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Tuesday, 18 March, 2025
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हिमाचल ‘सबसे मुश्किल’ साल के लिए तैयार, राज्य का बजट बढ़ते कर्ज़ और घटते ग्रांट से निपटने पर आधारित

58,514 करोड़ रुपये के बजट में से 67% वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और कर्ज़ चुकाने के लिए निर्धारित है, जिससे डेवलपमेंट के लिए सीमित फंड बचता है.

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शिमला: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश के “दशकों में सबसे मुश्किल वित्तीय वर्ष” का सामना करते हुए, कांग्रेस के नेतृत्व वाली उनकी सरकार एक नया रास्ता तय कर रही है. सोमवार को पेश किए गए 2025-26 के लिए 58,514 करोड़ रुपये के बजट में, सुक्खू ने राज्य के वित्त पर दबाव डालने वाली लोकलुभावन फ्रीबीज़ से परहेज़ किया. इसके बजाय, उन्होंने बढ़ते कर्ज़ के बोझ और घटते केंद्रीय ग्रांट्स को मैनेज करते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर फोकस किया.

इस साल के कुल बजट का 67 प्रतिशत वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और कर्ज़ चुकाने के लिए निर्धारित है, जिससे डेवलपमेंट के लिए काफी सीमित फंड बचता है.

2025-26 के लिए राज्य का बजट 58,514 करोड़ रुपये है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के 58,444 करोड़ रुपये से 70 करोड़ रुपये की मामूली वृद्धि दर्शाता है. यह तब हुआ है जब राज्य विधानसभा ने अपने मौजूदा सत्र में 2024-25 की अतिरिक्त वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 17,053.87 करोड़ रुपये के अनुपूरक बजट को मंजूरी दी है.

विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर कथित वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप लगने के बाद, सुक्खू का खाका एक कड़वी सच्चई को दिखाता है — हिमाचल की वित्तीय स्थिति अनिश्चित है और आगे मुश्किल रास्ते हैं.

बजट दस्तावेज़ के अनुसार, राज्य का कर्ज़ बढ़कर 1,04,729 करोड़ रुपये हो गया है. इसमें से 29,046 करोड़ रुपये सुक्खू के पदभार संभालने के बाद से दो साल में उधार लिए गए हैं. हालांकि, उनका कहना है कि इनमें से 70 प्रतिशत फंड्स का इस्तेमाल पिछली भाजपा सरकार द्वारा लिए गए कर्ज़ और ब्याज चुकाने में किया गया था.

सीएम ने राज्य विधानसभा में कहा, “हम उनकी गलतियों की कीमत चुका रहे हैं.”

राज्य का कर्ज़-से-जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) अनुपात, जो 2020-21 में 39.29 प्रतिशत था, ने अपने ऊपर की ओर बढ़ना जारी रखा है, जो 2024-25 में 42.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है. इस बीच, इसका प्रति व्यक्ति कर्ज़ अब 1,17,000 रुपये है. यह वित्तीय गणना ऐसे समय में की गई है जब केंद्र सरकार से मिलने वाले राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) – जो हिमाचल के लिए एक महत्वपूर्ण जीवनरेखा है, उसमें कमी आने लगी है.

14वें वित्त आयोग (2015-20) के तहत, राज्य को 40,624 करोड़ रुपये मिले, जो सालाना औसतन 8,000 करोड़ रुपये है, लेकिन 15वें वित्त आयोग (2021-26) ने इसे घटाकर 37,199 करोड़ रुपये कर दिया — मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए वास्तविक अवधि में यह 30,000 करोड़ रुपये रह गया — यह सभी राज्यों को इस तरह के ग्रांट्स को कम करने की अपनी समग्र सिफारिश का हिस्सा है.

गिरावट लगातार जारी रही है: 2021-22 में 10,949 करोड़ रुपये से 2022-23 में 9,377 करोड़ रुपये, 2023-24 में 8,058 करोड़ रुपये और इस साल सिर्फ 6,258 करोड़ रुपये. 2025-26 के लिए, यह घटकर मात्र 3,257 करोड़ रुपये रह गया — 4 साल में 70 प्रतिशत की गिरावट.

सुक्खू ने चेतावनी देते हुए कहा, “मेरा मानना है कि साल 2025-2026, पिछले कई दशकों में हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण साल होगा.”

खर्च किए गए हर 100 रुपये में से 25 रुपये सैलरी, 20 रुपये पेंशन, 12 रुपये ब्याज भुगतान और 10 रुपये कर्ज़ चुकाने में जाते हैं. इससे पूंजीगत कार्यों, बुनियादी ढांचे और विकास सहित बाकी सभी चीज़ों के लिए केवल 24 रुपये बचते हैं. विकास के लिए महत्वपूर्ण पूंजीगत व्यय, राजस्व व्यय के एक अंश तक सिमट कर रह गया है. 2021-22 में, यह 34,500 करोड़ रुपये के राजस्व व्यय के मुकाबले 5,200 करोड़ रुपये रहा, एक असंतुलित 1:6.6 अनुपात जो प्रगति को रोकता है.

इस बीच, राजस्व व्यय में उछाल आया है, अकेले 2023-24 में वेतन के लिए 23 प्रतिशत, पेंशन के लिए 17 प्रतिशत और सब्सिडी के लिए 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इस साल 40,000 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है. राजकोषीय घाटा, जीएसडीपी का 5.76 प्रतिशत है, जो राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून द्वारा निर्धारित 3 प्रतिशत की सीमा से दोगुना है.

सुक्खू का दृष्टिकोण अतीत की मुफ्तखोरी वाली नीतियों से अलग होने का संकेत देता है. मुफ्त बिजली की मुफ्त व्यवस्था, जिसकी लागत सैकड़ों करोड़ रुपये है, या 2023 का 4,500 करोड़ रुपये का मानसून राहत पैकेज, या पूरी तरह से क्षतिग्रस्त घर के लिए 1.3 लाख रुपये, अब खत्म हो गए हैं. इसके बजाय, उन्होंने दूध के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में मामूली 6 रुपये की बढ़ोतरी की घोषणा की, जिसमें गाय के दूध के लिए MSP 45 रुपये से बढ़कर 51 रुपये प्रति लीटर और भैंस के दूध के लिए 55 रुपये से बढ़कर 61 रुपये हो गई. यह ग्रामीण किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पॉलीहाउस और सूक्ष्म सिंचाई में नवाचारों ने कृषि को बनाए रखा है, जिससे अनुमानित 8.8 प्रतिशत जीएसडीपी वृद्धि हुई है, जो इस वर्ष 2,27,162 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है.

पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने दिप्रिंट से कहा, “दूसरों पर आरोप लगाना सबसे आसान काम है. मैं चाहता हूं कि मुख्यमंत्री बजट में संसाधन जुटाने के उपायों की घोषणा कर सकें. बजट में कुछ भी नया नहीं है. यह सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी है.” उन्होंने कहा, “पहली बार राज्य में बजट का आकार नहीं बढ़ाया गया है.”


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हिमाचल प्रदेश की कर्ज़ की वास्तविकताएं

राज्य की वित्तीय बाधाओं का सामना करते हुए कांग्रेस सरकार ने सभी महिलाओं के लिए 1,500 रुपये मासिक सहायता के अपने वादे को वापस ले लिया है और 2025-26 के बजट में चरणबद्ध तरीके से इसे लागू करने का विकल्प चुना है. 1 जनवरी, 2025 और 31 मार्च, 2026 के बीच 21 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के साथ-साथ 1 जून, 2025 से दूसरों के घरों में काम करने वाली महिलाओं को — उनकी पात्र बेटियों के साथ — “इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना” के तहत 1,500 रुपये प्रति माह मिलेंगे.

राज्य के अपने राजस्व स्रोत बहुत कम राहत देते हैं. 2024-25 के लिए 12,500 करोड़ रुपये का अनुमानित टैक्स कलेक्शन जीएसडीपी के 5-6 प्रतिशत पर स्थिर रहा है — जो घटते केंद्रीय कोष की भरपाई करने या बढ़ते कर्ज़ को रोकने के लिए बहुत कमज़ोर है. इस बीच, विकास के बजाय जीवनयापन के लिए उधार का उपयोग किया जा रहा है.

2021-22 में, 8,650 करोड़ रुपये के कर्ज़ में से 72 प्रतिशत — 6,200 करोड़ रुपये से अधिक — राजस्व व्यय के लिए इस्तेमाल किया गया, जबकि कर्ज़ सेवा ने कुल प्राप्तियों का 25 प्रतिशत हिस्सा लिया, जिसमें अकेले ब्याज भुगतान 13 प्रतिशत था.

राज्य द्वारा संचालित उद्यम समस्या को और बढ़ा देते हैं, जिसमें बिजली बोर्ड को 1,800 करोड़ रुपये और सड़क निगम को 1,700 करोड़ रुपये का नुकसान होता है — ऐसे संसाधन खत्म हो जाते हैं जो सड़कों या बिजली संयंत्रों को वित्तपोषित कर सकते थे.

सुक्खू ने सीधे तौर पर भाजपा को दोषी ठहराया, उस पर राज्य पर कर्ज़ों का बोझ डालने का आरोप लगाया जो अब उनके प्रशासन को बाधित कर रहे हैं.

हालांकि, संकट दलगत राजनीति से कहीं अधिक गहरा है, जो एक दशक के छूटे हुए मौकों के कारण आया है.

हिमाचल की प्राकृतिक संपदा — 10,000 मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन, शिमला और मनाली में लाखों लोगों को आकर्षित करने वाला पर्यटन, इसकी 68 प्रतिशत भूमि पर फैले जंगल — राजकोषीय सोने की खान हो सकते हैं. फिर भी जलविद्युत से रॉयल्टी कम है, पर्यटन टैक्स न के बराबर है और लकड़ी, राल और इको-पर्यटन से वन राजस्व मुश्किल से दर्ज होता है.

नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ वित्त अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “हमने अपनी ताकत बनाने के बजाय फंड्स पर भरोसा किया है, लेकिन अब, कुआं सूख रहा है.”

सीएम सुक्खू ने राज्य की कर्ज़ की वास्तविकताओं को सामने लाया, नकदी की कमी से जूझ रहे राज्य में पारदर्शिता की ज़रूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि राजकोषीय नियमों ने घाटे को 2024-25 में जीएसडीपी के 3.5 प्रतिशत और 2025-26 में 3 प्रतिशत पर सीमित कर दिया है, जबकि संवैधानिक सीमाओं के तहत केंद्र सरकार द्वारा इस साल उधारी को 6,551 करोड़ रुपये तक सीमित कर दिया गया है. इस सीमा को पार करने पर अगले वर्ष के भत्ते में कटौती हो जाती है और नई दिल्ली की मंजूरी के बिना कोई कर्ज़ नहीं लिया जा सकता है. मार्च 2023 तक सुखू को भाजपा से 76,185 करोड़ रुपये का कर्ज़ विरासत में मिला, जिसमें से 12,266 करोड़ रुपये ब्याज पर और 8,087 करोड़ रुपये पुनर्भुगतान पर खर्च हुए — विकास के लिए उनके कार्यकाल में उधार लिए गए 29,046 करोड़ रुपये में से केवल 8,693 करोड़ रुपये ही बचे. उन्होंने कहा, “हमारे कर्ज़ का 70 प्रतिशत सिर्फ पुराने बकाये का भुगतान करता है.”

मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर न्याय के लिए दबाव बनाने के लिए राज्य के लोगों, कर्मचारियों और विधानसभा को एकजुट करने का संकल्प लेते हुए लड़ाई जारी रखने की कसम खाई. उन्होंने घोषणा की, “मेरी सरकार इस चुनौती का मिलकर सामना करने के लिए प्रतिबद्ध है.” उन्होंने आरडीजी में अनुचित कटौती के खिलाफ एकजुट रुख का संकेत दिया, लेकिन अगले साल ग्रांट घटकर 3,257 करोड़ रुपये रह जाने के साथ, संभावनाएं मुश्किल हैं. विश्लेषकों ने ऋण जाल की चेतावनी दी है: जब राजस्व का 25 प्रतिशत हिस्सा पुराने कर्ज़ों का भुगतान करता है और 72 प्रतिशत नए कर्ज़ों से ऑपरेशन लागतों को कवर किया जाता है, तो विकास रुक जाता है. सीएजी का अनुमान है कि देनदारियां जल्द ही 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती हैं, जो एक छोटी, प्रकृति-निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है.

शिमला के एक अर्थशास्त्री अर्पण चौहान ने कहा, “राजस्व व्यय में कमी लानी चाहिए – सबसे गरीब लोगों को मुफ्त बिजली की सुविधा सीमित करनी चाहिए, भर्ती पर रोक लगानी चाहिए और घाटे में चल रहे सरकारी उद्यमों में सुधार करना चाहिए. उधारी को पूंजी परियोजनाओं में स्थानांतरित किया जाना चाहिए: जलविद्युत संयंत्रों, सौर फार्मों और पर्यटक सड़कों के लिए सालाना 15,000 करोड़ रुपये, जिसका लक्ष्य 1:3 राजस्व-से-पूंजी अनुपात है.”

उन्होंने आगे कहा, “स्वयं कर राजस्व को जीएसडीपी के 8 प्रतिशत या 18,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाना चाहिए. जलविद्युत रॉयल्टी 12-15 प्रतिशत से बढ़कर 20-25 प्रतिशत हो सकती है, जिससे 1,000 करोड़ रुपये जुड़ सकते हैं; होटलों और परिवहन पर 5 प्रतिशत पर्यटन कर से 1,500 करोड़ रुपये मिल सकते हैं; और रेत और बजरी पर सख्त खनन शुल्क से 500 करोड़ रुपये मिल सकते हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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