scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशपाकिस्तान के हनी ट्रैप के जाल में कैसे फंसा भारतीय रक्षा अधिकारी?

पाकिस्तान के हनी ट्रैप के जाल में कैसे फंसा भारतीय रक्षा अधिकारी?

जांचकर्ताओं का कहना है कि प्रतिरक्षा से जुड़े भारतीयों को आईएसआई के एजेंट फेसबुक, ट्विटर और लिंक्डइन के ज़रिए फांसते हैं. उनका अनुमान है कि करीब 1,100 भारतीय आईपी एड्रेस हैं जिनके तार आईएसआई से जुड़े हैं.

Text Size:

लखनऊ, रुड़की: सोमवार को सुबह पांच बजे कुछ 22 लोग ब्रह्मोस एयरोस्पेस के वरिष्ठ इंजीनियर नागपुर में निशांत अग्रवाल के घर घुसे. इनमें कुछ वर्दीधारी थे और इनके पास जांच का वारंट था. वे उसका लैपटॉप, मोबाइल और आईपैड ले गए और अगले 15 घंटो तक उससे पूछताछ हुई.

उसी रात को अग्रवाल की सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तारी हुई. उन पर कथित रूप से 22 ऐसे संवेदनशील दस्तावेज़ रखने का आरोप लगा है जोकि ‘गोपनीय’ थे और जो ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाईल के निर्माण से जुड़े थे.

जांचकर्ताओं का कहना है कि इनमें से कुछ दस्तावेज़ मिसाईल का खाका थे जोकि अब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथ लग गए हैं. अगले दिन 9 अक्टूबर को मीडिया ने अग्रवाल को जासूस करार दिया, एक देशद्रोही जिसे पाकिस्तान के एजेंट ने हनीट्रैप कर लिया.

पर कहानी में एक पेंच है. जांचकर्ताओं का मानना है कि अग्रवाल ने जानबूझ कर शायद ये दस्तावेज़ लीक नहीं किए पर वो सीमा पार के खुफिया ऑपरेशन का शिकार बना.

जांचकर्ताओं का कहना है कि अग्रवाल से लिंक्डइन के ज़रिए संपर्क साधा गया. उन्हें नौकरी का लालच दिया गया. उनको कथित रूप से एक ऐप डाउनलोड करने को कहा गया जिसमें मालवेयर था जिसके सहारे आईएसआई एजेंट उनके लैपटॉप के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों तक पहुंच पाए.

इंजीनियर के पास कथित रूप से हालांकि वो फाइलें थी जो उसके पास नहीं होनी चाहिए थी. उनकी पूछताछ में अग्रवाल ने दावा किया कि प्रशिक्षण के लिए उनके पास वो फाइलें थी, पर उन पर अब इन फाइलों के होने पर, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत आरोप लगे हैं.

उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधी स्क्वाड के अधिकारी का कहना है कि ‘अग्रवाल को सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत ब्रह्मोस की हैदराबाद इकाई के अवैध रूप से प्राप्त किये गए दस्तावेज़ की नकल बनाने का एटीएस ने दोषी पाया.’ इस मामले की जांच कर रही यूपी एटीएस कहती है कि ‘ये दस्तावेज़ बाद में पाकिस्तान गुप्तचरों ने किसी तरह से प्राप्त कर लिए थे.’

पर ये मामला तो बस बानगी भर है. यूपी एटीएस और मिलीटरी इंटेलिजेंस ने अब भारत में 1,100 ऐसे आईपी एड्रेस को चिन्हित किया है जिनका संपर्क पाकिस्तान के गुप्तचर अधिकारियों से है- चाहे वे फेसबुक, ट्विटर या लिंक्डइन के ज़रिये हो.

यूपी एटीएस के अधिकारियों का कहना है कि अग्रवाल के मामले की ही तरह आईएसआई ने युवाओं को निशाना बनाना शुरू किया है जोकि किसी ताकतवर पोज़िशन में काम कर रहे हैं खासकर प्रतिरक्षा क्षेत्र में,ताकि वो अलग-अलग पैंतरे इस्तेमाल कर सूचना निकाल पायें.

अब एटीएस इन 1,100 आईपी एड्रेसेस पर कानूनी संदेश भेज कर इनको इस बारे में सतर्क करना चाहते हैं.

एक एटीएस अधिकारी ने कहा ‘ये ज़रूरी हो गया है कि लोगों को इस रैकेट के बारे में आगाह किया जाये ताकि वो दूसरों की तरह इसका शिकार न बने और जाने अनजाने में संवेदनशील सूचना शेयर न कर ले. हम जल्द ही इस बारे में ये काम शुरू करेंगे.’

‘वे जाल फेंकते हैं और शिकार का इंतज़ार करते थे’

जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि आईएसआई पाकिस्तान से एक बीपीओ चलाते हैं जिसमें तीन स्तर पर अधिकारी काम करते हैं.

पहले स्तर पर स्पॉटर्स या वे लोग होते हैं जो कि ऐसे लोगों को खोजते जिनको वे सोशल मीडिया पर निशाना बना सकते हैं. एटीएस अधिकारियों का कहना है ये लोग ज़्यादातर वो होते हैं जो रक्षा क्षेत्र में काम करते हैं जैसे क्लर्क, रिकॉर्ड स्टाफ, प्रतिरक्षा खरीद और उत्पादन विभाग में काम कर रहे लोग.

एक बार जब लक्ष्य की सूची बन जाती है तो इसको दूसरे लेवल के कर्मचारियों के पास भेजा जाता है जिन्हें एंगेजर कहा जाता है. इनका काम तय किये गए लक्ष्य से संपर्क स्थापित करना होता है.

जांचकर्ता ने बताया कि ‘दूसरे लेवल के आईएसआई ऑपरेटिव जोकि पाकिस्तान में हैं. पहले चुग्गा डालते हैं और फिर प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते हैं. जैसे ही उन्हें प्रतिक्रिया मिलती है वे हमला बोल देते हैं.’

वे साथ ही कहते हैं कि ‘हर मामले को जिनको हमने हाल के दिनों में देखा है, इन लोगों की योजना एक सी रहती है. चैट एक जैसे होते हैं, उनकी सूचना निकालने की तरकीब एक सी होती है.’

वे महिला बन के भारत में अपने लक्ष्य से संपर्क साधते हैं फिर माध्यम चाहे फेसबुक, ट्विटर या लिंक्डइन या फिर इंस्टाग्राम जो भी हो.

एक अधिकारी ने कहा, ‘ये या तो इन लोगों को नौकरी का ऑफर भेजते हैं या फिर इनके लिखे को लाइक करते या फिर आपकी तस्वीर को लाइक करते हैं ताकि वे बातचीत शुरू कर सकें. अगर आप जवाब देते हैं तो फिर ये आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं. जो तस्वीर उनकी प्रोफाइल पर होती है वो अक्सर ग्लैमरस महिला की होती है ताकि लोग बात शुरू करने के लिए खिंचे चले आएं. मकसद उस व्यक्ति का विश्वास जीतने का होता है और फिर आगे की बातचीत व्हाट्सएप पर स्थानांतरित की जाती है.’

उस अधिकारी ने कहा, ‘कई बार ये आदमी महिला के वेश मे संपर्क साधते हैं. चैटिंग का भी एक तरीका होता है. और असली महिलाएं बाद में इसका हिस्सा बनती हैं.’

अंतिम लेवल पर असली महिलाएं आती हैं क्योंकि ये अब अपने लक्ष्यों से सीधे फोन पर बात करतीं हैं और वीडियो चैट भी करती हैं. वे कहते हैं, ‘वे असली औरतों को अंतिम स्टेज पर लाते हैं क्योंकि इनको निशाने पर आदमी से सीधा संपर्क करना होता है.’

बीएसएफ के जवान अच्युतानंद मिश्र की गिरफ्तारी से ये बात उजागर हुई थी. उसका फेसबुक पर आईएसआई द्वारा कथित रूप से हनी ट्रैप हुआ था. उसे नोएडा से सितम्बर में पकड़ा गया था.

जांचकर्ताओं का कहना है कि अच्युतानंद मिश्र उस लड़की के चक्कर में ऐसा फंसा कि वो उसके साथ तस्वीरें साझा करने लगा और उससे वीडियो कॉल पर बात करने लगा. वो स्वयं को प्रतिरक्षा संवाददाता बता रही थी.

आरोप है कि उसकी भी महिला से ऑनलाइन दोस्ती हुई थी और कथित रूप से उसने भी महिला को तस्वीरें, वीडियो और बीएसएफ के कैंपों के दस्तावेज़, प्रशिक्षण केंद्रों, सामरिक महत्व की जानकारी जिनमें यूनिट की जगह और कंपनी कमांडर की ऑपरेशन ब्रीफिंग लीक की.

ऐसे ही एक और बीएसएफ जवान को पिछले हफ्ते पंजाब पुलिस ने सुरक्षित स्थलों के गुप्त दस्तावेज़, फोटो और वीडियो आईएसआई को लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

हाल में कई ऐसे मामले सामने आये हैं जोकि जांच एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है और वे इससे निपटने के रास्ते खोज रही हैं.

एक गुप्तचर अधिकारी ने कहा कि ‘ये सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है. अगर महत्वपूर्ण स्थानों पर आसीन अधिकारी ऐसे शिकार बनते रहे तो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरायेगा.’

कैसे लिंक्डइन प्रोफाइल ने इंजीनियर को फंसाया?

ब्रह्मोस इंजीनियर मामले में जांचकर्ताओं को आईएसआई के काम करने के तरीके पर ज़रूरी संकेत मिले हैं.

एटीएस के इस अधिकारी ने अपने सर्विस नियम का उल्लंघन किया था और ये आईएसआई के जाल में सोशल मीडिया के ज़रिये आ गया.

उन्होंने एक महिला के ज़रिये उससे संपर्क साधा. लिंक्डइन पर महिला ने स्वयं को कंसल्टेंट बताया और कि उनकी प्रोफाइल इतनी शानदार है कि इंग्लैंड के मैनचेस्टर शहर में उनके लायक उंची तनख्वाह वाली नौकरी है.

अग्रवाल झांसे में आ गए और उन्होंने झट अपना सीवी शेयर कर दिया.

एटीएस अधिकारी ने बताया,‘अग्रवाल का जवाब उनके लिए संकेत था कि वे अपना कदम उठाएं. पहले पहल दोनों लिंक्डइन पर मिले फिर फेसबुक मैसेंजर और फिर व्हाट्सऐप. शुरू में महिला ने अग्रवाल के काम के बारे में पूछा, ब्रह्मोस में उनकी भूमिका, वे कितने लैब में घुस सकते हैं. इसके बाद उसने बताया कि उसने इनके लिए एक नौकरी ढूंढी है जो कि रक्षा क्षेत्र में है, मैनचेस्टर स्थित है और अच्छी तनख्वाह भी देंगे. ’

महिला ने कहा कि कंपनी वाले अग्रवाल से सुरक्षित संचार माध्यम से ही बात करेंगे और उनको इसके लिए एक ऐप डाउनलोड करना पड़ेगा.

‘उसने अग्रवाल को एक लिंक भेजा ताकि वो नौकरी देने वाले से बात कर सके. अग्रवाल ने ऐप डाउनलोड किया और संभावित नौकरी देने वाले से मैनचेस्टर में डिफेंस सर्विसेस से संपर्क साधा. दोनों ने कुछ दिन बात की पर उसके बाद उस ऐप ने काम करना बंद कर दिया. अग्रवाल को लगा कि सिस्टम की कुछ खराबी है और उन्होंने ऐप डिलीट कर दिया.’

जांच अधिकारी ने कहा कि ‘अग्रवाल का आईपी एड्रेस गुप्तचर संस्थाओं की जांच में सामने आया. सैन्य इंटेलीजेंस में भी अग्रवाल के किसी पाकिस्तानी आईपी एड्रेस पर बात करने के सबूत मिले और फिर छापा मारा गया और उनकी गिरफ्तारी हुई.’

एक जांचकर्ता ने बताया ‘उनके लैपटॉप की जांच में मालवेयर पाया गया और उसे फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. उसी के लैपटॉप से दस्तावेज़ लीक हुए. पर उनकी गिरफ्तारी आफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत हुई क्योंकि उनके पास ऐसे दस्तावेज़ थे जो आधिकारिक रूप से उनके पास नहीं होने चाहिए थे.’

परिवार का मानना है कि साजिश हुई

इस इंजीनियर के परिवार के लिए इसका कोई महत्व नहीं कि उन्होंने दस्तावेज़ जानबूझ कर लीक नहीं किया. उनका कहना है कि अग्रवाल एमआईटी कुरुक्षेत्र का गोल्ड मेडलिस्ट था और हाल में उसे ब्रह्मोस में युवा साइंटिस्ट सम्मान भी मिला था. उनका ये भी कहना है कि प्रशिक्षण के लिए उसने ये दस्तावेज़ लिए थे.

उनकी मां रितु अग्रवाल कहती हैं ‘ये दस्तावेज़ उसने सीखने को लिए थे कि मिसाईल कैसे बनती हैं. ज़्यादातर ये उसे ट्रेनिंग के दौरान दिए गए थे. अब एटीएस इन दस्तावेज़ों के आधार पर उन्हें कैसे गिरफ्तार कर सकती है.’

‘वो हमेशा पढ़ता रहता था ताकि वो अपना काम निपुणता से कर सकें. हाल में उसने एक कार इंजन बनाया था जो कि गोमूत्र से चलता है. क्या सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति ऐसा कर सकता था?’

उनकी पत्नी क्षितिजा, जिनसे इस साल अप्रैल में ही उनकी शादी हुई है, कहती हैं कि उनके पास कार भी नहीं है.

उन्होंने कहा ‘अगर उन्होंने दस्तावेज़ लीक किए होते तो हमारे पास पैसे होते जो हमें उसके बदले मिले होते. तो हम किराये के घर पर क्यों रहते. हमारे पास तो खुद की कार भी नहीं है.’

अग्रवाल की बहन कनिका का कहना है कि सोशल मीडिया में उनपर हो रहे हमले ने परिवार को बहुत आहत किया है. ‘हम भुगत रहे हैं. किसी ने तथ्य जानने की कोशिश नहीं की और परिवार को देशद्रोही करार दिया.’ कनिका कहती है कि उनके भाई कभी भी काम घर पर नहीं लाते थे.

वे कहती है, ‘किसी को नहीं पता था कि वो इतने बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और आज उन्हें जासूस करार दिया गया है. कुछ दिन पहले घर के बाहर भीड़ जुट गई और उन्होंने घर की खिड़कियां तोड़ने की धमकी दी. हमारी फेसबुक प्रोफाइल में गालियां भरी पड़ी हैं. क्या हमारे साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए?’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

share & View comments