नई दिल्ली: मायापुरी देश की राजधानी दिल्ली की सबसे बड़ी कबाड़ (स्क्रैप) मार्केट है. यहां देश विदेश से लोग अपनी पुरानी गाड़ियों का निस्तारण (डिस्पोज़ल) कराने आते हैं. रोज़ाना 200-300 गाड़ियों को डम्प कराने वाली इस मंडी में पिछले कुछ दिनों से सन्नाटा है. पश्चिमी दिल्ली इलाके में आने वाली मायापुरी इंडस्ट्रियल एरिया में पिछले दिनों एनजीटी और दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी द्वारा चलाए गए डंडे के बाद से ही यहां के व्यापारियों में आक्रोश है और मार्केट परिसर में आते ही लग जाता है कि यहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
दरअसल बीते 2 अप्रैल को दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी (डीपीसीसी) ने स्क्रैप की गतिविधियों से फैलने वाले प्रदूषण के कारण वहां काम कर रहे कारोबारियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया. इसके बाद 13 अप्रैल को एनजीटी के आदेश पर डीपीसीसी ने मायापुरी की करीब 800 यूनिट को बंद करने का फैसला किया. जिसके बाद एमसीडी की टीम यहां प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को सील करने पहुंची. सीलिंग करने आई टीम ने 6 यूनिट ही सील की थी कि कारोबारी भड़क उठे और अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोकने लगे. इस बीच मामला इतना बढ़ गया कि दोनों में मुठभेड़ हो गई जिसमें कई कारोबारी को गंभीर चोटें भी आईं और सीलिंग का काम वहीं रोक दिया गया.
अचानक हुई इस कार्रवाई से घबराए मायापुरी के ये कारोबारी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे. 11 कारोबारियों द्वारा दायर इस याचिका पर जस्टिस विभू बाखुरू ने सुनवाई की और इस मामले में अगली सुनवाई 20 मई रख दी और डीपीसीसी को तब तक किसी भी तरह का एक्शन लेने से रोक लगा दिया.
दशकों से चल रहा कारोबार, व्यापारी हैं परेशान
मायापुरी इलाके में ऑटोपार्ट्स का कारोबार कई दशकों से चला आ रहा हैं. अगर यहां के कारोबारियों की मानें तो इस बाजार से सलाना 6 हजार करोड़ का कारोबार होता है. डम्प होने वाली चीज़ों में बच्चों की साइकिल से लेकर पुराने मोटर पार्ट्स, आर्मी की ट्रक तक शामिल हैं. यहां स्थित फैक्ट्रियों और दुकानों में करीब 10 हज़ार लोग काम करते हैं. इस समय वहां की स्थिति क्या है, इसे जानने के लिए दिप्रिंट की टीम मायापुरी पहुंचती है.
सुबह के करीब 11 बज रहे थे. अमूमन इस समय ग्राहकों का तांता लगना शुरू हो जाता है. लेकिन गली की शुरुआत की कुछ दुकानों पर ताले लगे मिले. जब हम आगे बढ़े तो ऐसा लग रहा था मानों चार पहिया वाहनों का पुर्जा-पुर्जा अपने अंतिम संस्कार की बाट जोह रहा हो. दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर नहीं दिखाई देते हैं. 4-5 दुकानदार थोड़ी-थोड़ी दूर पर इकट्ठा होकर आपस में बातचीत कर रहे हैं.
इन्हीं में से एक व्यापारी राजेंद्र जोकि यहां पिछले 30 सालों से पुरानी गाड़ियों की प्रोसेसिंग का काम कर रहे हैं बताते हैं, ‘हम सबके बाप-दादा बंटवारे के समय दिल्ली के मोतियाखान और उसके आस-पास के इलाकों में बस गए थे. कोई पेशावर से, तो कोई रावलपिंडी से, तो कोई तेरा(नारोवाल) से यहां आया था. फिर साल 1974 में दिल्ली के तात्कालिक उपराज्यपाल जगमोहन के आदेश पर हमें दिल्ली के मोतियाखान से हटाकर लीज़ पर मायापुरी में जगह दी गई. हम अपना व्यापार कर रहे थे. बिना किसी रोक-टोक के. जब कभी दिल्ली कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसी को भी अपनी पुरानी गाड़ियों को रिसाइकल करानी हो तो वो यहीं आता है.’
लेकिन पिछले दिनों हुई झड़प से उनकी मुश्किले बढ़ी हैं
गुरदेव सिंह अपनी दुकान में अकेले बैठे हैं. हमारे पूछने पर वो दुखी मन से बताते हैं, ‘हमारी यहां पिछले कई दशकों से दुकान है. लेकिन एनजीटी के आए फैसले के बाद हम सभी सकते में हैं. डर का माहौल बन गया है कि आखिर क्या होगा. हमारे यहां काम करने वाले आधा दर्जन मजदूर अपने घर जा चुके हैं. हमें अब एक वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है.’
हम गुरदेव सिंह की दुकान से आगे बढ़े कि रास्ते में हमें इंद्रजीत सिंह दिखते हैं. वो अपने स्कूटर से गली-गली में घूम कर लोगों के लिए खाना बनाकर बेच रहे हैं. इंद्रजीत बताते हैं, ‘एमसीडी की कार्रवाई वाली शाम से ही हमारे यहां काम करने वाले सारे मज़दूर अपने घर लौट चुके हैं. मेरे पास गुजर-बसर करने के लिए अब कोई चारा नहीं है. इसलिए अपनी जीविका चलाने के लिए मैंने ये उपाय ढ़ूढ़ा है.’
मायापुरी में स्क्रैप व्यापारियों के संगठन के अध्यक्ष और उन्हें कानूनी सहायता प्रदान कराने वाले इंद्रजीत सिंह ‘मोंटी’ बताते हैं ‘एनजीटी के नोटिस पर डीपीसीसी द्वारा की गई कार्रवाई एक तरफा है, हमें बिना नोटिस दिए गए ये किया गया है. हमारी बात सुनी नहीं गई. डीपीसीसी ने कार्रवाई करने के बाद शाम को दुकानों के बाहर नोटिस चिपकाया.
डीपीसीसी की हड़बडी ने किया कारोबारियों का जीना दुश्वार
एनजीटी से मिले आर्डर के बाद डीपीसीसी ने जिस कदर जल्दबाजी दिखाई उसका खामियाजा मायापुरी में बेल्ट की प्रोसेसिंग करने वाले रविंद्र सिंह को उठाना पड़ रहा है. रविंद्र सिंह का ‘भव्या ट्रेडर’ नाम से मायापुरी के फेस-2 में एक फैक्ट्री है. जिसे 13 अप्रैल को ही सील कर दिया गया. लेकिन, डीपीसीसी ने उन्हें सीलिंग करते वक्त जो नोटिस दिया उसमें ‘एस.एस बी इंट्रप्राइजेज’ के मदन कुमार का नाम है. जिनकी यूनिट मायापुरी फेस-2 में ही सी-156 पते पर है.
रविंद्र बताते हैं, ‘हम डीपीसीसी की गलतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं. मायापुरी इंडस्ट्रियल एरिया के फेस-2, सी-150 में हमारी दुकान को सील कर दिया गया. हमारा बेल्ट का काम है. हम उसकी प्रोसेसिंग करते हैं. हमें अपना दस्तावेज दिखाने का मौका नहीं मिला जबकि हम एमएसएमई(सूक्ष्म एवं लघु उद्योग) द्वारा पंजीकृत हैं और साथ ही डीपीसीसी ने हमें 2026 तक का लाइसेंस दिया है.
तो क्या आपने डीपीसीसी से इस संदर्भ में कोई बात की ?
वे कहते हैं, हमने 16 अप्रैल 2019 को डीपीसीसी के सदस्य सचिव श्री अली को एक आवेदन दिया है, डीपीसीसी ने अपनी गलती मानी है लेकिन फिर भी हमें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है. हमारा कारोबार अभी तक ठप पड़ा है.’
मायापुरी के कबाड़ी व्यापारियों से जुड़ी समस्या के बारे में पूछने के लिए जब दिप्रिंट हिंदी ने डीपीसीसी कार्यालय फोन किया तो वहां के कई अधिकारियों ने इस मुद्दे पर बातचीत करने से साफ इंकार कर दिया. एनजीटी के ज्यूडिशयल विभाग ने भी इस मुद्दे को डीपीसीसी के हवाले कर मामले से पल्ला झाड़ लिया.
एनजीटी के आर्डर कब और कैसे
13 अप्रैल को हुई इस घटना के बाद कारोबारियों की दुकान के बाहर नोटिस लगाया गया. सब डिविज़नल दिल्ली कैंट की तरफ से जारी इस नोटिस में व्यापारियों को आगाह किया गया है कि कार्रवाई करने में किसी तरह की रुकावट नहीं होनी चाहिए अन्यथा आगे कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
बता दें इस क्षेत्र में प्रदूषण फैला रहे स्क्रैपिंग यूनिट को रोकने के लिए पिछले चार सालों में एनजीटी इससे पहले भी आर्डर पास कर चुका है. मई 2015 और अक्टूबर 2018 में. इसके बाद एनजीटी ने टाइम्स ऑफ इंडिया में मायापुरी क्षेत्र के डी, सी, ई और डब्लू ब्लॉक से निकलने वाले प्रदूषण पर छपी एक रिपोर्ट को आधार बनाकर एक स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया. जिसमें डीडीए (दिल्ली डेवलपमेंट अथारिटी), डीपीसीसी, दिल्ली पुलिस, डिस्ट्रकिट मजिस्ट्रेट, डीएसआईआईसी (दिल्ली स्टेट इंडिस्ट्रियल एंड इनफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन), एसडीएमसी(दक्षिणी दिल्ली नगर निगम) शामिल हैं.
एसटीएफ द्वारा कराए गए इस सर्वे में ये बात निकल कर सामने आई कि वहां जिस तरह से स्क्रैपिंग का कार्य किया जा रहा है वो स्थानीय लोगों के लिए चिंताजनक है. जिसके बाद एनजीटी ने 29 जनवरी 2019 को कार्रवाई के आदेश दिए थे. लेकिन एनजीटी के बार-बार आदेश पास करने के बाद डीपीसीसी द्वारा कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने पर उसने दिल्ली के चीफ सेक्रिटरी और डीपीसीसी को तलब करते हुए 11 अप्रैल एक बार फिर से मायापुरी में स्क्रैप कारोबारियों पर कार्रवाई के आदेश दिए.
इंद्रजीत सिंह ‘मोंटी’ कहते हैं, ‘एसटीएफ की टीम के किसी सदस्य ने हमसे या यहां के किसी कारोबारियों से कोई बात नहीं की. कार्रवाई करने के बाद ये लोग हमसे मिलने आए.’
वहीं वहां के स्थानीय कारोबारियों का मानना है कि एनजीटी को जो सर्वे की लिस्ट डीपीसीसी ने दी है, उसका ढंग से कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है. व्यापारी रविंद्र कहते हैं, कोर्ट में एनजीटी ने बोला है कि हमने दो दिनों में 850 दुकानों का सर्वे कर लिया है. आप ही बताए क्या दो दिनों में इतने बड़े स्तर पर सर्वे करना मुमकिन है. रविंद्र की बात को बीच में टोकते हुए गुरदेव ने कहा, ‘सर्वे के नाम पर वे कुछ दुकानों के बाहर गए. केवल नाम पूछा. दुकान का नाम नोट किया. इसके अलावा कुछ नहीं पूछा.’
प्लीज़! हमें अवैध व्यापारी न कहा जाए
अगस्त 2018 में दिल्ली के परिवाहन विभाग ने वाहनों के सेफ डिस्पोज़ल के लिए कुछ निर्देश जारी किए थे. जिससे एनजीटी के आदेशों का पालन किया जा सके. इसके अंतर्गत दिल्ली की सड़कों पर कोई भी वाहन जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हो और वो कहीं बेकार स्थिति में पड़ा हो तो एनडीएमसी (नई दिल्ली म्युनिस्पल काउंसिल) और परिवाहन विभाग उसे जब्त कर सकता है. जिसे बाद में निस्तारण के लिए अधिकृत यार्ड को सौंप दिया जाएगा.
अब अधिकृत स्क्रैपिंग यार्ड का लाइसेंस पाने के लिए दिल्ली में उसका ऑफिस हो. वो गैर-व्यावसायिक क्षेत्र में लगभग 1000 गज में बना होना चाहिए. जैसी कि उम्मीद है सरकार द्वारा बनाए गए नियम 1 अप्रैल 2020 से लागू हो जाएंंगे. इसको लेकर भी मायापुरी के व्यापारियों में चिंता है.
रविंद्र सिंह कहते हैं कि 1000 गज़ का प्लाट लेना एक व्यक्ति तो छोड़िए एक कंपनी के लिए भी मुश्किल है. दिल्ली में इतनी ज़मीन ही नहीं कि हर किसी को 1000 गज़ का प्लाट इस काम के लिए दिया जा सके. इससे छोटे व्यापारियों पर सीधी मार पड़ेगी. सरकार के इस नियम से हम अवैध व्यापारी हो जाते हैं.
वहीं दूसरे व्यापारी राजेंद्र कहते हैं, ‘सरकार द्वारा जब भी कोई पॉलिसी बनती है तो वो लोगों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है. नया नियम हमारे साथ छलावा है जो हमारे काम को अवैध की श्रेणी में डाल देता है. सरकार से हमारी गुजारिश है कि इस नियम पर जल्द से जल्द पुनर्विचार करें और हमें अवैध व्यापारी कहना बंद करें.’
लेकिन आसपास रहने वालों की दिक्कतें भी कम नहीं
साल 2010 में इस इलाके में एक रेडियोएक्टिव विस्फोट हुआ था. जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद से मायापुरी की साख पर बट्टा ज़रूर लगा लेकिन लोगों का काम चलता रहा. यहां काम करने वाले लोगों के अलावा आसपास की कालोनियों में बसे लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. सरकार ने कारोबारियों को लेकर कभी कोई जागरुकता अभियान भी नहीं चलाया जिसका खामियाजा मायापुरी के नजदीक बसे इलाके के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
यहां थोड़ी दूर पर स्थित एक आवासीय कॉलोनी में रहने वाले 18 साल के रोहित बताते हैं हमें यहां सामान्य दिनों में भी सांस लेने में तकलीफ होती है. आप कभी इन मुहल्लों से होकर गुजरिए आपको चक्कर आ जाएगा.
वहीं पास के एक स्कूली शिक्षक मनोज ने बताया कि , ‘हम तो जैसे-तैसे अपना जीवन काट रहे हैं लेकिन आने वाले समय में यहां के बच्चों का क्या होगा. ये यहां के प्रदूषण के कारण उठने वाले स्मॉग (धुएं और धूल का मिश्रण) का असर है कि छोटे-छोटे बच्चों यहां अभी से ही मास्क लगाकर निकल रहे हैं.’
कुछ स्थानीय लोग दबी जुबान में यह भी कहते नज़र आए कि चुंकि यहां व्यापार बड़े स्तर का है इसलिए कमाई ज्यादा है. जिससे यहां से निकलने वाले प्रदूषण पर प्रशासन का कोई रोक नहीं है. हम सबने कई बार अधिकारियों से कंप्लेन भी किया लेकिन ये काम करने वाले कारोबारियों और एमसीडी की मिली भगत है. जिससे इनपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
क्या इसका कोई सामाधान है
एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट एनजीटी के उस आदेश को पास करती है जिसमें बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर उसने 10 साल से पुराने डीजल वाहन और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन को दिल्ली में चलने से रोक लगाई थी. इसके बाद परिवाहन विभाग ने दिल्ली में ऐसे करीब 40 लाख वाहनों का पंजीकरण रद्द कर दिया था. इन वाहनों के निस्तारण के लिए इन्हें स्क्रैपिंग यार्ड भेजा गया. बिना वहां पहले से मौजूद समस्याओं का समाधान निकाले.
ऐसे में इस समस्या के समाधान के बारे में जब हमने यूनाइटेड रेजिडेंट ज्वाइंट एक्शन के सीईओ आशुतोष दीक्षित से बात की तो वो बताते हैं, ‘इस समस्या का कोई सीधा समाधान नहीं है. किसी को दुकान खोलने की अनुमति देना और उससे निकल रही गंदगी को रोकना, दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं. मायापुरी के व्यापारियों के लिए सही ढंग से स्थानांतरण का प्लान बनाए बिना उन्हें हटाना उचित नहीं है.’
वहीं सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की अनुमिता का मानना है, ‘मायापुरी में जो हा रहा था वो गाड़ियों की स्क्रैपिंग से है. अब यह इस पर निर्भर करता है कि उसे किस प्रकार किया जा रहा है. इनकी स्क्रैपिंग से जो भी कचड़ा बाहर निकल रहा है, उसका सुरक्षित ढंग से निस्तारण करना पड़ेगा. सीपीसीबी ने टेक्निकल गाइडलाइन जारी तो कर दी है लेकिन उसका क्रियान्वयन किस तरह किया जाए इसको लेकर अभी चीज़े स्पष्ट नहीं है. आप बिना किसी ठोस योजना के एकबार में इतने सारे लोगों का रोजगार नहीं छिन सकते.’
भले एनजीटी ने 20 मई तक डीपीसीसी को इन यूनिट्स के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक लगा दी है लेकिन क्या मायपुरी के लोगों की मुश्किलें कम होंगी, ये आने वाला वक्त बताएगा.