गर्मी के कारण थकावट और फिर हीटस्ट्रोक का हमला हो सकता है.
अकेले 2024 में 60,000 से अधिक भारतीय हीटस्ट्रोक के मामलों से पीड़ित थे और कम से कम 374 की इससे मृत्यु हो गई, लेकिन डेटा की कमी का मतलब हो सकता है कि असल संख्या कहीं अधिक थी. हीटवेव और लंबी गर्मियों की चेतावनी के साथ, अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपरिहार्य मामलों के लिए बिस्तर अलग रख रहे हैं. अगर, वक्त पर इलाज न मिले तो हीटस्ट्रोक से ऐंठन, गुर्दे और लिवर डैमेज और गंभीर मामलों में कई अंग विफल हो सकते हैं.
दिप्रिंट आपको यहां बता रहा है कि कैसे आपके आसपास का तापमान बढ़ने और गर्मी से थकावट के कारण कैसे अंततः हीटस्ट्रोक होता है.
जब गर्मी से थकावट हीटस्ट्रोक में बदलती है.
परिवेश के तापमान (आसपास के तापमान) में किसी भी वृद्धि से मानव शरीर द्वारा थर्मोरेग्यूलेशन नामक प्रतिक्रिया को बनाए रखने के लिए एक जैसे सिग्नल मिलते हैं. आमतौर पर मानव शरीर का तापमान 35-37 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है और जब भी आसपास का तापमान ज़्यादा या कम होता है, तो शरीर या तो कंपकंपी जैसी क्रियाओं से गर्मी लेने या पसीना बहाकर गर्मी कम करने की कोशिश करता है.
जब आसपास का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो ज़्यादातर परिस्थितियों में लोगों को गर्मी लगती है और पसीना आना शुरू हो जाता है. जब तक ठीक से हाइड्रेटेड न हों, यह और खतरनाक हो सकता है.
नई दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल के एक क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट और मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुमित रे बताते हैं, “यह आसान फिजिक्स है – जब शरीर बहुत अधिक गर्म हो जाता है, तो शरीर खुद को ठंडा करने के तरीके अपनाता है, जैसे पसीना बहाना और उस पसीने को इवोपरेट होने देना, जिससे गर्मी कम करने में मदद मिलती है.”
थर्मोडायनामिक रेगुलेशन के इस तंत्र के परिणामस्वरूप इंसानों को दिक्कत होती है, ज़्यादा पसीना आने से डिहाइड्रेशन और कभी-कभी कमज़ोरी होने लगती है. इस घटना को हीट एग्ज़ॉशन कहा जाता है और अक्सर पिंडलियों और अन्य जगहों में हीट क्रैम्प और यहां तक कि बेहोशी भी हो जाती है.
लेकिन अगर तुरंत ध्यान दिया जाए तो हीट एग्ज़ॉशन का भी इलाज किया जा सकता है.
नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया का सुझाव है कि पानी ही नहीं, बल्कि इलेक्ट्रोलाइट्स के ज़रिए हाइड्रेशन से हीट एग्ज़ॉशन को रोका जा सकता है. ढीले कपड़े पहनना, छाया में रहना और धूप में किसी भी तरह की गतिविधि को सीमित करना कुछ ऐसे तरीके हैं जो लोग कर सकते हैं. रे का कहना है, “जब शरीर गर्म वातावरण में पसीना बहाना बंद कर देता है, तब आपको चिंता करनी चाहिए.”
एक प्वॉइंट के बाद, अगर आसपास का तापमान बढ़ना जारी है, तो शरीर और अधिक गर्मी या पसीना छोड़ने में असमर्थ होता है. प्रतिक्रिया में इसका अपना तापमान भी बढ़ने लगता है. इसे एनहाइड्रोसिस कहा जाता है.
इसे बेहद खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह दो चीज़ों का संकेत देता है — पहला, कि आपका शरीर इतना डिहाइड्रेटेड है कि पसीना नहीं बन रहा है और दूसरा, कि यह आपको ठंडा नहीं कर सकता है. यह वह मौका है जब गर्मी से होने वाली थकावट, अगर इलाज न किया जाए, तो हीटस्ट्रोक में बदल जाती है.

40 डिग्री सेल्सियस नियम
नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया के अनुसार हीटस्ट्रोक का सबसे पक्का संकेत तब होता है जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस हो.
ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत पड़ती है.
अपोलो अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. सुरेंजीत चटर्जी ने कहा, “व्यक्ति को तेज़ बुखार हो जाता है और इस वक्त वह बहुत अधिक डिहाइड्रेटेड भी हो सकता है. सबसे पहले तापमान को कम करना होता है.”
मानव शरीर, जान लेने वाली गर्मियां
जब गर्म खून वाले मनुष्य ऐसे उच्च शरीर के तापमान के संपर्क में आते हैं, तो यह केवल बुखार नहीं होता है. हीटस्ट्रोक से पीड़ित कई मरीज़ों को प्रलाप, भ्रम और चक्कर आने की भी शिकायत होती है, जो अतिरिक्त गर्मी के कारण मस्तिष्क की क्षमता को कम करने के सभी क्लासिक लक्षण हैं.
त्वचा लाल भी हो सकती है, सूखी दिख सकती है और छूने पर गर्म महसूस हो सकती है.
हीटस्ट्रोक के बाद शरीर का तापमान कैसे कम करें? बर्फ के पानी से नहाना, शरीर के विभिन्न हिस्सों पर बर्फ के पैक या फिर शिरा या तरल पदार्थों के ज़रिए हाइड्रेट करना जैसा मेडिकली रूप से स्वीकृत तरीके हैं.
चटर्जी बताते हैं, “मरीज बहुत थका हुआ हो सकता है या तरल पदार्थ पीने के लिए बेहोश हो सकता है, इसलिए उन्हें IV दिया जाता है और यहां तक कि इन IV को शरीर को ठंडा करने में मदद करने के लिए ठंडा किया जाता है”, लेकिन एक बार जब शरीर का मुख्य तापमान लंबे समय तक सामान्य से अधिक हो जाता है, तो यह अन्य अंगों को प्रभावित करना शुरू कर देता है.
रे ने कहा, “जब शरीर अधिक गर्म हो जाता है, तो साइटोकिन्स के रूप में शरीर में कुछ सूजन वाले मार्कर निकलते हैं.” साइटोकाइन्स मस्तिष्क द्वारा सभी अंगों को यह बताने के लिए एक ‘चेतावनी तंत्र’ है कि गर्मी के कारण शरीर ओवरड्राइव में है. यह दिल जैसे विभिन्न अंगों को संकेत भेजता है, जो खून की सप्लाई कम होने के कारण धीमा हो सकता है. रे के अनुसार, “ये साइटोकाइन्स एक क्रूर प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकते हैं और कई अंगों को प्रभावित या क्षतिग्रस्त कर सकते हैं.”

40-41 डिग्री सेल्सियस
लिवर: लिवर के टिश्यू (ऊतक) गर्मी से होने वाले नुकसान या तापमान में किसी भी तरह के बदलाव के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे यह हीटस्ट्रोक के दौरान सबसे अधिक जोखिम वाले अंगों में से एक बन जाता है. तेज़ लिवर डैमेज आमतौर पर तब होता है जब लिवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, या आंत के बैक्टीरिया का अत्यधिक स्राव होता है.
आंत: आंत और लिवर एक दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं और गर्मी के प्रेशर से आंत की परत कमज़ोर हो सकती है. इससे बैक्टीरिया और विषाक्त पदार्थ सीधे रक्तप्रवाह और कभी-कभी लिवर में चले जाते हैं, जो दोनों अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आंत के नुकसान के पहले लक्षण सूजन और उल्टी हैं.
गुर्दे: हीटस्ट्रोक के दौरान किडनी का फेल होना सबसे आम अंग विफलता है क्योंकि किडनी रक्त से गंदगी को फिल्टर करती है और सिस्टम में पर्याप्त पानी के बिना रक्त प्रवाह प्रतिबंधित होता है. डिहाइड्रेशन किडनी को प्रभावित करता है और अगर यह लंबे समय तक चलता है तो किडनी की चोट का कारण बन सकता है.
रे चेतावनी देते हैं, “सबसे खराब मामलों में, हीट स्ट्रोक से कई अंग विफल हो सकते हैं और यहां तक कि मौत भी हो सकती है. नुकसान को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करना ज़रूरी है.”

मांसपेशियों में खिंचाव
अत्यधिक गर्मी से मांसपेशियों में ऐंठन भी बढ़ जाती है, जिससे कभी-कभी रेबडोमायोलिसिस नामक स्थिति पैदा हो जाती है, जिसमें मांसपेशियों के ऊतक टूट जाते हैं.
रे कहते हैं, “रैबडोमायोलिसिस, जो उच्च तापमान में मांसपेशियों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, उन लोगों में अधिक आम है जो उच्च तापमान में कसरत कर रहे हैं या खुद को थका रहे हैं. यह कई मामलों में जानलेवा हो सकता है.”
लेकिन कसरत किए बिना भी, अगर शरीर का मुख्य तापमान कुछ घंटों के लिए 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है, तो अन्य कोशिका चोटों के साथ-साथ रेबडोमायोलिसिस भी हो सकता है. यह शरीर के उच्च तापमान में काम करने में असमर्थ होने और गर्मी के कारण विभिन्न कोशिकाओं के मरने का संकेत है. लीवर या किडनी जैसे अंगों में इस तरह की कोशिका मृत्यु अपरिवर्तनीय क्षति का कारण बन सकती है.
रोकथाम और इलाज
हीटस्ट्रोक से होने वाले बुखार के मामले में पैरासिटामोल और एस्पिरिन जैसी दवाएं काम नहीं करेंगी.
सिर्फ शरीर को ठंडा करने से बुखार को कम करने में मदद मिल सकती है. बर्फ के पानी में डुबोना, ठंडा IV और AC और पंखे के ज़रिए कम परिवेश का तापमान कुछ मेडिकल रूप से स्वीकृत तरीके हैं. इसका लक्ष्य तापमान को कम से कम 37 डिग्री सेल्सियस तक लाना है, हर 10 मिनट में तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की गिरावट के साथ ताकि शरीर पर ज़्यादा दबाव न पड़े.
मलाशय और गुर्दे की क्षति सहित अन्य जटिलताओं की निगरानी पांच दिनों तक की जानी चाहिए, लेकिन हीटस्ट्रोक प्रबंधन के लिए सबसे अच्छी सलाह रोकथाम ही है.
डॉ. रे ने कहा, “सबसे अच्छे तरीके आसान लेकिन प्रभावी हैं : ढीले कपड़े पहनें, सिर्फ पानी से ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रोलाइट्स से भी हाइड्रेट रहें, धूप से बचाव करें और हीटवेव के दौरान जितना हो सके बाहर जाने से बचें. आप सचमुच अपनी जान बचा रहे होंगे.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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