नई दिल्ली: पैगंबर मोहम्मद पर विवादास्पद टिप्पणी की वजह से भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पार्टी द्वारा अपनी प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किए जाने का ज़िक्र करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध पत्रिका ‘पांचजन्य’ ने अपने एक संपादकीय में लिखा है कि इस भाजपा नेत्री ने केवल वही सब कुछ दोहराने की हिम्मत की है जिसे इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक खुलेआम कहते हैं.
नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर मचे कूटनीतिक विवाद के अलावा, पिछले सप्ताह हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस के पन्ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले, गायक-रैपर सिद्धू मूसेवाला की हत्या और शिवाजी के राज्याभिषेक की 348वीं वर्षगांठ के व्यापक कवरेज के साथ भरे हुए थे.
इस संदर्भ में सबसे प्रमुख उल्लेखों में आरएसएस नेता राम माधव का एक संपादकीय भी शामिल है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एकमात्र चुनौती खुद प्रधानमंत्री की तरफ से आ सकती है.
‘पांचजन्य’ ने अपने एक संपादकीय में यह आरोप लगाया कि कुछ लोग यह कहकर ‘भारत का नाम खराब करने की सोची समझी कोशिश’ कर रहे हैं कि हिंदू असहिष्णु हो गए हैं.
‘यह कुप्रचार फैलाया जा रहा है और आरोप लगाए जा रहे हैं कि हिंदू असहिष्णु और हिंसक हो रहे हैं. मुसलमानों के प्रति उनका व्यवहार अच्छा नहीं रहा है. तथाकथित बुद्धिजीवी इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बार-बार उठा रहे हैं. लेकिन क्या सच में ऐसा है?
संपादकीय कहता है, ‘तस्वीर ठीक इसके उलट है. कुछ लोग जानबूझकर देश का नाम खराब करने में लगे हैं. यह खेल मीडिया और अकादमिक दुनिया के माध्यम से खेला जा रहा है.’
इसमें आगे कहा गया है कि भाजपा की एक प्रवक्ता और उसके परिवार को इस वजह से बलात्कार, मौत की धमकी दी गई क्योंकि उसने इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक जो कुछ कह रहा है उसे ही दोहराने की हिम्मत की. वहीं एक मुस्लिम नेता का कहना है कि अगर उन्हें शिवलिंग के बारे में पता होता तो वह उसे पहले ही तोड़ देते.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल और मराठी अभिनेता केतकी चितले के उदाहरणों का हवाला देते हुए इस संपादकीय में यह तर्क दिया गया कि हिंदू प्रतीकों को निशाना बनाने के बाद भी कोई भी साफ बच सकता है.
जहां रतन लाल को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित एक आपत्तिजनक मजाक बनाने के लिए आरोपी बनाया गया था और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया था, वहीं चितले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार पर एक कथित रूप से अपमानजनक पोस्ट साझा करने के लिए अभी भी पुलिस हिरासत में है.
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‘मोदी के लिए एकमात्र चुनौती’
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के लिए मंगलवार को लिखे गये एक संपादकीय में आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी राम माधव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही ‘भाजपा और सरकार’ दोनों हैं.
माधव लिखते हैं, ‘देवकांत बरुआ की ‘इंडिया इज इंदिरा’ 1970 के दशक में एक अतिशयोक्ति जैसी थी, लेकिन ‘मोदी ही भाजपा और सरकार हैं’ यह कहना आज कोई अतिशयोक्ति नहीं है … 2014 में मोदी का सत्ता में आना उनकी अपनी लोकप्रियता के साथ-साथ उनकी पार्टी और सर्वव्यापी संघ परिवार के कट्टर समर्थन और यूपीए सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर के कारण संभव हुआ था. लेकिन आठ साल बाद भी उनका लगातार जारी दबदबा सिर्फ उन्हीं के कारण है. पिछले आठ वर्षों में सब कुछ मोदी के बारे में था.’
संपादकीय में कहा गया है कि मोदी का विजय रथ अगले कई वर्षों तक चलता रह सकता है और वे नेहरू के रिकॉर्ड को भी तोड़ सकते हैं … इसके लिए एकमात्र चुनौती खुद मोदी हो सकते हैं.’
उन्होंने लिखा है, ‘कभी गुजरात दंगों के लिए विश्व शक्तियों द्वारा नकारे गये और भारतीय राजनीतिक प्रतिष्ठान द्वारा एक अप्रासंगिक क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में अनदेखा किए जाने के बाद से पिछले दो दशकों में मोदी ने सबसे दृढ़ और मेहनती तरीके से राष्ट्रीय राजनीति में अपना रास्ता तैयार किया है. अपनी लोकप्रिय साख का उपयोग करते हुए उन्होंने अपनी पार्टी के लिए उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चयनित किया जाना एक निर्विवादित तथ्य बना दिया.’
राम माधव ने आगे तर्क दिया कि सत्ता क्रम में मोदी के उदय के लिए केवल हिंदुत्व को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. इस आरएसएस नेता ने लिखा, ‘उन्हें (मोदी) हिंदुत्व आंदोलन का समर्थन तो प्राप्त था लेकिन वही आंदोलन अपने सबसे बड़े नेताओं में से एक लालकृष्ण आडवाणी को मोदी काल से सिर्फ पांच साल पहले केवल 140+ सीटों तक ले जा सका था.’
भाजपा के पूर्व पदाधिकारियों नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा की गई टिप्पणी पर उठे विवाद का जिक्र करते हुए माधव ने लिखा, ‘विवाद, जैसे कि अभी पार्टी के कुछ प्रवक्ताओं के बयानों से पैदा हुआ है, मोदी के लिए कोई नई बात नहीं है. पिछले कई दशकों से, उन्होंने उनसे पार पाया है और उन्हें अपने लिए राजनीतिक लाभ में बदलने की कला में महारत हासिल की है.’
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‘ज्ञानवापी एक मंदिर था, मंदिर ही रहेगा’
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की पाक्षिक पत्रिका, ‘हिंदू विश्व’ की आवरण कथा ने एक बार फिर से इस दावे को दोहराया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर है. पत्रिका के जून संस्करण के कवर में कहा गया है, ‘ज्ञानवापी मंदिर था, मंदिर है, मंदिर ही रहेगा.’
इस कवर स्टोरी में लिखा गया है, ‘सदियों से कुचली गईं हिंदू आकांक्षाएं अब प्रकट हो रही हैं. अदालतें भी अब हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों को समझने लगी हैं. आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए गए हिंदू मूल्यों के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है. यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाला युग हिंदू गौरव का युग है.’
विहिप की पाक्षिक पत्रिका के उसी संस्करण के लिए लिखे एक लेख में पत्रकार रवि पाराशर ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश की सराहना की जिसमें उसके द्वारा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को पश्चिम बंगाल में धर्मांतरण के मामलों की जांच करने का निर्देश दिया गया था.
लेख में आरोप लगाया गया है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के स्वयंसेवकों और पश्चिम बंगाल पुलिस के बीच ‘साठ-गांठ’ के कारण राज्य में धर्म परिवर्तन के मामले ही दर्ज नहीं किए जा रहे हैं.
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‘मोदी के दौर में सिर्फ पीएमओ और सीएमओ ही हैं ताकतवर’
‘नया इंडिया’ के लिए लिखे गये अपने संपादकीय में, दक्षिणपंथी पत्रकार हरि शंकर व्यास ने नीति निर्माण की प्रक्रिया पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की कड़ी पकड़ पर सवाल उठाया.
व्यास लिखते हैं, ‘केंद्र से लेकर राज्यों तक की पूरी राजनीतिक व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई है. अब, केवल दो ही संस्थान प्रासंगिक रह गये हैं. केंद्र में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और राज्यों में मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ). केंद्र सरकार में 75 से ज्यादा मंत्री हैं लेकिन ज्यादातर मंत्रियों की कोई प्रासंगिकता है ही नहीं’
व्यास का कहना है, ‘एक व्यक्ति के करिश्मे के कारण सत्ताधारी दल के सभी लोग चुनाव जीते हैं और उसी व्यक्ति की कृपा से मंत्री बने हैं- इसलिए उस व्यक्ति को ही सोचने और सभी निर्णय लेने का अधिकार है.’
व्यास ने आगे लिखा, ‘ऐसा नहीं है कि सरकार के कैबिनेट मंत्री इस व्यवस्था से नाखुश होंगे. उन्हें तो खुशी होगी कि उन्हें कुछ नहीं करना है. उन्हें ऊपर से निर्देश मिलते हैं और उसी के अनुसार वे फाइल तैयार करते हैं और उसे आगे बढ़ा देते हैं. सब कुछ प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा ही शासित होता है और हर चीज का श्रेय भी प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय को जाता है.’
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‘भारत को शिवाजी के स्वराज का अनुसरण करना चाहिए’
छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 348वीं वर्षगांठ को मनाने के लिए लिखे गये एक संपादकीय में आरएसएस से संबद्ध पत्रिका ‘ऑर्गेनाइज़र’ ने इस महान मराठा शासक की ‘स्वराज’ की अवधारणा की सराहना की.
संपादकीय कहता है, ‘मार्क्सवादी इतिहासकार जो औरंगजेब और अन्य मुस्लिम अत्याचारियों को संत बनाने की कोशिश करते रहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि शिवाजी के हिंदवी स्वराज ने अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया था. हालांकि उन्होंने मुगलों की इस्लामी सल्तनतों, कुतुब शाही और आदिल शाही के खिलाफ अनेकों लड़ाइयां लड़ीं, लेकिन उन्होंने कभी भी मुस्लिम लोगों के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं रखी. कई सारे मुसलमानों को प्रशासन और सेना में प्रमुख पदों पर शामिल किया गया.’
संपादकीय में लिखा गया है, ‘स्वतंत्रता के बाद, भारत के पास शिवाजी के स्वराज का अनुसरण करने और सभ्यता की नींव पर हमारे राष्ट्र के पुनर्निर्माण का विकल्प था. लेकिन सत्ता की बागडोर संभालने वालों ने तो दूसरा ही रास्ता चुना. हमारे द्वारा अपने राष्ट्रीय मूल्यों से विमुख होना और आयातित विचारों को अपनाना ही हमें सामाजिक, बौद्धिक और आर्थिक अभाव में ले गया है.’
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‘आप की अनुभवहीनता’
गायक-रैपर सिद्धू मुसेवाला की दिनदहाड़े हुई हत्या का जिक्र करते हुए दक्षिणपंथी पत्रकार राजीव तुली ने ‘इंडिया अहेड’ के लिए लिखे एक संपादकीय में लिखा कि पंजाब के लोगों को इस साल कुछ समय पहले चुनी गई आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने धोखा दिया है.
संपादकीय में कहा गया है, ‘उन्होंने (पंजाब के लोगों ने) सोचा था कि उन्होंने एक राजनीतिक फेनॉमेना, जिसने उन्हें उम्मीदें, आकांक्षाएं और सपने दिए थे, को मौका देकर एक ‘ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’ (नियति से साक्षात्कार) जैसा प्रयास किया है.’
‘कल्पना कीजिए, किस तरह पंजाब के सबसे प्रसिद्ध गायक को दिन के उजाले में बॉलीवुड फिल्म वाली शैली में उन सबसे अधिक मांग वाले हथियारों के साथ मार दिया जाता है जो अक्सर सेनाओं के लिए भी आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं. और इस तथ्य के बावजूद कि मनसा शहर, जहां मूसेवाला मारा गया था, से बाहर निकलने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं और पंजाब की सीमाओं को पार करने में कम-से-कम चार-पांच घंटे लगते हैं, हत्यारे अभी भी कानून के शिकंजे से बचे हुए हैं.’
तुली ने लिखा, ‘यह राज्य के प्रशासन, विशेष रूप से कानून और व्यवस्था जो किसी भी तरह की अन्य व्यावसायिक या सामाजिक गतिविधियों के लिए प्रमुख शर्त होती है, को संभालने में आप की अनुभवहीनता की तरफ इशारा करता है. राज्य की कानून-व्यवस्था अपने सबसे निचले स्तर पर आ गयी है.’
उन्होंने आगे बढ़ते हुए यह भी तर्क दिया कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार द्वारा किए गये मुफ्त के तोहफों वाले वादे पंजाब की अर्थव्यवस्था पर और अधिक दबाव डाल रहे हैं.
राजीव तुली ने लिखा है, ‘आप के द्वारा ही बढ़ाई गई उम्मीदों के दबाव को हटाने के लिए चंडीगढ़ सिविल सेवा नियमों और चंडीगढ़ के साथ जुड़े पुराने मुद्दों जैसे मसलों को उठाया जा रहा है. ‘अच्छे सरकारी कार्यों’ का तथाकथित ‘प्रस्तुतीकरण’ (प्रोजेक्शन) अब उल्टा पड़ रहा है.’
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जनगणना में ओआरपी कॉलम का शामिल किया जाना
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की आधिकारिक वेबसाइट के लिए लिखे गये एक लेख में, प्रोफेसर आनंद पालीवाल ने जनगणना में ‘अन्य धर्म और धारणा (अदर रिलिजन्स एंड पर्सूयेशन्स)’ वाले कॉलम की आलोचना की है.
एबीवीपी की केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य प्रो. पालीवाल ने सवाल किया, ‘क्या इसका मकसद आदिवासी समाज, जो हिंदू समाज का एक अभिन्न अंग है, के लिए एक अलग शब्दावली गढ़कर यह दिखाना है कि वे अलग हैं?’
‘क्या उपरोक्त धारणा के पीछे कोई ऐतिहासिक, सामाजिक कानूनी तत्व है या इसे एक साजिश के रूप में शुरू किया गया है … लॉर्ड मैकॉले हो या ईसाई मिशनरी, सभी यह बात जानते थे कि हिंदू धर्म और संस्कृति इतनी उन्नत है कि उस पर हमला किए बिना धर्मांतरण असंभव प्रतीत होता है.’
उन्होंने तर्क दिया, ‘धर्मांतरण का कार्य, जो उनके लिए अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि के आदिवासी समाजों में आसानी से किए जा सकने योग्य था, हिंदू धर्म और उसकी संस्कृति के कारण यहां उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था. यही कारण है कि भिन्न-भिन्न शब्दावलियां गढ़कर हिंदू समाज को विखंडित करने का प्रयास किया जा रहा है.’
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