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Sunday, 17 November, 2024
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‘ऑनर किलिंग’ की भेंट चढ़ती लड़कियों की जिंदगियांः राजस्थान और हरियाणा की दर्दनाक दास्तान

आमतौर पर ‘ऑनर किलिंग’ की घटना तो खबर बनती है, लेकिन उन प्रेमी जोड़ों की कहानी, उनके परिवारों, और प्रेम की वजह से होने वाली क्रूर हत्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है.

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दौसा/जोधपुर/रोहतक/झज्जर: ‘जीजाजी’ ही अब निशा के पति हैं. निशा के बालों में ताजा सिंदूर लगा है. वह चारपाई पर बैठी हुई है. वह खुद को एक वर्जित और बेपरवाह प्रेम संबंध से जोड़ती हैं. यह उनकी नहीं, उनके जीजाजी की कहानी है. उनके लिए जीजाजी का महत्व जीवन बीमा से ज़्यादा नहीं है.

पिछले साल निशा की बहन पिंकी ने जो कुछ किया उसकी उम्मीद न थी. वह अपने पति को छोड़कर अपने दलित प्रेमी के साथ घर छोड़कर चली गई. लेकिन, इसके बाद जो हुआ उसमें कुछ नया नहीं था. पिंकी के पिता ने उसे ढ़ूंढ निकाला और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी. इस घटना से निशा दुखी थी, लेकिन उसे आश्चर्य नहीं हुआ.

निशा कहती हैं, ‘हमें प्यार करने की इजाजत नहीं है. दीदी छोटी जाति वाले के प्यार में पड़ गई. उसे मरना ही था. मैं मरना नहीं चाहती हूं.’ अपनी बहन की मौत के तुरंत बाद, 16 साल की निशा की शादी ‘मुआवजे’ के तौर पर उसके जीजा से कर दी गई. वह कहती हैं, ‘जीजाजी ही अब मेरे पति हैं.’

पिकीं के माता-पिता के घर में दीवारों पर शादी के दौरान की गईं सजावटें आज भी वैसी ही हैं | तुनश्री पाण्डेय | दिप्रिंट

यह निशा की कहानी नहीं है. यह पिंकी और उन जैसी दूसरी लड़कियों की कहानी है, जो आज भी जेंडर और जाति की वजह से होने वाली हिंसा की वजह से जान गंवाती हैं.

इस तरह की कथित ‘ऑनर किलिंग’ के मामले अक्सर खबर बन जाते हैं. प्रेमी जोड़ों को जलाकर मार दिया जाता है. महिलाओं की गला रेतकर हत्या कर दी जाती है. इन सबके बावजूद, पुलिस, गांव की अदालत के गलत फैसले के सम्मान में जानबूझकर कुछ नहीं करती.

इन ‘घटनाओं’ और इनसे ‘जुड़े आंकड़ों’ के पीछे इनकी कहानियां दबी रह जाती हैं. उन प्रेमी जोड़ों के बारे में, वे किस समुदाय से आते थे, जो उनके साथ किया गया, खासकर वे पीड़ित महिलाएं जिन्हें जुलियट नाम दे दिया जाता है, और उनका प्यार का पहला बसंतउनके परिवार का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है. इन सभी बातों का आमतौर पर जिक्र नहीं होता है.

उन प्रेमी जोड़ों के बारे में, यह कि वे कैसे थे, उन्होंने कितना कुछ झेला, खासकर जिस महिला ने यह सब झेला, उन्हें हीर कहा गया, उन्होंने अपने पहले प्यार में क्या गंवाया और परिवार में उनके दुश्मन कौन थे.

दिप्रिंट राजस्थान और हरियाणा की इन वारदातों को लेकर आया है. इन राज्यों में इज्जत की धारणा परंपरा, जाति और पितृसत्ता से गहराई से जुड़ी हुई है. यह कई लोगों के लिए जिंदगी और स्वतंत्रता से बढ़कर है. इज्जत के नाम पर खून बहाने के लिए तैयार रहने वाले लोगों के लिए कोर्ट के फैसले, पुलिस की सुरक्षा देने का आदेश और सेफ हाउस, बस एक असुविधा भर हैं.


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पिंकी और रोशन की डर, विद्रोह, और मौत की कहानी

रोशनलाल महावर को नहीं पता था कि उसे पहली नजर में प्यार हुआ या नहीं, लेकिन पहली बार जब वह और पिंकी सैनी राजस्थान के दौसा के जलराबस गांव के गर्ल्स स्कूल के बाहर मिले थे, वह अहसास खास था.

यह साल 2018 की बात थी. तब पिंकी की उम्र 17 साल थी. रोशन यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में लगा था. उसने जिम भी ज्वाइन की थी. वह दुनियादारी समझता था.

अगले साल तक उनके बीच बातचीत शुरू नहीं हो पाई थी. लेकिन, दौसा की धूल भरी सड़कों पर हर रोज उनकी आंखें चार होती थीं और वे एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठते थे. तब तक उन्होंने, एक दूसरे को अपना नंबर नहीं दिया था और न ही सोशल मीडिया पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी.

रोशन कहते हैं, ‘पिंकी को फेसबुक के बारे में भी पता नहीं था और न ही उसके पास कोई फ़ोन था.’
स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद, हालात तेजी से बदले. पिंकी और रोशन के बीच बातचीत शुरू हुई और वे गांव के छोटे-सी बेकरी में मिलने लगे.

रोशन को अच्छी तरह से याद है कि शुरू में वह पहचाने जाने से कितना डरती थी. वह खुद को बुरके में छिपा लेती थी, ताकि उसे कोई पहचान नहीं पाए.

पिंकी और रोशन । फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

रोशन ने उससे कहा कि उसे ये जोखिम बिल्कुल भी नहीं लेना चाहिए. लेकिन, पिंकी ने रोशन की बात को अनसुना कर दिया. उसने रोशन से कहा कि वह जो कुछ भी कर रही है, अपने प्यार के वास्ते कर रही है, और इतनी जोखिम उठाना तो बनता है.

समय के साथ इन प्रेमी जोड़ों का प्यार परवान चढ़ता रहा. साल 2020 में उसने आत्मघाती कदम उठाने का फैसला किया. उसने अपने माता-पिता को बताया कि वह प्यार करती है और शादी करना चाहती है.

जैसा कि अनुमान था इतना सुनते ही उसके माता-पिता अचानक से गुस्से से आग-बबूला हो गए. पिंकी के पिता ने उसकी पिटाई की और फरमान सुनाया कि वह अब आगे नहीं पढ़ेगी. आखिरकार, उसने एक ‘नीच जाति के लड़के’ से प्यार करके अपने परिवार को शर्मिंदा जो किया था.

अब इन प्रेमी जोड़ों के लिए एक-दूसरे से मिलना मुश्किल हो गया. पिंकी पर हमेशा उसके परिवार वाले नजर रखते थे. लेकिन, इन जोड़ों ने इन पाबंदियों के बीच भी रास्ता निकाल लिया था. वे पार्क, दुकानों के बाहर और राह चलते एक दूसरे से नजरें मिला ही लेते थे.

फरवरी, 2021 में पिंकी के पिता ने उसे बताया कि परिवार ने उसके लिए ‘योग्य’ लड़का ढ़ूंढ लिया है और उसकी शादी कुछ दिनों में कर दी जाएगी. इस पूरे मामले में उससे कोई राय नहीं ली गई. पिंकी ने शादी तो की, लेकिन उसने विरोध करने का मन बना लिया था.

शादी के एक हफ्ते बाद वह दौसा आ गई और वह रोशन के साथ भाग गई. दोनों को पता था कि यह कदम उठाने के बाद, मदद लिए बिना उनका चैन से रहना संभव नहीं है.

प्रेमी जोड़े इसके तुरंत बाद जयपुर पहुंचे और एक वकील की मदद से राजस्थान हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई. कोर्ट ने इस मामले में पुलिस को प्रेमी जोड़े की सुरक्षा देने का आदेश दिया. पिंकी और रोशन अगर जयपुर में रुक गए होते, तो इस कहानी का अंजाम कुछ और होता. लेकिन, दोनों एक मार्च को दौसा वापस लौट गए. रोशन रोते हुए कहते हैं, ‘बस एक गलती हो गई, दौसा वापस नहीं आना चाहिए था.’

जब रोशन अपने घर पर पिंकी के साथ पहुंचा, उसके कुछ घंटों के बाद ही मुश्किलें शुरू हो गईं. रोशन के पड़ोसी उसी जाति के थे जिस जाति की पिंकी थी. उन्होंने पिंकी को देख लिया और इसके बारे में पिंकी के माता-पिता को बता दिया.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद, उस समय पुलिस ने सुरक्षा नहीं दी, जब 40 से 50 लोगों की भीड़ रोशन के घर के पास जमा हो गई और पिंकी को पकड़कर वापस ले गई.

रोशन कहते हैं, ‘मैं सभी से नहीं लड़ सका, लेकिन मैंने कोशिश की थी.’ उन्होंने आखिरी बार पिंकी को तब देखा था, जब उसे उसके पिता के घर ले जाया जा रहा था. वह उसके बाद कभी उसे देख नहीं पाए. पिंकी के पिता ने तीन मार्च, 2021 को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि ‘इज्जत’ की खातिर उन्होंने अपनी बेटी की गला घोंटकर हत्या कर दी.

रोशन के घर से पिंकी का गांव (रामकुंद) पांच किलोमीटर दूर है. यहां जिंदगी फिर से चल पड़ी है. उसके पिता जेल में है. उनकी मां फिलहाल बेल पर रिहा हैं, उन पर अपहरण करने का आरोप है. इस परिवार ने एक और उत्सव मनाया जब निशा की शादी उसके जीजाजी से हुई.

पिंकी की मां से यह पूछे जाने पर कि जो कुछ भी हुआ क्या उन्हें इसका अफसोस है. इसके जवाब में वह कहती हैं, ‘हमने उस पर विश्वास किया, और उसने हमारे साथ क्या किया. निचली जाति के मर्द के साथ भागकर उसने हमारी इज्जत खराब कर दी.’

उसकी मां कहती हैं कि पिंकी मौत ‘उसके भाग्य में लिखा था.’ वह कहती हैं, ‘उसे छोड़ देते तो क्या हमें जीने देते समाज वाले.’

पिंकी की मां मानती है कि उसके पति ने बेटी को मारकर कुछ भी गलत नहीं किया । तनुश्री पाण्डेय । दिप्रिंट

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वह प्यार के लिए पुलिस बन गई, फिर भी बच नहीं पाई

किशोर उम्र में सरोज विरथ को जोधपुर में अपने चाचा के घर जाना पसंद था. उसके चाचा का घर ओसियां गांव था, जो उनके घर से ज्यादा दूर नहीं था. 2010 के बाद, उनके चाचा के घर के पास रहने वाला हेमंत मोहनपुरिया उन्हें अच्छा लगता था. वह उसी की उम्र का था.

उस समय बात करने के लिए उनके पास मोबाइल फोन नहीं था. वे हर साल, पांच दिनों के लिए मिलते थे. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, सरोज और हेमंत ने एक ही कॉलेज में पढ़ने के लिए, सुनहरे सपने संजोये.

हालांकि, ऐसा नहीं हो सका. बहुत मनाने के बाद सरोज के माता-पिता मुश्किल से जोधपुर नेशनल यूनिवर्सिटी की दूरस्थ शिक्षा में दाखिला दिलवाने को राजी हुए. हेमंत ने भी बीए की डिग्री के लिए, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में प्रवेश लिया.

इस बीच, वे आपस में मिलते रहे. सरोज अपनी परीक्षा के लिए जोधपुर आती थी, तब वे मिल पाते थे. हेमंत बताते हैं कि, ‘हम पार्कों में जाया करते थे, क्योंकि हममें से किसी के पास रेस्तरां या होटल में जाने के लिए पैसे नहीं थे….हम सार्वजनिक जगहों पर बैठते और एक-दूसरे को देखते हुए समय बिताते.’

साल 2016 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, सरोज और हेमंत ने एक-दूसरे से शादी करने के फैसले की बात सबको बताने का निर्णय लिया. हेमंत के परिवार वाले तो मान गए, लेकिन सरोज के परिजन राजी नहीं हुए. हेमंत और सरोज दोनों अनुसूचित जाति से आते हैं. हालांकि अनुसूचित जाति में भी कई जातियां हैं.

हेमंत का परिवार रेगर जाति से था. वहीं, सरोज का परिवार मेघवाल जाति से आता था. सामाजिक व्यवस्था में मेघवाल जाति को रेगर से एक पायदान ऊपर माना जाता है. इसलिए, सरोज एक ‘निम्न जाति’ के व्यक्ति से शादी नहीं कर सकती थी, और उसके इस अपराध के लिए उसे पीटा गया और प्रताड़ित किया गया.

सरोज और हेमंत । फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

हालांकि, सरोज मजबूत बनी रही और पुलिस अधिकारी बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए पढ़ाई किया, ताकि उसे अपना पति चुनने की स्वतंत्रता मिल सके.

साल 2017 में, उसने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल बनने के लिए परीक्षा पास की और जोधपुर में महिला स्टेशन पर तैनात हुई. इस बीच, हेमंत सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए जयपुर शिफ्ट हो गया.

हेमंत कहते हैं, ‘हमारे पास पुराने जमाने वाला टॉर्च वाला छोटा फोन था और हम रात भर बातें करते थे, क्योंकि सरोज अपने भाई के साथ रहती थी, और वह अकेला सोता था.’ ‘उसे सुबह ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करनी होती थी, लेकिन वह देर रात मुझसे प्यार भरी बातें करती थी.’

इस नाजुक रिश्ते में 2018 में तब परेशानियां आने लगीं, जब सरोज के परिवार वालों ने उस पर एक ऐसे व्यक्ति से शादी करने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया था, जिससे उसकी कथित तौर पर बचपन में ही शादी हो गई थी. सरोज चुप नहीं रही.

उसी साल दिसंबर में, उसने राजस्थान राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई. आयोग ने पुलिस से उसे सुरक्षा देने को कहा.

सरोज ने भाई का घर छोड़ दिया, और सेफ हाउस में चली गई. उसका भाई एक पुलिस अधिकारी है. इसकी वजह से उसने हेमंत को जोधपुर से दूर रहने की चेतावनी दी, क्योंकि उसे डर था कि वहां उसकी जान को खतरा होगा.

27 साल के हेमंत कहते हैं, ‘हमने सोचा था कि हमें साथ रहने के लिए पूरी ज़िंदगी मिल जाएगी, और हमें बस कुछ समय के लिए संघर्ष करने की ज़रूरत है…हम उस नियति को नहीं जानते थे जो हमारा इंतजार कर रही थी.’

जनवरी 2019 में, सरोज के भाई ने हेमंत के खिलाफ एक FIR दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने सरोज का अपहरण कर लिया है. उसे अदालत में निर्दोष साबित करने के लिए सरोज को सबके सामने आना पड़ा. सेफ हाउस से बाहर निकलने के लिए इतना काफी था और अब उसने अदालत जाकर मजिस्ट्रेट के सामने अपने माता-पिता के खिलाफ बयान दिया.

हालांकि, एक हफ्ते बाद ही सरोज के माता-पिता ने उसे जोधपुर में महिला थाने के बाहर से अगवा कर लिया और जबरदस्ती सरोज को वापस ओसियां ले गए.

हेमंत कहते हैं, ‘मैं फोन पर सरोज से बात कर रहा था, अचानक मुझे उसके चीखने की आवाज आई…और इसके बाद उसका फोन बंद हो गया. यह आखिरी बार था जब मैंने उसकी आवाज सुनी थी.’ चार दिनों के बाद सरोज की लाश ओसियां में उसके घर में फांसी से लटकती हुई मिली.

पुलिस ने सरोज के माता-पिता पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है. लेकिन, हेमंत का आरोप है कि यह ‘ऑनर किलिंग’ का मामला है. मामले में अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं. यह मामला जोधपुर सत्र न्यायालय में विचाराधीन है.

मैं किसी और से प्यार नहीं कर सकता, मेरे लिए इस अपराध बोध के साथ जीना मुश्किल है कि मुझसे प्यार करने वाली लड़की की हत्या, मेरी वजह से, मेरी जाति की वजह से कर दी गई है…. मैं कभी भी खुद को माफ नहीं कर सकता हूं. मैं तो बस एक जिंदा लाश हूं. मैं तो उसी के साथ मर गया था.’


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‘अगर तुमने दलित से शादी करने की बात सोची भी तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा’

भारत के कई हिस्सों में प्यार होना एक बुरी खबर की तरह है. आंकड़े पूरी तस्वीर बयान करें यह ज़रूरी नहीं है, क्योंकि उत्पीड़न और हत्या के ज़्यादातर मामले दर्ज नहीं किए जाते हैं.

पिछले साल भारत सरकार ने लोकसभा में कहा कि देश में 2017 से 2019 के बीच 145 ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं हुई हैं. हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी 2020 की ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट के मुताबिक, ‘सिर्फ़’ ‘ऑनर किलिंग’ की वजह से 25 हत्याएं, ‘जातिवाद’ की वजह से 27 हत्याएं, और ‘अवैध संबंध’ की वजह से 1558 हत्याएं हुई हैं. वास्तव में, आमतौर पर हत्या की ये वजहें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं.

पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ (सरकार) को ‘अपने माता-पिता और रिश्तेदारों की मर्जी के खिलाफ शादी करने वाले’ जोड़ों या लिव-इन-रिलेशन में रहने की इच्छा रखने वालों के लिए सेफ हाउस बनाने का सुझाव दिया था. कोर्ट ने कहा कि दूसरे अपील के साथ अगर किसी ऐसे याचिकाकर्ता की याचिका मिल गई है जिनके जीवन या स्वतंत्रता पर तुरंत खतरा नहीं है, उन्हें भी सुरक्षा दी जाएगी.

हरियाणा के रोहतक में एक सेफ हाउस । तनुश्री पाण्डेय । दिप्रिंट

कई मामलों में, ‘अंतर्जातीय’ प्रेम संबंध की वजह से हत्याएं होती हैं और खाप पंचायतें इस मामले में बर्बर फैसले लेती हैं. खाप पंचायतें गांव की सामुदायिक काउंसिल होती हैं. इनका देश के कई हिस्सों में जबरदस्त प्रभाव है. इनके फैसले कानूनी नहीं होते.

राजेश और कुसुम*, दोनों की उम्र 20 साल से ज़्यादा होगी. सोनीपत के राजेश दलित थे. कुसुम जाट समुदाय से आती थी और वह रोहतक की रहने वाली थी. दोनों हरियाणा में रहते हैं. लेकिन, सच है कि इन दोनों के बीच प्यार की वजह से, इनकी जान खतरे में आ गई. हरियाणा महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में सबसे खराब राज्य है. इसका एक पहलू यह है कि महिलाओं को जाति की ‘प्रतिष्ठा’ के तौर पर देखा जाता है. जब वे किसी प्रतिबंधित समुदाय के किसी व्यक्ति के साथ प्यार करती हैं, तो उसे पूरे कबीले और वंश के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है.

कुसुम और राजेश 2018 में अपने थियेटर क्लास में एक-दूसरे से मिलते थे. प्यार में पड़ने से पहले उन्होंने जाति जानने की कोशिश नहीं की. वे शादी के बाद छिपकर रह रहे हैं. कुसुम पेट से है और इसकी वजह से खतरा और भी बढ़ गया है.

वह कहती हैं, ‘मेरी रातों की नींद गायब हो गई है, क्योंकि मुझे डर है कि मेरे माता-पिता मुझे और मेरे बच्चे को मार डालेंगे.’

कुसुम जब इस शहर में आई थीं और थियेटर ग्रुप ज्वाइन किया था. उस समय को याद करते हुए वह कहती हैं कि उनके पिता ने उसे दी गई स्वतंत्रता का ‘दुरुपयोग’ नहीं करने को लेकर चेतावनी दी थी. वह कहती हैं कि उसने जिस ग्रुप को ज्वाइन किया था वह सामाजिक बुराइयों के खिलाफ काम करता था.

जब राजेश के साथ उसके रिश्ते आगे बढ़े, उसने इसे स्वीकार करने के लिए अपने परिवार को मनाने की कोशिश भी नहीं की. वह कहती हैं, ‘बचपन से ही मैं देखती आ रही हूं कि परिवार की प्रतिष्ठा के नाम पर लड़कियों की हत्या की गई हैं….. मुझे लगा कि समय बदल गया है लेकिन मैं गलत थी. मैंने 2019 में एक बार अपने पैरंट्स को इसके बारे में इशारा किया था लेकिन मेरे पिता ने मुझे थप्पड़ मारने के बाद कहा था, ‘अगर तुम किसी दलित से शादी करने की बात भी अपने मन में लाई, तो मैं तुम्हें मार डालूंगा.’

कुसुम और उसके पति दूसरे राज्य में रहते हैं, लेकिन आज भी वे कुछ नहीं कर सकते हैं. वे इस आशंका में जीते हैं कि कहीं उनके अतीत की वजह से उन्हें कोई बड़ी मुसीबत न झेलनी पड़े.

‘सरकार और अदालत हमारे समाज के नियमों को नहीं बदल सकतीं’

खाप पंचायतों के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है. सरकार इन्हें मान्यता नहीं देती है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में इनके बारे में कहा था कि शादी के मामले में इनकी दखलअंदाजी ‘पूरी तरह से गैरकानूनी’ है. इसके बावजूद, हरियाणा सहित देश के कई हिस्सों में खाप पंचायतों को व्यापक स्तर पर नैतिक मान्यता मिली हुई है.

62 साल की लक्ष्मी देवी जाट समुदाय से आती हैं. विधवा होने की वजह से आर्थिक तंगी के हालात में बेटी के जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने उसे अपने रिश्तेदारों को सौंप दिया. जब वह लड़की 23 साल की हुई, तो एक दलित लड़के से प्यार कर बैठी और 2019 में उससे कोर्ट में शादी कर ली. उनके दत्तक माता-पिता ने उसे खोज निकाला और भाड़े के गुंडे को उसके पास भेजा. लक्ष्मी की बेटी और दामाद को दिन-दहाड़े साल 2020 में जान से मार दिया गया.

लक्ष्मी को पता है कि ये हत्याएं क्यों ‘की गई हैं’; अगर उनकी बेटी के दत्तक माता-पिता ने उसकी हत्या नहीं की होती, तो उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता. उन्हें ‘खुद से उदाहरण बनना’ था, ताकि समुदाय की कोई दूसरी लड़की ‘निम्न जाति’ के लड़के के साथ नज़रें मिलाने की हिम्मत न करे.

लक्ष्मी कहती हैं, ‘अब भी पंचायत की ओर से दबाव है… लोगों की सोच नहीं बदली है. अपने से निचली जाति में शादी करना अब भी पाप समझा जाता है और यही वजह है कि हमें अपने ही बच्चों की खुद जान लेनी पड़ती है. हमें बच्चों के लिए दुख है, लेकिन मैं कुछ हूं ही नहीं.’

हरियाणा के झज्जर जिले के एक खाप सदस्य ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि ‘समय बदल रहा है’ लेकिन, खाप का रुतबा अब भी कायम है.

वह कहते हैं, ‘हम लड़कियों और लड़कों को बाहर निकलने और शिक्षा प्राप्त करने से नहीं रोक सकते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें उनकी जाति के बाहर किसी से शादी करने से नहीं रोकेंगे. इस तरह समाज चलता है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता, यहां तक कि सरकार या अदालत भी नहीं.’

वह कहते हैं, ‘अगर हिंसा से नहीं, तो हम बच्चों और उनके परिवार के मन में भय पैदा करके इस सिस्टम को बनाए रखेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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