नई दिल्ली : यह 1990 के दशक की शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी स्थित कांग्रेस मुख्यालय में भरी दोपहर की बात है. पोर्च पर एक कॉन्टेसा कार आकर रुकी और उसमें से माधवराव सिंधिया निकले. जैसे ही वह अंदर गए, एक युवक दाहिने तरफ के दरवाजे से बाहर निकला और बाहर जुटे पत्रकारों के पास पहुंच गया.
उसने उन लोगों को हतप्रभ करते हुए ऐलान कर दिया, ‘इस नाचीज को अमर सिंह कहते हैं. मैं हूं सिंधिया साहब का चमचा.’ अमर सिंह, जिनका शनिवार को निधन हो गया, उस समय अपनी उम्र के 30वें दशक के उत्तरार्ध में थे लेकिन कांग्रेस को कवर करने वाले अनुभवी पत्रकार उनकी स्पष्टवादिता से हैरान थे. वे उसी समय उनके मुरीद हो गए.
इन पत्रकारों को बाद में यह बात महसूस हुई कि यही अमर सिंह की सबसे बड़ी ताकत थी—कोई दिखावा नहीं था.
1956 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में ताले की दुकान वाले एक परिवार में जन्मे, 1960 के दशक में उन्हें कोलकाता जाना पड़ा क्योंकि उनका परिवार वहां जाकर बस गया और हार्डवेयर की एक दुकान शुरू की. 1980 के दशक के आखिर में अमर सिंह उद्योगपति के.के. बिड़ला- हिंदुस्तान टाइम्स के मालिक—के लाइजन ऑफिसर बन गए और सिंधिया के साथ एक अच्छा तालमेल स्थापित किया, जिन्होंने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) का सदस्य बनवाया. उसी समय वह कांग्रेस के पत्रकारों से टकराए थे.
बाद के दिनों और सालों में तमाम बार उनसे आमना-सामना हुआ, जिसने उन्हें कॉरपोरेट-राजनीति-बॉलीवुड के अदृश्य गठजोड़ के बारे में गहरी जानकारी मुहैया कराई.
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2009 की सौदेबाजी
इस रिपोर्टर को 2009 में यूपीए-2 सरकार गठन के लिए चल रही कवायद के बीच एक बार, द इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता के तौर पर, उनके लुटियंस दिल्ली स्थित आवास पर आमंत्रित किया गया था. यह बुलावा अमर सिंह को बार-बार किए जा रहे फोन के जवाब में था क्योंकि टाइम्स ऑफ इंडिया उस समय पहले पन्ने पर लगातार ऐसी खबरें छाप रहा था कि समाजवादी पार्टी (सपा) रक्षा और वित्त जैसे मलाईदार मंत्रालयों के लिए कांग्रेस के साथ सौदेबाजी कर रही है.
यह देखते हुए कि 2008 में विश्वास मत के दौरान मनमोहन सिंह सरकार को बचाने के लिए अमर सिंह ने कैसे मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को भारत-अमेरिका परमाणु करार के समर्थन में आगे लाकर वामपंथी दलों के इरादे ध्वस्त कर दिए थे, सपा यूपीए-2 में अपने मनचाहे मंत्रालय पाने के लिए मजबूत स्थिति में नजर आ रही थी. उस समय मुख्य वार्ताकार रहे अमर सिंह अपनी ब्रीफिंग को लेकर बेहद सेलेक्टिव होंगे. यही सोचकर उन्हें लगातार कॉल की.
अमर सिंह का निवास तब सारे ग्लैमर और चमक-दमक के साथ एक कॉरपोरेट ऑफिस की तरह दिखता था, जैसा एक सांसद के घर में होने की केवल कल्पना ही की जा सकती थी. इसके बाद इस संवाददाता को एक महिला कॉरपोरेट कार्यकारी एक कमरे में लेकर गई, ऐसे में बातचीत की शुरुआत के लिए कोई भी जो सवाल दाग सकता था वो यही था, ‘कितनी अच्छी जगह है, सर! मुझे पता चला है कि आपके घर में छत पर एक स्विमिंग पूल और एक जकूजी है! क्या यहां वाकई ऐसा है?’
अमर सिंह ने इस सबसे बेपरवाह दिखते हुए जवाब में कहा, ‘तो आप शेखर गुप्ता के अखबार से हो. मुझे पता है कि तुम यहां क्यों आए हो?’ उन्होंने आगे कहना जारी रखा कि वह जानते हैं कैसे मैं, इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता के तौर पर, निश्चित तौर पर ‘वास्तविक खबरों से चूक रहा’ हूं (मंत्रालय में एसपी की हिस्सेदारी के संबंध में) और इसलिए वहां पहुंचा हूं.
मैंने थोड़ा संभलते हुए कहा, ‘हां मैं मानता हूं कि मैं खबरों से चूक रहा हूं. लेकिन आप ऐसा कैसे कर सकते हैं कि मेरा फोन भी नहीं उठाएं और सारी बातें सिर्फ एक ही अखबार को बताएं! ऐसा क्या हो गया?’
इस पर उन्होंने कहा, ‘मान लीजिए, मैं आपको खबर देता हूं, शेखर गुप्ता आपको उसे कांग्रेस और अन्य से पुष्ट कराने को कहेंगे. फिर आपको खबर देने का क्या मतलब है? आप बार-बार फोन कर रहे थे इसलिए आपसे मिला. लेकिन खबर भी चाहिए और जर्नलिज्म ऑफ करेज (साहसिक पत्रकारिता) भी चाहिए…ऐसा नहीं होता ना.’ अमर सिंह यह कहते हुए अभिवादन स्वरूप हाथ जोड़कर खड़े हो गए जो मेरे लिए वहां से रवाना होने का संकेत था.
अमर सिंह के अपने पत्ते खोलने से इनकार करने के बाद इस संवाददाता ने इस मुलाकात के बारे जल्द ही यह खबर छापकर अपना बदला चुका लिया कि कैसे कांग्रेस सरकार में सपा को शामिल करने की कोई योजना थी ही नहीं, न ही मलाईदार मंत्रालयों पर हर दिन आ रही ‘ब्रेकिंग न्यूज’ जैसी किन्ही बातों पर कोई चर्चा हो रही थी.
लेकिन वह अमर सिंह थे, जो खुद को सबसे ताकतवर इंसान के रूप में पेश करने के लिए मीडिया और अन्य चीजों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे थे.
एक ‘कॉरपोरेट फिक्सर’
उनके लिए पीछे मुड़कर देखने की कोई वजह नहीं थी क्योंकि वह तो रील लाइफ कैरेक्टर अमर, अकबर, एंथनी की तिकड़ी को अपने वास्तविक जीवन में —अमर-अनिल (अंबानी)-अमिताभ (बच्चन) के रूप में देख रहे थे. वह 1980 के दशक के उत्तरार्ध में उस समय बच्चन परिवार के करीब आए, जब वह और जया केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य थे और यही से उनके लिए बॉलीवुड हस्तियों के दरवाजे खुल गए थे.
1996 में वह राज्यसभा के लिए सपा के उम्मीदवार थे, इसका कारण था उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के माध्यम से मुलायम सिंह यादव के साथ उनका परिचय होना. बॉलीवुड कलाकारों को लेकर मुलायम सिंह के उत्साहित होने का श्रेय भी अमर सिंह को जाता था, खासकर अभिनेत्रियों को लेकर कि कौन उनके गृह नगर में हर साल होने वाले सैफई महोत्सव में परफॉर्म करेगी—माधुरी दीक्षित से लेकर मल्लिका शेरावत, आलिया भट्ट तक और कौन नहीं.
तब तक, अंबानी बंधुओं, सहारा इंडिया परिवार के सुब्रत रॉय, बिरला और कॉरपोरेट जगत की तमाम नामी हस्तियों के साथ अपनी दोस्ती के बलबूते अमर सिंह ने ‘कॉरपोरेट फिक्सर’ या ‘कॉरपोरेट ठाकुर’ का तमगा अपने नाम कर लिया था. सेंट जेवियर्स और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ, कोलकाता के पूर्व छात्र अमर सिंह भले ही धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने में दक्ष न हों लेकिन उन्होंने कॉरपोरेट जगत और बॉलीवुड दोनों में—दिल्ली और मुंबई के संभ्रात वर्ग के बीच अपने अलग ही अंदाज में उन्होंने गहरी पैठ बना ली थी.
2005-06 के लीक ऑडियो टेप, जिसे अमर सिंह ने ‘गलत’ और ‘छद्म’ करार दिया था, में उस समय के एक जानमाने उद्योगपति को ‘बहन…’ जैसे आपत्तिजनकर शब्दों का इस्तेमाल करते सुना जा सकता है और उसमें बॉलीवुड अभिनेत्रियों को लेकर अमर सिंह के बारे कहा जा रहा है कि कैसे वह उन्हें आसानी से अपने नियंत्रण में कर सकते हैं.
यह उस समय अमर सिंह के कैरियर का शिखर बिंदु नहीं था, जिन्हें पूरी राजनीतिक बिरादरी को ऑडियो और विजुअल टेप के माध्यम से स्टिंग ऑपरेशन के बारे अवगत कराने का श्रेय दिया जा सकता है.
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राजनीतिक प्रभाव
यद्यपि भारत-अमेरिका परमाणु करार के लिए कई दावेदार, खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, हैं मगर इसकी अहमियत समझने का श्रेय लेने का दावा यदि कोई कर सकता है तो वह यह अमर सिंह ही थे—यह बात उनके आलोचक भी मानते हैं.
वह तथाकथित ‘कॉरपोरेट फिक्सर’ही था जो चार वामपंथी दलों के समर्थन वापस लेने के बाद विश्वासमत के दौरान तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की जीत सुनिश्चित करने में खेवनहार बना.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण, जो उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री थे और एआईसीसी के एक महासचिव भी थे, घंटों पार्टी मुख्यालय में बैठे रहते थे और घर जाने से कतराते थे. एक बार, यह संवाददाता रात 10 बजे कांग्रेस मुख्यालय पहुंचा और यह देखकर काफी आश्चर्यचकित हुआ कि चह्वाण उस समय भी एस्बस्टस की छत वाले अपने कार्यालय में बैठे हुए थे.
संवाददाता ने जब यह पूछा, ‘क्या हो रहा? आप अभी तक यहां क्या कर रहे हैं? तो चह्वाण का जवाब था, ‘मैं क्या कर सकता हूँ? अमर सिंह शाम 6 बजे से मेरे घर में बैठे हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कहां जाऊं?’
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) उस समय मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के एक मामले की जांच कर रही थी. पीएमओ में राज्य मंत्री के नाते सीबीआई उस समय चह्वाण के अधीन आती थी.
राजनीतिक पुनरुद्धार जो नहीं होना चाहिए था
अमर सिंह को कभी इस सबसे दूर नहीं किया जा सकता था, अगर उनकी किडनी ही फेल न हुई होती तो, जिसके कारण ही अंततः शनिवार को उनकी मौत हो गई.
अखिलेश यादव के सपा की कमान संभालने के बाद ही उनकी राजनीतिक चमक-दमक फीकी पड़ने लगी थी. उसी समय उनकी किडनी भी उनके लिए परेशानी का सबब बनने लगी थी. दो मोर्चों पर जूझते हुए अमर सिंह ने अपने राजनीतिक पुनर्जीवन के लिए पहले खुद की पार्टी बनाई और फिर 2014 के आम चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीतने की असफल कोशिश की.
2016 में वह सपा के समर्थन से फिर राज्यसभा पहुंचने में कामयाब रहे, लेकिन उनके पुराने दोस्त दिन-ब-दिन कमजोर पड़ रहे थे–उम्रदराज मुलायम सिंह यादव पार्टी पर नियंत्रण खो रहे थे, सुब्रत रॉय अदालती मामलों में उलझे थे, कभी बड़े उद्योगपति रहे अनिल अंबानी खुद की छाया मात्र रह गए थे, और अमिताभ बच्चन भी गुजरे जमाने के सुपरस्टार की श्रेणी में आ गए थे.
इलाज के लिए बार-बार सिंगापुर जाने के बीच एक बार जब अमर सिंह दिल्ली में थे तो उन्होंने एक पार्टी में कांग्रेस के एक पूर्व सांसद से कहा था, ‘तुम लोग मुझे फिक्सर समझते हो पर यही राजनीति है.’ पूर्व सांसद ने एक बार उनकी बेबाकी की सराहना करते हुए इस संवाददाता से कहा था, ‘सही ही कह रहा था.’
खैर, ये तथाकथित ‘कॉरपोरेट फिक्सर’ यह देखकर खुश ही होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यह कहते हुए उनके परिवार के प्रति संवेदना जताई कि वह एक ‘ऊर्जावान व्यक्ति’ थे जो जिंदगी के तमाम क्षेत्रों में अपनी दोस्ती के लिए ख्यात थे.
राजनीतिक, कॉरपोरेट और बॉलीवुड जगत में उनकी दोस्ती ने अमर सिंह को वो बनाया जो वह थे. कुछ ऐसे राजनेता हैं जो आज के समय में ऐसा नहीं करना चाहेंगे.
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