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Saturday, 21 December, 2024
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कल्याण सिंह- एक हिंदुत्व आइकन, ग़ैर-यादव OBC नेता जिसने UP में भगवा राजनीति को फिर से परिभाषित किया

दो बार के मुख्यमंत्री कल्याण न सिर्फ एक हिंदुत्व आइकन थे, बल्कि एक सबसे बड़े ग़ैर-दलित ओबीसी नेता थे, जिनका अपने समुदाय के साथ गहरा जुड़ाव था. सिंह का ताल्लुक़ लोध समुदाय से था, जो राज्य की आबादी का कम से कम 7 प्रतिशत हैं, और पश्चिमी यूपी के कई ज़िलों में प्रभाव रखते हैं.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने, जिनका एक लंबी बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया, उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की राजनीति को फिर से परिभाषित किया. सिंह उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जब 28 साल पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था.

दो बार के मुख्यमंत्री कल्याण न सिर्फ एक हिंदुत्व आइकन थे, बल्कि एक सबसे बड़े ग़ैर-दलित ओबीसी नेता थे, जिनका अपने समुदाय के साथ गहरा जुड़ाव था. सिंह का ताल्लुक़ लोध समुदाय से था, जो राज्य की आबादी का कम से कम 7 प्रतिशत हैं, और पश्चिमी यूपी के कई ज़िलों में प्रभाव रखते हैं.

बीजेपी का बढ़ती जातीय राजनीति को जवाब

1980 के दशक में मंडल राजनीति के दौरान, बीजेपी के आक्रामक हिंदुत्व अभियान की अगुवाई एलके आडवाणी कर रहे थे, लेकिन हिंदू पट्टी में कल्याण सिंह उसे नई ऊंचाइयों तक ले गए. इस बेल्ट में बढ़ती जातीय राजनीति का मुक़ाबला करने के लिए उन्हें आरएसएस ने चुना था. बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पहले हिंदुत्व राजनीति ऊंची जातियों के प्रभुत्व के इर्द-गिर्द घूमती थी, लेकिन कल्याण ने आकर उसे फिर से परिभाषित कर दिया. वो बीजेपी-आरएसएस के जाति और हिंदुत्व के मिश्रण का अवतार थे, जिससे भगवा पार्टी आख़िरकार राज्य में सत्ता के शिखर तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

कल्याण सिंह के क़रीबी एक वरिष्ठ यूपी बीजेपी नेता ने कहा कि हालांकि पीएम मोदी ख़ुद को एक ओबीसी लीडर कहते हैं, लेकिन हमारे पहले प्रमुख ओबीसी नेता कल्याण सिंह थे. वो एक ग़ैर-यादव ओबीसी थे, जिनका न केवल लोधा बल्कि दूसरे कई ओबीसी समुदायों से गहरा जुड़ाव था. कुम्हार, कश्यप, कुर्मी, मौर्य, तेली, साहू, और अन्य ओबीसी उन्हें सबसे बड़ा ओबीसी नेता मानते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि 90 के दशक में, ओबीसी समुदायों के बीच वो मुलायम से ज़्यादा लोकप्रिय थे. सूबे की कम से कम 20 प्रतिशत आबादी पर उनकी पकड़ थी. जब ये 20 प्रतिशत उच्च जाति के लगभग 15 प्रतिशत वोटों के साथ मिल गए, तो 90 के दशक में बीजेपी दो बार सत्ता में आई.

एक अध्यापक जिसका अपने चुनाव क्षेत्र से ज़बर्दस्त जुड़ाव था

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले में, अतरौली गांव में 5 जनवरी 1932 को जन्मे सिंह, अतरौली के रायपुर इंटर कॉलेज में सामाजिक विज्ञान के अध्यापक थे. 1967 के असेम्बली चुनावों में सिंह ने भारतीय जन संघ के टिकट पर अतरौली विधान सभा सीट जीत ली. तब से 1980 तक सिंह ने अपने चुनाव क्षेत्र पर मज़बूती से पकड़ बनाए रखी, और लगातार चुनाव जीतते रहे. 1980 में वो कांग्रेस के अनवर ख़ान के हाथों हार गए. 1985 में उन्होंने वही सीट फिर से जीत ली.

यूपी बीजेपी नेता और कल्याण सिंह के क़रीबी सहयोगी राजेंद्र तिवारी ने कहा कि 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली, और कल्याण हिंदुत्व के प्रतीक बनकर सामने आए. 1991 में बीजेपी के स्पष्ट बहुमत से विधान सभा चुनाव जीतने के बाद, कल्याण सिंह मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बन गए. कल्याण सिंह सरकार के दौरान अपराध के प्रति शून्य सहनशीलता अपनाई गई. बदमाश या तो छिपे थे या फिर जेलों में थे. नेता ने आगे कहा कि कल्याण सिंह सरकार, यूपी में अच्छी क़ानून व्यवस्था लेकर आई.

पहले हिंदुत्व आइकन CM

हालांकि, फिलहाल बीजेपी नेतागण योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व आइकन मानते हैं, लेकिन कल्याण सिंह ऐसे पहले नेता थे. एक बीजेपी सूत्र ने कहा कि बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एक कुशल प्रशासन चलाने का प्रयास किया, और साथ ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चल रहे आंदोलन के लिए भी, मज़बूती से समर्थन का इज़हार किया.


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वीएचपी और बीजेपी की ओर से राम मंदिर के लिए ‘कार सेवा’ की घोषणा के साथ ही, मस्जिद की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की जाने लगी. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर वादा किया, कि ढांचे को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया जाएगा, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. सिंह ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

दो बार BJP छोड़ी और वापस आए

मस्जिद गिराए जाने के बाद सूबे का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया. बीजेपी को रोकने के लिए मुलायम और कांशीराम ने गठबंधन कर लिया. 1997 में, बीएसपी के साथ हाथ मिलाकर बीजेपी फिर सत्ता में आ गई. सिंह एक बार फिर सीएम बन गए, लेकिन अपनी पार्टी में उनकी पकड़ ढीली पड़ गई.

पार्टी के अंदरूनी मतभेद और गुटबाज़ी 1999 में अपने चरम पर पहुंच गई, जब सिंह ने बीजेपी छोड़ दी और अपनी अलग राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली. हालांकि 2004 में वो बीजेपी में लौट आए, लेकिन ‘उपेक्षा और अपमान’ का हवाला देते हुए, 2009 में उन्होंने बीजेपी फिर छोड़ दी.

बीजेपी के पूर्व राज्य मंत्री और अब एक समाजवादी पार्टी नेता आईपी सिंह के अनुसार, ‘कल्याण सबसे बड़े ओबीसी नेता थे, लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उन्हें निरंतर अपमानित और उपेक्षित करता रहा. जब मैं उनसे मिला तो मैंने उनसे पूछा कि बाबूजी आप क्यों जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा ‘गंगा में पानी बहुत बह चुका है…’ वो कहना चाहते थे कि पार्टी में उनके खिलाफ बहुत कुछ हुआ है. बाद में वो बीजेपी में आ गए, लेकिन उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, यहां तक कि पिछले साल आयोजित हुए राम जन्मभूमि पूजन में उन्हें बुलाया भी नहीं गया.

समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव के साथ बैठकों के बाद, सिंह ने ऐलान किया कि 2009 के लोकसभा चुनावों में वो एसपी के लिए प्रचार करेंगे. दूसरी ओर उनके बेटे राजवीर सिंह, जो बीजेपी के साथ उनके मोहभंग की एक प्रमुख वजह थे, समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. सिंह इटावा से आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा के लिए चुने गए.

जनवरी 2010 में, उन्होंने एक नए राजनीतिक दल जन क्रांति पार्टी का गठन का ऐलान किया, लेकिन फिर बाद में राष्ट्रीय राजनीति के हालात, और नरेंद्र मोदी के उदय को देखते हुए, 2014 में वो फिर से बीजेपी में आ गए. उनके बेटे राजवीर बीजेपी के टिकट पर सिंह की पुरानी इटावा सीट से सांसद चुन लिए गए. 2014 में सिंह को राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक इंटरव्यू में सिंह ने कहा, कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि उन्होंने उस सवाल के जवाब में, कि क्या पुलिस को कार सेवकों (दरअस्ल धार्मिक स्वयं सेवकों) पर फायरिंग करनी चाहिए, लिखित में अनुमति देने से इनकार किया.

30 सितंबर 2020 को, बाबरी विध्वंस मामले में कोर्ट ने सिंह समेत सभी 32 आरोपियों को, साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया.

उनके परिवार के एक क़रीबी रिश्तेदार के अनुसार, 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का गिराया जाना, कल्याण सिंह के लिए एक निर्णायक क्षण था. उन्हें मंदिर के बनने तक ज़िंदा रहना था. राम जन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वो बहुत ख़ुश थे. उन्हें बाबरी मस्जिद केस पर आए फैसले से भी बहुत ख़ुशी थी, जिसमें उनके समेत सभी 32 लोग बरी कर दिए गए. हमसे बात करते हुए भी उन्होंने कहा कि ‘अब मैं शांति के साथ मर सकता हूं’.

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