नई दिल्ली: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने गुरुवार को दावा किया कि 14 वर्षीय दीक्षा शिंदे, जिन्हें कथित तौर पर एजेंसी द्वारा पैनलिस्ट के रूप में चुना गया था. उन्हें उनके द्वारा दी गई गलत जानकारियों के आधार पर शॉर्ट लिस्ट किया गया था. इसने आगे यह भी साफ किया किय शिंदे को एजेंसी से कोई फेलोशिप या फंडिंग नहीं मिली थी.
पिछले हफ्ते न्यूज रिपोर्टों में कहा गया था कि महाराष्ट्र की रहने वाली शिंदे को नासा ने ब्लैकहोल और गॉड पर उनके काम के आधार पर चुना था. हालांकि, सोशल मीडिया पर यूजर्स ने शिंदे की साख पर संदेह व्यक्त किया था और यह भी कहा था कि यह दावा फर्जी है.
दिप्रिंट को दिए एक बयान में, नासा ने कहा: ‘नासा के एसटीईएम (STEM) एंगेजमेंट के कार्यालय ने अल्पसंख्यक-सेवारत संस्थानों के साथ नासा फैलोशिप के प्रस्तावों और आवेदनों की एक श्रृंखला की समीक्षा करने के लिए विशेषज्ञ पैनलिस्टों के लिए तीसरे पक्ष की सेवा के माध्यम से आवेदन मांगे थे.’
यह फेलोशिप छात्र और लेखकों की रिसर्च प्रस्तावों की खोज करता है.
बयान में कहा गया है, ‘दीक्षा शिंदे को उनकी गलत जानकारियों और बैकग्राउंड के आधार पर पैनलिस्ट के रूप में चुना गया था.’ इसमें आगे यह भी कहा गया है कि नासा वर्तमान में संभावित पैनलिस्टों के बैकग्राउंड को सत्यापित करने की प्रक्रिया की भी समीक्षा कर रहा है.
शिंदे की स्टोरी ने तब लोगों का ध्यान खींचा जब उसे समाचार एजेंसी एएनआई ने छापा और इसे कई अन्य पब्लिकेशनों ने अपने यहां जगह दी.
जैसा कि यूजर्स ने विसंगतियों की ओर इशारा किया, जैसे कि केवल अमेरिकी नागरिक ही प्रस्ताव भेज सकते हैं, एएनआई ने कहा कि वह कहानी पर कायम है और इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि यह ‘फर्जी खबर’ थी.
शिंदे के कई दावे
शिंदे ने एएनआई को बताया था कि ब्लैक होल और भगवान पर उनके सिद्धांत को ‘नासा ने तीन प्रयासों के बाद स्वीकार कर लिया था,’ उन्होंने यहां तक दावा किया कि उन्हें नासा की वेबसाइट के लिए लेख लिखने को भी कहा गया था.
लिंक्डइन पर एक स्क्रीनशॉट ‘डॉ दीक्षा के. शिंदे’ के अकाउंट से शेयर किया गया था. ‘डॉ शिंदे’ की सूचना बायो में उन्हें ‘नासा के वैज्ञानिक शोधकर्ता’ के रूप में पहचाना। हालांकि, जब दिप्रिंट ने खाते की जांच की, तो वह उपलब्ध नहीं था.
यह भी बताया गया कि शिंदे अक्टूबर में नासा द्वारा फंडेड एक सम्मेलन में भाग लेंगी.
नासा ने साफ किया है कि शिंदे न तो एजेंसी में काम करती हैं और न ही उसने उन्हें कोई फेलोशिप ही दी है. जो केवल अमेरिकी नागरिकों के लिए उपलब्ध अवसर है.
बयान में कहा गया है कि नासा द्वारा अमेरिका की यात्रा के लिए धन देने का कोई भी दावा भी झूठा है. ‘इसके अलावा, नासा ने शिंदे से कोई भी साइंटिफिक पेपर नहीं स्वीकार नहीं किया है और न ही किसी दूसरे के साथ पेश किया है .’
सोशल मीडिया पर कई वैज्ञानिकों ने शिंदे के दावों को संदिग्ध पाया था. उनमें से, एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की पब्लिक आउटरीच एंड एजुकेशन कमेटी ने एक बयान दिया जिसमें बताया गया कि कहानी क्यों झूठी थी.
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