scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमदेशबंगाल में धनकड़ को नहीं मिला यूनिवर्सिटी में न्यौता, फिर छिड़ी ममता से जंग

बंगाल में धनकड़ को नहीं मिला यूनिवर्सिटी में न्यौता, फिर छिड़ी ममता से जंग

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बीते छह-सात महीनों में जितनी सुर्खियां बटोरी हैं उतनी शायद उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक करियर में बटोरी नहीं होंगी.

Text Size:

पश्चिम बंगाल : बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और ममता सरकार के बीच जारी टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. उत्तर बंगाल में स्थित कूचबिहार पंचानन वर्मा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में न्योता नहीं मिलने की वजह से धनखड़ ने नाराजगी जताई है. उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा है, ‘कूचबिहार पंचानन बरमा विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह 14 फरवरी को होगा. मंत्री पार्थ चटर्जी, गौतम देब, रवीन्द्र नाथ घोष और बिनय कृष्ण बर्मन उसमें आमंत्रित हैं. चांसलर, जिसे अध्यक्षता करने का अधिकार है. उसे इसकी कोई जानकारी नहीं है. हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं?’ वे यहीं तक नहीं रुके. चांसलर के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर डा. देव कुमार मुखर्जी को कारण बताओ नोटिस भेज कर 15 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है.

 

 

धनखड़ ने बीते साल 30 जुलाई को राज्यपाल के तौर पर कार्यभार संभाला था. लेकिन, उसके बाद अब तक शायद ही ऐसा कोई दिन बीता है जब किसी न किसी मुद्दे पर दोनों के बीच विवाद नहीं हुआ हो. वैसे, पश्चिम बंगाल में राजभवन और राज्य सचिवालय के विवादों को इतिहास लंबा रहा है. लेकिन, ताजा विवादों ने पहले के तमाम मामलों को पीछे छोड़ दिया है. अबकी यह टकराव चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

धनखड़ ने बीते छह-सात महीनों में जितनी सुर्खियां बटोरी हैं उतनी शायद उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक करियर में नहीं बटोरी होंगी. जगदीप धनखड़ ने बीते साल जुलाई में यहां राज्यपाल के तौर पर कार्यभार संभाला था. वैसे पिछले राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के कार्यकाल के आखिरी दिनों में सरकार के साथ उनके रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे. लेकिन नए राज्यपाल के साथ तो उनके शपथ लेने के महीने भर बाद से ही टकराव शुरू हो गया था. शपथग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल के बीच काफी सद्भाव नजर आया था. लेकिन वह पहला मौका था. उसके बाद दोनों लोग औऱ एक बार साथ नजर आए थे. वह मौका था ममता के घर आयोजित कालीपूजा का. तब राज्यपाल सपत्नीक उनके घर गए थे. लेकिन उसके बाद इन दोनों के बीच विवादों का सिलसिला लगातार तेज हुआ है.

हालत यह है कि एक विवाद थमता भी नहीं तब तक दो नए विवाद खड़े हो जाते हैं. ताजा मामले में विधानसभा के बजट अधिवेशन के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण का सीधा प्रसारण नहीं होने पर भारी नाराजगी जताई है. उन्होंने बाकायदा अपने बयानों और ट्वीट के जरिए इन फैसलों पर सवाल उठाए हैं.

बीते सप्ताह बजट अधिवेशन के पहले दिन अपने अभिभाषण का सीधा प्रसारण नहीं होने और वित्त मंत्री अमित मित्रा के बजट भाषण का प्रसारण होने के बाद धनखड़ ने अपने एक बयान में इसे अघोषित सेंसरशिप करार दिया था. उन्होंने इसे राज्य के संवैधानिक प्रमुख के प्रति असहिष्णुता करार दिया था. वैसे, अगर धनखड़ के अभिभाषण का सीधा प्रसारण नहीं हुआ तो इसके पीछे भी सरकार की एक आंशका थी. दरअसल, सरकार ने उनके लिए जो अभिभाषण तैयार किया था धनखड़ ने उसमें संशोधन की मांग उठाई थी. शायद वे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर आफ सिटींजस (एनआरसी) पर राज्य सरकार के रुख से सहमत नहीं थे. लेकिन, सरकार ने साफ कर दिया था कि वही अभिभाषण फाइनल है और उसमें कोई फेरबदल संभव नहीं है. उसके बाद राज्यपाल ने कहा था कि वे अपने अभिभाषण से इतिहास बनाएंगे. ऐसे में सरकार को अंदेशा था कि अगर सीधे प्रसारण के दौरान राज्यपाल ने अभिभाषण के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया या फिर अपने मन से कुछ नई बातें जोड़ दीं तो उसकी किरकिरी हो जाएगी. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ और धनखड़ ने सरकार की ओर से तय अभिभाषण ही पढ़ा था.

उसके दो दिनों बाद ही कूचबिहार स्थित पंचानन बरमा विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह के आयोजन में शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी समेत तृणमूल कांग्रेस सरकार के चार मंत्रियों को आमंत्रित करने की खबरें आईं. लेकिन बतौर चांसलर राज्यपाल को बुलाना तो दूर उनको न्योता तक नहीं दिया गया था. इससे पहले एनआरसी और सीएए के विरोध की वजह से छात्रों के एक गुट ने धनखड़ को कलकत्ता और जादवपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भी शामिल होने से रोक दिया था और ‘गो बैक’ के नारे लगाए थे. जादवपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नोबेल पुरस्कार विजेता डा. अभिजीत बनर्जी को मानद डाक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया जाना था. लेकिन, छात्रों के भारी विरोध की वजह से राज्यपाल को वहां से बैरंग लौटना पड़ा था.

यहां इस बात का जिक्र जरूरी है. राज्य सरकार ने बीते नौ दिसंबर को विधानसभा में एक संशोधन विधेयक पारित कर चांसलर के तौर पर राज्यपाल के अधिकारों में भारी कटौती कर दी थी. इसमें कहा गया था कि बतौर चांसलर अगर उनको राज्य सरकार के किसी विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर से कुछ कहना है तो उनको शिक्षा विभाग के जरिए ही ऐसा करना होगा. सरकार अगर उचित समझेगी तो इस मामले को आगे बढ़ाएगी. धनखड़ ने उसके बाद जब विभिन्न सरकारी विश्वविद्यालयों के वाइस-चांसलरों की बैठक बुलाई तो सरकार ने यह कह कर मना कर दिया कि इसकी कोई जरूरत नहीं है.


यह भी पढ़ें : दिल्ली के नतीज़ों से बंगाल भाजपा में खलबली, आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्लान बी पर कर सकती है काम


तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि बंगाल का राजभवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शाखा कार्यालय बन गया है. इससे पहले बीते साल के आखिर में एक अभूतपूर्व घटना में राज्यपाल की ओर से कई प्रस्तावित विधेयकों को मंजूरी नहीं मिलने की वजह से विधानसभा दो दिनों के लिए स्थगित कर दी गई थी. लेकिन, राजभवन की ओर से जारी एक बयान में विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के लिए सरकारी विभागों को जिम्मेदार ठहराया गया था. देश में संभवतः वह पहला मौका था जब राज्यपाल की हरी झंडी नहीं मिलने की वजह से विधानसभा का सत्र स्थगित किया गया हो. उसके बाद पहले से सूचना देने के बावजूद राज्यपाल जब विधानसभा पहुंचे तो उनके लिए तय गेट पर ताला लगा था. तृणमूल कांग्रेस की ओर से विधानसभा की कार्रवाई अचानक स्थगित होने का आरोप लगाए जाने के बाद धनखड़ ने कहा था कि वे न तो रबड़ स्टांप हैं और न ही पोस्ट ऑफिस.

बीते साल सितंबर में जादवपुर विश्वविद्यालय में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियों के साथ मारपीट और उनके घेराव की घटना के बाद राज्यपाल के उनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में जाने के बाद ही राजभवन औऱ सरकार में कड़वाहट का दौर शुरू हुआ था. उसको बाद कभी जिलों के दौरे के लिए हेलीकाप्टर मांगने तो कभी प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक बुलाने के मुद्दे पर सरकार से टकराव तेज होता रहा है. कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर धनखड़ की टिप्पणियों ने भी सरकार औऱ तृणमूल कांग्रेस के विवाद में आग में घी डालने का काम किया. यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता राजभवन के भाजपा/संघ दफ्तर में बदलने और धनखड़ पर भाजपा नेता की तरह काम करने के आरोप लगाते रहे हैं.

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और संसदीय कार्यमंत्री पार्थ चटर्जी कई बार पक्षपात करने का आरोप लगा चुके हैं. लेकिन राज्यपाल का दावा है कि उन्होंने अब तक जो भी किया है संविधान के दायरे में रह कर ही किया है.

दूसरी ओर, इस विवाद में भाजपा जहां धनखड़ के साथ खड़ी नजर आ रही है. वहीं, कांग्रेस और माकपा ने इस टकराव की आलोचना करते हुए इसके लिए दोनों पक्षों को दोषी ठहराया है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि सरकार जानबूझ कर राज्यपाल को निशाना बनाते हुए इस संवैधानिक पद की गरिमा कम करने का प्रयास कर रही है.

कांग्रेस नेता अधीर चौधरी तो राज्यपाल धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुलना सर्कस के जोकरों से कर चुके हैं. उन्होंने हाल में पत्रकारों से कहा था, ‘राजभवन और नवान्न (सचिवालय) के बीच सर्कस चल रहा है और इसका नेतृत्व दो जोकर कर रहे हैं.  सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, ‘राजभवन और सरकार के बीच जारी टकराव अब चरम पर पहुंच गया है. राज्य के विकास के हित में यह ठीक नहीं है.’

पहले भी हुए हैं टकराव

वैसे, पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का इतिहास काफी पुराना है. पहले भी यहां टकराव होते रहे हैं. अंतर यही है कि अबकी यह टकराव लगातार लंबा खिंच रहा है और इसके निकट भविष्य में थमने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं. राज्य के तत्कालीन राज्यपाल धरम वीर ने 21 नवंबर, 1969 को अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. वर्ष 1969 में मोर्चा की सरकार फिर सत्ता में लौटी. मंत्रिमंडल के गठन के बाद राज्यपाल के लिए जो अभिभाषण तैयार किया गया था उसके एक पैराग्राफ में धरम वीर की आलोचना की गई थी. धरम वीर ने अभिभाषण का वह हिस्सा पढ़ने से इंकार कर दिया था.

वर्ष 1977 में भारी बहुमत के साथ वाममोर्चा सरकार के सत्ता में आने के बाद भी राजभवन औऱ सरकार के बीच टकराव के हालात बने थे. तत्कालीन राज्यपाल बीडी पांडे के साथ वाममोर्चा के संबंध ठीक नहीं थे. केंद्र के साथ टकराव होने पर उसने पांडे को निशाना बनाया था. वर्ष 1984 में राज्यपाल बनने वाले अनंत प्रसाद शर्मा के साथ भी वाम मोर्चा के रिश्ते ठीक नहीं रहे. कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर के पद पर नियुक्ति के मुद्दे पर दोनों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी. शर्मा ने ऐसे उम्मीदवार संतोष भट्टाचार्य के नाम पर मुहर लगाई थी जो सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे था.

वर्ष 2007 में नंदीग्राम में हुई फायरिंग और हत्याओं की कड़े शब्दों में आलोचना करने की वजह से तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी को भी वाममोर्चा नेताओं की भारी नाराजगी का शिकार होना पड़ा था. गांधी के बाद राजभवन पहुंचने वाले पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के रिश्ते भी वाममोर्चा या तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ मधुर नहीं रहे.

वर्ष 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद राजभवन और राज्य सचिवालय में टकराव की यह परंपरा जस की तस रही. उत्तर 24 परगना जिले में दो गुटों के बीच सांप्रदायिक हिंसा के बाद तत्कालीन राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना करते हुए कानून व व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे. उसके बाद से सरकार और राजभवन के रिश्ते लगातार बिगड़ते रहे. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तब त्रिपाठी पर अपना अपमान करने का भी आरोप लगाया था. आखिर में हालयत यहां तक पहुंच गई कि ममता ने त्रिपाठी के विदाई समारोह में भी हिस्सा नहीं लिया. त्रिपाठी ने इस पर दुख भी जताया था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच अक्सर कुछ मुद्दों पर टकराव होते रहे हैं. लेकिन, मौजूदा हालात में यह टकराव लंबा खिंच रहा है. उत्तर बंगाल के एक कालेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे पन्नालाल सेनगुप्ता कहते हैं, ‘अब तक राज्यपाल और सरकार के बीच शायद ही किसी मुद्दे पर सहमति बनी हो. राज्यपाल के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस नेताओं के जवाबी हमले कई बार तो निजी स्तर पर उतर जाते हैं. दो महीने में सौ से ज्यादा स्थानीय निकायों के चुनाव और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह विवाद लोकतंत्र के हित में नहीं है.’

लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि आखिर यह विवाद थमेगा कैसे? दोनों पक्ष खुद के सही होने का दावा करते रहे हैं. राज्यपाल कहते हैं, ‘मैंने अब तक संविधान की लक्ष्मण रेखा पार नहीं की है.’ दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस उन पर सरकारी कामकाज में रोड़े लगाने और राजनेता की तरह काम करने का आरोप लगाती है. ऐसे में निकट भविष्य में राजभवन और सचिवालय के आपसी रिश्तों का छत्तीस से तिरसठ में बदलना टेढ़ी खीर ही है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

share & View comments