scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशकिसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में हरियाणा ने 2 लाख एकड़ ज़मीन को जलभराव, लवणता से बचाने की योजना शुरू की

किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में हरियाणा ने 2 लाख एकड़ ज़मीन को जलभराव, लवणता से बचाने की योजना शुरू की

हरियाणा के 8 जिलों में किसानों को कृषि भूमि पर लवणता और जलभराव की दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, विशेषज्ञ स्थलाकृति और उच्च जल स्तर को इसका कारण बताते हैं.

Text Size:

गुरुग्राम: हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण (एचडब्ल्यूआरए) के तत्वावधान में पांच सरकारी विभागों के एकीकृत दृष्टिकोण के साथ खेतों में होने वाले जलभराव और लवणता से प्रभावित लगभग दो लाख एकड़ ज़मीन को पुनः प्राप्त करने के लिए योजना शुरू की गई है.

एचडब्ल्यूआरए की अध्यक्ष केशनी आनंद अरोड़ा ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, हरियाणा में नौ लाख एकड़ से अधिक ज़मीन जलभराव और लवणता से प्रभावित थी.

इसमें से दो लाख एकड़ में जल स्तर 0 से 1.5 मीटर के बीच है, जिससे यह खेती के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त है. लगभग सात लाख एकड़ भूमि में जल स्तर 1.51 से 3 मीटर के बीच है.

अरोड़ा ने कहा कि सर्वे में पाया गया कि पूरी ज़मीन के पुनर्ग्रहण के लिए कोई एक विधि लागू नहीं की जा सकती है. “इसलिए, सरकार ने एक एकीकृत दृष्टिकोण की योजना बनाई है जिसके तहत समस्या की सीमा के आधार पर भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए उपसतह जल निकासी, वर्टिकल जल निकासी, खारा जल जलीय कृषि और हरी खाद जैसे विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाएगा. इस अभ्यास में हरियाणा सरकार के कृषि, सिंचाई, वन और मत्स्य पालन विभाग शामिल होंगे. इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) भी शामिल होगा.”

उन्होंने आगे कहा कि वर्टिकल जल निकासी उस ज़मीन पर लगाई जाएगी जहां जल स्तर 1.51 से 3 मीटर के बीच है.

जलभराव और लवणता बड़ी समस्याएं हैं जो हरियाणा के कई जिलों में भूमि के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं और सरकार पिछले दो दशकों में प्रयासों के बावजूद इससे छुटकारा नहीं पा सकी है.

नाम न छापने की शर्त पर एक कृषि विशेषज्ञ के अनुसार, आठ जिलों – झज्जर, रोहतक, भिवानी, सोनीपत, जिंद और सिरसा, चरखी दादरी और फतेहाबाद – की ज़मीन गंभीर रूप से प्रभावित है.

विशेषज्ञ ने कहा, “इन जिलों के बड़े क्षेत्र लवणता और जलभराव की दोहरी समस्याओं से प्रभावित हैं, जिससे भूमि कृषि के लिए अनुपयुक्त हो गई है.”

विशेषज्ञ ने आगे कहा कि हालांकि, राज्य सरकार ने करनाल स्थित सीएसएसआरआई के साथ समन्वय में अपने हरियाणा ऑपरेशनल पायलट प्रोजेक्ट (एचओपीपी) के तहत कृषि की ज़मीन को पुनः प्राप्त करने के प्रयास किए थे, लेकिन काम की गति बहुत धीमी थी.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने फरवरी 2020 में राज्य विधानसभा को बताया था कि 12 गांव – फतेहपुरी, गोयला कलां, खखाना, लाडपुर, मछरौली, पटासनी, सबिली, सिलाना, सिलानी पाना केसो, सिलानी पाना जालिम, चंदोल और चांदपुर जलजमाव एवं लवणता से प्रभावित थे.

क्या यह सच है कि बादली विधानसभा क्षेत्र में जलभराव और लवणता की समस्या थी और क्या राज्य सरकार के पास इस समस्या के समाधान के लिए एक नई नहर बनाने का प्रस्ताव था, इस सवाल के जवाब में सीएम ने कहा, “वर्तमान में इन गांवों की खारी जल-जमाव वाली मिट्टी के सुधार के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. इसके अलावा, नई नहर का निर्माण लवणता की समस्या को दूर करने का समाधान नहीं है.”

इस सवाल के जवाब में प्रदान की गई “अतिरिक्त जानकारी” में सरकार ने कहा कि हरियाणा जलयुक्त और लवणीय ज़मीन के सुधार के लिए सब सरफेस ड्रेनेज (एसएसडी) प्रणाली के कार्यान्वयन में सबसे आगे है.

जवाब में कहा गया, “जून 2019 तक राज्य में अनुमानित 4,37,940 हेक्टेयर क्षेत्र जलभराव और लवणता की समस्या से प्रभावित है, जिसमें से लगभग 35,809 हेक्टेयर क्षेत्र गंभीर स्थिति (जल स्तर 0-1.5 मीटर) के अंतर्गत है. सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रोहतक, सोनीपत, झज्जर और भिवानी जिलों में आते हैं, इसके बाद जिंद, पलवल, मेवात फतेहाबाद आदि आते हैं, जो बारिश के आधार पर उतार-चढ़ाव होता रहता है.”

इसमें कहा गया है कि हरियाणा ऑपरेशनल पायलट प्रोजेक्ट (एचओपीपी) नाम से एक परियोजना 1994 में नीदरलैंड के तकनीकी सहयोग से शुरू की गई थी.

खट्टर के जवाब में यह भी कहा गया, “कृषि विभाग ने केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई), करनाल के तकनीकी सहयोग से राज्य में 11,240 हेक्टेयर जलयुक्त और लवणीय मिट्टी में एसएसडी परियोजनाएं लागू की हैं. जलजमाव की समस्या की प्रकृति और सीमा के आधार पर सतही जल निकासी, वर्टिकल जल निकासी, जैव-जल निकासी और उप-सतह जल निकासी के माध्यम से निपटा जा सकता है. हालांकि, जहां लवणता और जल-जमाव एक साथ मौजूद होते हैं, वहां उप-सतह जल निकासी प्रणाली बिछाना सबसे प्रभावी तकनीक है. इस तकनीक के जरिए से प्रभावित क्षेत्र को 2-3 साल के भीतर दोबारा हासिल कर लिया गया. इस तकनीक के तहत एक सिस्टम की औसत लागत लगभग 80,000 रुपये प्रति हेक्टेयर है.”

हालांकि, हरियाणा कृषि विभाग ने कहा, “जून 2020 में भूजल सेल द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, राज्य में लगभग 98,27,40 एकड़ (393096 हेक्टेयर) क्षेत्र जल-जमाव और लवणता की समस्या से प्रभावित है, जिसमें से 1,74,470 एकड़ (69788 हेक्टेयर) क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित है (जल स्तर की गहराई 0-1.5 मीटर). राज्य में पिछले दो दशकों के दौरान 28,250 एकड़ जल-जमाव और खारी मिट्टी का क्षेत्र पुनः प्राप्त किया गया है.”


यह भी पढ़ें: हरियाणा सरकार की किसानों को अफ्रीकी देशों में जमीन दिलाने की योजना, विपक्ष ने कहा- कहना आसान, करना मुश्किल


लवणता और जलभराव की समस्या के पीछे क्या है?

केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई), करनाल के एमेरिटस वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार कामरा ने कहा कि जुड़वां समस्या के कई कारण हो सकते हैं.

कामरा ने दिप्रिंट को बताया, “क्षेत्र की स्थलाकृति सबसे बड़े कारणों में से एक है कि क्यों हरियाणा के कई हिस्से लवणता और जलभराव से प्रभावित हैं. झज्जर,रोहतक,भिवानी,सोनीपत और जिंद के इलाकों में गड्ढा है और ये तालाब की तरह हैं और यहां प्राकृतिक जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है. यही कारण है कि इन जिलों के बड़े हिस्से जलभराव से प्रभावित हैं.”

उन्होंने कहा कि फतेहाबाद, सिरसा, पंजाब के मुक्तसर जैसे दक्षिण-पश्चिमी जिलों, बठिंडा और फाजिल्का के कुछ हिस्सों और राजस्थान के हनुमानगढ़ और गंगानगर जिलों में समस्या के पीछे खारा भूजल है.

उन्होंने कहा, “ये क्षेत्र कभी रेत के टीले थे. हालांकि, किसानों ने ज़मीन को समतल करके खेती के लायक बना लिया. कपास की फसल जिसके लिए सभी फसलों में सबसे अधिक मात्रा में कीटनाशकों की ज़रूरत होती है, यहां बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. जब बारिश आती है, तो अत्यधिक कीटनाशक रेतीली मिट्टी में आसानी से घुल जाते हैं और उपमृदा के पानी में मिलकर पानी को खारा और साथ ही पीने के लिए ज़हरीला बना देते हैं. यही कारण है कि पंजाब की मालवा बेल्ट इस क्षेत्र की कैंसर बेल्ट बन गई है.”.

कामरा ने कहा कि इस समस्या को इन तथ्यों से आसानी से समझा जा सकता है कि समुद्री जल की लवणता 22 से 35 डेसी-सीमेंस प्रति मीटर (डीएस/एम) के बीच होती है, जबकि पीने के पानी में लवणता की मात्रा 0.2 से 0.4 डीएस/एम होनी चाहिए.

कामरा ने कहा, “हालांकि, पंजाब और राजस्थान के पड़ोसी जिलों सहित हरियाणा के कई हिस्सों में भूजल 25 से 30 dS/m है.”

उन्होंने कहा कि जलभराव और मिट्टी की लवणता एक साथ चलती है.

उन्होंने आगे कहा, “यदि किसी क्षेत्र में वर्षा 500 मिमी से कम है, जल स्तर 1.5 मीटर (पांच फीट) से ऊपर है और भूजल की लवणता 2 dS/m से अधिक है, तो मिट्टी लवणता के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी.”

विधानसभा में सरकार के जवाब के मुताबिक, झज्जर में 1,419 हेक्टेयर, रोहतक में 5,350 हेक्टेयर, भिवानी में 582 हेक्टेयर, सोनीपत में 1,342 हेक्टेयर, हिसार में 1,513 हेक्टेयर, अंबाला में 570 हेक्टेयर, पलवल में 1,137 हेक्टेयर और 14,330 हेक्टेयर जमीन है. जून 2019 में सिरसा जिले की भूमि में जल स्तर 0 से 1.5 मीटर के बीच था.

कामरा ने कहा कि सीएसएसआरआई को नीदरलैंड से उपसतह जल निकासी तकनीक मिली क्योंकि उसने 1983 से 2003 तक दो दशकों तक यूरोपीय देश के साथ समन्वय किया था.

उन्होंने कहा, “नीदरलैंड इस तकनीक में अग्रणी है और उन्होंने सीएसएसआरआई को इस तकनीक के लिए 3 करोड़ रुपये की मशीन भी उपहार में दी है.”

हालांकि, आईसीएआर के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक वीरेंद्र लाठर ने कहा कि हरियाणा में लवणता और जलभराव की समस्या बहुत गंभीर नहीं है.

लाठर ने कहा, “हरियाणा में लगभग 38 लाख कृषि योग्य ज़मीन में से बमुश्किल 40,000 हेक्टेयर भूमि किसी भी समय जलभराव की चपेट में आती है. अतः यह कुल भूमि का मात्र एक प्रतिशत है. इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में, किसानों के पास खरीफ सीज़न में धान बोने का विकल्प होता है, जिसके लिए वैसे भी स्थिर पानी की आवश्यकता होती है. सर्दियों में रबी के मौसम में समस्या अधिक सामने आती है.”

उन्होंने कहा कि धान की “भागीदारी” किस्म, जो सूखा-सहिष्णु और लवणता-सहिष्णु है, ऐसी भूमि में बोई जा सकती है.

लाठर ने कहा कि जब वे 1970 के दशक में कृषि विज्ञान के छात्र थे, तो पुराने करनाल जिले में भूमि के बड़े हिस्से, जिसमें कैथल जिला और जींद का सफीदों उपमंडल शामिल था, में लवणता और जलभराव की समस्या थी.

उन्होंने कहा, हालांकि, पिछले कुछ साल में धान की रोपाई के साथ, समस्या दूर हो गई है.

राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि पिछले साल अप्रैल में मुख्यमंत्री खट्टर ने खारे पानी वाले क्षेत्रों में एक लाख एकड़ खारी भूमि के सुधार का लक्ष्य रखा था.

उन्होंने कहा, “काम में तेजी लाने और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि विभाग सीएसएसआरआई के साथ मिलकर काम कर रहा है.”

भट्टू में 10 हफ्ते से किसानों का धरना

फतेहाबाद जिले के भट्टू कलां के किसानों ने जनवरी के अंत में सरकार के आश्वासन से पहले जलभराव से प्रभावित अपनी भूमि के उद्धार की मांग करते हुए ‘भूमि सुधार आंदोलन’ के बैनर तले लगभग 70 दिनों तक धरना दिया.

उन्हें पूर्व मंत्री संपत सिंह, पूर्व संसदीय सचिव प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा और कई अन्य नेताओं ने समर्थन दिया.

किसान आंदोलन के एक आयोजक कमल सिंह बिसला ने दिप्रिंट को बताया था कि जलभराव और मिट्टी की लवणता ने उनकी भूमि को बंजर बना दिया है और उन्होंने राज्य सरकार को कई अभ्यावेदन दिए हैं.

उन्होंने कहा कि यह समस्या पिछले तीन दशकों में फैली है. बिसला ने कहा, “शुरुआत में यह केवल फतेहाबाद जिले का बन मंदोरी गांव था, लेकिन यह जल्द ही पीली मंदोरी, थुइयां, ढाबी कलां, ढाबी खुर्द, गादली, समसारन, भट्टू कलां, शेखूपुर और सुलिखेरा में कृषि भूमि तक फैल गया.”

छह बार के विधायक संपत सिंह, जो 1982, 1987, 1991 और 1998 में तत्कालीन भट्टू कलां से चुने गए थे, ने कहा कि जलभराव के कारण हजारों एकड़ भूमि बंजर हो गई है.

बिस्ला ने कहा कि किसानों ने सरकार के इस कथन के बाद कि उनकी समस्या का जल्द ही समाधान किया जाएगा, भट्टू कलां में अपना 10 सप्ताह का विरोध प्रदर्शन 28 जनवरी को समाप्त कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पंजाब-हरियाणा के किसानों ने धरने के साथ मनाई कृषि विरोध की तीसरी वर्षगांठ- MSP, कर्जमाफी रहे मुख्य एजेंडा


 

share & View comments