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Monday, 23 December, 2024
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बांग्लादेशी हिल्सा को कितना चाहते हैं बंगाली, महामारी में हुई 2,800 किलो की तस्करी

बीएसएफ फरवरी से 2,800 किलोग्राम हिल्सा ज़ब्त कर चुकी है, जिसे बांग्लादेश ने 8 साल पहले बैन कर दिया था. बंगाल में इसे बेहद स्वादिष्ट माना जाता है, और ये कोलकाता के बाज़ारों और ऑनलाइन 3,000 रुपए किलो बिक रही है.

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कोलकाता: भारत के सीमा सुरक्षा बल ने पिछले सात महीनों में क़रीब 2,800 किलोग्राम बांग्लादेशी ज़ब्त की है, जो ‘उल्टी तस्करी’ की एक दुर्लभ मिसाल है.

शुक्रवार को, भारत-बांग्लादेश सीमावर्ती इलाक़े के दक्षिणी हिस्से में कल्याणी सीमा चौकी (बीओपी) पर बीएसएफ सैनिकों ने 200 किलोग्राम हिल्सा ज़ब्त की. जिसकी क़ीमत 2,40,000 रुपए थी (स्रोत पर दाम). एक सीनियर बीएसएफ अधिकारी ने बताया कि तस्कर सीमा के पास किसी जल श्रोत से तैर कर आ रहे थे.

उससे पिछले दिन बल ने मुर्शिदाबाद में, 190 किलो हिल्सा ज़ब्त की थी और अधिकारियों ने कहा कि ऐसी घटनाएं. अब नियमित हो गई हैं.

बांग्लादेशी हिल्सा को पश्चिम बंगाल में बेहद स्वादिष्ट माना जाता है और लोग इसकी ऊंची क़ीमत देने को तैयार रहते हैं, क्योंकि पड़ोसी मुल्क ने 8 साल पहले, इसका निर्यात बंद कर दिया था और इसकी सप्लाई 2019 में सिर्फ कुछ समय के लिए खुली थी. अब, बंगाली लोग ‘पदमार इलिश’ (पदमा नदी की हिल्सा, जिसे उच्च क्वालिटी की माना जाता है) के लिए, 2,500- 3,000 रुपए तक देने को तैयार रहते हैं और कोलकाता के स्थानीय बाज़ार और ई-विक्रेता, उनसे यही दाम वसूल रहे हैं. गंगा हिल्सा और समुद्री हिल्सा, 1,500 से 1,800 रुपए के बीच बेंची जा रही हैं.

दिप्रिंट के हाथ लगे बीएसएफ के डेटा के अनुसार फरवरी से अब तक कुल मिलकार, 2,776 किलोग्राम बांग्लादेशी हिल्सा ज़ब्त की जा चुकी है, जिसके कोलकाता के बाज़ारों में क़रीब 75 लाख रुपए मिल जाते.

उल्टी तस्करी

सीनियर बीएसएफ अधिकारियों का कहना है कि हिल्सा की खेप पकड़ना भारत की ओर से अपने पड़ोसी के प्रति एक दोस्ताना कार्रवाई है. इस कार्य को वो ‘उल्टी तस्करी’ कहते हैं, क्योंकि तस्करी से तात्पर्य आमतौर पर भारत में प्रतिबंधित पशुओं व अन्य वस्तुओं से होता है, जिन्हें बांग्लादेश ले जाया जाता है.

ये अवैध व्यापार आमतौर पर माल्दा और मुर्शिदाबाद में, नदियों की सीमाओं के रास्ते, और नॉर्थ 24 परगना के दक्षिणी ज़मीनी मार्ग से होता है.


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बीएसएफ के उप-महानिरीक्षक एसएस गुलेरिया ने कहा, ‘अधिकांश मामलों में, तस्कर रात के समय नदियों की सीमाओं से आते हैं; कभी कभी वो ज़मीनी सीमाओं से भी आ जाते हैं. हमने नौ मामलों में 11 तस्करों को पकड़कर, पुलिस के हवाले किया है. वो सभी भारतीय नागरिक हैं.’

गुलेरिया ने ज़ोर देकर कहा, ‘हमारा काम सीमापार से किसी भी तरह की तस्करी को रोकना है. हम अच्छी तस्करी और ख़राब तस्करी में भेद नहीं कर सकते. कोई भी चीज़ जो किसी देश की मंज़ूरी के बिना, सीमा के इस पार आती है, हमारे लिए तस्करी है.’

उन्होंने कहा, ‘जहां तक हिल्सा का सवाल है, बांग्लादेशी सरकार ने इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी है, और ये वहां से अवैध तरीक़े से लाई जा रही है. इसलिए हम इसे अपने देश में घुसने नहीं दे सकते…बांग्लादेश हमारा पड़ोसी मित्र है.’

हिल्सा कूटनीति

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की सरकार ने, जब पहली बार हिल्सा का निर्यात बंद किया, तो शुरू में उसने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया है, कि पदमा नदी में हिल्सा को बचाने की आवाज़ें उठ रहीं थीं.

लेकिन, 2015 में, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बांग्लादेश दौरे के दौरान, हसीना ने कहा कि जैसे ही तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश पहुंचेगा, हिल्सा बंगाल पहुंच जाएगी. बनर्जी ने तीस्ता का पानी बांग्लादेश के साथ साझा करने पर ऐतराज़ किया था. उन्होंने कहा था कि नदी में इतना पानी नहीं है, कि उसे साझा किया जाए, और ऐसा करने से उत्तरी बंगाल के किसान प्रभावित होंगे.

इसी वजह से, सीमा के दोनों के लोगों ने, इसे ‘हिल्सा कूटनीति’ कहना शुरू कर दिया है.

सितम्बर 2019 में, बांग्लादेश सरकार ने दुर्गा पूजा के ‘उपहार’ के तौर पर, 500 टन हिल्सा भारत को निर्यात करने की अनुमति दी थी. वो मछली नॉर्थ 24 परगना की पेट्रापोल-बेनापोल ज़मीनी सीमा के रास्ते आई थी. उस साल के त्योहार के व्यंजनों में, पदमार इलिश की बहुत मांग थी, और वो 1,700- 1,800 रुपए किलो बिकी थी.

लेकिन, ऐसा लगता है कि अवैध व्यापार ने रफ्तार पकड़ ली है, जिससे मछली निर्यात का वैध कारोबार प्रभावित हुआ है.

पेट्रापोल पर व्यापारी एवं निर्यातक संघ के सचिव, कार्तिक चक्रवर्ती ने बताया, कि हिल्सा को ज़ब्त करने के बाद, बीएसएफ उसे कस्टम्स के हवाले कर देती है, जो स्थानीय बाज़ार में उसे नीलाम कर देती है. थोक विक्रेता या तो नीलामी से ख़रीदते हैं, या अवैध सप्लाई हासिल करते हैं, जिससे कोलकाता में ख़रीदारों के लिए दाम बढ़ जाते हैं.

आयात सरकार को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, कि इस पाबंदी को हटा दिया जाए.

केंद्र सरकार से पंजीकृत फिश इंपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, अतुल दास ने कहा, ‘पहले हमारे यहां कंपनियां हुआ करतीं थीं, जो देशभर के थोक बाज़ारों को हिल्सा सप्लाई करतीं थीं. सीज़न में (मई से जुलाई) हम 20 से 25 लाख रुपए कमा लेते थे. लेकिन, 2012 के बाद से, हमारा सारा धंधा ख़त्म हो गया है; अब, हम बांग्लादेश से सामान्य मछलियां आयात करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘2012 से, जो कंपनियां हिल्सा आयात करती थीं, वो बंद हो गई हैं. वो आयात कर-मुक्त होता था, और हमारे पास एक जनरल लाइसेंस होता था. वो बहुत बड़ा बाज़ार था. अब बांग्लादेश में हिल्सा क़रीब 900 रुपए किलो है, और ख़रीदार इसका दोगुना दाम अदा करते हैं, चूंकि ये तस्करी से आती है.’

दास ने कहा कि सीएम बनर्जी से लेकर, स्वर्गीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक कई भारतीय नेताओं ने पीएम हसीना और उनकी सरकार से कई मरतबा अनुरोध किया है, लेकिन जब तक तीस्ता जल विवाद हल नहीं हो जाता, वो नहीं डिगेंगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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