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Friday, 22 November, 2024
होमदेशन टायर्ड, न रिटायर्ड- कैसे नौकरशाहों को नौकरी देने के लिए मोदी सरकार वाजपेयी की राह पर है

न टायर्ड, न रिटायर्ड- कैसे नौकरशाहों को नौकरी देने के लिए मोदी सरकार वाजपेयी की राह पर है

पीएमओ से नीति आयोग, सांस्कृतिक निकायों से लेकर रेलवे बोर्ड, सर्वोच्च सुरक्षा परिषद से लेकर आयुष्मान भारत तक- मोदी का नया भारत अब सेवानिवृत्त अफसरों द्वारा चलाया जा रहा है.

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नई दिल्ली: पिछले महीने, मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में सलाहकार के रूप में दो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों को फिर से नियुक्त किया है. यह पहली बार नहीं हुआ है और न ही आखिरी बार होने की संभावना है.

भास्कर खुल्बे और अमरजीत सिन्हा 1983 बैच के दोनों आईएएस अधिकारी, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे. दोनों अधिकारियों को अनुबंध के आधार पर फिर से कार्यरत किया गया था और उन्हें सचिव स्तर का पद दिया गया. जबकि खुल्बे पहले से ही पीएमओ में सेवारत थे, सिन्हा ने 2016 से 2019 तक ग्रामीण विकास मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य किया है.

अपने पद को मिले एक्सटेंशन की वजह से खुल्बे और सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद लेफ्टिनेंटों की एक लंबी सूची में शामिल हो गए हैं, जो विशेष रूप से पीएमओ में सेवानिवृत्त होने के बावजूद कई वर्षों तक सक्रिय शासन में बने रहते हैं.

जबकि पीएमओ या अन्य कार्यालयों में सलाहकार के रूप में चयनित सेवानिवृत्त अधिकारियों की नियुक्ति शायद ही नई हो लेकिन यूपीए सरकार के तहत भी पुलोक चटर्जी और टीके नैयर जैसे सेवानिवृत्त अधिकारी को पीएम मनमोहन सिंह के सलाहकार के रूप में लाया गया था, ज्यादातर अधिकारी जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की, उन्होंने कहा कि इस तरह की नियुक्तियों की आवृत्ति मोदी सरकार के तहत स्पष्ट रूप से बढ़ी है.

भारत की आर्थिक नीति से लेकर विदेश नीति, देश के शीर्ष कार्यालय (पीएमओ) से लेकर प्रमुख थिंक-टैंक (नीति आयोग), सांस्कृतिक निकायों से लेकर भारतीय रेलवे (रेलवे बोर्ड), भारत की सर्वोच्च सुरक्षा परिषद (एनएससीएस) से देश के महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य मिशन (आयुष्मान भारत) तक – मोदी के द्वारा सेवानिवृत्त अधिकारियों के एक चुने हुए सेट द्वारा चलाया जा रहा है. 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से कम से कम एक दर्जन ऐसी प्रमुख नियुक्तियां की गई हैं.

नृपेंद्र मिश्रा – कभी शीर्ष सिविल सेवक थे

खुल्बे और सिन्हा को सलाहकार के रूप में नियुक्त किए जाने के कुछ हफ्ते पहले ही सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी नृपेंद्र मिश्रा, जिन्हें पिछले साल तक देश में सबसे शक्तिशाली सिविल सेवक माना जाता था, पीएम के प्रमुख सचिव के रूप में सरकार द्वारा वापस लाया गया था.

मिश्रा को राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया है. निकाय को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई, जो वर्षों से भाजपा-आरएसएस की वैचारिक बुनियाद की आधारशिला रही है.

कुछ दिनों पहले, मिश्रा को नेहरू मेमोरियल संग्रहालय की कार्यकारी परिषद का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था.

एक अभूतपूर्व कदम में, मिश्रा जो कि 2004 में आईएएस से सेवानिवृत्त हुए थे, को पिछले साल सरकार द्वारा कैबिनेट रैंक दिया गया था. हालांकि, महीनों बाद उन्होंने पीएम के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट में से किसी एक को पदभार संभालने का रास्ता खाली करते हुए पद छोड़ दिया था.

पीके मिश्रा – देश के सबसे शक्तिशाली अधिकारी

पीके मिश्रा, जो कि मूल रूप से 2008 में सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे, वे 2014 से पीएम के अतिरिक्त प्रधान सचिव के रूप में मोदी के पीएमओ में सेवारत थे. उन्हें भी 2019 में कैबिनेट रैंक दिया गया था.

नृपेंद्र मिश्र के पद छोड़ने के बाद पीके मिश्रा ने पीएम के प्रमुख सचिव के रूप में पदभार ग्रहण किया, उन्हें सरकारी सेवा से औपचारिक सेवानिवृत्ति के 12 साल बाद देश का सबसे शक्तिशाली सिविल सेवक बनाया गया है.

पीके सिन्हा – 3 बार मिल चुका है एक्सटेंशन और भी मजबूत हो रहे हैं

मोदी ने एक और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, पीके सिन्हा को प्रमुख सलाहकार के रूप में पीएमओ में लाया- विशेष रूप से उनके लिए एक पद 2019 में बनाया गया.


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1977 बैच के आईएएस अधिकारी, सिन्हा को मोदी सरकार द्वारा तीन एक्सटेंशन दिए गए थे जब वह कैबिनेट सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे, वह 2015 से 2019 तक इस पद पर बने रहे थे, जिससे वह इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाला कैबिनेट सचिव बने.

अजीत डोभाल – राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्राट

मिश्र, मिश्रा, सिन्हा और खुल्बे के अलावा, पीएमओ में एक और बेहद शक्तिशाली सिविल सेवक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं, जो एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं.

2018 में डोभाल को क़ानूनी तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख बन गए, जब सरकार ने एसपीजी की संरचना में संशोधन किया था. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) का कैबिनेट सचिव के बजाय डोभाल को प्रमुख बनाया गया.

राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख के रूप में डोभाल को किसी भी मंत्रालय से एसपीजी की बैठक में सचिवों को बुलाने की शक्ति दी गई थी, जो कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा में निर्णय लेने के औपचारिक बदलाव का संकेत देते हुए कैबिनेट सचिवालय से एनएससीएस में भेज दिया गया.

पिछले साल, मोदी सरकार ने डोभाल को एक कैबिनेट रैंक दिया था. जिससे उन्हें कैबिनेट मंत्रियों के बराबर भारत का पहला एनएसए बना दिया गया था.

पीएमओ में सत्ता का केंद्रीकरण

दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकारियों ने कहा कि इन एक्सटेंशनों का एक स्पष्ट कारण है पीएमओ से नियंत्रित सचिवालय में शक्ति का केंद्रीकरण.

मोदी सरकार के तहत दो मंत्रालयों में सचिव के रूप में कार्य करने वाले एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि एक समय था जब मंत्रालयों और मंत्रियों ने निर्णय लेने में काफी स्वायत्तता का आनंद लिया था. मोदी के आने के साथ, यह मौलिक रूप से बदल गया है. जब सभी निर्णय पीएमओ में हो रहे हैं, तो आपको सुनिश्चित होना चाहिए कि इसे चुनिंदा अधिकारियों और विश्वसनीय समूह द्वारा किया जा रहा है.

अधिकारी ने कहा, यदि कोई सेवारत सचिव स्तर के अधिकारियों की स्वायत्तता में कमी के साथ-साथ कुछ अधिकारियों के विस्तार की प्रवृत्ति को देखता है तो स्पष्ट हो जाता है पीएम केवल बहुत कम अधिकारियों पर भरोसा करते हैं, न कि पूरे नौकरशाही तंत्र पर. इसलिए वह इन अधिकारियों के हाथों में पूरी नौकरशाही प्रणाली की शक्तियों को केंद्रीकृत करना चाहते हैं, भले ही वे औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त हो गए हों.

टी आर रघुनंदन एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और खुल्बे और सिन्हा के बैच के साथी ने कहा कि सेवानिवृत्त अधिकारियों का फिर से नियोजन करना वास्तव में सरकार का विशेषाधिकार है और यह मोदी सरकार के लिए एक प्रवृत्ति नहीं है. यह ‘असुरक्षा’ की भावना को प्रतिबिंबित करता है.

उन्होंने कहा, ‘इससे पता चलता है कि आप उन लोगों के एक छोटे समूह से चिपके रहना चाहते हैं जो आपकी विचारधारा के लिए कोई खतरा नहीं हैं और सवाल नहीं उठाएंगे. यह एक पूरे के रूप में नौकरशाही प्रणाली से खुद को दूर करने का एक नतीजा है.

सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि बहुत कम अधिकारी भी पीएम की कार्यशैली की तुलना में समायोजित कर सकते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘जब कार्य पर अमल करने की बात आती है तो पीएम बहुत अक्षम हो जाते हैं … हर कोई उस अंदाज में काम नहीं कर सकता है. यही कारण है कि आप देखते हैं कि अन्य मंत्रालयों में सचिवों के लिए पीएम के संदेश कठोर हो सकते हैं, लेकिन पीएमओ में वे लोग हमेशा पीएम के साथ तालमेल रखते हैं.

प्रदर्शन को पुरस्कृत करना और योजना-आधारित शासन को महत्त्व

अमरजीत सिन्हा – ग्रामीण आवास योजना चलाने वाले व्यक्ति

हालांकि, विस्तार में अधिकारियों के साथ वफादारी और व्यक्तिगत तालमेल महत्वपूर्ण है. मोदी को कार्यकाल में विस्तार के साथ प्रदर्शन को पुरस्कृत करने के लिए भी जाना जाता है.

उदाहरण के लिए अमरजीत सिन्हा को लें. मोदी सरकार में चार साल के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव के रूप में काम करने वाले सिन्हा ने मनरेगा और मोदी की पसंदीदा प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी प्रमुख योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी की. जिससे 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को लाभ मिला.

पीएम की शासन शैली में भी डोमेन विशेषज्ञता के विचार के साथ पूर्वाग्रह देखा गया है. डोमेन विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करने के लिए, पीएम ने न केवल सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रविष्टि को संस्थागत बनाने का प्रयास किया है, बल्कि दो पूर्व सिविल सेवकों को भी लाया है, जिन्होंने अपनी पसंदीदा योजनाओं को अंजाम देने के लिए कई साल पहले आईएएस से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी थी.


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परमेश्वरन अय्यर और इंदु भूषण- पीएम की पसंदीदा योजनाओं को शक्ति प्रदान करते हैं

मोदी 2016 में परमेश्वरन अय्यर को पेयजल और स्वच्छता विभाग में सचिव के रूप में लाए थे. 2018 में आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन के सीईओ के रूप में इंदु भूषण को भी लाये.

सचिव के रूप में अय्यर ने ग्रामीण भारत में प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन परियोजना को संचालित किया है और बाद में जल-जीवन मिशन परियोजना का प्रभार भी दिया गया है.

अय्यर और भूषण दोनों को अपने-अपने क्षेत्र में व्यापक और संपूर्ण अनुभव प्रदान करने वाली सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बावजूद सरकार की योजनाओं को फिर से शुरू करने के लिए सरकार में वापस लाया गया था.

अधिकारी ने कहा, ‘उनके मामले में भी अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के नियम लागू नहीं होंगे, क्योंकि वे तकनीकी रूप से सेवा में नहीं हैं. पीएम का संदेश यह है कि यदि आप डिलीवर करना जानते हैं कि कैसे डिलीवर करना है, तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति या नियमित सेवानिवृत्ति के नौकरशाही नियम आपके लिए लागू नहीं होंगे.’

रिफार्म

अमिताभ कांत – नीति आयोग के माध्यम से सुधारों को आगे बढ़ा रहे हैं

पिछले कुछ वर्षों में, नीति आयोग देश में आर्थिक, प्रशासनिक और प्रशासन सुधारों का सबसे सशक्त और प्रमुख मार्ग बन गया है.

किसानों की आय को दोगुना करने, राज्यों के लिए मॉडल कृषि भूमि पट्टे पर कानून बनाने, स्वच्छ भारत को कैसे प्राप्त करें, एमएसएमई के बीच डिजिटल भुगतान को लोकप्रिय बनाने, चिकित्सा शिक्षा में सुधार, आयुष्मान भारत की शुरुआत करने, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में सुधार, रेलवे के निजीकरण, की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है. एयर इंडिया की रणनीतिक बिक्री के लिए, सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रविष्टि को या तो नीति आयोग द्वारा विचार किया गया है या इसके द्वारा प्रायोजित किया गया है.

जबकि नीति आयोग मोदी सरकार में सभी सुधारों के केंद्र के रूप में उभरा है, इसकी अध्यक्षता एक अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमिताभ कांत करते हैं. 2019 में उन्हें इसके सीईओ के रूप में दो साल का विस्तार दिया गया है.

हाल ही में सेवानिवृत्त हुए नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘उनके विस्तार ने दो चीजों को प्रतिबिंबित किया- एक यह कि उन्हें पूरी तरह से पीएम का विश्वास प्राप्त है और दूसरा पीएम नीति-निर्धारण में निरंतरता को महत्व देते हैं.’

हालांकि, अमिताभ कांत न तो एक अर्थशास्त्री हैं और न ही एक सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ हैं. उनका इस पद पर लंबे समय तक बने रहना यह दर्शाता है कि पीएम उन्हीं लोगों को चाहते हैं जो लोग उनके दृष्टिकोण को क्रियान्वित कर सकें.

एस जयशंकर – एक अभूतपूर्व नियुक्ति

एक और क्षेत्र जहां मोदी ने एक सेवानिवृत्त सिविल सेवक के माध्यम से सुधार करने का प्रयास किया है, वह विदेश नीति है. 2019 में एक बड़े जनादेश के साथ सत्ता में लौटने के तुरंत बाद, मोदी ने अभूतपूर्व तरीके से पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त करके कई को झटका दिया.

अपनी नियुक्ति के बाद से जयशंकर ने भारत के विदेशी कार्यालय के कामकाज में सुधार प्रदान करने की सुविधा दी है. एक ओर जहां जयशंकर ने विदेश मंत्रालय के मूलभूत पुनर्गठन की शुरुआत की है. आज भारतीय विदेश नीति की जरूरतों के अनुरूप इसे बनाने का प्रयास है. दूसरी ओर वह नियमित रूप से विदेशी दर्शकों को संबोधित करते हैं. भारत के कुशल दृष्टिकोण को दुनिया में के हित में बात रखते हैं.

विनोद कुमार यादव- सिविल सेवक से सीईओ तक

एक और सेवा विस्तार जो पीएम द्वारा किये गए सुधार को रेखांकित करता है, वह है रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष. जनवरी में सरकार ने विनोद कुमार यादव को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में एक साल का विस्तार दिया, जब सरकार ने रेलवे सेवाओं में आमूल-चूल सुधारों की घोषणा की थी. यादव, जिन्हें रेलवे बोर्ड का पहला सीईओ बनाया गया है, वे रेलवे में प्रमुख सुधारों की देखरेख करेंगे, जैसे कि बोर्ड की ट्रिमिंग, इसके संवर्ग का विलय करेंगे.

अन्य प्रमुख नियुक्तियां

शक्तिकांत दास

मोदी सरकार ने एक अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शक्तिकांत दास को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया. एक ऐसा कार्यालय जो पिछले पांच वर्षों में किसी भी सेवानिवृत्त सिविल सेवक के पास नहीं था.

यह दो आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और उर्जित पटेल के बाद किया गया था. जिसमें देश के केंद्रीय बैंक को अचानक एक अजीब स्थिति में खड़ा कर दिया था.

वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव के रूप में दास ने कथित तौर पर मोदी सरकार के नोटबंदी के गुप्त मिशन का नेतृत्व किया और बाद में विवादास्पद निर्णय का भी बचाव किया, क्योंकि उस समय इस मुद्दे पर आरबीआई गवर्नर पटेल की ओर से चुप्पी साधी गयी थी.

अपनी नियुक्ति के बाद से, दास ने ब्याज दरों के विवादास्पद मामले के बारे में वित्त मंत्रालय और देश के केंद्रीय बैंक के बीच टकराव को कम करने का लक्ष्य रखा है.

बिपिन रावत – भारत के पहले सीडीएस

यह चलन भारतीय सेना तक भी बढ़ा है. पिछले साल, देश के सबसे बड़े सैन्य सुधारों में से एक मोदी सरकार ने थल सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना के कामकाज में ‘तालमेल’ लाने के लिए चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का पद सृजित किया. सरकार ने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को सेवानिवृत्त होने से एक दिन पहले इस पद पर नियुक्त किया.

राघवेन्द्र सिंह – संस्कृति से इतिहास

इस साल मोदी सरकार ने एक बार फिर से अलग कदम उठाते हुए पूर्व संस्कृति सचिव और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी राघवेन्द्र सिंह को नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय (एनएमएमएल) के निदेशक के रूप में नियुक्त किया.

यह ऐसे समय में हुआ जब सरकार प्रधानमंत्री परियोजना के अपने विवादास्पद संग्रहालय पर तेजी से काम करना चाहती है.

नियमों में बदलाव

इनमें से कई नियुक्तियों पर मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा नियमों को दरकिनार कर दिया है कि जो लोग अपनी औपचारिक सेवानिवृत्ति से परे सरकार में बने रहना चाहते हैं, वे किसी भी कानूनी बाधाओं का सामना किए बिना जारी रख सकते हैं.

2014 में, मोदी सरकार ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) अधिनियम में संशोधन किया, जिसने स्पष्ट रूप से एक अध्यक्ष को इस क्षमता में सेवा करने के बाद सरकार द्वारा नियोजित होने से रोक दिया. रातोंरात यह सुनिश्चित किया गया कि नृपेंद्र मिश्रा, जिन्होंने इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है, हो सकता है कि सरकार में फिर से कार्यरत हों.

फिर 2019 में, पीके सिन्हा को बनाए रखने के लिए एक अखिल भारतीय सेवा नियम, जो कहता है कि सरकार चार साल से अधिक कैबिनेट सचिव को एक्सटेंशन नहीं दे सकती है, को संशोधित किया गया था.

सामान्य तौर पर, सरकारी नियम नियत प्रक्रिया या औचित्य के बिना एक्सटेंशन की अनुमति नहीं देते हैं. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के नियमों के अनुसार, ‘सेवा के विस्तार के लिए कोई भी प्रस्ताव, जो कि सेवानिवृत्ति की आयु से परे है, को आमतौर पर नहीं माना जाना चाहिए.’

इसके अलावा नियम कहते हैं कि ‘सेवा का विस्तार केवल बहुत ही दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों में हो सकता है.’

सेवा विस्तार को तभी सही ठहराया जा सकता है, जब अधिकारी नौकरी के लिए योग्य हो या अधिकारी पर आउटस्टैंडिंग मेरिट के सवाल हों. एक सेवानिवृत्त अधिकारी को दिए जाने वाले विस्तार के लिए इन दोनों स्थितियों को पर्याप्त रूप से स्थापित करने की आवश्यकता होती है.

तक्षशिला संस्थान के सह-संस्थापक और निदेशक नितिन पई कहते हैं, ‘सरकार की ये कन्वेंशन उसकी कमी को दर्शाता है इसके नियम और लगातार किये जाने वाली तक़रीब इसपर खुद सवाल उठा रहे हैं जिससे सिविल सेवाओं में सुधार की आवश्यकता बढ़ रही है.


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उन्होंने कहा, ‘इस तरह के मामले इस तथ्य को उजागर करते हैं कि 1960 के दशक में नागरिक सेवाओं को नियंत्रित करने वाले नियम 2020 में उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकते हैं.’

‘इस तथ्य से कोई बच नहीं सकता है कि सिविल सेवाओं को ऐसे समय में सुधार करने की आवश्यकता है जब लोग लंबे समय तक रहते हैं, जब शासन को गहन विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है जो एक वर्ष या एक-डेढ़ वर्ष के लंबे कार्यकाल में हासिल नहीं की जा सकती है, जब प्रतिभाशाली बाहरी लोग कर सकते हैं कुछ योजनाओं को क्रियान्वयन करने के लिए सरकार में लाया जाए.’

शासन संरचनाओं में मौलिक परिवर्तन

हालांकि, अधिकारियों का कहना है विस्तार के लिए पीएम के विकल्प, चुनिंदा अधिकारियों के लिए नए पद सृजित करने और सेवानिवृत्त अधिकारियों को कैबिनेट रैंक तक बढ़ाने के कारण देश में लंबे समय से चल रहे शासन ढांचे में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं.

मिसाल के तौर पर नृपेन्द्र मिश्र, पीके मिश्रा और अजीत डोभाल का कद ऊंचा हो गया. उदाहरण के लिए पहली बार सेवानिवृत्त सिविल सेवकों को सरकार में मंत्रियों के स्तर पर लाया गया- यह एक एक ऐसा कदम है जिसे पूर्व आईएएस अधिकारी रघुनंदन ने पीएम की अपनी राजनीतिक टीम के विश्वास की अनदेखी के रूप में समझाया है. यह विचार दूसरों द्वारा भी साझा किया गया है.

केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘परंपरागत प्रणाली हमेशा निर्वाचित मंत्रियों के अधीन नौकरशाही का काम करती है … लेकिन ये बदलाव देश के बुनियादी ढांचे में बदलाव का प्रतीक हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘जब यह सरकार सत्ता में आई, तो मंत्रियों के समूह और मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह आदि में लगातार गिरावट देखी गई … लेकिन जब पीएमओ में अधिकारियों को कैबिनेट मंत्री रैंक दी गई, तो आधिकारिक तौर पर इस पारी को औपचारिक और संस्थागत बना दिया गया.

उन्होंने कहा सेवा में विस्तार कोई नयी बात नहीं है… ये यूपीए के वर्षों के दौरान भी हुए थे. लेकिन जो नया है वह यह है कि ये अब नियमित रूप से किया जाता है – जो देश में नौकरशाही संरचनाओं के बदलाव को दर्शाता है. सेवानिवृत्ति को अब एक औपचारिकता बना दिया गया है जिसे आसानी से निष्ठा या योग्यता को पुरस्कृत करने के लिए विकसित किया जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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