकि, यह एक महत्वपूर्ण कोशिश है, लेकिन ज़मीन के मालिकाना अधिकारों को सटीक रूप से निर्धारित करना ज़रूरी है.
हाई कोर्ट का यह आदेश दोनों राज्यों के बीच ज़मीन के मालिकाना हक और अधिकार क्षेत्र को लेकर चल रही लंबी कानूनी लड़ाई के बीच आया है.
इस महीने की शुरुआत में जिस मामले में निर्देश दिए गए थे, वह हरियाणा के मंझावली गांव के भूस्वामियों से जुड़ा है, जिनके पास यमुना के किनारे 300 बीघा ज़मीन है. याचिकाकर्ता ईश्वर सिंह और अन्य, ज़मीन के हक की स्थिति से संबंधित राजस्व रिकॉर्ड में सुधार की मांग कर रहे थे.
शुरुआत में यह ज़मीन हरियाणा के इलाके में थी, लेकिन नदी के रास्ते में बदलाव के कारण यह उत्तर प्रदेश में चली गई. हालांकि, 1984 के एक समझौते के तहत उत्तर प्रदेश ने उक्त ज़मीन के राजस्व रिकॉर्ड हरियाणा को हस्तांतरित कर दिए, लेकिन कथित तौर पर राज्य के अधिकारियों ने उन्हें तदनुसार अपडेट नहीं किया.
यह कानूनी विवाद कई दशक पुराना है. पुराने रिकॉर्ड के अनुसार, विचाराधीन ज़मीन मूल रूप से पंडित गौरी शंकर की थी, लेकिन यमुना के रास्ते में बदलाव के कारण यह ज़मीन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की तहसील सिकंदराबाद के अधिकार क्षेत्र में आ गई.
उत्तर प्रदेश के राजस्व रिकॉर्ड में 1946 की शुरुआत में ही इस क्षेत्र की पहचान चक मंझावली के रूप में की गई थी. अदालत के आदेश के अनुसार, इसके पंजीकृत बिक्री विलेख में भी इसे हरियाणा के मंझावली में दर्ज किया गया है.
पंडित गौरी शंकर ने 1948 में शिवचरण, बिशेषर दास और राम गोपाल के पक्ष में ज़मीन का पट्टा निष्पादित किया.
1950 में उत्तर प्रदेश राज्य की विधानमंडल ने उत्तर प्रदेश ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम पारित किया. उक्त अधिनियम के अनुसार, उक्त पट्टेदारों (शिवचरण और अन्य) ने 1959 में उत्तर प्रदेश राज्य के पास भूमि राजस्व का दस गुना जमा किया और तदनुसार संबंधित ज़मीन के ज़मींदार बन गए.
उक्त ज़मींदारों और उनके उत्तराधिकारियों ने उक्त ज़मीन को वर्तमान याचिकाकर्ताओं (ईश्वर सिंह और अन्य) के पक्ष में बेच दिया और उसके बाद से संबंधित ज़मीन याचिकाकर्ताओं के ही कब्ज़े में रही.
1984 में दीक्षित अवार्ड समझौते के तहत यूपी सरकार द्वारा ज़मीन के राजस्व रिकॉर्ड हरियाणा को हस्तांतरित करने के बाद विवाद और बढ़ गया.
हालांकि, रिकॉर्ड को अपडेट करने में विसंगतियों के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और कई कानूनी विवाद हुए.
फरीदाबाद में राजस्व अधिकारियों और गुरुग्राम में संभागीय आयुक्त के समक्ष कई कानूनी लड़ाइयों के बाद, याचिकाकर्ताओं ने मामले में पारित पिछले आदेशों से असंतुष्ट होकर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की.
न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और विकास सूरी की खंडपीठ ने दोनों राज्यों द्वारा प्रस्तुत व्यापक ऐतिहासिक दस्तावेज़, राजस्व रिकॉर्ड और कानूनी तर्कों की जांच की.
कोर्ट ने यमुना के बदलते रास्ते के कारण सीमांकन में स्पष्टता की कमी को स्वीकार किया और कहा कि वर्षों से प्रशासनिक फैसले इस मुद्दे को निर्णायक रूप से हल करने में विफल रहे हैं.
कोर्ट का हस्तक्षेप
भारत के महासर्वेक्षक को सर्वेक्षण के लिए निर्देश जारी करते हुए, हाई कोर्ट ने अब उन्हें यमुना के ऐतिहासिक और वर्तमान प्रक्षेप पथ का वैज्ञानिक विश्लेषण करने, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच अधिकार क्षेत्र में बदलाव पर जलोढ़ जमाव के प्रभाव का आकलन करने, चक मंझावली के अस्तित्व सहित राजस्व रिकॉर्ड की प्रामाणिकता की पुष्टि करने और नदी के प्राकृतिक मार्ग परिवर्तनों से प्रभावित ज़मीन के दावों की वैधता की पहचान करने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश के राजस्व विभागों को नक्शे और निपटान रिपोर्ट सहित सभी प्रासंगिक ऐतिहासिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का भी आदेश दिया.
कोर्ट के आदेश में कहा गया है, “अंतिम राजस्व रिकॉर्ड में सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर सटीक स्वामित्व स्थिति को दर्शाया जाना चाहिए.”
भविष्य के विवादों को रोकने के लिए, कोर्ट ने विवादित क्षेत्रों के साथ स्थायी सीमा चिह्न लगाने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने महासर्वेक्षक के कार्यालय से समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट भेजना अनिवार्य किया है और स्टडी पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की है. निष्कर्षों के आधार पर, संघर्ष को स्थायी रूप से हल करने के लिए आगे की कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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