नई दिल्ली: एक ऐतिहासिक आदेश में, नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की दिशा में पहला कदम उठाया. राज्यसभा में इसकी घोषणा करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रपति के आदेश के ज़रिए अनुच्छेद में संशोधन किया गया है.
दिप्रिंट ने राष्ट्रपतीय आदेश के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से विचार किया है.
राष्ट्रपति का आदेश क्या कहता है?
संविधान (जम्मू कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 के नाम से जारी आदेश ने संविधान (जम्मू कश्मीर पर लागू) आदेश, 1954 का स्थान लिया है. पुराने आदेश में भारतीय संघ के बरक्स जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को परिभाषित किया गया था.
महत्वपूर्ण बात ये है कि 1954 के आदेश के ज़रिए अनुच्छेद 35ए को जोड़ा गया था, जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य के ‘स्थाई निवासियों’ के साथ विशेष व्यवहार की व्यवस्था है. नया आदेश, इस तरह, अनिवार्यत: अनुच्छेद 35ए को निरस्त करता है.
इसके माध्यम से अनुच्छेद 370(3) में भी संशोधन किया गया है, और ‘राज्य की संविधान सभा’ की जगह ‘राज्य की विधानसभा’ के वाक्यांश का प्रयोग किया गया है.
इसलिए, अगला तार्किक कदम यही प्रतीत होता है कि राज्य की विधानसभा की सिफारिश के साथ, इस प्रावधान को अप्रभावी घोषित करने के लिए अनुच्छेद 370(3) का उपयोग किया जाए.
अनुच्छेद 370 क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर राज्य को एक विशिष्ट दर्जा देता है. यह राज्य के निवासियों के नागरिकता और संपत्ति संबंधी अधिकारों के लिए अलग कानून की व्यवस्था करता है. इस अनुच्छेद के तहत राज्य में रक्षा, विदेश मामलों, संचार और आनुषंगिक मामलों के अलावा अन्य किसी भी विषय पर कानून को लागू करने के लिए भारतीय संसद को राज्य सरकार के अनुमोदन की ज़रूरत होती है.
हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह समेत देश के कतिपय जनजातीय इलाकों को विशेष दर्जा देने के वास्ते भी इसी तरह के प्रावधान लागू हैं.
क्या अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान है?
वैस तो अनुच्छेद 370 का शीर्षक ‘जम्मू कश्मीर के लिए अस्थाई प्रावधान’ है, पर सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट अनेकों बार इस अनुच्छेद को एक स्थाई प्रावधान बता चुके हैं.
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने भी अक्टूबर 2015 के अपने आदेश में कहा था कि अनुच्छेद 370 को खत्म नहीं किया जा सकता क्योंकि इस अनुच्छेद के खंड 3 में स्पष्ट किया गया है कि इसे अप्रभावी घोषित करने से पूर्व राष्ट्रपति को ‘राज्य की संविधान सभा’ का अनुमोदन लेना ‘आवश्यक’ होगा.
इसलिए, हमारे हिसाब से, पहला कदम अनुच्छेद 368 में निर्धारित तरीके से संविधान संशोधन करने का होना चाहिए था.
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एक और सवाल ये उठता है कि क्या अनुच्छेद 370 संविधान के आधारभूत ढांचे के तहत आता है, क्योंकि केशवानंद भारती मामले के फैसले के अनुसार संसद भारतीय संविधान की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं कर सकती है. इसलिए, ऐसा कोई भी संशोधन न्यायिक समीक्षा का विषय हो सकता है.
क्या अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया है?
नहीं. अभी तक अनुच्छेद 370 निरस्त नहीं हुआ है. ताज़ा राष्ट्रपतीय आदेश अनुच्छेद 367 में संशोधन करता है जिसमें कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 की व्याख्या निहित है, और उसी में जम्मू कश्मीर की, 1950 के दशक में ही भंग, संविधान सभा की जगह राज्य विधानसभा का उल्लेख किया गया है. इस तरह वास्तव में यह बाद में एक राष्ट्रपतीय आदेश के ज़रिए अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का मार्ग प्रशस्त करता है.
कुछेक का मानना है कि अनुच्छेद 370 के माध्यम से ही जम्मू कश्मीर भारत से जुड़ा था, तो क्या अब जम्मू कश्मीर भारत अलग हो गया है?
नहीं. सोमवार को ही गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश किया, जो जम्मू कश्मीर को दिल्ली या पुडुचेरी की तरह ही केंद्रशासित प्रदेश घोषित करता है. ये अनिवार्यत: उसे भारत का हिस्सा घोषित करता है.
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया तीन श्रेणियों में निर्धारित की गई हैं. संविधान में इनका विस्तार से उल्लेख है.
सर्वप्रथम, सामान्य कानून के समान साधारण बहुमत से किए जाने वाले संशोधन हैं. इनका वर्णन अनुच्छेद 4, 169 और 239-ए में है, और पांचवीं और छठी सूची के पैरा 7 और 21 इसके तहत आते हैं. इन्हें अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर रखा गया है.
दूसरी श्रेणी, अनुच्छेद 368(2) में वर्णित विशिष्ट बहुमत से होने वाले संशोधनों की है. ऊपर वर्णित विषयों के अलावा बाकी सारे संशोधन इस श्रेणी में आते हैं.
इसके लिए संसद के प्रत्येक सदन में कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के न्यूनतम दो तिहाई के समर्थन की दरकार होती है.
तीसरी श्रेणी, ऐसे संशोधनों की है जिनके लिए ऊपर वर्णित विशिष्ट बहुमत के अलावा कुल राज्यों में से न्यूनतम 50 प्रतिशत की विधानसभाओं से संशोधन प्रस्ताव के अनुमोदन की ज़रूरत होती है. इस श्रेणी में अनुच्छेद 368(2) में वर्णित किसी शर्त में बदलाव से जुड़े संविधान संशोधन शामिल हैं.
क्या नए राष्ट्रपतीय आदेश को चुनौती दी जा सकती है?
संविधान विशेषज्ञ और नलसार विधि विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. फैज़ान मुस्तफ़ा के अनुसार आदेश में अनुच्छेद 370 में बदलाव के लिए खुद इसी अनुच्छेद के प्रावधानों का उपयोग किया गया है.
उन्होंने इस बारे में बताया, ‘जम्मू कश्मीर में किसी संवैधानिक प्रावधान को लागू करने के लिए राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के तहत आदेश जारी कर सकता है. इस मामले में अनुच्छेद 370 के तहत इस आशय का आदेश जारी किया गया है कि जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के सारे प्रावधान लागू होंगे. इस तरह अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को विशेष दर्जे की व्यवस्था खुद अनुच्छेद 370 के ज़रिए ही खत्म कर दी गई.’
‘अब, अनुच्छेद 370 में कतिपय सतही बदलाव किए जा रहे हैं जैसे संविधान सभा की जगह विधानसभा और सद्र-ए-रियासत की जगह राज्यपाल जैसे शब्द डालना. पर जब संविधान के सारे प्रावधान जम्मू कश्मीर पर भी लागू कर दिए गए हों, तो इनका कोई खास मायने नहीं रह जाता है. बड़ी ही होशियारी से ये सब किया गया है.’
इसके निहितार्थों के बारे में चर्चा करते हुए प्रो. मुस्तफ़ा ने कहा कि अगला कदम होगा राज्य विधानसभा द्वारा अनुच्छेद 370 को अप्रभावी घोषित करवाना.
‘अब तक के कानूनों के अनुसार अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आपको राज्य की संविधान सभा का अनुमोदन प्राप्त करना होगा. इसलिए, सरकार सर्वप्रथम संविधान सभा की जगह विधानसभा की ज़रूरत का संशोधन लेकर आई. भारतीय संविधान को राज्य में लागू किए जाने के बाद ये संशोधन निर्रथक है. संविधान संशोधन सिर्फ सतही बदलावों के लिए है, वरना सरकार इतना भर कह सकती है कि वह अनुच्छेद 370 को खत्म कर रही है.’
हालांकि, 14वीं और 15वीं लोकसभा के महासचिव रहे संवैधानिक विशेषज्ञ पीडी थंकप्पन अचारी का कहना है कि इस आदेश को अमान्य करार दिया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘यदि सरकार राज्य की संविधान सभा की भूमिका राज्य विधानसभा को सौंपना चाहती है तो उसे संसद के दोनों सदनों में संविधान संशोधन विधेयक पेश करना होगा, जिसे दो तिहाई बहुमत से पारित कराना होगा और फिर उस पर आधे राज्यों का अनुमोदन लेना होगा. ऐसा होने के बाद ही राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुरूप आदेश जारी कर सकता है, क्योंकि उसमें कहा गया है कि राज्य की संविधान सभा (या विधानसभा) की अनुशंसा के बाद ही अनुच्छेद को निरस्त करने का आदेश जारी किया जा सकता है. इस आशय के विधेयक के बगैर राष्ट्रपति का आदेश अमान्य है.’
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