मुंबई: मुंबई स्थित धारावी, जिसे एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती के रूप में जाना जाता है, में कोरोनावायरस का पहला केस 1 अप्रैल को दर्ज किया गया था. इसके बाद से ही इस इलाक़े के शहर के एक सबसे बड़े हॉटस्पॉट बनने की आशंका बढ़ गई थी. आज के हालात में भारत की वित्तीय राजधानी मानी जानी वाली मुंबई में देश में कोरोनावायरस के सक्रिय मामलों की संख्या सबसे अधिक है.
पर दो महीने बीतने के बाद, मुंबई के उत्तर प्रशासनिक वार्ड- जी में आने वाले धारावी में इस वायरस का ग्राफ समतल होता दिखाई देता है.
इसके विपरीत, मुंबई के कुछ उत्तरी उपनगरों के कई नगरपालिका वार्डों में शुरू में बहुत कम मामले होने के बावजूद अब हर दिन लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर की जा रही है.
तो आख़िरकार धारावी को अपने हालात में इस व्यापक परिवर्तन हेतु कहां से मदद मिली?
इसका जवाब छुपा है अभिनव प्रयोगों की एक श्रृंखला में जिनके तहत – निजी चिकित्सकों की तैनाती, संक्रमण के प्रति संवेदनशील आबादी को अलग करना, वृहत क्वारेंटीन सुविधाएं प्रदान करना और उपचार के लिए निजी अस्पतालों का अधिग्रहण – जैसे उपाय शामिल थे. सुधरे हालात के कारण अब लगता है कि यह चाल कामयाब साबित हुई है.
धारावी में कोरोनावायरस के मामलों का समयानुक्रम
12 जून तक, धारावी में कोरोनावायरस के 2,013 मामले दर्ज किए गये थे. लेकिन पूरे मुंबई शहर के 3 प्रतिशत की दैनिक वृद्धि दर के मुकाबले यहां की दर 1.57 प्रतिशत थी. मुंबई के अन्य वार्डों जैसे पी नॉर्थ, आर साउथ और एस वार्डों में (ये सभी मुंबई क उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में शामिल हैं) में तो यह दर 5% के आस-पास है.
30 मई से 8 जून के बीच धारावी में कोई मौत दर्ज नहीं की गई थी, लेकिन पिछले चार दिनों में यहां छह मौतें हुई हैं, जो मरने वालों की कुल संख्या को 77 तक ले जाती है.
कुल मिलाकर, मुंबई में देश भर के कोविड -19 पॉज़िटिव मामलों का लगभग पांचवां (20%- 55,451 पॉज़िटिव केस) मामले दर्ज किए गए हैं. शनिवार तक इनमें से 28,248 सक्रिय केस थे.
धारावी की कहानी में बदलाव
2.5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र वाली धारावी में लगभग 8.5 लाख लोग रहते हैं और इनमें से ज़्यादातर सटे हुए और तंग क्वार्टरों में रहते हैं.
11 जून को यहां सिर्फ 20 नए मामले दर्ज किए गये. धारावी में कोविड-19 पॉज़िटिव मामलों की दोहरीकरण दर – वह समय जिसमें कुल मामलों की संख्या दोगुनी हो जाती है – 44 दिनों तक पहुंच गई है जो शहर के औसत लगभग 22 दिनों की तुलना में बहुत अधिक है.
जी नॉर्थ वार्ड (दादर, माहिम और धारावी के इलाक़े शामिल हैं) के प्रभारी नगरपालिका आयुक्त किरण दिघवकर का कहना है, ‘यह एक ऐसा कार्य था जिसका विफल होना अपरिहार्य समझा गया था, लेकिन हमने सभी को चौंका दिया है. कोविड-19 के प्रभावी उपचार एवं टीके (वैक्सीन) के आभाव में सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की दोहरी रणनीतियों को हीं कोरोनोवायरस का मुकाबला करने का एकमात्र प्रभावी तरीका माना जाता है, लेकिन ये रणनीतियों धारावी में काम नहीं आने वाली थीं.’
यह भी पढ़ें :मोर्चे पर घंटों की ड्यूटी, सीमित पीपीई, कम इम्यूनिटी- मुंबई पुलिस कैसे हुई कोविड का शिकार
धारावी में 10 × 12 फीट आकार के घरों में सात से आठ सदस्यों वाले परिवार रहते है. इस कारण सामुदायिक संक्रमण को अपरिहार्य माना जा रहा था. अतः नगर निगम के अधिकारियों ने कोरोनोवायरस के मामलों की रोकथाम के लिए कठोरता से कोविड रोगियों के संपर्क का पता लगाने (कांटेक्ट ट्रेसिंग), परीक्षण और क्वारेंटीन जैसे उपायों के साथ-साथ स्वच्छता पर भी ध्यान दिया. इसमे विशेष रूप से सामुदायिक शौचालयों की स्वच्छता सुनिश्चित की गई क्योंकि अधिकांश झुग्गी निवासी उन पर निर्भर हैं.
धारावी में किशोरों के लिए क़ाम करने वाली संस्था स्नेहा के कार्यक्रम निदेशक डॉ. रमा श्याम ने कहा, ‘हमें शुरुआती दिनों के दौरान पूरी कठोरता से कोविड रोगियों के संपर्क का पता लगाने का अब पूरा-पूरा लाभ मिल रहा है.’ उन्होंने यह भी बताया कि बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की हेल्पलाइन (1916) सवालों के जवाब देने और जानकारी उपलब्ध करने के मामले में बहुत ही संवेदनशील है.
दिघवकर ने कहा कि बीएमसी ने धारावी में अब तक लगभग 7,000 परीक्षण किए हैं, इसके अतिरिक्त निजी प्रयोगशालाओं द्वारा भी 2,000 परीक्षण किए गए हैं.
डॉ. श्याम ने कहा कि लॉकडाउन के हटने के साथ हीं लोगों ने सड़कों और बाजारों में फिर से जाना शुरू कर दिया है. अतः मामलों की संख्या कम बनाए रखने के लिए रोग निवारक उपायों और नागरिक निकाय की तैयारियों के बारे में आंकड़ों पर आधारित स्पष्ट संवाद की आवश्यकता है.
बीएमसी अधिकारियों का यह भी मानना है कि धारावी के मामले में प्रवासी श्रमिकों के सामूहिक पलायन ने भी काफ़ी हद तक मदद की है. अनुमानों के अनुसार धारावी में रहने वाले करीब डेढ़ लाख लोग शहर छोड़कर अपने पैतृक घरों को लौट गये हैं.
इस बीच, मामलों के आ रही कमी के कारण उन नगरपालिका स्कूलों को जिन्हें क्वारेंटीन सेंटर्स में बदल दिया गया था, स्कूल प्रशासन को वापस सौंपा जा रहा है, ताकि जब भी सरकार छात्रों को वापस जाने की अनुमति दे, वे पढ़ाई के लिए तैयार हो सकें. दिघवकर का मानना है कि इससे लोगों का विश्वास वापस पाने में मदद मिलेगी.
धारावी में स्क्रीनिंग करने के लिए और अधिक डॉक्टरों की तलाश का दुरूह कार्य
धारावी में प्रत्येक घर में जाकर रोगियों का पता लगाना (डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग) लगभग असंभव कार्य था. पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) में बी.एम.सी के कर्मचारियों ने स्क्रीनिंग को अंजाम दिया, और अक्सर वे संकीर्ण गलियों में गर्मी के कारण बेहोश हो जाते थे.
डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के प्रारंभिक 47,000 प्रयासों के बाद रणनीति में बदलाव लाया गया. सिर्फ़ लक्षणों वाले लोगों को हीं स्क्रीनिंग के लिए आने के लिए कहा गया था और इस अभियान को पूरा करने के लिए बुखार की जांच के लिए लगाए गये शिविरों के साथ-साथ नौ बीएमसी डिस्पेंसरी और 350 निजी चिकित्सकों को भी शामिल किया गया.
धारावी में 90 फीट रोड पर निजी चिकित्सक डॉ. अनिल पचनेकर के द्वारा संचालित एक ऐसे ही क्लिनिक के बाहर दिप्रिंट ने इंतजार कर रहे रोगियों की एक लंबी कतार देखी. लक्षणों की परवाह किए बिना सभी रोगियों की बुखार के लिए जांच की गई और उनके ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर (ऑक्सिजन सॅचुरेशन लेवेल्ज़) की भी जांच की गई. डॉ. पचनेकर ने बताया कि स्थानीय चिकित्सकों के साथ भलीभांति परिचित होने के कारण धारावी निवासी अपने स्वास्थ्य के बारे में अधिक खुलकर बता रहे थे.
इसी रणनीति का उपयोग करते हुए, स्थानीय अधिकारी 1.2 लाख वरिष्ठ नागरिकों के अलावा ऐसे करीब 3.6 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करने में सक्षम रहें, जो संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील थे.
चूंकि, मरीजों की काफ़ी पहले जांच कर ली गई थी और उन्हें क्वारेंटीन सेंटर्स में रखा गया था, इसलिए उनकी लगातार निगरानी संभव हो पाई. यही कारण है कि उपचार के लिए भर्ती किए जाने में देरी से मृत्यु दर में होने वाली भारी वृद्धि से बचा जा सका.
बड़े क्वॉरंटीन सेंटर्स से काफ़ी राहत मिली
हालांकि, रोगियों के संपर्क का पता लगाना एक प्रभावी उपाय था, परंतु बड़े क्वारेंटीन सेंटर्स स्थापित करना इसकी सफलता का पूरक कारक था.
धारावी में प्रशासन द्वारा अधिगृहीत पहली बड़ी सुविधा 300 बेड वाला राजीव गांधी खेल परिसर था. जल्द ही, नगर निगम के स्कूलों के साथ-साथ माहिम नेचर पार्क को भी अधिगृहीत किया गया और 3,800 लोगों की क्षमता वाले आइसोलेशन और क्वारेंटीन सुविधाओं के रूप में विकसित किया गया. जून तक ऐसी सुविधाओं में 8,500 से भी अधिक लोग क्वारेंटीन किए गये थे.
संदिग्ध रोगियों की 24 घंटे की निगरानी और देखभाल के अलावा, कुछ केंद्रों ने अधिक समग्र और अभिनव तरीके से उनकी देखभाल प्रदान की. उदाहरण के लिए, राजीव गांधी खेल परिसर में हर रोज कोरोनोवायरस लक्षणों वाले रोगियों के साथ-साथ बिना लक्षणों वाले लोगों के लिए भी एरोबिक्स, योग और श्वसन अभ्यास के अभ्यास सत्र रखे गये थे. इन सत्रों के पीछे रोगियों को सक्रिय रखने और उन्हें आराम करने में मदद करने का दुहरा उद्देश्य शामिल था.
निजी चिकित्सक डॉ. धनंजय मोर, जिन्हें एक 20 अप्रैल को राजीव गांधी खेल परिसर में एक आपातकालीन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था, ने कहा, ‘केंद्र के अधिकांश रोगियों में करोना के कोई लक्षण नहीं थे, लेकिन कोविड -19 पॉज़िटिव होने के तनाव का सामना करने में वे घबरा गए और उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया.’
इससे निपटने के लिए हीं उन्होने योग और प्राणायाम सत्र आयोजित करने का विचार दिया. उनका कहना है कि इस तरह के सत्रों से बिना लक्षण वाले रोगियों को ठीक होने में मदद मिलती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता नहीं होती है. इसी कारण जहां मई में उनके केंद्र में 100-200 लोग थे वहीं अब केवल 45 रोगी हैं.
इसके अलावा गहन उपचार प्रदान करने के लिए, बीएमसी ने क्षेत्र के पांच निजी अस्पतालों को भी अपने कब्जे में ले लिया.
दिघवकर कहते हैं, ‘हमने अपनी कार्यवाही शुरू करने के लिए मामलों की संख्या 100 तक पहुंचने की प्रतीक्षा नहीं की. पहले मामले के सामने आने के तीन दिन बाद हीं पहला बुखार के जांच के लिए क्लिनिक शुरू कर दिया गया था. हमने पहले दो हफ्तों के भीतर हीं गंभीर मामलों का उपचार करने के लिए 200 बिस्तर वाले साईं अस्पताल को अधिगृहीत कर लिया.’ इससे यह सुनिश्चित किया गया कि मरीजों को मुंबई के भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक अस्पतालों में बिस्तरों की तलाश में भटकना ना पड़े.
चुनौतियां और भी हैं
निश्चित रूप से धारावी कोरोनोवायरस से बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका से उबर गया है, लेकिन अभी भी कई मुद्दे सामने हैं.
यह भी पढ़ें :मुंबई के धारावी को कोरोनावायरस के साथ ही गंदे शौचालयों और धूमिल छवि से भी जूझना पड़ रहा
लॉकडाउन के दौरान, नगर निगम ने 24,000 परिवारों को सूखा राशन भेजा और 19,000 लोगों को पका खाना खिलाया, जिसमें 11,000 इफ्तार का खाना भी शामिल था. फिर भी, धारावी की विशाल आबादी को ध्यान में रखते हुए यह पर्याप्त नहीं था. खास कर तब जब ज्यादातर निवासी लॉकडाउन के बाद बेरोजगार हो गये थे, और राशन की दुकानें केवल चावल और गेहूं बांट रही थीं. ऐसे हालत में, गैर-लाभकारी और स्वयंसेवक समूहों ने हीं मामला संभाला और बड़ी संख्या में सूखे राशन किट और हजारों लोगों को पका हुआ भोजन प्रदान किया.
दिघवकर ने कहा कि धारावी पर राष्ट्रीय मीडिया की लगातार बनी हुई नज़र के कारण बड़ी संख्या में दान सुनिश्चित करने में मदद हुई, परंतु, अब यह रास्ता तेज़ी से बंद हो रहा है.
24X7 लॉकडाउन हेल्पलाइन का संचालन करने वाले एक स्वयंसेवक, शहीम शेख कहते है, ‘दानराशि मिलना अब बंद सा हो रहा है लेकिन हमें अभी भी खाद्य सामग्री की आपूर्ति के अनुरोध वाली 100-200 कॉल मिल रहीं हैं.’ शेख मार्च से ही राहत कार्य का हिस्सा बने हुए है और धारावी में 900 से अधिक परिवारों को राशन किट बांट चुके हैं.
कुछ लोगों का आरोप है कि गैर-कोविड मामलों की देखरेख वाले अस्पताल ठीक से काम नहीं कर रहे थे. धारावी बचाओ आंदोलन के राजू कोर्डे ने कहा, ‘मेरे दोस्त के पिता का 12 दिनों तक डायलिसिस नहीं होने के कारण देहांत हो गया. वे जिस अस्पताल में गये थे वहां के (डायलिसिस) तकनीशियन उपस्थित नही थे और अन्य अस्पतालों ने बिना कोविड परीक्षण के उनका इलाज करने से इनकार कर दिया था.’
हालांकि, दिघवकर ने इस दावे का खंडन किया और कहा कि सामान्य रूप से चलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं लगातार चल रहीं थीं. उनकें अनुसार बीएमसी इस क्षेत्र में पांच अस्पताल चला रहा था, जिनमें से सिर्फ़ एक कोविड के लिए आरक्षित अस्पताल था.
इसके अलावा कोरोनोवायरस की संभावित दूसरी लहर की चुनौती भी बरकरार है क्योंकि वापस गये प्रवासी धीरे-धीरे लौट रहें हैं. साथ ही मानसून आने पर दूसरी बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है. धारावी जैसे निचले इलाके विशेष रूप से मानसून से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं, जिनकी शुरुआत बाढ़ से होती है.
इन पर दिघवकर ने कहा कि वे किसी भी परिस्थिति के लिए पुरी तरह से तैयार हैं. वे कहते हैं, ‘माहिम नेचर पार्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति के साथ 1,000 बिस्तर वाली क्वॉरंटीन सुविधा के साथ-साथ इसके सामने 200 बिस्तर वाला अस्पताल भी है. इसलिए यदि मामले बढ़ते भी हैं, तो हमारे पास सारे संसाधन तैयार हैं.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)