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Saturday, 13 September, 2025
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जंगलों और पहाड़ों के बीच, रेलवे ने कैसे पार की मुश्किलें और बनाई मिजोरम की बैराबी-सैरांग लाइन

मोदी द्वारा उद्घाटन की गई बैराबी-सैरांग रेल लाइन ने आखिरकार आइज़ोल को राष्ट्रीय रेलवे ग्रिड से जोड़ दिया है. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने और छात्रों, मरीजों और व्यापारियों को लाभ मिलने की उम्मीद है.

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नई दिल्ली: जैसे ही एक्सप्रेस ट्रेन हरे-भरे जंगलों, गहरी घाटियों और खड़ी ढलानों से गुजरती है और बारिश की बूंदें शीशे की खिड़कियों पर पड़ती हैं, बैराबी से सैरांग तक के दो घंटे से भी कम समय के सफर में सामने आने वाले नज़ारे किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देते हैं.

यह सोचना भी उतना ही कठिन है कि नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे (NFR) ने इतने खतरनाक इलाक़े में नई 51.38 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बनाते समय कैसी चुनौतियों का सामना किया होगा.

असम-मिजोरम बॉर्डर पर स्थित बैराबी से सैरांग तक की रेल लाइन ने आखिरकार आइज़ोल को राष्ट्रीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ दिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इस लाइन के विस्तार का उद्घाटन किया. अभी तक यह लाइन असम के सिलचर से बैराबी तक ही थी. अब तक बैराबी से आइज़ोल तक का सफर सड़क से करना पड़ता था, जिसमें छह से सात घंटे लगते थे. नई रेल लाइन से अब सिर्फ़ दो घंटे में आइज़ोल पहुंचा जा सकेगा.

यही नहीं, आइज़ोल चौथा उत्तर-पूर्वी राज्य की राजधानी बन गया है, जो राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जुड़ा है. इससे पहले गुवाहाटी, अगरतला और ईटानगर जुड़ चुके हैं. असम की आधिकारिक राजधानी दिसपुर है, जो गुवाहाटी का उपनगर है, लेकिन व्यवहार में गुवाहाटी शहर को ही राजधानी माना जाता है.

नई रेल लाइन के अलावा प्रधानमंत्री ने आइज़ोल-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, आइज़ोल-गुवाहाटी एक्सप्रेस और आइज़ोल-कोलकाता एक्सप्रेस ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाई. शनिवार से आइज़ोल से गुवाहाटी के लिए नियमित यात्री सेवा शुरू हो गई. आइज़ोल से कोलकाता और आइज़ोल से दिल्ली के लिए यात्री सेवा क्रमशः 18 और 19 सितंबर से शुरू होगी.

सैरंग रेलवे स्टेशन के पास पटरियां | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

NFR के जनसंपर्क अधिकारी नीलांजन देव ने दिप्रिंट को बताया कि नई लाइन और दिल्ली, गुवाहाटी और कोलकाता से जुड़ाव से मिजोरम की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. NFR, भारतीय रेलवे के 17 ज़ोन में से एक है.

उन्होंने कहा, “मिजोरम एक लैंडलॉक्ड राज्य है. अब तक लोग या तो हवाई यात्रा पर निर्भर थे, जो महंगी है, या फिर थका देने वाली सड़क यात्रा पर. अब लोगों के पास एक और विकल्प है, जो सस्ता, अधिक किफ़ायती और भरोसेमंद है. इसका सबसे ज़्यादा लाभ छात्रों को मिलेगा, जो उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं, मरीजों और कारोबार करने वालों को मिलेगा.”

मौसम समेत कई चुनौतियां

रेलवे इंजीनियरों ने दिप्रिंट को बताया कि इस रेल लाइन प्रोजेक्ट पर काम करना उनके लिए सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण अनुभवों में से एक था.

साल में केवल पांच महीने—नवंबर से मार्च तक—काम करने का छोटा समय और हर चीज़ बाहर से लाकर प्रोजेक्ट साइट तक पहुंचाना, शुरू से ही बेहद मुश्किल था.

“यह आसान नहीं था… हमें निर्माण सामग्री और भारी मशीनें जैसे गर्डर और गैंट्री क्रेन घने जंगलों के अंदर स्थित प्रोजेक्ट साइट तक ले जानी पड़ीं,” मिजोरम प्रोजेक्ट के निर्माण प्रमुख इंजीनियर विनोद कुमार ने कहा.

भारतीय रेलवे के अधिकारी और NFR में प्रतिनियुक्त कुमार ने कहा कि हर चीज़ राज्य के बाहर से लानी पड़ी.

रेलवे ट्रैक पर डाली जाने वाली रेत, गिट्टी और पत्थर असम, पश्चिम बंगाल और झारखंड से लाए गए. पुलों में इस्तेमाल किए गए विशाल गर्डर महाराष्ट्र के अहमदनगर और वर्धा में बनाए गए और फिर मिजोरम तक लाए गए.

“हमने पहले गुवाहाटी से बड़े ट्रेलरों में मशीनें और निर्माण सामग्री राज्य तक पहुंचाई. फिर उन्हें छोटे ट्रेलरों में डालकर दूर-दराज़ की साइटों तक ले जाया गया, जिनमें से कई तक सड़क से पहुंचना भी संभव नहीं था. हमें पहले पहुंचने के लिए सड़कें बनानी पड़ीं और फिर ट्रेलरों को साइट तक ले जाने के लिए क्रेन का इस्तेमाल करना पड़ा,” कुमार ने कहा.

यहां तक कि गर्डर खड़े करने के लिए इस्तेमाल होने वाली गैंट्री क्रेन को भी अलग-अलग हिस्सों में तोड़कर साइट तक ले जाना पड़ा और वहां फिर से जोड़ना पड़ा.

लुमडिंग डिवीजन के डिविजनल रेलवे मैनेजर (DRM) समीर लोहानी ने दिप्रिंट को बताया कि इलाके को देखते हुए प्रोजेक्ट पर प्रगति अच्छी रही.

उन्होंने कहा, “लगभग 23 प्रतिशत रेलवे लाइन पुलों से होकर गुजरती है. करीब 30 प्रतिशत सुरंगों से होकर गुजरती है. कई बड़े मोड़ हैं. और बाकी बचे 47 प्रतिशत हिस्से में बहुत खड़ी ढलान है, जहां पहाड़ नरम है और मिट्टी स्थिर नहीं है. इसके अलावा पूरा क्षेत्र भूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक सिस्मिक ज़ोन 5 में आता है.”

बैराबी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का परीक्षण करता एक ड्राइवर | फोटो: प्रवीण जैन/दप्रिंट

पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन एक बड़ी समस्या है. पटरियों पर असर न पड़े, इसके लिए लोहानी ने बताया कि पूरे सेक्शन में बड़े पैमाने पर ढलान स्थिरीकरण किया गया.

DRM ने कहा कि इन सभी मुश्किलों को पार कर नई रेलवे लाइन बनाई गई है और इसे उच्च मानकों पर तैयार किया गया है.

पूरे 51.38 किलोमीटर लंबे बैराबी-सैरांग सेक्शन में 45 सुरंगें, 55 बड़े और 88 छोटे पुल हैं. इस लाइन पर सैरांग के पास कुरुंग नदी पर सबसे ऊंचे पियर ब्रिज में से एक है, जिसकी ऊंचाई ज़मीन से 114 मीटर है.

काम में सबसे बड़ी बाधा छोटा काम करने का मौसम और प्रोजेक्ट पर मज़दूरों को टिकाए रखना था.

कुमार ने कहा, “कोई स्थानीय मज़दूर उपलब्ध नहीं था. हमें बाहर से लोगों को लाना पड़ा. लेकिन जब उन्होंने दूरदराज़ प्रोजेक्ट साइट और मोबाइल नेटवर्क न होने की स्थिति देखी, तो कई लोग बिना बताए ही चले गए.”

रेलवे अधिकारियों ने यह भी कहा कि जब इतनी बड़ी मुश्किलों से रोज़ जूझना पड़ा, तो छोटे-छोटे मुद्दों जैसे कैंप साइट में जोंक लग जाना या घर का अच्छा खाना न मिलना, किसी ने ध्यान भी नहीं दिया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “कई बार ज़रूरी सामान की सप्लाई भी रुक जाती थी, क्योंकि साइट बहुत दूर थी. हम कई दिनों तक सब्ज़ियों के बिना ही रहते थे. लेकिन जो भी मिलता, उसी से काम चलाते थे. कोई भी—चाहे अधिकारी हों, कर्मचारी हों या मज़दूर—शिकायत नहीं करता था.”

“न की सप्लाई भी रुक जाती थी, क्योंकि साइट बहुत दूर थी. हम कई दिनों तक सब्ज़ियों के बिना ही रहते थे. लेकिन जो भी मिलता, उसी से काम चलाते थे. कोई भी—चाहे अधिकारी हों, कर्मचारी हों या मज़दूर—शिकायत नहीं करता था,” उन्होंने दिप्रिंट को बताया.

देरी और लागत में बढ़ोतरी

लॉजिस्टिक कठिनाइयों के कारण प्रोजेक्ट में देरी हुई और लागत भी बढ़ गई.

जब 2008 में प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गई थी, तब इसकी अनुमानित लागत 619 करोड़ रुपये थी. लेकिन जब यह पूरा हुआ, तो लागत बढ़कर 8,071 करोड़ रुपये हो गई.

बैराबी-सैरांग लाइन के लिए प्रारंभिक इंजीनियरिंग-कम-ट्रैफिक सर्वे को सितंबर 1999 में मंज़ूरी दी गई थी. लेकिन प्रस्तावित रूट गहरे जंगलों से होकर गुजरता था, इसलिए यह शुरू नहीं हो पाया. इसके बाद रेलवे बोर्ड ने दोबारा योजना बनाई और रिकॉनेसेंस इंजीनियरिंग-कम-ट्रैफिक सर्वे कराने का फैसला किया, जो 2006 में पूरा हुआ.

आख़िरकार 2008 में प्रोजेक्ट को मंज़ूरी मिली. हालांकि, इस पर काम 2014 में शुरू हुआ और उसी साल नवंबर में पीएम मोदी ने नई लाइन का शिलान्यास किया.

2014 और 2016 के बीच इस सेक्शन पर एक और अहम काम हुआ. सिलचर से बैराबी तक का पूरा रूट, जिसमें मीटर गेज ट्रैक थे, उसे ब्रॉड गेज में बदल दिया गया.

सैरांग के पास कुरुंग नदी पर बना पुल | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

ब्रॉड गेज में रेल ट्रैक की चौड़ाई 1,676 मिमी होती है, जबकि मीटर गेज में ट्रैक की चौड़ाई 1,000 मिमी होती है.

NFR रविवार से इस सेक्शन पर माल ढुलाई सुविधा भी शुरू करेगा.

कुमार ने कहा, “यहां व्यापार की बड़ी संभावना है. सभी ज़रूरी सामान बाहर से आता है. इसके अलावा, मिजोरम में बांस, खाद्य उत्पाद आदि निर्यात करने की क्षमता है. यह लाइन यहां के लिए वरदान साबित होगी.”

लोहानी ने कहा कि पूरे बैराबी-सैरांग लाइन में इलेक्ट्रिफिकेशन का काम चल रहा है और यह साल के अंत तक पूरा होने की संभावना है. उन्होंने कहा, “जब इलेक्ट्रिफिकेशन पूरा हो जाएगा, तब मुझे यकीन है कि हम इस रूट पर वंदे भारत ट्रेन के स्लीपर वर्ज़न चला पाएंगे.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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