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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशजजों के खाली पदों को भरने में तेजी लाने के लिए CJI ने HCs के मुख्य न्यायाधीशों को लिखा पत्र

जजों के खाली पदों को भरने में तेजी लाने के लिए CJI ने HCs के मुख्य न्यायाधीशों को लिखा पत्र

कार्यभार संभालने के एक सप्ताह बाद भेजे गए पत्र में सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीशों का ध्यान उच्च न्यायपालिका में चल रहे रिक्तियों के संकट की ओर खींचा और उनसे जितना जल्दी हो सके, नामों की सिफारिश भेजने का आग्रह किया.

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नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने सभी 25 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर बड़ी संख्या में रिक्तियों को भरने के लिए जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए कहा है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

24 अप्रैल को कार्यभार संभालने के एक सप्ताह बाद भेजे गए इस पत्र में सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीशों का ध्यान उच्च न्यायपालिका में चल रहे रिक्तियों के संकट की ओर खींचा और उनसे जितना जल्दी हो सके, नामों की सिफारिश भेजने का आग्रह किया है.

दिप्रिंट ने कुछ मुख्य न्यायाधीशों से बात की, जिन्होंने पत्र मिलने की पुष्टि की. हालांकि पत्र में नाम भेजने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई लेकिन उसमें जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में निर्धारित समय सीमा का उल्लेख किया गया है.

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली एक बैंच ने भी जजों की नियुक्ति के मामले में इस एमओपी अनुच्छेद को दोहराया था. फैसले में केंद्र सरकार के लिए एक समय सीमा तय की गई थी, जिसके भीतर उसे इंटेलिजेंस ब्यूरो की इनपुट लेकर नामों को स्वीकृति देने के लिए कहा गया था.

एमओपी के अनुसार, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को किसी भी रिक्ति के पैदा होने से छह महीने पहले जजों के पद पर नियुक्ति के लिए नाम सुझाने चाहिए.

बतौर न्यायपालिका प्रमुख अपने 16 महीने के कार्यकाल में उच्च न्यायालयों में 40 प्रतिशत तक रिक्तियों को भरना, सीजेआई रमन्ना के सामने एक मुख्य चुनौती है. उसके अलावा, फिलहाल शीर्ष अदालत में भी सात पद खाली हैं और 25 अगस्त 2022 को सीजेआई रमन्ना का कार्यकाल पूरा होने से पहले छह और पद खाली होने की संभावना है.


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‘गहरे संकट’ से गुज़र रहे हैं उच्च न्यायालय

अपने फैसले में जस्टिस बोबड़े की बेंच ने कहा था कि हाई कोर्ट्स ‘गहरे संकट‘ में हैं और बहुत से हाई कोर्ट्स स्वीकृत संख्या से 50 प्रतिशत से भी कम पर काम कर रहे हैं.

सीजेआई रमन्ना का पत्र इसलिए भी अहम हो जाता है कि जज नियुक्ति मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने इस मामले में उच्च न्यायालयों से हो रही देरी की ओर ध्यान आकर्षित किया था, जिन्होंने अपने यहां की करीब 53 प्रतिशत रिक्तियों के लिए अभी तक नाम नहीं भेजे थे.

शीर्ष अदालत में पेश किए गए केंद्र सरकार के नोट के अनुसार, उच्च न्यायालयों के जजों की कुल स्वीकृत संख्या 1,080 है, जिसमें 416 जजों के पद रिक्त हैं. शीर्ष विधि अधिकारी ने दावा किया कि सरकार को हाई कोर्ट्स से केवल 196 प्रस्ताव मिले थे, जबकि 220 रिक्तियों के लिए कोई सिफारिशें नहीं थीं.

केंद्र का ये रुख बेंच की आलोचना के जवाब में था, जिसने कई हाई कोर्ट्स की ओर से मिले प्रस्तावों और सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम द्वारा स्वीकृत नामों पर फैसला न करने पर सरकार से सवाल किए थे. एमओपी में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि नियुक्ति करने वाली इकाई, जिसमें सीजेआई तथा शीर्ष अदालत के दो सबसे वरिष्ठ जज होते हैं, एक बार स्वीकृति दे दे, तो फिर सरकार को नियुक्तियों को अधिसूचित कर देना होता है.

शीर्ष अदालत की फटकार के बाद केंद्र ने आखिरकार 45 नामों को बतौर हाई कोर्ट जज, सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम के पास भेज दिया.


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पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

दिप्रिंट से बात करते हुए एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘ये सही है कि एमओपी के हिसाब से चीफ जस्टिस को पहले से नाम भेज देने चाहिए. लेकिन चीफ जस्टिस और अधिक नाम भेजने से इसलिए झिझकते हैं, क्योंकि पहले के भेजे गए नाम ही बहुत समय तक लटके रहते हैं, जिससे प्रस्तावों को लेकर अनिश्चितता और संदेह की स्थिति पैदा हो जाती है. केंद्र की ओर से अत्यधिक देरी भी एक कारण है कि मुख्य न्यायाधीशों के लिए अब अच्छे और उपयुक्त उम्मीदवार तलाशना मुश्किल हो गया है’.

पिछले महीने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी मुख्य न्यायाधीशों के मन में चल रही इस अनिच्छा और आशंका का उल्लेख किया गया. लेकिन फिर भी उसमें ज़ोर दिया गया था कि ‘एचसी के मुख्य न्यायाधीशों के लिए ‘ज़रूरी’ है कि वो ‘जितनी जल्दी हो सके, रिक्तियों से संबंधित सिफारिशें भेजने की कोशिश करें’.

इसी से जुड़े एक फैसले में, उसी बेंच ने संविधान की धारा 224ए के अनुसार, अस्थायी जजों की नियुक्ति को मंजूरी दी थी, ताकि रिक्तियों के संकट और उच्च न्यायालयों में लंबित पड़े मामलों से निपटा जा सके, जहां 54 लाख से अधिक केस, अंतिम फैसले के इंतज़ार में हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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