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Friday, 22 November, 2024
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भारी बारिश, खराब ड्रेनेज, घटिया इंफ्रा: कैसे इस साल जलमग्न हो गया बेंगलुरू

मूसलाधार बारिश के लिए बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और स्थानीय मौसम का पैटर्न जिम्मेदार था लेकिन विशेषज्ञों कि मानें तो बाढ़ की वजह भारी बारिश नहीं बल्कि जल निकासी और बुनियादी ढांचे की कमी है.

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बेंगलुरू: पिछले एक हफ्ते से मीडिया में बेंगलुरू की बाढ़ की तस्वीरों वाली मौसम की खबरों का बोलबाला रहा. रविवार की रात से शुरू हुई बारिश सोमवार की सुबह तक लगातार होती रही. और यहां जलप्रलय आ गया. चारों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था और इसकी वजह इस शहर का निर्माण है. यहां नालों और प्राकृतिक जल निकायों को खत्म करके उन पर इमारतें बना ली गईं और पानी के निकासी के लिए कुछ सोचा ही नहीं गया.

बाढ़ काफी भयंकर थी और बड़ी तेजी से आई. लोग कुछ ही मिनटों में पानी से निकलते हुए बाहर जाने के रास्तें तलाशने लगे. शहर के ज्यादातर हिस्से जलमग्न हो गए थे.

मौसम विभाग के मुताबिक महज 12 घंटे में शहर में 13.16 सेंटीमीटर बारिश हो गई. कई इलाके घुटने तक गहरे पानी के नीचे थे और कहीं-कहीं तो जलस्तर कमर तक पहुंच गया. निचले इलाके पूरी तरह से पानी में डूबे गए थे. फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए ट्रैक्टरों और नावों का सहारा लेना पड़ा. सोमवार को शहर मानो थम सा गया हो.

बेंगलुरू में हर साल लगभग 970-990 मिमी बारिश होती है. खासकर वर्ष की दूसरी छमाही में शाम को बारिश होती है. सबसे गर्म महीने अगस्त, सितंबर और अक्टूबर हैं. साल 1981 से 2010 तक वार्षिक औसत वर्षा 986.1 मिमी दर्ज की गई थी.

लेकिन इस साल शहर में पहले ही 1,466.6 मिमी बारिश हो चुकी है.

तेज बारिश के लिए दो सक्रिय वायुमंडलीय कारक जिम्मेदार रहे. साल दर साल तेजी से गर्म होने का बड़ा जलवायु पैटर्न और बेंगलुरू का अधिक स्थानीय मौसम का पैटर्न, जिसकी वजह से यहां उस रात में होने वाली बारिश को बिगाड़ दिया.


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विंड शीयर जोन और वायुमंडलीय नमी

साल में इस समय बेंगलुरू में हलकी बारिश हुआ करती है.

दक्षिण कोरिया के जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी में टाइफून रिसर्च सेंटर के पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता विनीत कुमार सिंह ने बताया, ‘मानसून के मौसम में, जब इंडियन कोर मानसून जोन में मानसून की गतिविधि कम हो जाती है, तब शहर में सबसे ज्यादा बारिश होती है.’

सक्रिय मानसून के मौसम के दौरान कई हिस्सों में मानसून का कमजोर होना वायुमंडलीय तरंग पैटर्न के कारण एक सामान्य घटना है. सक्रिय मानसून के समय, पश्चिम से तेज पछुआ हवाएं चलती हैं. विराम की स्थिति के दौरान ये हवाएं कमजोर हो जाती हैं. और अक्सर इनकी गति पूर्वी हवाओं के बराबर हो जाती हैं.

Residents of a flood-affected colony in Bengaluru being rescued by Flood Relief Task Force personnel | ANI
बाढ़ सहायता टास्क फोर्स द्वारा बाढ़ प्रभावित इलाके में लोगों को निकाला गया | एएनआई

सिंह ने कहा कि ऐसे में बेंगलुरू में मानसून के दौरान काफी ज्यादा मात्रा में बारिश होती है.

रविवार की शाम को हवा के पैटर्न में आए इस बदलाव को शहर के ऊपर एक विंड शीयर जोन के रूप में जाना गया.

शीयर जोन वे होते हैं जहां किसी क्षेत्र के दोनों सिरों पर विपरीत दिशाओं में हवाएं चलती हैं. और इनके बीच में एक प्रकार का तटस्थ क्षेत्र बन जाता है.

सिंह ने समझाते हुए कहा, ‘बेंगलुरू के दक्षिण में पश्चिमी और उत्तर में पूर्वी हवाएं चल रहीं थीं, जो एक शीयर जोन बना रही थीं. यह घटनाक्रम बहुत कमजोर हवाओं के साथ वायुमंडलीय अस्थिरता को बढ़ा देता है. इसके अलावा मानसून के मौसम के कारण इस क्षेत्र में नमी से भरा वातावरण भी था. नतीजा ये हुआ कि स्थानीय संवहन के लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो गई और तेज बारिश होने लगी.’

हालांकि, यह बारिश कोई असामान्य घटना नहीं थी.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी, पुणे के मानसून मॉडलिंग विशेषज्ञ डॉ. पी मुखोपाध्याय ने बताया, ‘सीमा के भीतर तेज बारिश की भविष्यवाणी की गई थी. लेकिन यह साल के इस समय में होने वाली सामान्य बारिश की तुलना में काफी असामान्य थी.’

उन्होंने सितंबर में सबसे गर्म दिनों के पिछले दो रिकॉर्ड– 1988 में 18 सेमी और 2014 में 13.23 सेमी का जिक्र करते हुए कहा, ‘साल के इस समय पहले भी बदतर बारिश हुई है. लेकिन शहर में इस हद तक कभी बाढ़ नहीं आई.’ उन्होंने समझाया, ‘बाढ़ का कारण जल निकासी और बुनियादी ढांचे की कमी है, न कि बारिश की तीव्रता.’

शहर में जल निकायों की स्थिति पिछले कई सालों से लगातार खराब होती जा रही है. कई नागरिकों ने झीलों के गायब होने और बारिश के पानी के जमीन में कम होते रिसाव पर चिंता जताई है. 2019 में बेंगलुरू के नागरिक निकाय ने घोषणा की कि उसने शहर के कुछ हिस्सों को फिर से मैप करने की योजना बनाई है क्योंकि उपग्रह छवियों से ‘तेजी से बढ़ते शहरीकरण’ का खुलासा हुआ है. इन जगहों से प्राधिकरण टैक्स इकट्ठा नहीं कर रहा था.


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ग्लोबल हीटिंग का प्रभाव

पृथ्वी के तेजी से गर्म होने से दिन-प्रतिदिन के सभी स्थानीय मौसम पर असर पड़ रहा है. जब बेंगलुरू में भारी बारिश हो रही थी, तो वहीं पाकिस्तान भी बाढ़ से जूझ रहा था. अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में भी ऐसा ही देखा गया.

इस बीच यूरोप, चीन और कई अन्य जगहों पर नदियां पूरी तरह से सूख गई हैं. ये देश रिकॉर्ड सूखे का सामना कर रहे हैं, जो अब से पहले कभी नहीं देखा गया था.

दुनिया भर में तेज बारिश के मामलों के बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि गर्म वातावरण ज्यादा पानी को वाष्पित करता है और ज्यादा वर्षा को संजोये रखता है. यही वजह है कि थोड़े समय में काफी ज्यादा बारिश हो जाती है.

बेंगलुरू की बारिश पूरे साल एक जैसी होती है लेकिन मुंबई, चेन्नई या कोलकाता जैसे तटीय शहरों में होने वाली बारिश के स्तर तक नहीं आ पाती है. सितंबर में सबसे ज्यादा बारिश होती है, उसके बाद अक्टूबर और अगस्त और फिर मई से जुलाई तक बारिश होती है.

मानसून से पहले और बाद में आने वाले महीनों- अप्रैल और नवंबर में हल्की बारिश होती है लेकिन यह सब अब बदल रहा है.

बेंगलुरt में आंकड़ों से पता चलता है कि वार्षिक वर्षा वास्तव में बढ़ रही है.

भारत में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) वर्षा के दर की गणना करता है. इसे लांग पीरियड एवरेज (एलपीए) कहा जाता है. यह 1981 और 2010 के बीच औसत वर्षा का रिकॉर्ड है. बेंगलुरू का एलपीए 986.1 मिमी है. लेकिन 2010 के बाद से बारिश एलपीए से ज्यादा रही है. 2020 और 2021 दोनों सालों में औसत बारीश 1,200 मिमी से अधिक मापी गई.

2010 और 2021 के बीच औसत वर्षा 1,146.62 मिमी थी, जो शहर के एलपीए से 16 प्रतिशत अधिक है. क्योंकि शहर में अनियंत्रित और अनियोजित निर्माण हुआ है, इसलिए पानी जमीन में जाने की बजाय शहर की सड़कों पर आ जाता है. ज्यादा बारिश की घटनाएं बढ़ने के साथ, शहर को बादल फटने या औसत से अधिक बारिश के साथ बाढ़ के खतरे के लिए तैयार रहना होगा.

मुखोपाध्याय ने कहा, ‘जब हम उपकरणों का उपयोग करते हैं, तो हम जानते हैं कि एक सुरक्षित वोल्टेज रेंज है जिसके अंदर वह काम करते हैं. उस सीमा से परे अगर वोल्टेज गया तो वह उपकरणों को तोड़ देगा. आने वाले सालों में हमारे बुनियादी ढांचे के साथ भी ऐसा ही होने वाला है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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