नई दिल्ली: दुनियाभर में तेजी से बदल रही मौसमी स्थितियों को काफी हद तक जलवायु परिवर्तन प्रभावित कर रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि कम और मध्यम आय वाले देशों से आंकड़ें जुटाना काफी जरूरी है क्योंकि इन देशों पर जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है.
आईओपी पब्लिशिंग से प्रकाशित अकादमिक जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च: क्लाइमेट में हाल ही में छपी स्टडी में एट्रीब्यूशन साइंस के आधार पर तेजी से बदल रही मौसमी स्थितियों को मानव जनित जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा गया है. एट्रीब्यूशन साइंस भीषण मौसमी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध स्थापित करने को संभव बनाता है.
इस अध्ययन में इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट (आईपीसी) चेंज की हाल की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है.
इस अध्ययन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंपीरियल कॉलेज लंदन और विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंग्टन के शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में पांच तरह की मौसमी स्थितियों के प्रभाव और ये कैसे मानव जनित जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है, इसका अध्ययन किया.
इन मौसमी स्थितियों में हीटवेव, उष्णकटिबंधीय तूफान, आग, तेज बारिश और सूखा है.
अध्ययन में ये भी बताया गया है कि इन मौसमी घटनाओं की वजह से करोड़ों डॉलर का नुकसान भी होता है.
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की कुछ दिनों पहले के अध्ययन में भी यही पता चला था कि भारत और पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन ने समय से पहले हीटवेव का खतरा 30 गुना बढ़ा दिया है.
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मौसमी स्थितियों में स्पष्ट है जलवायु परिवर्तन का असर
शोधार्थियों ने पाया कि हीटवेव जैसी मौसमी स्थितियों में जलवायु परिवर्तन का असर दुनियाभर में स्पष्ट है और इसके असर को अर्थशास्त्री, सरकारें कमतर आंक रही हैं. इसके इतर ट्रॉपिकल तूफान के मामले में, अध्ययन के अनुसार क्षेत्र के हिसाब से अंतर देखने को मिलता है और हर स्थिति में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हीटवेव की तुलना में अलग होती है.
इस अध्ययन से जुड़े और ऑक्सफार्ड यूनिवर्सिटी के बेन क्लार्क के अनुसार, ‘तेजी से बदलती मौसमी स्थितियों के बढ़ने जैसे कि हीटवेव, सूखा, तेज बारिश की घटनाएं बीते कुछ सालों में काफी बढ़ी है और वैश्विक तौर पर इसने लोगों को प्रभावित किया है.’
उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन की इन घटनाओं में भूमिका से इसे लेकर तैयार रहने में मदद मिल सकती है. और इससे ये भी पता चल जाएगा कि हमें कार्बन उत्सर्जन से कितनी कीमत चुकानी पड़ती है.’
वहीं इंपीरियल कॉलेज लंदन के क्लाइमेंट चेंज एंड द एनवायरमेंट के ग्रांथम इंस्टीट्यूट की डॉ. फ्रेडरिक ओट्टो कहती हैं, ‘अभी तक हमारे पास विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है कि जलवायु परिवर्तन से किस तरह का प्रभाव पड़ता है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब हमारे पास इसके लिए उपकरण और उन्नत समझ है, लेकिन ये उन क्षेत्रों में हमारी समझ को बेहतर बनाने के लिए दुनिया भर में अधिक समान रूप से लागू करने की आवश्यकता है जहां सबूत की कमी है. वरना हम देशों को उन जानकारियों से, जिससे कम फंड का बेहतर इस्तेमाल और लोगों को बदलते जलवायु के अनुकूल रहने के विकल्प से वंचित कर रहे हैं.’
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मौसमी स्थितियों के बारे में समझ होना जरूरी
अध्ययन में कहा गया है कि तेजी से बदल रही स्थितियों में खुद को अनुकूल बनाने और इसके असर को कम करने के लिए जरूरी है कि इन घटनाओं के बारे में सही समझ विकसित हो.
अध्ययन में बताया गया है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन से चुकानी पड़ रही कीमत की दिशा में समझ बनाने के लिए ये सिर्फ एक शुरुआत है.
साथ ही बताया गया कि इसे लेकर वैज्ञानिक तीन क्षेत्रों में काम कर सकते हैं. पहला, व्यवस्थित ढंग से तेजी से बदलती मौसमी स्थितियों को दुनिया भर में दर्ज करना. दूसरा, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एट्रिब्यूशन के कवरेज को बढ़ाना और तीसरा, असर और नुकसान के अलावा जोखिम पर ध्यान देना.
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