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Sunday, 22 December, 2024
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सेना के कर्नल ने SC में MOD के नियंत्रण पर उठाए सवाल, कहा- सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल कितना स्वतंत्र?

कर्नल राजबीर सिंह की याचिका में ट्रिब्यूनल के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें उनके प्रमोशन पर चयन बोर्ड के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी. रक्षा मंत्रालय को नोटिस भेजा गया है क्योंकि सिंह की जगह अन्य अधिकारी का प्रमोशन कर दिया गया है.

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नई दिल्ली: सेना के एक कर्नल ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) की स्वतंत्रता पर संदेह जताते हुए दावा किया है सुप्रीम कोर्ट के बार-बार के फैसले और केंद्र से एएफटी पर रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण को समाप्त करने के लिए कहने के बावजूद केंद्रीय रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करना जारी रखे हुए है.

कर्नल राजबीर सिंह ने इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक अपील में यह दावा किया है, जिसमें उन्होंने ब्रिगेडियर रैंक पर उन्हें प्रमोट नहीं करने के चयन बोर्ड के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज करने के ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी है. दिप्रिंट के पास याचिका की प्रति उपलब्ध है.

न्यायमूर्ति ए.एस. ओका के नेतृत्व वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने 11 सितंबर को सिंह की अपील पर सुनवाई की और रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ उस अधिकारी को भी नोटिस जारी किया, जिसे पदोन्नति के लिए याचिकाकर्ता के स्थान पर चुना गया. पीठ ने सिंह के वकील को विरोधी पक्षों को नोटिस मिलने के बाद मामले को सुनवाई के लिए उल्लेख करने की अनुमति दी.

सिंह की याचिका एएफटी की फैसले लेने की प्रक्रिया में देरी पर भी प्रकाश डालती है. सिंह ने तर्क दिया कि एएफटी अधिनियम के प्रावधान के अनुसार, जिसके तहत ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई थी, ट्रिब्यूनल 30 दिन की अवधि के भीतर निर्णय देने के लिए बाध्य था. कानून के तहत, न्यायाधिकरण अपना फैसला सुरक्षित रखते समय फैसले की तारीख बताने के लिए भी बाध्य था.

याचिका में दावा किया गया कि सिंह के मामले में दोनों कानूनी आवश्यकताएं पूरी नहीं की गईं. दायर होने के 19 महीने बाद तक उनके मामले की सुनवाई नहीं हुई, जबकि ट्रिब्यूनल द्वारा अपना फैसला सुरक्षित रखने के 17 महीने बाद फैसला सुनाया गया.

शीर्ष अदालत में सिंह की याचिका में कहा गया है, “अधिकरण कानून के अनुसार और जिस तरीके से उनकी याचिका पर फैसला सुनाया गया है, उसके अनुसार कार्य करने में विफल रहा. यह न्यायनिर्णयन प्रक्रिया की प्रभावकारिता और प्रभावशीलता के बारे में बहुत कुछ बताता है, इसलिए शीर्ष अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की दरकार है.”

उन्होंने अपने मामले को सबसे “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि न्यायाधिकरण में “न्याय वितरण प्रणाली तंत्र” पूरी तरह से “बेमानी” हो गया है.


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‘गोपनीय रिपोर्ट हटाई गईं’

1992 बैच के अधिकारी सिंह ने अपनी अपील में कहा है कि जून 2019 में उनके प्रमोशन पर विचार किया जाना था. उन्होंने आरोप लगाया है कि चयन बोर्ड बुलाने से पहले उनके सेवा रिकॉर्ड के बारे में सकारात्मक मूल्यांकन वाली दो गोपनीय रिपोर्ट उनकी फाइल से बिना किसी औचित्य के हटा दी गई थीं.

सिंह ने कहा कि दो गोपनीय रिपोर्टों के बहिष्कार के बावजूद उन्हें मेरिट सूची में आठवें नंबर पर सूचीबद्ध किया गया. यह उनकी अच्छी प्रोफाइल के कारण था, जिसमें सेवा में रहते हुए अर्जित की गई उनकी शैक्षणिक योग्यताएं और उनकी पेशेवर उपलब्धियां भी शामिल थीं. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने सेना के बाहर भी विभिन्न कार्यभार संभाले और सभी उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर दिए गए.

उन्होंने तीनों सेवाओं से प्राप्त 6 प्रशस्ति पत्रों का भी हवाला दिया और 48 अधिकारियों के उस बैच में यह पाने वाले वह एकमात्र अधिकारी थे, जिनके बारे में पदोन्नति के लिए चयन बोर्ड द्वारा विचार किया जाना था.

सिंह ने दावा किया कि चूंकि वो मेरिट सूची में आठवें स्थान पर थे, इसलिए उनके पास पदोन्नति का अच्छा मौका था क्योंकि ब्रिगेडियर स्तर पर आठ रिक्तियां थीं. उन्होंने आगे कहा कि उनकी निर्धारित योग्यता के अनुसार, उन्होंने 100 के पैमाने पर 95 अंक प्राप्त किए हैं.

सिंह ने दावा किया कि प्रक्रिया के अनुसार, उन्हें बोर्ड सदस्य मूल्यांकन अंक (बीएमए) भी आवंटित किया जाना था और इसलिए, अधिकारी को सूचीबद्ध अधिकारियों की सूची से बाहर नहीं किया जा सकता था. उन्होंने कहा, बहिष्करण केवल निर्दिष्ट नकारात्मक विशेषताओं के आधार पर हो सकता था, जिनमें से कोई भी उनके द्वारा आकर्षित नहीं था.

फिर भी सिंह के प्रमोशन के लिए विचार नहीं किया गया. बल्कि, उनकी अपील में कहा गया है, एक अन्य अधिकारी जो योग्यता सूची में उनसे काफी नीचे था, उसे पदोन्नत कर दिया गया. सिंह के अनुसार, उन्हें (दूसरे अधिकारी को) उच्च बीएमए से सम्मानित किया गया था.

सिंह ने 9 अक्टूबर, 2019 को वैधानिक शिकायत दर्ज की, जिसे एक साल बाद एक पंक्ति के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया. इस बीच सिंह ने जून 2020 में एएफटी का रुख किया, जिसने तुरंत यथास्थिति का आदेश जारी किया. तब इसने पाया था कि याचिकाकर्ता को कम बीएमए देने के प्रथम दृष्टया कारण उचित नहीं थे.

हालांकि, अगस्त 2020 में ट्रिब्यूनल ने अपने महीने पुराने यथास्थिति आदेश को रद्द कर दिया और अन्य अधिकारी की पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त कर दिया.

उनकी अपील में दावा किया गया है कि मामले में दलीलें पूरी होने के बावजूद ट्रिब्यूनल ने मामले की सुनवाई नहीं की. आखिरकार पिछले साल 14 मार्च को इस पर सुनवाई हुई, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया. सिंह की याचिका में दावा किया गया है कि एएफटी ने 30 दिनों के भीतर फैसला नहीं सुनाया, जैसा कि कानून के तहत अनिवार्य है.

इस बीच रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल 23 दिसंबर को एक आदेश जारी किया, जिसमें सिंह को सूचित किया गया कि वो इस साल 31 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं. सिंह की अपील में उल्लेख किया गया है कि वो एएफटी से जल्द से जल्द फैसला देने का अनुरोध करते रहे, क्योंकि उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र करीब आ रही थी.

कोई प्रगति न होने पर सिंह ने न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी सेवानिवृत्ति पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया, जब तक कि उनके मामले का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता. इसके बाद ही ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला सुरक्षित रखे जाने के 17 महीने बाद 11 अगस्त को सुनाया.

ट्रिब्यूनल ने याचिका खारिज कर दी, जिसे सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में अनुचित बताया है.

ट्रिब्यूनल के फैसले में “मंत्रालय के रुख” को नोट किया गया है और सिंह के इस तर्क की जांच करने का कोई कोशिश नहीं की गई है कि उनकी गोपनीय रिपोर्ट में उनके सेवा रिकॉर्ड के संबंध में सकारात्मक आकलन थे. उनके अनुसार, ट्रिब्यूनल ने पिछले उदाहरणों और निर्णयों को खारिज कर दिया है जहां तथ्य उनके मामले के तथ्यों के समान थे.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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