नई दिल्ली: 2006 में, भारत और इज़राइल ने कृषि के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसका नाम इंडो-इज़राइल कृषि परियोजना (आईआईएपी) था. इसका उद्देश्य भारत में फसल विविधता में सुधार, उत्पादकता में वृद्धि और पानी के उपयोग को बेहतर बनाना था. इज़राइल इसे “भारत में अपने नेतृत्व वाली सबसे बड़ी कृषि परियोजना” मानता है.
भारत में इज़राइल दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक परियोजना को भारतीय राज्यों में उत्कृष्टता केंद्रों (सीओई) की स्थापना के माध्यम से कार्यान्वित किया गया है, जहां कृषि और संबंधित प्रौद्योगिकियों में इज़राइल की विशेषज्ञता और ज्ञान को स्थानीय भारतीय स्थितियों, जैसे मिट्टी, मौसम और प्रत्येक राज्य के लिए विशिष्ट फसलों पर ध्यान देने के साथ प्रसारित किया जाता है.
IIAP में प्रमुख हितधारक MASHAV – अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग के लिए इज़राइल की एजेंसी – और भारत सरकार हैं, जो CoE की स्थापना के लिए धन स्वीकृत करती है, और राज्य सरकारें, जो परियोजना के लिए “प्रमुख फसलों” को परिभाषित करती हैं और भूमि व कर्मचारी आवंटित करती हैं. अब तक 13 राज्यों में 31 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये जा चुके हैं.
परियोजना के लिए इज़राइल से मिलने वाला सपोर्ट गैर-मौद्रिक है, और इसमें सीओई कर्मियों का प्रशिक्षण – भारत और इज़राइल दोनों जगह – दिया जाना और स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर कृषि प्रौद्योगिकियों के संचालन पर नॉलेज को शेयर करना शामिल है.
यह ज्ञान नर्सरी प्रबंधन, खेती तकनीक, सिंचाई, प्रजनन और स्थिरता सहित क्षेत्रों से संबंधित है.
केंद्रों के अधिकारियों के अनुसार, सीओई को आस-पास के गांवों – ‘विलेज ऑफ एक्सिलेंस’ – को अपनाने और नए तरीकों को अपनाने में सहायता के लिए किसानों को केंद्र में प्रदर्शित प्रौद्योगिकियों से लैस करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
दिप्रिंट को दिए एक बयान में, भारत में इज़राइल दूतावास ने कहा कि इस पहल का प्रमुख परिणाम भारतीय कृषि तकनीकों में इज़राइल का योगदान रहा है.
“जब हमने करनाल (हरियाणा) में अपना पहला उत्कृष्टता केंद्र खोला, तो ड्रिप सिंचाई प्रणाली और अन्य कृषि प्रौद्योगिकी के घटक इज़राइल से लाए गए थे. अब इन कंपोनेंट्स का उत्पादन भारत में स्थानीय स्तर पर किया जा रहा है.”
दिप्रिंट ने इस विषय पर प्रश्नों के साथ कृषि मंत्रालय से टेलीफोन पर और ईमेल के माध्यम से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इसे अपडेट किया जाएगा. सीओई में किसानों के प्रशिक्षण पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया.
दिप्रिंट आईआईएपी, सीओई और विलेज ऑफ एक्सिलेंस और उनके महत्व के बारे में बता रहा है.
सेंटर ऑफ एक्सिलेंस
पंजाब से तमिलनाडु तक, सीओई के पास समान बुनियादी ढांचा है – डिमॉन्सट्रेशन प्लॉट्स, ऑटोमेटेड सिंचाई और फर्टिगेशन सिस्टम (जो ड्रिप सिस्टम के माध्यम से फसलों को घुलनशील उर्वरक की आपूर्ति करते हैं), और किसानों के लिए कॉन्फ्रेंस रूम या प्रशिक्षण कक्ष जहां इजरायली कृषि प्रबंधन अभ्यास प्रदान किए जाते हैं.
दिप्रिंट ने पंजाब के बठिंडा, होशियारपुर और करतारपुर और हरियाणा के लाडवा में एक सीओई का दौरा किया और वहां इसी तरह की व्यवस्था देखी. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में, बागवानी अधिकारियों से दिप्रिंट ने टेलीफोन पर बात की और इसी तरह के बुनियादी ढांचे का वर्णन किया.
बठिंडा में सीओई खारे पानी (थोड़ा नमकीन पानी, जो दक्षिण पश्चिम पंजाब में आम है) में फल और सब्जियां उगाने पर ध्यान केंद्रित करता है.
यह भी पढ़ेंः ‘भारत सरकार सहमति की उम्र 18 के बजाये करे 16’, मध्य प्रदेश HC ने बलात्कार के मामले को किया रद्द
इसके कर्मचारियों के अनुसार, यह भारत का एकमात्र केंद्र है जो खारे पानी में खेती पर शोध कर रहा है और राज्य कृषि विश्वविद्यालय (पंजाब कृषि विश्वविद्यालय) द्वारा प्रबंधित एकमात्र सीओई है.
सीओई की स्थापना वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 14.96 करोड़ रुपये के बजट के साथ की गई थी, उन्होंने कहा कि बठिंडा केंद्र अन्य सीओई से अलग था क्योंकि इसका ध्यान केवल कृषि पद्धतियों के प्रदर्शन के बजाय कृषि अनुसंधान पर था.
बठिंडा सीओई में वरिष्ठ ओलेरीकल्चरिस्ट (जो सब्जियों के उत्पादन, भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन में माहिर हैं) नवीन गर्ग ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र में स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर फसलों, प्लांट्स और खुले में (खेत) खेती व फसलों की संरक्षित खेती (पॉलीहाउस) दोनों के लिए एक नर्सरी शामिल है.
केंद्र में मिट्टी और जल परीक्षण प्रयोगशालाएं भी हैं और यह सौर ऊर्जा से संचालित पानी में मौजूद खारेपन को खत्म करने वाला संयंत्र भी चलाता है. इसमें चार अलग-अलग प्रकार के पानी के वाले बड़े टैंक भी हैं – भूजल, खारापन निकाला गया पानी (खनिज लवणों के बिना), नहर का पानी (फसलें उगाने के लिए सबसे अच्छा कहा जाता है) और नहर और ट्यूबवेल के पानी का मिश्रण. पानी से खारेपन को खत्म करने वाले संयंत्र के कारण, केंद्र में नमकीन पानी (सांद्रित खारा पानी) के संग्रह के लिए एक टैंक है.
सीओई में इजरायली ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करके फसलें उगाई जाती हैं, जो फसलों के फर्टिगेशन में भी मदद करती हैं, जिससे उर्वरक और पानी का नियंत्रित उपयोग सुनिश्चित होता है.
पूरे भारत में सीओई में उगाई जाने वाली फसलों का व्यावसायिक रूप से उत्पादन या मार्केटिंग नहीं किया जाता है, बल्कि आगे की खेती के लिए किसानों को बेची जाती हैं. करतारपुर सीओई एकमात्र ऐसी कंपनी है जो सब्जी मंडी चलाती है और फसल के मौसम के दौरान जनता को अपनी उपज बेचती है.
दिप्रिंट ने जिस लाडवा केंद्र का दौरा किया, वहां 52 प्रकार के उपोष्णकटिबंधीय फल उगाए जाते हैं, जिनमें 28 प्रकार के आम, पांच प्रकार के अमरूद, पांच प्रकार के अनार और पांच प्रकार के जैतून शामिल हैं.
लाडवा केंद्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ अशोक कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि 2016 में सीओई बनने से पहले यह एक बागवानी विभाग का उद्यान और नर्सरी था.
कुमार ने कहा, “पूरी साइट पर लगभग 25 एकड़ में प्रदर्शन उद्यान और संरक्षित खेती के तहत 2 एकड़ की नर्सरी है, जो किसानों को बिक्री के लिए प्रति वर्ष लगभग 90,000 पौधे उपलब्ध कराती है.”
होशियारपुर और करतारपुर में सीओई की नर्सरी भी है जो किसानों को पौधे बेचती हैं.
वहां के परियोजना अधिकारी हरजीत सिंह के अनुसार, होशियारपुर केंद्र प्रति वर्ष 60,000 से 70,000 पौधों का उत्पादन करता है जो पंजाब, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के किसानों को बेचे जाते हैं.
करतारपुर सीओई के बागवानी विकास अधिकारी तेजबीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र एक साल में 20-25 लाख पौधे और अंकुर तैयार करता है जो पंजाब में लगभग 5,000 किसानों को 3 रुपये प्रति पौधा या अंकुर के हिसाब से बेचे जाते हैं.
कुप्पम में सीओई में बागवानी के सहायक निदेशक कोटेश्वर राव के अनुसार, आंध्र प्रदेश में सीओई किसानों को प्रति वर्ष 4-6 लाख गैर-ग्राफ्टेड पौधे और 13 लाख ग्राफ्टेड पौधे बेचता है. ग्राफ्टेड सब्जियों के पौधे किसानों को 6-8 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से बेचे जाते हैं.
होशियारपुर, करतारपुर और लाडवा में सीओई को अब केंद्र या राज्य सरकारों से धन नहीं मिलता है. अधिकारियों के अनुसार, वे नर्सरी से प्राप्त राजस्व पर चल रहे हैं.
लाडवा केंद्र के अशोक कुमार के अनुसार, इज़राइल दूतावास के अधिकारी हर साल केंद्रों का दौरा करते हैं, कभी-कभी महीने में एक बार भी.
इसके अलावा, इन केंद्रों पर काम करने वाले भारत के अधिकारियों ने कृषि विधियों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए इज़राइल का दौरा किया है. बठिंडा सीओई के निदेशक करमजीत सिंह सेखों ने दिप्रिंट को बताया कि वह इज़राइल में आयोजित ऐसे ही एक 45-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा थे.
उत्कृष्टता के गांव
होशियारपुर सीओई के अधिकारी हरजीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि सीओई को अपनी परिधि के आसपास के गांवों को गोद लेने और किसानों को केंद्र में प्रदर्शित प्रौद्योगिकियों से लैस करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. होशियारपुर सीओई ने अपने आसपास के सात ऐसे ‘उत्कृष्टता वाले गांवों’ को गोद लिया है.
सिंह ने कहा, “भारत सरकार ने नई कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर जोर देते हुए अपना ध्यान उत्कृष्टता केंद्रों से उत्कृष्टता वाले गांवों की ओर स्थानांतरित कर दिया है.”
लाडवा के अधिकारी कुमार ने कहा, ‘हमारे केंद्र ने अंबाला, कुरुक्षेत्र और यमुनानगर जिलों के 16 गांवों को गोद लिया है. यहां, हम प्रति गांव पांच किसानों के साथ काम करते हैं – उन्हें नई कृषि प्रौद्योगिकियों और पौधों की आपूर्ति करते हैं – और प्रश्नों को हल करने के लिए महीने में एक बार हर गांव का दौरा करते हैं.’
कुमार ने कहा कि 16 गांवों के लगभग आधे किसानों ने ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन तकनीकों को अपनाया है, जबकि सभी ने उच्च घनत्व वृक्षारोपण तकनीकों को अपनाया है.
उन्होंने बताया, “इस क्षेत्र में पानी की अच्छी व्यवस्था है, इसलिए सभी किसानों ने ड्रिप सिंचाई तकनीक नहीं अपनाई है.”
जो किसान उत्कृष्टता वाले गांवों में नई तकनीकों को अपनाते हैं, उन्हें अपनी प्रभावकारिता का प्रदर्शन करके अपने स्थानीय समुदायों में नई तकनीकों का प्रसार करने का काम सौंपा जाता है.
बठिंडा केंद्र के मामले को छोड़कर, सीओई और वीओई का प्रबंधन पूरी तरह से राज्य बागवानी विभागों द्वारा किया जाता है.
क्या सीओई ने किसानों को प्रभावित किया है, इस पर करतारपुर सीओई अधिकारी तेजबीर सिंह ने कहा कि केंद्र में प्राप्त ज्ञान को पूरे पंजाब में विस्तारित करने के प्रयास किए जा रहे हैं और बदलाव धीरे-धीरे देखा जाएगा.
उन्होंने कहा, “हमारे प्रदर्शन भूखंडों के अलावा, हमने एक गाइडबुक के माध्यम से किसानों के साथ अपना ज्ञान साझा करने की कोशिश की है जो उन्हें स्थानीय भाषा में विभिन्न फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक कृषि चक्र में मदद करेगी.”
कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि “किसान हर दिन प्रशिक्षण के लिए हमारे केंद्र पर आते हैं और प्रदर्शन स्थलों का दौरा करते हैं. हमने भारतीय कृषि कौशल परिषद द्वारा वित्त पोषित और संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रम भी पेश करना शुरू कर दिया है.
उन्होंने कहा कि लाडवा केंद्र अब कटाई के बाद की प्रबंधन इकाई से भी सुसज्जित है, जो किसानों को फलों की ग्रेडिंग, छंटाई, धुलाई, पकाने और कोल्ड स्टोरेज का प्रदर्शन करती है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः मोदी सरकार से संभाले नहीं संभल रहा सबसे जटिल राज्य मणिपुर