बीस वर्षीय टीना बात करते-करते थक गई है और यह स्वाभाविक भी है- वह हर दिन में कम से कम सौ फोन कॉल तो करती ही होगी. फोन मिलाओ, बात शुरू करो, फिर सवाल-जवाब का सिलसिला…..फोन काटो और फिर से बार-बार यही क्रम दोहराते रहो.
टेलीकॉलर टीना कहती है, ‘मैं ऑफिस में फोन पर इतनी बात कर लेती हूं कि घर पर बात करने का मन नहीं करता.’ काम खत्म होने के बाद आखिर में केवल चिड़चिड़ापन और थकावट ही हावी नजर आती है.
टीना उन हजारों-लाखों युवा भारतीयों में शामिल है, जो स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज पहुंचने की कोशिश करने से पहले सिकुड़ते नौकरी के बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए मशक्कत करने लगते हैं. ‘कॉलिंग’, जैसा इन नौकरियों को अनौपचारिक तौर पर कहा जाता है, साधारण परिवारों से आने वाले और अपने घरों में पहली पीढ़ी के शिक्षित भारतीयों युवाओं के लिए आजीविका का सबसे आसान तरीका है. अपना, वर्कइंडिया, जॉबहाई, हायरेक्ट जैसे ऐप उन्हें हर दिन हजारों नए टेलीकॉलर जॉब ऑफर करते हैं.
उनकी नौकरी 1990 के दशक में आईटी बूम के शानदार दिनों की तुलना में बहुत अलग है, जब कुछ सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय और फॉर्च्यून 500 में शामिल कंपनियों ने अपना काम भारत आउटसोर्स करना शुरू किया था. इसने ‘कॉल सेंटर’ और कांच की दीवारों वाले बड़े-बड़े कॉरपोरेट दफ्तरों को जन्म देखा, शहरों का पूरा रंगरूप ही बदल गया और लाखों शिक्षित और अंग्रेजी बोलने वाले युवा भारतीयों को अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां मिलने लगीं.
तीस साल बाद सूरत एकदम बदल चुकी है, बहुराष्ट्रीय कंपनियां ग्राहकों से बातचीत के लिए चैटबॉट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी सेवाएं इस्तेमाल कर रही है, और वो तो तमाम स्थानीय कंपनियां और ऐप हैं जहां व्यापक स्तर पर सामान्य लोगों को काम मिल रहा है. वे या तो टेली-कॉलर्स को आउटसोर्स कर रहे हैं या अपने खुद के सर्विस सेंटर चला रहे हैं. ये ग्रेजुएट और छह अंकों के वेतन के बजाये, उन छात्रों को काम पर रखने को तरजीह देते हैं जो बारहवीं कक्षा पास कर चुके हों और 7,000 रुपये प्रति माह जैसे वेतन पर काम करने को तैयार हों. इसमें ज्यादातर प्रवासी परिवारों से आने वाले युवा होते हैं.
दो साल पहले टेली-कॉलर बनी टीन अब तक अजनबियों से न जाने कितने ऐसे सवाल पूछ चुकी है—क्या वे मर्चेंट नेवी में शामिल होना चाहते हैं, क्या फैशन उद्योग में मॉडल बनना चाहते हैं, क्रेडिट कार्ड लेना चाहते हैं या फिर स्वस्थ जीवन के लिए क्या हर्बल सप्लीमेंट ट्राई करना चाहते हैं.
टीना बताती है, ‘मैंने जहां भी कोशिश की, उन्होंने किसी अनुभवी उम्मीदवार की अपेक्षा जताई. भगवान जाने बारहवीं पास को किस दुनिया में और कैसे कोई अनुभव मिल जाता है? टेली-कॉलर की नौकरी में यह सब जरूरी नहीं था, इसलिए यह एक अच्छी शुरुआत लगी.’
महिलाओं के लिए, नौकरी में रिस्क ज्यादा है
हालांकि, काम के घंटे ज्यादा होते हैं और काम एक ही तरह का है. तमाम लोग टेली-कॉलर्स के साथ लंबी बहस में उलझे रहते है, भले ही सीधे तौर उनके साथ कोई गाली-गलौज न करें. लेकिन इन युवा महिलाओं और पुरुषों की ‘दफ्तर वाली यह नौकरी’ अमूमन बहुत सम्मान के साथ नहीं देखी जाती है.
टीना ने बहुत कम लोगों को बताया है कि वह एक टेलीकॉलर है. जो लोग जानते हैं वे उसे ‘लड़कों से बात करने के बदले’ पैसा कमाने का ताना मारते हैं. दिल्ली में टीना के पड़ोस में रहने वाली एक ‘आंटी’ ने कहा, ‘उनकी बेटी कॉलिंग इंडस्ट्री में है और लड़कों का मनोरंजन करती है.’
आईटी बूम के समय के उलट, जब लोग ‘कॉल-सेंटर’ की नौकरी की इच्छा रखते थे, टीना टेली-कॉलर नहीं बनना चाहती थी. लेकिन महामारी ने उसे अपनी पढ़ाई बीच में रोकने के लिए मजबूर कर दिया. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी टीना अपने पिता की मदद के लिए 2020 में कॉल-सेंटर कर्मचारी बन गई. उसके पिता घरों में पेंट करने वाले दिहाड़ी मजदूर हैं.
उसकी दोस्त उमा ने अनमने ढंग से उसे ‘कॉलिंग’ की दुनिया से परिचित कराया. टीना ने बताया, ‘उसने यह बात छिपा रखी थी कि वह तमाम तरह के उत्पाद बेचने के लिए लोगों को फोन करती है. लेकिन जब मैंने जोर दिया, तो उसने सच्चाई बताई.’
उसका दावा है कि अधिकांश कॉल सेंटर महिलाओं को काम पर रखना पसंद करते हैं. हायरैक्ट इंडिया के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, एचआर रमानी गणेश के मुताबिक, ‘एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि कॉल सेंटर उद्योग में लगभग 71 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं हैं. कई कंपनियों महिलाओं को इस वजह से चुनती हैं कि उनकी स्वीकार्यता ज्यादा होती है और उन्हें समझदार माना जाता है.’
टीना कहती है, ‘आम धारणा यही है कि महिलाएं ज्यादा सहनशील होती हैं. टीना न केवल अपने पड़ोस की ‘आंटी’ के ताने सह लेती है बल्कि उन अजनबियों की भी कई बातें सुन लेती हैं, जिन्हें वह हर रोज कॉल करती है.
दिप्रिंट ने जिन युवतियों से बात की, उनका कहना था कि इस उद्योग में कई बार मर्यादा की रेखा भी पार की जाती है. टीना ने कहा, ‘लोगों का चिल्लाना तो आम बात है, लेकिन कभी-कभी पुरुष सीधे तौर पर फायदा उठाने लगते हैं यहां तक कि उत्पीड़न भी करते हैं. मसलन, एक व्यक्ति ने कथित तौर पर उससे कहा, ‘यदि आप मेरे साथ ‘सेटिंग’ के लिए सहमत हैं तो मैं क्रेडिट कार्ड ले लूंगा.’
सिर्फ दोस्त या परिवार नहीं है, स्पष्ट तौर पर पुरुष ग्राहक भी यही सोचते हैं कि महिलाओं को उनके मनोरंजन के लिए काम पर रखा गया है.
कॉलिंग जॉब—कोई बहुत सम्मानजनक पेशा नहीं
टेली-कॉलर नौकरियां, हालांकि काफी आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन इसमें किसी गरिमा या सम्मान की गारंटी नहीं है. अधिकांश लोग इसके बारे में बात नहीं करना चाहते हैं और हर कुछ महीनों में अपनी कंपनी बदलना चाहते हैं.
उमा, जो 20 वर्ष की है, टेली-कॉलर के रूप में अपनी नौकरी को लेकर लगभग शर्मिंदगी महसूस करती है. अब एक बर्गर आउटलेट में कैशियर और 10,000 रुपये प्रतिमाह कमाने वाली उमा कहती हैं, ‘आप उस कष्टदायक व्यक्ति के तौर पर अपनी बड़ाई नहीं कर सकते जो आपको लोन या क्रेडिट कार्ड लेने की लिए हर दूसरे दिन परेशान करता रहता है.’
दूसरी ओर, टीना अपने काम में ही ‘अटककर’ रह गई है. अपनी पहली नौकरी के दौरान वह एक ऐसी कंपनी के लिए टेली-कॉलर थी, जो भारत के कुछ सबसे बड़े बैंकों के लिए सेवाएं प्रदान करती थी. उसे अजनबियों को क्रेडिट कार्ड लेने के लिए राजी करना होता था. उसे हर दिन 200 से अधिक फोन कॉल करने के लिए 7,000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता था.
उसने बताया, ‘दबाव बहुत ज्यादा था. मेरा वेतन हर दिन दो सफल लीड पर निर्भर करता था. शुरुआती दिनों में मैं किसी को भी क्रेडिट कार्ड लेने के लिए राजी नहीं कर पाती थी.’
तीन सप्ताह के भीतर उसने नौकरी छोड़ दी. उसकी अगली ‘कॉलिंग’ नौकरी बच्चों के वर्ग में एक मॉडलिंग एजेंसी के लिए थी. उसका काम लोगों को फोन करके यह पता लगाना था कि क्या उनके 15 साल से कम उम्र के बच्चे हैं, और फिर यह पूछना कि क्या वे चाहते हैं कि उनका बच्चा एक मॉडल बने. यह काम क्रेडिट कार्ड बेचने से ज्यादा कठिन था.
वह माता-पिता से पूछती—‘क्या आप अपने बच्चे का पोर्टफोलियो बनवाना चाहते हैं? हम इसे 10,000 रुपये में बनाएंगे.’ लेकिन उसे इस तरह की कॉल को व्यवसाय में बदलने में सफलता नहीं मिली और उसने फिर से नौकरी छोड़ दी. इस बार उसे एक लोन कंपनी के लिए ‘कॉलिंग जॉब’ मिली.
यहां स्थिति थोड़ी बेहतर है क्योंकि उसे अब अजनबियों को कॉल करने की जरूरत नहीं है. इसके बजाये, वह उस टीम का हिस्सा है जो उन लोगों से बात करती है जिन्होंने लोन लेने में रुचि दिखाई है. उसे अभी भी एक दिन में लगभग 200 कॉल करने पड़ते हैं, लेकिन वह 10,000 रुपये का वेतन पाती है.
टीना के लिए ‘कॉलिंग’ जॉब सिर्फ अपनी मंजिल की तरफ एक कदम भर है. वह इग्नू में कंप्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक की पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए यह काम कर रही है.
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लेकिन नौकरी तो नौकरी है
अधिकांश स्टार्ट-अप और ऐप-आधारित कंपनियां ऐसे छात्रों को काम पर रखती हैं जिन्होंने अभी-अभी स्कूल पास किया हैं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की है. इन लड़कों में एक अतिरिक्त क्षमता होनी जरूरी है—शांत रहें और बिना आपा खोए अपना काम करें. क्योंकि नौकरी बनाए रखने का दबाव हमेशा रहता है.
ऋषिकेश का परिवार दशकों पहले राजस्थान के श्री गंगानगर से दिल्ली आकर बस गया था, और वह यह दिखाने के लिए उसके पास एक दफ्तर वाला जॉब है, एक ऐप के साथ ‘कॉलिंग’ पेशे का हिस्सा बना गया है. इसमें उसे 13,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता है. उसने बताया, ‘मेरा समुदाय अभी भी काफी रूढ़िवादी है और अमूमन किसी के लिए भी 18 या 19 की उम्र तक (विवाह के लिए) रिश्ता खोज लिया जाता है.’ 20 साल के ऋषिकेश पर शादी का दबाव है, और ऑफिस की नौकरी से उसे वह सम्मानित दर्जा दिलाती है जो किसी उपयुक्त जीवनसाथी की तलाश के लिए जरूरी है.
उसके पड़ोसियों और परिवार का मानना है कि वह अपने ऑफिस में जरूरी काम करता है और थका-हारा घर आता है. वह कहता है, ‘लेकिन मैं केवल हर्बल उत्पाद बेचता हूं. जब वेबसाइट पर आने वाले लोग अपना नंबर छोड़ते हैं, तो हम उन्हें कॉल करते हैं और पूछते हैं, ‘सर, आपने इस उत्पाद को कार्ट में जोड़ा लेकिन खरीदा नहीं. क्या मैं जान सकता हूं क्यों?’
जितनी कॉल की जाती हैं, उनमें लगभग 30 प्रतिशत सफल होनी चाहिए. लेकिन महामारी के दौरान अधिकांश लोग उत्पाद खरीदने को तैयार नहीं होते थे. ऋषिकेश ने बताया, ‘मैंने छह महीने बाद नौकरी छोड़ दी और हर्बल दवाएं बेचने वाली एक दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली.’
हालांकि, वेतन थोड़ा कम है लेकिन नौकरी ने उसकी स्थिति जरूर बेहतर कर दी है.
कॉन्टैक्ट लेंस और चश्मा बेचने वाली कंपनी के कॉल सेंटर में काम करने वाले 20 वर्षीय रंजीत ने कहा, ‘कॉलिंग एक ऐसा काम है जो हर दिन आपके धैर्य की परीक्षा लेता है.’ वह एक सहकर्मी के अनुभव को याद करता है जिसे एक ग्राहक ने अपमानित कर दिया था. उसका अहंकार इसे सहन नहीं कर पाया, ‘तो उसने ग्राहक का नंबर नोट कर लिया और फिर उसे निजी फोन से कॉल करके काफी खरी-खोटी सुनी दी.’
साप्ताहिक कॉल ऑडिट के दौरान यह मामला उठा क्योंकि ग्राहक ने कंपनी में शिकायत दर्ज करा दी थी. टीम लीडर ने उसे डांटते हुए दोहराया जो पहले दिन बता दिया गया था—कम्युनिकेश, शिष्टता और धैर्य ही इस पेशे का मूलमंत्र है.
रंजीत एक शिक्षक बनना चाहता था, लेकिन पैसा कमाने के फेर में फंस गया. उसने स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीए कोर्स के लिए नामांकन के साथ-साथ नौकरी भी कर ली. उसने कहा, ‘यह मेरी दूसरी नौकरी है और मैं इसे भी छोड़ने की सोच रहा हूं. मैं इतना दबाव झेलकर कॉलिंग को अपना पेशा नहीं बना सकता.’
इंस्टा लाइफ
घर पर टेली-कॉलर अपने परिवार से अलग-थलग महसूस करते हैं और दफ्तर में कॉल करने को लेकर अपने साथियों के साथ उनकी बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा बनी रहती है. महीने में केवल चार दिन की छुट्टी और व्यस्त वर्क शेड्यूल के कारण उनका दोस्तों के साथ मिलना-जुलना भी बहुत संभव नहीं हो पाता है.
ऐसे में कई लोग सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं, और इंस्टाग्राम ही उनका प्लेग्राउंड होता है. और इस पर रील बनाना-देखना उनका शगल बना हुआ है.
ब्लैक टॉप पहने टीना वॉशरूम से एक सेल्फी पोस्ट करती हैं. पोस्ट पर कैप्शन दिया गया है, ‘लाइफ ही सबसे बड़ी पार्टी है जिसमें आप हमेशा शामिल रहते हैं.’ उनकी फोटो के हाइलाइट्स शीर्षक हैं, ‘लाइफ इज अमेजिंग’, ‘रॉयल एंट्री’, और ‘आई एम यूनिक’. इंस्टाग्राम पर टीना एक बेहद आत्मविश्वासी महिला हैं, जो ‘तुझ जैसे 36 फिरते हैं, मेरे वर्गी और ना होनी वे’ जैसे गानों पर फिल्टर और लिप-सिंक इस्तेमाल करती हैं.
उनका भविष्य सवालों के घेरे में है. यद्यपि ये नौकरियां हमेशा उपलब्ध होती हैं, लेकिन इन्हें छोड़ने की भी दर काफी होती है और सफलता का भी एक निर्धारित मुकाम है, जहां तक आप पहुंच सकते हैं. एक टीम लीडर बनना ही इस पेशे की आखिरी सीढ़ी है, जहां पहुंचकर अधिकतम 20 से 30 हजार तक वेतन कमाया जा सकता है.
टीना और उमा को आगे की संभावनाओं का जवाब पता है. उमा ने कहा, ‘ज्यादातर लड़कियां शादी के बाद नौकरी छोड़ देती हैं. कोई भी पति नहीं चाहेगा कि उनकी पत्नियां दूसरे पुरुषों से बातचीत को अपनी आजीविका का साधन बनाएं.’
वही, रंजीत और ऋषिकेश किसी ऐसे अवसर की तलाश में हैं जिससे उन्हें कोई कायदे की नौकरी मिल सके, लेकिन ‘किसी 12वीं पास’ के लिए यह इतना काम भी नहीं है. अगर वे ‘कॉलिंग’ में बने रहते हैं, तो वे ज्यादा से ज्यादा टीम लीडर बनने तक की रैंक हासिल कर पाएंगे और दूसरे युवाओं की फौज पर फोन उठाने और अधिक से अधिक कॉल करने के लिए दबाव बढ़ाने तक ही सीमित रह जाएंगे. ‘हाय, आई एम कॉलिंग फ्रॉम….’
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