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Friday, 22 November, 2024
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स्टाफ को 5-दिन का ब्रेक, अच्छी किट- पंजाब के अस्पताल कोविड-19 हॉटस्पॉट को कैसे संभाल रहे हैं

चंडीगढ़ के पास बनौर में ज्ञान सागर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 51 कोरोना 19 मरीज़ हैं, जिनमें से 38 एक गांव के हैं.

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पंजाब: पंजाब के बनौर में ज्ञान सागर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के आस-पास के क्षेत्र में एक भी व्यक्ति नज़र नहीं आता है- राज्य की राजधानी चंडीगढ़ से 20 किमी दक्षिण में स्थित है अस्पताल डरावना लग रहा है.

इसे पंजाब सरकार द्वारा 24 मार्च को कोरोनोवायरस के प्रकोप के लिए एक नोडल केंद्र के रूप में घोषित किया गया है, ज्ञान सागर में तीन जिलों से 51 पॉजिटिव मामले हैं – एसएएस नगर, फतेहगढ़ साहिब और रूप नगर के हैं.

पंजाब में कोविड -19 से मुकाबला करने में अस्पताल ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें सिर्फ एक गांव जवाहरपुर के 38 मरीज शामिल हैं. एसएएस नगर (मोहाली) जिले में डेरा बस्सी उपमंडल का गांव लगभग 3,200 लोगों का घर है और यह इतना अगोचर है कि अगर कोई राष्ट्रीय राजमार्ग पर ध्यान नहीं देगा तो आसानी से भूल जायेंगे.

लेकिन, एसएएस नगर को देश के 170 हॉटस्पॉट में से एक के रूप में बनाये के लिए एक गांव जिम्मेदार है, सरकार ने इसे रेड जोन में वर्गीकृत किया है. रेड ज़ोन में जिलों को कड़े लॉकडाउन उपायों का पालन करना होगा.

हालांकि, नोडल केंद्र के चिकित्सा अधीक्षक कर्नल एसपीएस गोराया ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले दो दिनों से- 14 अप्रैल के बाद से- यहां कोई कोरोनावायरस रोगी भर्ती नहीं हुआ है.

गोरैया ने कहा, 27 मार्च को पहला मरीज हमारे पास आया था. प्रतिदिन मामलों की दर में उतार-चढ़ाव होता है, एक बार में हमें 10 मरीज मिले थे.

देश में कम मामलों वाले राज्यों में पंजाब शामिल है. शुक्रवार की सुबह तक राज्य में 13 मौतों के साथ 186 सक्रिय मामले हैं. हालांकि, रेड जोन में तीन अन्य जिले – एसएएस नगर, जालंधर और पठानकोट हैं.

कर्नल एस.पी.एस. गोराया एक नर्सिंग स्टाफ के साथ अपने कार्यालय में | स्क्रीनशॉट

कोरोनावायरस फैलने पर अंकुश लगाया

पंजाब संकट से निपटने में सक्रिय रहा है. पंजाब 10 अप्रैल को लॉकडाउन का विस्तार करने वाले पहले राज्यों में से एक था जब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने 1 मई तक लॉकडाउन की घोषणा की थी. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 3 मई तक देशव्यापी लॉकडाउन को आगे बढ़ाने से पहले किया गया था. अधिकारियों द्वारा समय पर कार्रवाई का हवाला देते हुए गोरया ने कहा कि राज्य में स्थिति ख़राब नहीं है. हालांकि, उन्होंने हर कीमत पर शालीनता की वकालत की.

गोराया ने कहा, ‘आज तक हमने किसी को वेंटिलेटर पर नहीं रखा है. हालांकि, ऐसा लगता है जैसे एक रोगी बहुत अच्छा नहीं कर रहा है और उसे चिकित्सा सहायता की आवश्यकता हो सकती है.’

अस्पताल में 500 बेड, 20 आईसीयू यूनिट के साथ वेंटिलेटर, 26 जूनियर रेजिडेंट, तीन से चार मेडिकल ऑफिसर, 22 विशेषज्ञ जैसे कि पीडियाट्रिशियन और एनेस्थेटिस्ट और 82 नर्स हैं.

गोराया ने कहा कि अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा पर्याप्त सावधानी बरती जा रही है, जो प्रत्येक आठ घंटे की तीन शिफ्टों में काम करते हैं – जिनमें पॉजिटिव रोगियों के संपर्क में आने वाले भी शामिल हैं.

एक बार जब मेडिकल कर्मचारी दिन के लिए अपनी पारी खत्म कर लेते हैं, तो उन्हें घर जाने और पांच दिनों के ब्रेक के बाद ही वापस लौटना पड़ता है.

सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग में एक वरिष्ठ डेमोंस्ट्रेटर और अस्पताल की स्वच्छता टीम का हिस्सा हैं डॉ सुरभी ने कहा, इस तरह के कदमों की निगरानी करना आवश्यक है, यदि कर्मचारी को बुखार हो या खांसी और सांस की तकलीफ जैसे अन्य लक्षण दिखाते हैं तो.

डॉ सुरभी ने दिप्रिंट को बताया कि अब तक, चीजें बहुत अच्छी तरह से चल रही हैं और चिकित्सा कर्मचारी भी स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा कर रहे हैं.

चिकित्सा उपकरण भारत भर के अस्पतालों के लिए एक संघर्ष साबित हुए हैं. लेकिन ज्ञान सागर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल अच्छी तरह से प्रबंधन कर रहे हैं.

गोराया ने कहा कि वे अब तक किसी भी कमी का सामना नहीं कर रहे हैं. स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो मरीजों के सीधे संपर्क में हैं, वे सार्वभौमिक प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं, जिसमें उन्हें पीपीई किट, एन 95 मास्क और दस्ताने पहनना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पूरे शरीर को कवर किया गया है.

डॉ सुरभी ने कहा कि अस्पताल ने भी स्वच्छता के कड़े कदम उठाए हैं. उन्होंने बताया कि एक बार जब एम्बुलेंस आपातकालीन केंद्र तक पहुंच जाती है, तो रोगी के लिए एक अलग सीढ़ी का उपयोग किया जाता है और सोडियम हाइपोक्लोराइट का उपयोग करके उस मार्ग को कीटाणुरहित कर दिया जाता है.

गोराया ने दिप्रिंट को बताया, दिनचर्या के रूप में अस्पताल की इमारत को दिन में कम से कम दो से तीन बार साफ किया जाता है और कोरोना-वार्ड के करीब के इलाकों को चार बार साफ किया जाता है.

हॉटस्पॉट

जवाहरपुर में, जिसे पंजाब सरकार द्वारा गांव को सील कर दिया गया है, वहां सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं पर पुलिस तैनात है. तीन किलोमीटर के क्षेत्र को पूरी तरह से सील कर दिया गया है और किसी को भी बाहर नहीं निकलने देने के लिए 24 घंटे पुलिस गश्त की गई है. पुलिस ने अनपेक्षित क्षेत्र में होने के बावजूद किसी भी निवासी को दिप्रिंट के साथ बात करने से मना कर दिया.

पंजाब पुलिस यहां दबाव में है.

35 डिग्री सेल्सियस के तापमान में तीन पुलिसकर्मी राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर दूर बैरिकेड स्थल पर हर दिन 12 घंटे तक का समय बिता रहे हैं. राज्य सरकार दिन में दो बार उन्हें मास्क, सैनिटाइजर और भोजन उपलब्ध करा रही है.

इनमें सब-इंस्पेक्टर अशोक कुमार भी शामिल हैं, जो अपनी 12 घंटे की लंबी शिफ्ट के लिए प्रतिदिन 20 किमी की यात्रा करते हैं. कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘जो कोई भी कर्फ्यू तोड़ता हुआ दिखाई देगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. दो-तीन दिन पहले, 25-26 साल के बच्चों को बिना कारण कर्फ्यू तोड़ते हुए पकड़ा गया था और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. वे अब जमानत पर बाहर हैं. कुमार ने कहा, ‘हम केवल यहां लोगों की सेवा के लिए हैं.’

जवाहरपुर गांव के बाहर पुलिस का पहरा | स्क्रीनग्रैब

ट्रैक पर आवश्यक सेवाएं

राज्य सरकार ने जवाहरपुर पंचायत सचिव जतिंदर सिंह को प्रतिनियुक्त किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सील किए गए क्षेत्र के निवासियों को आवश्यक सेवाएं प्रदान की जाएं।

सिंह, जो कि 13 दिनों से यहां आ रहे हैं, ने अपनी कार को गर्मी से राहत के लिए एक पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया है। सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “अगर निवासियों को किसी चीज की जरूरत है, तो वे मुझे व्हाट्सएप करते हैं और मैं उनके लिए इसका इंतजाम करता हूं.’

जवाहरपुर पंचायत सचिव जतिंदर सिंह अपनी कार में गांव के लिए आवश्यक सामान लाते हैं । स्क्रीनग्रैब

जहां जतिंदर सिंह बैरियर के सुलभ हिस्से में लाकर सामानों का प्रबंधन करता है, वहीं एक गांव निवासी गुरमुख सिंह ने सीलबंद क्षेत्रों में निवासियों को सामान देने और वितरित करने के लिए हैं.

गुरुमुख ने कहा कि निवासियों तक राशन पहुंचने के लिए तीन से चार दिन लगते हैं, लेकिन आपात स्थिति के दौरान जब चावल और दालों जैसी बुनियादी चीजों की आवश्यकता होती है, तो यह उसी दिन दिया जाता है.

गुरुमुख ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं यह किसी के लिए नहीं कर रहा हूं, मैं अपने गांव के लिए कर रहा हूं. मैंने फैसला किया है कि मैं इस कोरोनावायरस चेन को आगे नहीं फैलने दूंगा, वे एक कपड़े का मुखौटा, प्लास्टिक के चश्मे और बुने हुए कपड़े से बने जैकेट से लैस थे,

सामाजिक स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के अनुसार जतिंदर की कार पर लगे ‘गुल्लक’ पर नकद भुगतान किया जा सकता है. यह कार्ड मशीन से भी चलाता है और पेटीएम और गूगल पे करने की अनुमति देता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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