मुंबई: पिछले 15 सालों से शमीम शेख मुंबई के चेंबूर रेलवे स्टेशन के पास की एक सड़क पर अपने ठेले पर महिलाओं के कपड़े बेचते आ रहे हैं. उन्होंने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के तीन चुनावों को देखा है. वह अच्छे से जानते हैं कि हर बार उनके जैसे फेरीवालों को चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में जिक्र किया जाता है. उनके लिए कुछ योजना भी बनाई जाती है या कुछ वादे किए जाते हैं, मगर जमीनी तौर पर होता कुछ नहीं है.
इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी में मुंबई की अपनी यात्रा के दौरान नई शुरू की गई पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (स्वनिधि) योजना के तहत फेरीवालों को 10,000 से 1.25 लाख रुपये का लोन वितरित किया, तो शेख को इससे ज्यादा उम्मीद नहीं थी.
केंद्र सरकार की ओर से पिछले महीने स्वनिधि योजना की घोषणा करने के बाद, बीएमसी ने लगभग हर वार्ड से लोन के इच्छुक 8,000 फेरीवालों का चयन किया था.
शेख ने सवाल किया ‘मैं लोन लेकर क्या करूंगा?’. वह आगे कहते हैं, ‘भले ही मैं लोन के लिए आवेदन करूं और वो मुझे भी मिल भी जाए तो भी क्या? मुझे इसका ब्याज तो देना ही होगा. फिर एक दिन बीएमसी आएगी और हमें यहां से निकालने की कोशिश करेगी, मेरा माल जब्त कर लिया जाएगा या मुझ पर जुर्माना लगाया जाएगा. इस सब में मेरा और पैसा लग जाएगा.’
शेख जैसे हॉकर मुंबई की स्ट्रीट कल्चर का एक अभिन्न हिस्सा हैं. आज़ाद हॉकर्स एसोसिएशन के अनुसार उनकी संख्या लगभग 5 लाख है.
दरअसल वो राजनीतिक क्रॉसहेयर में फंसकर रह गए हैं. सभी पार्टियां उन्हें किसी न किसी तरह से अपने चुनावी अभियान की रणनीति के हिस्से के रूप में इस्तेमाल करती आई हैं.
कांग्रेस ने पारंपरिक रूप से रेहड़ी-पटरी वालों के साथ खड़े होने की कोशिश की है. वह उनके अधिकारों की रक्षा करने की बात कहती आई है, जबकि भाजपा और शिवसेना ने अतीत में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया था कि उनके पास लाइसेंस और डोमिसाइल प्रमाण पत्र हों.
पिछले 27 सालों से चेंबूर में ठेले पर कपड़ा बेचने वाले परमेश्वर केसरी कहते हैं, ‘हमारे नाम पर वोट बटोरने की कोशिश की जाती है. और ऐसा सिर्फ शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) या भाजपा ही नहीं करती है. हर कोई यहां सिर्फ राजनीति के लिए है.’
इस साल बीएमसी चुनाव होने की उम्मीद है.
‘हर कोई राजनीति कर रहा है’
अपनी स्थापना के बाद से राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) मुंबई में उत्तर भारतीयों को निशाना बनाती आई हैं.
2017 में मनसे कार्यकर्ताओं ने सांताक्रूज़, कल्याण और डोंबिवली में दर्जनों स्टालों में तोड़फोड़ की थी. उस समय पार्टी प्रमुख ठाकरे ने रेलवे स्टेशनों से ‘अवैध’ हॉकरों से जगह को खाली करने का अल्टीमेटम दिया था.
MNS के आक्रामक रुख के जवाब में इसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी पूर्व शिवसेना ने सालों से इस मुद्दे पर एक कूटनीतिक रुख बनाए रखा है. पार्टी शहर में लाइसेंस वाले फेरीवालों के लिए समर्थन तो व्यक्त करती रही, लेकिन अवैध फेरीवालों के मुद्दे पर चुप रही.
2017 में तत्कालीन बीजेपी-शिवसेना की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने फेरीवालों के लिए नीति तैयार करने को मंजूरी दे दी थी और कहा था कि जिस व्यक्ति के पास डोमिसाइल सर्टिफिकेट (इस बात का सबूत है कि वे पिछले 15 सालों से राज्य में रह रहे हैं) होगा, उसके हॉकिंग लाइसेंस के लिए विचार किया जाएगा.
हालांकि 2016 में बीएमसी की तरफ से किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 1,28,444 फेरीवालों में से सिर्फ 15,361 ही लाइसेंस प्राप्त करने के योग्य पाए गए थे.
पिछले साल राज्य सरकार ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट की जरूरत को खत्म कर दिया था. यह एक ऐसा कदम है जो सत्तारूढ़ गठबंधन को फायदा पहुंचा सकता है. अपने इस फैसले के बारे में बताते हुए शहरी विकास विभाग- जो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के अंतर्गत आता है- ने कहा था कि क्योंकि अधिकांश फेरीवाले दूसरे राज्यों से यहां आए हैं इसलिए वे इस तरह के डोमिसाइल सर्टिफिकेट पेश नहीं कर पा रहे हैं.
जवाबदेह शासन को सक्षम करने की दिशा में काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2022 में, ‘बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में फेरीवालों और पटरी पर सामान बेचने वालों को सभी सुविधाओं देने का वादा किया था. वहीं एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) ने वादा किया था कि विशिष्ट हॉकर क्षेत्र बनाए जाएंगे और INC (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के घोषणापत्र में हॉकर्स लाइसेंस में सुधार करने की बात कही थी.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बीएमसी की स्थायी समिति को 2017 और 2021 के बीच हर साल पार्षदों से फेरीवालों के बारे में औसतन 32 सवाल मिले. हालांकि, इनमें से सिर्फ 6 फीसदी सवाल चार प्रमुख पार्टियों बीजेपी, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की तरफ से आए थे.
आजाद हॉकर्स एसोसिएशन के महासचिव जयशंकर सिंह ने कहा, ‘हम दुखी हैं. हॉकर्स जोन फाइनल नहीं हुआ है, पांच-छह साल पहले जो सर्वे हुआ था, वह पूरा नहीं हुआ है. कोई वेंडिंग सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया है, कोई पार्टी हमारी परवाह नहीं करती है, हर कोई राजनीति कर रहा है.’
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हॉकर्स पॉलिसी लाने में देरी
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में फेरीवालों के लिए एक नीति बनाने का आदेश पारित किया था. इसके बाद संसद ने स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम पारित किया और 2016 में बीएमसी ने फेरीवालों का सर्वेक्षण शुरू कर दिया था.
वर्तमान में बॉम्बे हाई कोर्ट अवैध फेरीवालों से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा है और हॉकिंग जोन के बाहर काम करने वाले फेरीवालों पर मौजूदा नीति को लेकर बीएमसी और राज्य सरकार से जानकारी मांगी है. क्योंकि इससे सड़क पर पैदल चलने वालों की आवाजाही बाधित होती है.
स्वनिधि की शुरुआत करने के बाद दिप्रिंट ने कई फेरीवालों से बात की थी. ज्यादातर हॉकर्स का जवाब एक जैसा ही था कि उन्हें इस सबसे ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं.
कपड़ा विक्रेता परमेश्वर केसरी ने कहा, ‘हम खबरों में नीति के बारे में सुनते आए हैं लेकिन अभी तक कुछ भी लागू नहीं किया गया है. यह वोट बैंक की राजनीति है. सब बातें करते हैं लेकिन काम कोई नहीं करता है. बीएमसी हमें कब बाहर कर देगी, इसे लेकर हमेशा एक डर बना रहता है.
पांच दशक से ज्यादा समय से रेहड़ी लगा रहे हनुमान प्रजापति ने बताया कि वह इस कारोबार के उतार-चढ़ाव से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास हमारा समर्थन करने वाला कोई नहीं है. लेकिन मैं कोई और काम करना नहीं जानता, इसलिए मैं इसे करता रहूंगा. कोई भी हमारे या हमारे परिवारों के लिए नहीं सोचता है.
दिप्रिंट ने फोन और मैसेज के जरिए बीएमसी के अतिरिक्त नगर आयुक्त आशीष शर्मा से संपर्क किया था, लेकिन इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के समय तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने के बाद लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.
क्या कहते हैं राजनीतिक दल
बीजेपी को उम्मीद है कि बीएमसी चुनाव में स्वनिधि उनके लिए काम करेगी.
नगर पार्षद और भाजपा नेता विनोद मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘दूसरे दलों को फेरीवालों के उत्थान में कोई दिलचस्पी नहीं है, वह सिर्फ राजनीति करना जानते है. एमवीए सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे फेरीवालों को फायदा हो. पीएम मोदी पहले रिसर्च करते हैं और फिर किसी नीति की घोषणा करते हैं.’
उधर कांग्रेस भी फेरीवालों के अधिकारों की रक्षा के लिए लगभग एक दशक तक लड़ाई लड़ने का दावा कर रही है. पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि कोई राजनीति कर रहा है या नहीं, लेकिन मैंने लगभग 10 सालों तक फेरीवालों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है. उन्हें सुरक्षा दी जानी चाहिए.’ वह आगे कहते हैं, ‘कानून को बीएमसी द्वारा लागू किया जाना है. शिवसेना ने कानून लागू करने की इच्छा नहीं दिखाई है और भाजपा भी उत्सुक नहीं है. लेकिन हमें इस पर किसी राजनीतिक वादे की जरूरत नहीं है. हम चाहते है कि बस कानून लागू किया जाए.’
हालांकि 25 सालों तक बीएमसी पर शासन करने वाली पूर्ववर्ती शिवसेना ने फेरीवालों के लिए एक नियमन का समर्थन किया था, लेकिन फिर भी अभी तक फेरीवालों की नीति को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है.
मुंबई के पूर्व मेयर और शिवसेना (यूबीटी) नेता किशोरी पेडनेकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारी नीति तैयार है. दस्तावेज तैयार हैं लेकिन कोर्ट में केस चल रहा है. हम कहना चाहते हैं कि फेरीवालों का क्षेत्र निर्धारित किया जाना चाहिए और वहां अनुशासन होना चाहिए. हम समझते हैं कि कोई व्यक्ति पूरे समुदाय को नहीं निकाल सकता. उनकी रोजी-रोटी का ध्यान रखा जाए. उन्हें लाइसेंस भी दिया जाना चाहिए, लेकिन यह व्यवस्थित रूप से करना होगा.’
(अनुवादः संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
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