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Monday, 23 December, 2024
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हिंदू परिवारों को इंसाफ चाहिए, मुसलमान दुखी- UP के लव जिहाद कानून से बरेली में उन्माद

यूपी के धर्मांतरण-विरोधी क़ानून के तहत पहली गिरफ्तारी बरेली में की गई है. पुलिस का कहना है कि लोग उनके पास, पुराने मामले लेकर आ रहे हैं और इस क़ानून के तहत कार्रवाई चाहते हैं.

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बरेली: 28 नवंबर को रात के 10.40 बजे थे और उत्तर प्रदेश राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के, राज्य के विवादास्पद धर्मांतरण-विरोधी या ‘लव जिहाद’ अध्यादेश पर, दस्तख़त किए कुछ घंटे ही हुए थे कि एक विवाहित महिला का पिता, बरेली के एक थाने में पहुंच गया.

बरेली के शरीफ नगर का निवासी टीकाराम अपने 21 वर्षीय पड़ोसी उवैस अहमद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना चाहता था, जो कथित रूप उसकी बेटी को- जिसकी शादी किसी अन्य व्यक्ति से हुई थी- जबरन मुसलमान करना चाहता था. टीकाराम की शिकायत के आधार पर, अहमद के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया. चार दिन बाद, इस बुधवार को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

अहमद पहला व्यक्ति है जिस पर राज्य के विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.

लेकिन वो पहला न होता, अगर बरेली के इज़्ज़त नगर की एक युवा मां का बस चल जाता. ये महिला 27 नवंबर को ताहिर हुसैन नाम के, एक 21 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ शिकायत लेकर आई थी जिसे वो अपना पति बता रही थी.

महिला के अनुसार, हुसैन ने उससे साफ शब्दों में कह दिया था कि उसने महिला से शादी सिर्फ उसे मुसलमान बनाने के लिए की थी.

पुलिस को दी अपनी शिकायत में, महिला ने कहा कि वो नए अध्यादेश के तहत उस पर मुक़दमा दर्ज कराना चाहती है. बाद में हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन पुलिस उस केस में अध्यादेश को लागू नहीं कर सकी, क्योंकि वो क़ानून उसकी शिकायत के, एक दिन बाद नोटिफाई किया गया था.

धर्मांतरण-विरोधी अध्यादेश में, किसी धर्म का नाम नहीं लिया गया है लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार इसे तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के, बताए गए उद्देश्य से लाई है, जिसे हिंदुत्व के कट्टरपंथी, भोली-भाली हिंदू महिलाओं को शादी का झांसा देकर, मुसलमान बनाने की ‘साज़िश’ क़रार देते हैं.

ऐसा लगता है कि विवादास्पद प्रकृति के इस क़ानून ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में, एक उन्माद सा पैदा कर दिया है.

बरेली में इस अध्यादेश के तहत न केवल पहली गिरफ्तारी दर्ज हुई, बल्कि ज़िले की पुलिस का कहना है कि उन्हें बहुत से लोगों से शिकायतें मिल रही हैं, जो बरसों पुराने तथाकथित मामलों पर भी, इस क़ानून को लागू करवाना चाहते हैं.

कुछ परिवार इस क़ानून का स्वागत कर रहे हैं, तो वहीं कम से कम दो परिवार ऐसे हैं, जो इस अध्यादेश और नोटिफिकेशन के एक हफ्ते के भीतर, इससे पैदा हुई सांप्रदायिक शंकाओं से मुसीबत में घिर गए हैं.

इन परिवारों का दावा है कि इनके जवान बेटों को, मनगढ़ंत आरोप लगाकर जेल में डाला गया है और इन्हें नहीं पता कि वो इस संकट से कैसे निकलेंगे. बहरहाल, नए अध्यादेश के तहत, अपने बेटों की बेगुनाही साबित करना इनकी ज़िम्मेदारी है.

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पहला मामला

टीकाराम की शिकायत के आधार पर दर्ज हुई एफआईआर के मुताबिक़, उसकी बेटी उवैस अहमद को उस समय से जानती थी, जो वो स्कूल में पढ़ते थे. लेकिन उसका ये कहते हुए हवाला दिया गया है कि अहमद ने उसकी बेटी के साथ संबंध बना लिए और हाल ही में उस पर इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाने लगा था. अन्य बातों के अलावा, टीकाराम ने अपने परिवार को धमकी का आरोप भी लगाया था.

दिप्रिंट के हाथ लगी रिपोर्ट में, एफआईआर में उसका ये कहते हवाला दिया गया है, ‘वो मेरी बेटी पर धर्म बदलने का दबाव बनाता रहा, और जब मेरे परिवार ने और मैंने मना कर दिया, तो वो हमें गालियां देने लगा और हमें जान से मारने की धमकी दी’.

एफआईआर में धर्मांतरण विरोधी क़ानून की धारा 3 और 5 लगाई गई हैं-धारा 3 में कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का बहकावे, ताक़त, प्रभाव, प्रलोभन, जबर्दस्ती या धोखाधड़ी से धर्मांतरण नहीं करेगा, या करने की कोशिश नहीं करेगा. धारा 5 में कहा गया है कि धारा 3 के तहत दोषी पाया गए व्यक्ति को, 1-5 साल तक की सज़ा और 15,000 रुपए तक जुर्माना हो सकता है. भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और 506 (क्रमश: शांति भंग करने की मंशा से जान-बूझकर अपमानित करना, और आपराधिक रूप से धमकाना) लगाई गईं हैं.

मुक़दमा तो उसी दिन दर्ज कर लिया गया, लेकिन अहमद को 2 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया, चूंकि वो कथित रूप से भागा हुआ था. अहमद को बरेली के बहेड़ी इलाक़े में, मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए टीकाराम से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो घर पर नहीं मिला, और फोन या उसके मोबाइल पर संदेश से भी, उससे संपर्क नहीं हो सका.

टीकाराम का घर शरीफ नगर में, उस घर से बमुश्किल 100 मीटर दूर है, जहां दिहाड़ी मज़दूर अहमद अपने मां-बाप मोहम्मद रफीक़ और मुन्नी के साथ रहता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, रफीक़ और मुन्नी ने कहा, कि उनका बेटा बेगुनाह है और उसे फंसाया जा रहा है. रफीक़ ने कहा, ‘उसने क़रीब एक साल से उससे (लड़की) बात नहीं की थी और फिर जून में उसकी शादी हो गई, जिसके बाद वो चली गई’.

रफीक़ ने आगे कहा कि अहमद परिवार में अकेला कमाने वाला है. उसने कहा, ‘हम कैसे जिएंगे? वो परिवार में अकेला कमाने वाला था. मेरे दूसरे दोनों बेटे दिल्ली में हैं, उन्हें तो इस मामले का पता भी नहीं है’.

मुन्नी ने रोते हुए कहा, ‘अब मेरे बेटे के साथ क्या होगा? मैं अब कैसे जियूंगी?’

मोहल्ले के एक निवासी राजवीर ने भी अहमद का बचाव किया. ‘वो लड़का बेक़सूर है, उसने न किसी को धमकी दी, न ही किसी का धर्म बदलने की कोशिश की’.

जब अहमद को बरेली की बहेड़ी कोर्ट में, मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो आने जाने वालों और वकीलों में काफी भनभनाहट थी, जिनमें से बहुत से लोग अदालत के अंदर आ गए, ताकि एक नज़र ‘नए क़ानून के तहत पहले अभियुक्त’ को देख सकें.

अहमद ने ख़ुद को बेगुनाह बताया है. हिरासत में जाते हुए उसने दिप्रिंट से कहा कि उसे फंसाया जा रहा है. उसने कहा, ‘लड़की की पहले ही शादी हो चुकी है, और मेरा उससे कोई संपर्क नहीं है. मैं पहले उसे जानता था, क्योंकि हम एक ही गांव में थे. ये एक झूठा केस है, मैं बेक़सूर हूं’.

लेकिन एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम छिपाने का अनुरोध करते हुए, उसके दावे को ख़ारिज किया और कहा कि उसने पिछले अक्तूबर में लड़की को दिल्ली के रास्ते मुम्बई भगा ले जाने की कोशिश की थी. लेकिन लड़की के पिता की शिकायत पर, ये ‘कोशिश नाकाम कर दी गई’.

Uwais Ahmed in police custody | Praveen Jain | ThePrint
पुलिस की हिरासत में उवैस अहमद | Praveen Jain | ThePrint

अधिकारी ने आगे कहा कि पुलिस ने महिला को, मध्य प्रदेश के रतलाम में रोक लिया था, जबकि अहमद बरेली में ही था.

ऑफिसर ने कहा कि सामना किए जाने पर, अहमद ने पुलिस को बताया कि उसने शिकायतकर्ता की बेटी के साथ, भागने की योजना बनाई थी.

सीनियर पुलिस ऑफिसर ने आगे बताया कि उसके बाद आईपीसी की धारा 363 और 366 (अपहरण और अपहरण, शादी के लिए मजबूर करने के लिए, किसी महिला को भगाकर ले जाना, या उकसाना) के तहत एक मुक़दमा दर्ज किया गया, लेकिन बाद में दोनों परिवारों के बीच मामला सुलटा लिया गया, जब लड़की ने पिता की शिकायत को ग़लत बताया- कि अहमद ने उसे फुसलाया था- और कहा कि वो घर से इसलिए भागी थी, क्योंकि वो अपने मां-बाप से नाराज़ थी.

दिप्रिंट ने वो एफआईआर भी देखी, जो उस समय दर्ज की गई थी, और उसका वो बयान भी देखा, जिसमें उसने कहा था कि वो क्यों भागी थी.

देवरानिया, जिसके अधिकार-क्षेत्र में शरीफ नगर आता है, के स्टेशन हाउस ऑफिसर दया शंकर ने कहा कि वो तक़रीबन 10 दिन में चार्ज-शीट दायर करेंगे, क्योंकि ‘नए क़ानून को अभी कंप्यूटर सिस्टम में रजिस्टर नहीं किया गया है’.

महिला पुराने केस को नए क़ानून के तहत दर्ज कराना चाहती है

इज़्ज़त नगर में, 28-30 साल की एक महिला का दावा है कि जब से उसने 21 वर्षीय ताहिर हुसैन नाम के व्यक्ति से, पिछले साल अक्तूबर में शादी की, तब से उसका एक ख़ौफनाक अनुभव रहा है.

उसकी एफआईआर के मुताबिक़, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, वो महिला हुसैन के साथ परतापुर इलाक़े में रह रही थी. उसका आरोप है कि हुसैन ने उसकी शादी को पंजीकृत करने से मना कर दिया, और उससे साफ कह दिया कि उसका धर्म बदलने के लिए ही, उसने महिला से शादी की थी.

उसने कहा, ‘जब मैं गर्भवती हुई, तो मैंने ताहिर (हुसैन) से कहा, कि अब हमारे यहां बच्चा होने जा रहा है, इसलिए हमें अपनी शादी रजिस्टर करा लेनी चाहिए’. उसने आगे कहा कि वो अपने बच्चे, और ख़ुद अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहती थी.

उसने कहा कि 20 नवंबर को जब उसने हुसैन के परिवार को बताया कि वो अपनी शादी रजिस्टर कराना चाहती है तो उसकी मां और भाई ने ‘मुझ पर हमला किया और मेरे पेट में लात मारी’. जिससे उसका कथित रूप से मिसकैरिज हो गया.

जब उसने अपना बच्चा गंवा दिया, तो हुसैन ने कथित रूप से उससे कहा कि ‘अब तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है कि तुम प्रेग्नेंट थीं’.

एफआईआर में उसका ये कहते हुए हवाला दिया गया है, ‘मैं तुम से शादी नहीं करना चाहता और अपने मज़हब की वजह से, मैं ‘लव जिहाद’ में यक़ीन रखता हूं. महिला ने उस पर बलात्कार, ‘लव जिहाद’ करने, और जान से मारने की धमकी का आरोप लगाया है.

हुसैन को 28 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया, और वो फिलहाल बरेली जेल में बंद है.

दिप्रिंट ने शिकायतकर्ता और उसके वकील से मिलने की कोशिश की, लेकिन कई बार कॉल करने और लिखित मैसेज भेजने के बाद भी, दोनों ने मिलने या बात करने से मना कर दिया.

इज़्ज़त नगर के स्टेशन हाउस ऑफिसर सुदेस सिरोही ने कहा कि एफआईआर में आईपीसी धाराएं 376, 313, 323 और 506 (क्रमश: रेप, मिसकैरिज कराना, चोट पहुंचाना और धमकाना) लगाई गईं हैं. ये केस नए केस के तहत दर्ज नहीं किया गया, क्योंकि एफआईआर 27 नवंबर को दर्ज हुई, जब तक उसे नोटिफाई नहीं किया गया था.

उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता चाहती थी कि हुसैन पर नए कानून के तहत मुक़दमा दर्ज हो.

उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि इनके विषय अध्यादेश से मिलते-जुलते हैं, लेकिन हम अभियुक्त पर नए क़ानून के तहत मुक़दमा नहीं कर सकते’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमारे पास 2002 तक के केस हैं, उससे पहले के भी हैं, जिन्हें इस नए क़ानू के तहत लाना होगा’.

पुलिस अधीक्षक (एसपी) संसार सिंह ने कहा, ‘शिकायतकर्ता हमसे कहती रही कि उसके केस नए क़ानून के तहत दर्ज किया जाएं, लेकिन फिर हमें समझाना पड़ा कि अगर उसके (27 नवंबर को) एफआईआर दर्ज कराने के बाद से कोई घटना नहीं हुई है तो नए अध्यादेश के तहत कोई केस दर्ज नहीं किया जा सकता’.

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें कई अनुरोध मिले हैं, जिनमें पुराने मुक़दमों/ शिकायतों को, नए क़ानून के तहत दर्ज करने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन, हम ऐसे किसी अनुरोध को नहीं मानेंगे. ये संभव नहीं है’.

अहमद की तरह हुसैन भी, जो एक दिहाड़ी मज़दूर है और दिन में 150 रुपए कमाता है, अपने परिवार का अकेला कमाने वाला है, जिसमें उसकी मां कनीज़ बानो, 8 और 14 साल के दो भाई, और 14 तथा 17 साल की दो बहनें हैं. उसके पिता सात महीने पहले, हार्ट अटैक से चल बसे थे.

दिप्रिंट से बात करते हुए हुसैन के नियोक्ता और दोस्त मुशर्रफ रज़ा ख़ान ने माना कि उसने सोशल मीडिया पर एक फर्ज़ी नाम से शिकायतकर्ता से बात करनी शुरू कर दी थी, लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया कि दोनों ने शादी की या वो साथ रहते थे.

ख़ान ने कहा, ‘वो कुनाल के नाम से फेसबुक पर उससे (शिकायतकर्ता) बात करने लगा था लेकिन उसके अलावा उनके बीच कोई संपर्क नहीं था, सिवाय इसके कि वो एक ही मोहल्ले में रहते हैं. उसे फंसाया जा रहा है’.

ताहिर का परिवार पिछले 20 सालों से परतापुर में रह रहा है, लेकिन फिलहाल उनके घर पर ताला लगा है.

कारण पूछे जाने पर, कनीज़ ने कहा कि शिकायतकर्ता ने उन्हें धमकी दी थी कि अगर ताहिर ने उससे शादी नहीं की, तो वो उसकी दोनों ‘लड़कियों को उठवा लेगी’. उसने आगे कहा, ‘उसने ये भी कहा कि वो हमें घर से बाहर निकाल देगी’.

Tahir Hussain's mother Kaneez Banu is a widow. Her husband died seven months ago | Praveen Jain | ThePrint
ताहिर हुसैन की मां कनीज बानो विधवा है. उनके पति की 7 महीने पहले मौत हो गई | Praveen Jain | ThePrint

‘मैं इस घर में कैसे रह सकती हूं, जब वो हमें धमकाती रहती है? उसने ये भी कहा ‘सरकार हमारी है…मुझे तो पता भी नहीं था कि ताहिर और गीता, आपसे में बात कर रहे हैं’.

कनीज़ ने कहा कि बेटे की गिरफ्तारी के बाद, उन्हें नहीं पता कि परिवार कैसे रहेगा. उन्होंने आगे कहा, ‘फिलहाल तो पड़ोस के लोग, खाने और दूसरी चीज़ों से हमारी मदद कर रहे हैं’. उन्होंने आंसू बहाते हुए आगे कहा, ‘प्लीज़, हमारी मदद कीजिए, उसके अलावा मेरा कोई नहीं है’.

परतापुर के एक निवासी राम सेवक को, जो हुसैन के बग़ल वाले घर में रहते हैं, उस पर लगे आरोपों को लेकर शक है. उन्होंने कहा, ‘मैं उस लड़के को जानता हूं. वो बिल्कुल बेक़सूर है और जब से उसके पिता की मौत हुई, तब से काम कर रहा है’.

शिकायतकर्ता के बारे में बात करते हुए, एसएचओ सिरोही ने कहा कि उसकी शादी 5-6 साल पहले हुई थी और उस शादी से उसे एक बच्चा है जो 9-10 साल का है. उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल इसका कोई सबूत नहीं है कि शिकायतकर्ता का मिसकैरिज हुआ था.

सिरोही ने कहा कि 28 नवंबर को उसकी मेडिकल जांच कराई गई थी, जिसकी रिपोर्ट का इंतज़ार है.


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‘शांत शहर’

2011 की आधिकारिक जनगणना, और 2020 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, बरेली एक हिंदू-बहुल ज़िला है, जहां कुल आबादी (44 लाख से अधिक) में 63.64 प्रतिशत हिंदू हैं, और 34.54 प्रतिशत मुसलमान हैं.

लेकिन, स्टेशन हाउस ऑफिसर दया शंकर ने कहा कि बरेली का वो हिस्सा- देवरानिया- जहां पहला मामला दर्ज हुआ, वहां मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से, 60:40 के अनुपात में अधिक है.

विधान सभा में बरेली की नुमाइंदगी बीजेपी के डॉ अरुण कुमार करते हैं.

स्थानीय निवासियों का कहना है कि बरेली में हमेशा से सांप्रदायिक तनाव का एक अंतर्प्रवाह रहा है, इसके बावजूद कि इसे ‘शांत शहर’ कहा जाता है’.

‘2014 से पहले, जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो लगभग तीन साल तक, साल में कम से कम एक बार, बरेली में कर्फ्यू लगता था. लेकिन, 2014 के बाद से कोई कर्फ्यू नहीं लगा है’, ये कहना था लेखक सुधीर विद्यार्थी का, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद पर किताबें लिखी हैं, और 2003 से बरेली में रह रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि बरेली में काफी मुस्लिम आबादी है, और ‘बंग्लादेशी लेखक तस्लीमा नसरीन के खिलाफ फतवा भी, यहीं जारी हुआ था’.

बरेली ज़ोन के उप-महानिरीक्षक राजीव पाण्डे ने कहा कि स्थानीय मुस्लिम आबादी में दो पंथ हैं- देवबंदी मुसलमान और बरेलवी मुसलमान- जिनमें से पहले को, उन्होंने ज़्यादा रूढिवादी बताया.

उन्होंने आगे कहा, ‘बरेली में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई अलगाव नहीं है, और वो साथ साथ रहते हैं. लेकिन, सांप्रदायिक रूप से ये एक संवेदनशील इलाक़ा है.

उन्होंने कहा कि शहर में दंगे भी हुए हैं. उन्होंने एक 2012 का, और एक 2015-16 का दंगा याद दिलाया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के नेताओं ने कहा कि वो इस नए अध्यादेश को, एक आवश्यक दख़लअंदाज़ी के तौर पर देखते हैं, हालांकि ऐसा कहने के पीछे उनके कारण अलग हैं.

बरेली में तुलसी मठ के महंत, कमल नयन दास ने नए क़ानून का स्वागत किया, लेकिन कहा कि इसमें ‘कम सज़ा का प्रावधान है’.

दास ने कहा, ‘अधिकतम सज़ा फांसी होनी चाहिए’. उन्होंने आगे कहा, ‘अलग धर्मों के लोगों को शादी नहीं करनी चाहिए. इस नए क़ानून का बिल्कुल भी दुरुपयोग नहीं होगा.

दास ने कहा, ‘लव जिहाद लड़कियों से प्यार नहीं है, ये अपने धर्म से प्यार है, और हिंदू लड़कियों को बिगाड़ना है’.

उनके अनुसार, ‘लव जिहाद’ पहली बार मुम्बई में, फिल्मी दुनिया में सामने आया, जब ‘लोगों ने अंतर्जातीय शादियां करना शुरू किया’.

बरेली शरीफ में बरेलवी सुन्नी मुसलमानों की संस्था, ऑल इंडिया तंज़ीम उलमा-ए-इस्लाम के जनरल सेक्रेटरी, मौलाना शहाबुद्दीन रिज़वी ने नए क़ानून का स्वागत किया, और कहा कि इसके कुछ सकारात्मक पहलू हैं. उन्होंने कहा, ‘नए क़ानून से नौजवान मुस्लिम लड़कों में डर पैदा होगा कि ग़ैर-मुस्लिम औरतों से रिश्ता न बनाएं, और उनसे शादी न करें, चूंकि ये हराम है’.

लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि ये क़ानून सियासी नेचर का है, क्योंकि ‘जो कोई भी क़ानून को लिख रहा था, वो अपना सियासी एजेंडा पूरा कर रहा था और उसे समाज की कोई परवाह नहीं थी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘उनका बुनियादी मक़सद तनाव पैदा करना और हिंदू-मुस्लिम रिश्तों और भाईचारे को बिगाड़ना था’. उन्होंने ये भी कहा कि इस क़ानून का ग़लत इस्तेमाल हो सकता है. ‘लव जिहाद’ जैसी कोई चीज़ नहीं है.


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सबूत का ज़िम्मा

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 में, अलग अलग श्रेणियों में 1 से 10 साल की क़ैद, और 15,000 से 50,000 रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.

इसका एक ज़्यादा विवादास्पद प्रावधान ये है, कि ये साबित करने का ज़िम्मा उस अभियुक्त पर है, जिस पर ज़बरन धर्मांतरण का आरोप लगा है, हालांकि भारतीय क़ानून के तहत आमतौर पर, अपराध साबित करने का ज़िम्मा अभियोजन पक्ष पर होता है.

इसका मतलब है कि यूपी अध्यादेश के अंतर्गत, अभियुक्त को साबित करना होगा कि वो बहकावे, ताक़त, बेजा प्रभाव, ज़बर्दस्ती, प्रलोभन, धोखाधड़ी या शादी के ज़रिए, धर्मांतरण कराने के ज़िम्मेवार नहीं हैं.

वकील आरिफ मोहम्मद, जो अहमद की नुमाइंदगी कर रहे हैं, ने कहा कि उनके क्लायंट के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता. उनका कहना है कि अहमद बरेली में अधिकारियों के हाथ में बस एक मोहरा है, जो राज्य सरकार की चापलूसी करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘ये सब बीजेपी सरकार और सीएम योगी आदित्यनाथ को ख़ुश करने के लिए किया जा रहा है, ताकि उन्हें पता चल सके कि नए अध्यादेश के तहत पहला केस बरेली में दर्ज हुआ था’.

आरिफ ने आगे कहा कि जबरन धर्मांतरण ग़लत है, लेकिन उनका मानना था कि ऐसे अपराधों से निपटने के लिए आईपीसी पर्याप्त था और एक अलग क़ानून की ज़रूरत नहीं थी.

लेकिन, एसपी संसार सिंह ने कहा, कि ये क़ानून शादियों द्वारा ज़बरन धर्मांतरण पर रोक लगाएगा ‘जिससे इलाक़े में काफी सांप्रदायिक तनाव पैदा हो रहा है’.

उन्होंने कहा, ‘नए क़ानून के तहत, इस सब पर लगाम लग जाएगी’. उन्होंने आगे कहा, ‘शादी करना एक बात है, लेकिन आपको अपना धर्म क्यों बदलना होता है? और ज़्यादातर मामलों में लड़की ही अपना मज़हब बदलती थी. तो अब ये सब बंद हो जाएगा’.

इसके दुरुपयोग की संभावना के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि ये जोखिम हर क़ानून में रहता है.

उन्होंने आगे कहा कि इस क़ानून के मामले में, पुलिस की भूमिका दो कारणों से अहम हो जाती है. उन्होंने कहा, ‘पहला, लोगों को नए क़ानून से अवगत कराना और दूसरा, ये सुनिश्चित करना कि इसे सही ढंग से लागू किया जाए’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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