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Thursday, 26 December, 2024
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महानगर बेंगलुरु कोरोनावायरस को कैसे हरा पाया जबकि मुंबई, दिल्ली, चेन्नई को संघर्ष करना पड़ रहा

बेंगलुर में 15 जून तक केवल 732 मामले दर्ज किए गए जबकि देश के 3.42 के करीब मामलों में 38% अकेले मुंबई, दिल्ली और चेन्नई के हैं.

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बेंगलुरु: देश में 15 जून तक सामने आए करीब 3.42 लाख कोविड-19 मामलों में 38 फीसदी हिस्सेदारी सिर्फ तीन महानगरों मुंबई, चेन्नई और दिल्ली की है.

मुंबई के 58,226 , दिल्ली के 41,182, चेन्नई के 31,186 और यहां तक कि कोलकाता के 3,672 मामलों की तुलना में बेंगलुरु में सिर्फ 732 मामले सामने आए हैं..

इसके बावजूद कि 1.3 करोड़ की आबादी वाला बेंगलुरु इस मामले में मुंबई (1.84 करोड़) और दिल्ली (1.9 करोड़) की श्रेणी में ही आता है.

और कर्नाटक की राजधानी में कुल मामलों की कम संख्या ही उल्लेखनीय नहीं है. डाटा दर्शाता है कि यहां हर दिन आने वाले केस भी घट रहे हैं.

उदाहरण के लिए 15 जून को जब मुंबई में 1,789 नए केस और दिल्ली में 1,647 केस आए, बेंगलुरु में कोविड-19 के नए मरीजों की संख्या केवल 35 बढ़ी. यह अब तक महामारी को सफलतापूर्वक काबू में रखने वाला एक महानगर बन गया है.

मीडिया एक्सपर्ट बताते हैं कि बेंगलुरु में संख्या कम होना कोई चमत्कार नहीं है बल्कि यह अच्छी प्लानिंग, डाटा ट्रांसपेरेंसी और प्रभावी तरीके से ट्रैकिंग का नतीजा है.

बॉयोकान की प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ के मुताबिक, ‘शहर में ट्रेसिंग और ट्रैकिंग का रिकॉर्ड शानदार है.’

उन्होंने कहा, ‘डाटा बताता है कि बेंगलुरु में सबसे ज्यादा संख्या में कांटैक्ट ट्रेसिंग हुई. औसतन हर पॉजिटिव केस पर उन्होंने 47 कांटैक्स को ट्रेस किया है. उन्होंने सुनिश्चित किया कि किसी मरीज के संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को क्वारंटाइन किया जाए. कड़े कदमों ने महामारी को नियंत्रित रखने में मदद की.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप मुंबई जगह में होने वाली कांटैक्ट ट्रेसिंग पर नजर डालें तो यह बेंगलुरु के 1:47 के मुकाबले 1:3 ही है.’

शॉ का मानना है कि बेंगलुरु का ट्रेसिंग मॉडल ऐसा है जिसे दूसरी जगह भी अपनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, यह बात काफी अहम है कि कैसे सरकार ने वालंटियर दवा की दुकानों तक भेजे ताकि पता लगाया जा सके कि कौन से लोग सर्दी खांसी की दवाएं, पैरासिटामॉल या एंटीबायोटिक खरीद रहे हैं. इन लोगों को ट्रेस किया गया है और पूछा गया कि वह ये दवाएं क्यों ले रहे हैं. इसके बाद इन पर बारीकी से नजर भी रखी गई.


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वृहत बेंगलुरु नगर पालिका (बीबीएमपी) के कमिश्नर बी.एच. अनिल कुमार ने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया कि बेंगलुरु ने देशभर में 25 मार्च को लॉकडाउन लगने से पहले 14 मार्च को ही लॉकडाउन घोषित कर दिया था.

आईएएस अधिकारी ने कहा, देशव्यापी लॉकडाउन से पहले ही बेंगलुरु ने कदम उठाने शुरू कर दिए थे. सख्ती से लॉकडाउन किए जाने से संक्रमण पर नियंत्रण में मदद मिली, इसने प्राइमरी और सेकेंडरी कांटैक्ट को ट्रेस करने में भी मदद की, जिससे सामुदायिक संक्रमण की संभावना घटाई जा सकी.

उन्होंने आगे कहा कि यद्यिप शहर में मुंबई के धारावी जैसे घनी आबादी वाले इलाके नहीं है, लेकिन यहां ठीकठाक जनसंख्या वाले पदरायनपुरा जैसे इलाके हैं, जहां तबलीगी जमात के लिंक के कारण एक क्लस्टर बन गया था.

कुमार ने कहा, ‘हमें जैसे ही ज्यादा आबादी वाले ऐसे इलाकों में एक भी पॉजीटिव केस का पता चलता, हम उसकी पहचान करके उसके घेरेबंदी कर देते. वहां पर आने और जाने के सभी रास्ते बंद किए जाते, केवल आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति के लिए एक रास्ता खोला जाता.’

कुमार ने पदरायनपुरा का उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ हिस्से में निगम प्रशासन को नाराजगी का सामना भी करना पड़ा, क्योंकि संक्रमण के लिए मुसलिम समुदाय के जिम्मेदार होने के भाजपा नेताओं के आरोप के कारण विवाद की स्थिति बन गई थी (इलाके में मुस्लिम आबादी ज्यादा है). हिंसा फैलाने के लिए गिरफ्तार किए गए पांच लोग बाद में पॉजीटिव भी पाए गए.

कुमार ने कहा, ‘हर किसी पहले मामले में पहले और दूसरे कांटैक्ट को क्वारेंटाइन सेंटर लाने का फैसला काफी अहम और मददगार रहा.’


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कोई केस अनट्रेस नहीं छोड़ा

बेंगलुरु पॉजीटिव केस की संख्या कम रखने में इसलिए भी सफल रहा क्योंकि शहर की सिविक बॉडी ने कोई केस अनट्रेस न छोड़ने की रणनीति अपनाई.

इसमें मामलों की पहचान, उनके कांटैक्ट तत्काल ट्रेस करना, हर मामले के मद्देनजर परिदृश्य की आकलन करना और महामारी के संक्रमण की स्थिति को समझने के लिए सिमुलेशन मॉडल का इस्तेमाल शामिल है.

कांटैक्ट की ट्रैकिंग और ट्रेसिंग के अलावा नगर प्रशासन ने क्वारेंटाइन लोगों, खासकर घर में रहने वालों पर भी बारीकी से नजर रखी.

बॉयोकॉन की शॉ इस बारे में मार्च में लॉकडाउन से पहले ही बेंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचने के दौरान का अपना खुद का अनुभव बताती हैं. उन्होंने कहा कि शहर में स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल काफी सख्त था.

उन्होंने बताया, उन्होंने मुझसे बहुत सारे सवाल पूछे-मैं किससे मिली थी? मैंने किन देशों की यात्रा की? मैं अभी किस देश से यहां आई हूं और क्या मुझे फ्लू जैसे लक्षण तो नहीं थे. उन्होंने मुझसे फॉर्म भरवाए और मुझे लगा कि यह केवल दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया है और बाद में इसे छोड़ दिया जाएगा.

उन्होंने आगे बताया, लेकिन उस समय मुझे काफी आश्चर्य हुआ जब तीन हफ्ते बाद एक स्वास्थ्य अधिकारी का फोन आया, जिसने मेरी सेहत के बारे में जानने के लिए फोन किया था. वह जानना चाहता था कि कहीं मुझे फ्लू जैसे लक्षण तो नहीं हैं और मेरा स्वास्थ्य कैसा है. मेरे अन्य सहयोगियों का तो और ज्यादा कड़ी प्रक्रिया से सामना हुआ जब उन्हें होम क्वारंटाइन किया गया था. स्वास्थ्य अधिकारी उन्हें हर रोज फोन करके उनके तापमान की जानकारी लेते थे और पूछते थे कि कहीं कोई लक्षण तो उत्पन्न नहीं हुए. राज्य में इस तरह की बेहतरीन व्यवस्था चलती रही है.

कर्नाटक कोविड-19 वार रूम के प्रभारी मुंशी मुदगिल, बताते हैं कि कर्नाटक ने संक्रमण की चपेट में आ सकने वाले लोगों की पहचान, उनके आइसोलेशन और क्वारंटाइन किए जाने का मॉडल बाकी राज्यों की तुलना में काफी प्रभावी ढंग से लागू किया है.

मुदगिल ने कहा, संक्रमण को अब तक काबू में रखने में सफलता मिली है. यहां तक कि जिन इलाकों में संक्रमण का विस्फोट होता नजर भी आया तो वहां इसी तरीके को प्रभावी तरह से लागू कर हालात नियंत्रित कर लिए गए.

बहरहाल, शहर में अब भी कसर छोड़ी नहीं जा रही है.

बीबीएमपी ने हाल ही एक नई रणनीति बनाई है जिसे एंटी-कॉटैक्ट ट्रेसिंग नाम दिया गया है, इसके तहत उन क्लस्टर का पता लगाया जा रहा है, जहां संक्रमण तेजी से फैलने की गुंजाइश है. इस योजना के तहत भीड़भाड़ वाली जगहों से लिए गए नमूनों को आवासीय इलाकों से लिए गए नमूनों के साथ मिलाया जा रहा है ताकि संभावित क्लस्टर के बारे में जानकारी जुटाई जा सके.

टेस्ट जारी, लेकिन अब कुछ चिंताएं बढ़ रहीं

बेंगलुरु, जहां 191 सक्रिय कंटेनमेंट जोन हैं, में अब तक 64000 के करीब टेस्ट किए गए हैं जिसमें पॉजीटिविटी रेट 1.2 फीसदी रहा है. यह आंकड़ा मुंबई और दिल्ली से काफी कम हैं. दिल्ली में जहां 2,96,697 टेस्ट में पॉजीटिविटी रेट 30.3 रहा है, वहीं मुंबई में जांच में संक्रमित पाए जाने की दर 2,61,210 नमूनों पर 29.2 फीसदी है.

कर्नाटक में टेस्ट की संख्या में आई कमी को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं, राज्य में हर दिन 15000 के करीब लोगों की जांच हो रही थी लेकिन पिछले कुछ दिनों में यह संख्या घटकर प्रतिदिन 8000 के करीब हो गई है.

कर्नाटक के चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. के. सुधाकर, जो बेंगलुरु में कोविड अभियानों के प्रभारी भी हैं, अन्य राज्यों से लौटकर आने वाले लोगों की संख्या में आई कमी को इसकी वजह बताते हैं.

उन्होंने कहा, ‘पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश व अन्य से बड़ी संख्या में हमारे लोग लौटकर आ रहे थे. हम बढ़चढ़कर उनकी टेस्टिंग भी कर रहे हैं. अब जबकि राज्य में लौटकर आने वाले लोगों की संख्या घट गई है, हमारे यहां टेस्ट की संख्या में भी कमी दर्ज की गई है. साथ ही कहा, हमने अब जांच संख्या बढ़ाकर 25000 प्रतिदिन करने का फैसला किया है. हम सुनिश्चित करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा जांच हो.’

लेकिन विपक्ष कोई मौका नहीं छोड़ रहा. कांग्रेस प्रवक्ता वाई.बी. श्रीवत्स कहते हैं कि कोरोना के पॉजीटिव मामलों और टेस्टिंग की संख्या के बीच सीधा संबंध है. जब पूरे देश में कोविड केस की संख्या बढ़ रही है, यह बात अजीब ही है कि कर्नाटक सरकार ने जांच की संख्या प्रतिदिन 15000 से घटाकर 7000 कर दी है. सरकार टेस्टिंग की सुविधाओं का पूरा इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है. शॉ ने भी कहा कि यह अस्वीकार्य है.

उन्होंने कहा, ‘क्या हुआ अगर प्रवासियों की आवाजाही घट गई. इस सुविधा को रैंडम कम्युनिटी टेस्टिंग में इस्तेमाल कर लिया जाए. अब जबकि लॉकडाउन हटाया जा रहा है, जांच बढ़ाई जानी चाहिए. बेंगलुरु में आंकड़े बढ़ रहे हैं और ऐसे में जांच भी बढ़ाई जानी चाहिए. अन्यथा अब तक महामारी को रोकने के लिए की गई सारी मेहनत नाकाम हो जाएगी.’

हालांकि, शॉ ने साथ ही आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के संदर्भों में सरकार के सामने पेश आ रही भ्रम की स्थिति पर भी ध्यान आकृष्ट किया.

उन्होंने बताया, ‘मैंने यह कहते हुए सरकार से संपर्क साधा कि अपने कर्मचारियों का टेस्ट और उन सभी का नेगेटिव होना सुनिश्चित करना चाहती हूं. हम उन्हें ऑफिस की सुरक्षित जगह दे सकते हैं लेकिन इस पर हमारा नियंत्रण नहीं है कि उसके बाद वह कहां जाते हैं. उन्होंने बताया, इस पर स्वास्थ्य विभाग का कहना था कि वह कार्यस्थलों पर जांच का दायरा बढ़ाना चाहता है लेकिन आईसीएमआर इसकी इजाजत नहीं देता है. यह परस्पर विरोधी बातें हैं. एक तरफ केंद्र सरकार कहती है कि आईसीएमआर के नियम सिर्फ दिशा-निर्देश हैं लेकिन राज्यों को आशंका है कि उन्होंने इससे इतर कुछ किया तो उल्लंघन के दोषी माने जाएंगे.’

हालांकि, बीबीएमपी कोविड-19 वार रूम में स्पेशल ऑफिसर हेपसिबा रानी कोलारपति कहती है कि टेस्टिंग प्रक्रिया रणनीतिक है. उनके मुताबिक, यह ट्रैकिंग, टेस्टिंग और रणनीतिक तौर पर टेस्टिंग की पूरी प्रक्रिया है और इसकी वजह से ही बेंगलुरु में संक्रमितों की संख्या नियंत्रित रही है.

इस आईएएस अफसर ने कहा, सही समय से रणनीतिक तौर पर टेस्टिंग बेंगलुरु के लिए फायदेमंद साबित हुई है. अगर आप देश में कब आबादी वाले अन्य शहरों से तुलना करें तो बेंगलुरु में प्रति लाख पॉजीटिव केस की संख्या काफी कम हैं. यहां तक कि हमारा नंबर देश में सर्वाधिक प्रभावित 50 शहरों में भी शुमार नहीं होता है.

लाइफकोर्स एपिडेमोलॉजी पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई), महामारी और निगरानी पर आईसीएमआर की रिसर्च टास्क फोर्स का ही एक अंग है, के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. गिरिधर बाबू का कहना है, ‘अगर पहले से ये सख्त कदम न उठाए गए तो आज बेंगलुरु का भी वही हाल होता जो इस समय दिल्ली और मुंबई का है. लेकिन आगे यही स्थिति बनी रहे, इसमें सबसे अहम होगा कि हम अभी क्या फैसला लेते हैं.’

टेक्नोलॉजी आधारित कोविड प्रबंधन

एक अहम तथ्य यह है कि बेंगलुर में कोविड-19 मरीजों को ट्रैक और ट्रेस करने और जो होम क्वारंटाइन रहे उनकी निगरानी में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और इनोवेटिव एप्लीकेशन काफी मददगार साबित हुए हैं.

शहर की सिविक बॉडी ने कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के संपर्क में सभी लोगों की जानकारी का रिकॉर्ड रखने वाला एक कॉटैक्स ट्रेसिंग मोबाइल एप जारी किया था. इसके जरिये निचले स्तर पर तैनात लोग कांटैक्स की पहचान करके उसे तत्काल क्वारंटाइन करा सकते हैं. इसका वेब वर्जन भी उपलब्ध है. इस एप का प्रोटोटाइप हरियाणा के साथ साझा भी किया गया है.

क्वारंटाइन में रहने वालों की निगरानी के लिए सरकार ने क्वारंटाइन वाच एप भी लांच किया है. जो लोग क्वारंटाइन में हैं, उन्हें यह एप डाउनलोड करना होता है और उसके बाद हर दो घंटे पर अपनी सेल्फी अपलोड करनी होती है. जीपीएस लोकेशन और फोटोग्राफ के विश्लेषण के आधार पर बैकएंड की टीम यह सुनिश्चित करती है कि कहीं कोई प्रक्रिया का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.

इसके अलावा राज्य सरकार की एक कोरोना वाच एप भी है जो इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध कराती है कि कोई कोविड-19 मरीज पॉजीटिव पाए जाने से 14 दिन पहले किन-किन जगहों पर गया था. जिनके पास यह एप है वो उन जगहों से दूर रह सकते हैं जो संभावित हॉटस्पाट हो सकते हैं.

कर्नाटक ने डॉक्टरों के लिए भारत का पहला ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम भी लांच किया है, जिसमें 25000 से ज्यादा डॉक्टरों और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वायरस से लड़ने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है. राज्य के मुख्य सचिव टीएम विजय भास्कर ने महामारी से निपटने के बनीं 17 टास्क फोर्स के बीच समन्वय के लिए कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन अधिकरण (केएसडीएमए) के तहत एक डिसीज सर्विलांस टीम का गठन किया है.

केएसडीएमए ने इसके लिए तीन टूल विकसित किए हैं, कंसॉलिडेटेड कोविड-19 पोर्टल, रियल टाइम डाटा कलेक्शन और मॉनिटरिंग तथा क्राउड सोर्सिंग टूल. पोर्टल के डैशबोर्ड पर महामारी से जुड़ी सभी जानकारियां आंकड़ों, फेक न्यूज बस्टर, हेल्पलाइन नंबर, स्टेट वार रूम के विश्लेषण के तौर पर एक जगह पर ही हासिल की जा सकती हैं.

केएसडीएमए आयुक्त मनोज राजन ने द प्रिंट से बातचीत में कहा, रियल टाइम डाटा कलेक्शन सिस्टम के जरिये राज्य से ग्राम स्तर तक की हर जानकारी उपलब्ध होने से बिना गतिरोध कोई भी निर्णय लेने में सहूलियत होती है.

क्राउड सोर्सिंग टूल के जरिये निजी मेडिकल संस्थान और दवा की दुकानें एनफ्लूएंजा लाइक इलनेस (आईएलएआई) और सीवियर एक्यूट रेस्पायरेटरी इन्फेक्सन (एसएआरआई) के मामलों के बारे में तत्काल जानकारी दे सकती है.

डॉ. बाबू, राज्य की तकनीकी सलाहकार समिति में भी शामिल हैं, ने बताया कि कर्नाटक ने एप्टामित्र एप भी शुरू किया है जिसमें कोई भी एन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों के बारे में सूचना साझा कर सकता है.


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मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम

मनिपाल हास्पिटल्स के चेयर डॉ. एच. सुदर्शन बल्लाल जैसे मेडिकल एक्सपर्ट की राय में बेंगलुरु की इस सफलता का श्रेय दो बातों को जाता है, एक सरकार की सक्रियता और दूसरा राज्य में हेल्थकेयर सिस्टम का मजबूत होना.

डॉ. बल्लाल कहते हैं, ‘शुरुआत में ही विशेष कोविड अस्पताल बनाना और कोविड व गैर-कोविड मरीजों को एक साथ न रखने का फैसला लेना काफी मददगार रहा. लॉकडाउन पर प्रभावी तरीके से अमल, कांटैक्ट ट्रेसिंग, टेस्टिंग और मरीजों के इलाज ने राज्य में स्थिति को बेहतर बना दिया.’

बल्लाल ने आगे कहा, ‘इसके अलावा पीपीपी मॉडल के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र के प्राइवेट प्लेयर से लगातार बातचीत और तमाम साझा उपायों मसलन फीवर क्लीनिक, वर्चुअल कंसल्टेशन, जिला अस्पतालों के लिए ई-आईसीयू की व्यवस्था आदि ने स्थिति को और बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभाई.’

शहर में शुरुआत में अपनाई गई रणनीति ने यहां मृत्युदर भी घटा दी. 15 जून तक बेंगलुर में सक्रिय केस का आंकड़ा 327 था और 37 मौतें हुई थीं.

यहां पर मृत्युदर का आंकड़ा 1.2 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत 2.8 फीसदी से काफी नीचे और अन्य महानगरों की तुलना में सबसे अच्छा है—यह मुंबई में 3.7 फीसदी, चेन्नई में 2.32 फीसदी, दिल्ली में 3.2 फीसदी और कोलकाता में 7.9 फीसदी है.

बेंगलुरु में मृत्यु दर सबसे कम होने की एक वजह यह भी है कि यहां शुरुआत से ही सभी मामलों में इलाज की व्यवस्था विशेष कोविड अस्पताल में ही की गई। इसके बाद क्वारंटाइन की व्यवस्था का भी सख्ती से पालन किया गया।

पीएचएफआई के डॉ. बाबू के मुताबिक, ‘लक्षणों के आधार पर पहचान, कांटैक्ट ट्रेसिंग और बड़ी संख्या में टेस्टिंग शहर के लिए फायदेमंद रही. हम ऐसे मामलों का पता लगाने में भी सफल रहे जो ज्यादातर बाहर से आने वाले लोगों से जुड़े थे.’

बेंगलुरुर ने अन्य शहरों की तुलना में शुरू से ही प्रति लाख आबादी पर 3000 से ज्यादा टेस्ट किए. ज्यादातर केस बाहर से आने वाले लोगों से जुड़े थे. यह यहां पर लोकल ट्रांसमिशन न होने की तरफ इशारा करता है.

महामारी विशेषज्ञ ने आगे कहा, ‘शहर को एक और बात का विशेष लाभ हुआ—मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने अधिकारियों और विशेषज्ञों को संकट से निपटने के लिए अपने स्तर पर फैसले की छूट दे दी थी.’

उन्होंने कहा, ‘यह पहली बार था कि जनस्वास्थ्य पर विशेषज्ञों से सलाह मांगी जा रही थी और उनके आधार पर निर्णय लिए जा रहे थे. कई बार हमसे सलाह मांगी जाती है लेकिन उस पर अमल नहीं होता लेकिन इस बार ऐसा नहीं था. ऐसे सवाल पर राय ली गई कि हमें टेस्ट क्यों करने चाहिए, क्या इसे बढ़ाना चाहिए या नहीं, हमें आईएलआई टेस्टिंग करनी चाहिए या नहीं, लॉकडाउन में किस तरह छूट दी जानी चाहिए.’ उन्होंने विशेषज्ञों की सलाह पर अमल किया और यह कोविड पर राज्य सरकार की सफल प्रतिक्रिया में मील का पत्थर है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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