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Friday, 15 November, 2024
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शादी की उम्र बढ़ाने और भागने वाली लड़कियों से हरियाणा की खापें नाराज़, मेवात ने कहा- 3 साल 100 साल जैसे

महिलाओं की शादी की नई उम्र पर खाप पंचायत के पुरुषों का अडिग विरोध, सिर्फ मुसलमानों के सवाल पर ठहर जाता है. उनका कहना है कि अगर इस क़ानून को मुसलमानों पर भी लागू किया जाता है, तो वो इसे मंज़ूर कर लेंगे.

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जींद/नूह/मेरठ: हज़ारों की संख्या में लोग गाड़ियों और बाइक्स से मीलों का सफर तय करके, पिछले हफ्ते हरियाणा के जींद ज़िले में जाट धर्मशाला पहुंचे, जहां उनका एकमात्र लक्ष्य था भारत में महिलाओं और शादियों के भाग्य का फैसला करना. ये ‘सर्वखाप महापंचायत’ नरेंद्र मोदी सरकार के उस महत्वाकांक्षी क़दम के बाद उठाई गई थी, जिसमें महिलाओं की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर दी गई थी.

आयोजक देव व्रत ढांढा ने सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और फोन कॉल्स के ज़रिए, प्रदेश भर में फैली सैकड़ों खापों के सदस्यों से संपर्क किया. क़रीब 100 खापों और तापों (खाप पंचायत की एक इकाई) ने कार्यक्रम में शिरकत की. सफेद कुर्ता-पाजामा पहने और कंधे पर शॉल लपेटे, क़रीब एक हज़ार किसान जिनमें ज़्यादातर पुरुष, मंच से चिल्ला रहे थे: ‘लड़कियां तीन साल में भाग जाएंगी और समाज में बीमारियां फैलेंगी’.

हर किसी के दिमाग़ में बड़ा सवाल यही था कि पवित्र वंशावली को कैसे बचाकर रखा जाए और किशोर लड़कियों को अशोभित होने से कैसे बचाया जाए.

महापंचायत में शरीक होने वाले फूल कुमार राठी ने पूछा, ‘हमारे रीति-रिवाजों, नियमों और गर्व का क्या होगा?’

धनखड़ खाप के प्रमुख ओपी धनखड़ ने कहा, ‘मां-बाप को ये हक़ दिया जाना चाहिए कि बिगड़ी हुई लड़की की शादी 18 के बाद कर सकें’.

महा आयोजन में प्रचलित भाव हरियाणा के ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण इलाक़ों में, महिलाओं की लैंगिकता और उनके विकल्पों को लेकर, पितृसत्तात्मक चिंताओं को प्रतिबिंबित करता था. महापंचायत की वीडियोज़ में मूछों वाले पुरुष ऐसा बाते कहते हुए देखे जा सकते हैं- ‘लड़की घर की इज़्ज़त होती है’: ‘एक गांव और एक गोत्र में शादी बैन होनी चाहिए’: ‘कॉलेज में बॉयफ्रैंड बनाएंगी और हॉर्मोन्स के चक्कर में माहौल गंदा करेंगी’.

उन्होंने कहा कि एक कमेटी गठित की जाएगी, जो बाल विवाह निषेध (संशोधन) अधिनियम, 2021, के बारे में सरकार से बात करेगी.

खाप पंचायत स्थल से सिर्फ पांच किलोमीटर दूर, जींद के 41 साल पुराने हिंदू कन्या महाविद्यालय की छोटी उम्र की छात्राओं ने, इस इस सारे हो-हल्ले को ‘पुरानी सोच’ कहकर ख़ारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि वो ‘नई सोच’ के दौर की हैं. सलवार कमीज़ और जीन्स तथा स्वेटर्स पहने हुए ये कन्याएं बड़े उत्साह के साथ स्थानीय बाज़ार में उपलब्ध सर्दियों के कोट्स की बातें कर रहीं थीं, और अपने स्मार्ट फोन्स में इंस्टाग्राम पर नौजवान लड़कों के फोटो स्क्रोल कर रहीं थीं.


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हिंदू कन्या महाविद्यालय, जींद, हरियाणा की छात्राएं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट.2019 से कालेज हेड चली आ रहीं अनिता कुमारी ने कहा, ‘ये एक अच्छा फैसला है. हर साल हम देखते हैं कि पैरेंट्स हाज़िरी में ढील मांगते हैं, क्योंकि वो 18 वर्ष के आसपास अपनी बेटियों की शादी कर देते हैं, और जब उन्हें गर्भ ठहरता है तो फिर मातृत्व अवकाश मांगते हैं. इससे कुछ मेधावी लड़कियों का वर्तमान और भविष्य दोनों ख़राब होते हैं. इसलिए जो लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं, उन्हें निश्चित रूप से इससे ताक़त मिलेगी’.

लेकिन, बहुत सी शिक्षिकाओं का कहना था कि महिला की शादी की सही उम्र वो होती है जब वो कालेज के बीए फाइनल वर्ष में होती हैं, क़रीब 19 से 20 साल. उस दिन उत्सुकता कुछ ऐसी महिलाओं को लेकर थी, जो शादी के बाद वापस आ रहीं थीं. कालेज में क़रीब 1,500 छात्राएं हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत ग्रामीण इलाक़ों और 40 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों से आती हैं.

एक अन्य अध्यापिका ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘लेकिन कुछ बच्चियां वासना-ग्रस्त भी हो जाती हैं, और पढ़ने में ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में मां-बाप फिर शादी करने के लिए सोचते हैं. अगर 21 मेंडेटरी हो जाएगा, तो क्रिमिनल माना जाएगा ऐसी बच्चियों की टाइम से शादी’.

‘भागी हुई लड़कियां’

‘कितनी कितनी लड़कियां,

भागती हैं मन ही मन,

अपने रतजगे अपनी डायरी में,

सचमुच की भागी लड़कियों से,

उनकी आबादी बहुत बड़ी है’.

आलोक धनवा की लिखी प्रसिद्ध नारीवादी हिंदी कविता, ‘भागी हुई लड़कियां’ में रोशनी डाली गई है कि कैसे जितनी लड़कियां वास्तव में भागती हैं, उनसे ज़्यादा अपने सपनों और डायरियों में भागती हैं.

‘भागी हुई लड़कियां’ वाक्य न सिर्फ खाप पंचायतों और कालेजों, बल्कि कविता समूहों, साहित्य समारोहों और महिला सशक्तीकरण पर विचार गोष्ठियों में भी सुनने को मिलता है.

खाप सदस्यों के बयानात को हरियाणा के समाजिक कार्यकर्ताओं ने पसंद नहीं किया है, और उन्होंने इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. हरियाणा की एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘उन्होंने शालीनता की हदें पार कर दी हैं’.

उन्होंने कहा, ‘शादी की क़ानून उम्र 18 ही रहनी चाहिए. लेकिन खापों की आशंकाएं महिलाओं की लैंगिकता को लेकर हैं’.

उधर जींद के कालेज कैंपस में 21 वर्षीय मोनिका शर्मा ने खाप सदस्यों की हालिया टिप्पणियों के जवाब में कहा, ‘कम से कम लड़कियों को उनका ग्रेजुएशन तो पूरा करने दीजिए. लड़कों के पास भी मोबाइल फोन्स होते हैं, जो पढ़ाई के लिए उपयोगी होते हैं. ये एक पुरानी सोच है कि लड़कियों की शादी 18 पर कर देनी चाहिए, जिससे कि वो भाग न जाएं’.

यहां की अधिकतर छात्राओं- विवाहित, अविवाहित और तलाक़शुदा- सब ने महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने की पैरवी की, क्योंकि उनका कहना था कि शादी के बंधन में बंधने से पहले, आधुनिक महिलाओं को काम करने की ज़रूरत है.

20 वर्षीय सोनम कौशिक को ये बात अब समझ आती है. बीए फाइनल वर्ष की छात्रा और एक साल भर के बच्चे की मां, सोनम फुटबॉल खेलना चाहती थीं, लेकिन 18 की उम्र में उनकी शादी कर दी गई. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं बहुत सीधी थी और मैंने बग़ावत नहीं की. 18 की उम्र में लड़कियों की शादी करने का क्या मतलब है, जब वो शारीरिक और मानसिक रूप से घर की ज़िम्मेदारियां उठाने के लिए तैयार नहीं होतीं? मैं इस फैसले की पूरी सराहना करती हूं’.

खाप की बहाली का आशय महिलाओं का ‘सतीत्व’

जाट धर्मशाला में, जहां खाप महापंचायत आयोजित हुई थी, क़रीब एक दर्जन बुज़ुर्ग लोग बैठे ताश खेल रहे हैं और हुक़्क़ा पी रहे हैं, जबकि कुछ युवा महिलाएं सिर झुकाए हुए अलग बैठी हैं, और कुछ अपनी गणित की पाठ्यपुस्तक में काम कर रही हैं. इनमें से बहुत से पुरुष कहते हैं कि वो खाप में शरीक हुए थे, लेकिन आज वो एक पवित्र स्त्री की परिभाषा की चर्चा कर रहे हैं.

महिलाओं ने परुषों के सामने बात करने से मना कर दिया.

उनमें से एक व्यक्ति हवा सिंह ने उस परंपरा के बारे में शेख़ी बघारते हुए, जिसमें युवा महिलाओं को पुरुषों के सामने बोलने की मनाही होती है, कहा, ‘आंखों की शरम है, म्हारे सामने कोनी बोलें’.

जैसा कि पिछले दशक में हरियाणा में रेप की हर घटना के साथ हुआ है, खाप पंचायतें पीड़िताओं को ही दोषी ठहराती हैं, और उंगली उठाती हैं कि सिनेमा हॉल्स, मोबाइल फोन्स, और नूडल्स तक, महिलाओं की पहुंच ही असली समस्या है.

फूल कुमार राठी ने कहा, ‘15-16 साल की उम्र में लड़कियां भाग रही हैं. ऐसे में इज़्ज़त बचाने के लिए शादी करने का हक़ मां-बाप के पास होना चाहिए. बाकी जो अच्छी लड़कियां हैं उनको 30 की उम्र तक पढ़ाओ’.

एक साल तक चले किसान आंदोलन के बाद, जिसने नरेंद्र मोदी सरकार को अपने तीन कृषि क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर दिया, खाप पंचायतें अपनी प्रासंगिकता को फिर से जीवित करने की कोशिश कर रही हैं, जो पिछले दशक में खो गई थी. उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर ऐसी खापों द्वारा जारी फरमानों की तीखी आलोचना की है, जिन्हें ‘कंगारू कोर्ट्स’ भी कहा जाता है, और कहा है कि इनमें अक्सर ‘ऑनर’ किलिंग्स को उकसावा देने की बात कही जाती है.

एक और प्रतिभागी 68 वर्षीय रामफल ने, राज्य और केंद्र सरकारों पर तीखा हमला बोला, ‘बदनाम मनोज-बबली केस के मामले में कोर्ट, मीडिया और सरकार ने हमारा पीछा लिया था. इस बिल से समाज में भगा ले जाने की घटनाएं और बढ़ेंगी. फिर सरकार उन भागे हुए जोड़ों को सुरक्षित घर उपलब्ध कराएगी’.

इन लोगों ने लड़कियों में जल्द माहवारी के लिए चाउमीन जैसे फास्टफूड को ज़िम्मेदार ठहराया, और उनकी जल्द शादी किए जाने की मांग की.

इन लोगों ने उन लोगों को भी ‘बुद्धिजीवी’ कहकर ख़ारिज कर दिया, जो महिलाओं के विकल्पों की बात करते हैं- मेहम चौबीसी खाप की तुलसी ग्रेवाल, सुनील जगलान बीबीपुर, ढांढा खाप के प्रोफेसर शमशेर सिंह, और सतरौल खाप के मास्टर राजेश खर्ब- यहां पर बुद्धिजीवी से उनका तात्पर्य ‘बिना जड़’ के लोगों से है.

महापंचायत ने और लोगों को भी नाराज़ किया है. पंचायत के समन्वयक और धनखड़ खाप के प्रमुख ओम प्रकाश धनखड़ ने, 23 दिसंबर को मंच से दहाड़ते हुए कहा कि एससी-एसटी महिलाएं जिनके परिवार उन्हें कालेज भेजने में सक्षम नहीं हैं, भागकर समाज को दूषित करेंगी. कई दलित प्रतिनिधियों ने जींद पुलिस अधीक्षक से मुलाक़ात की, और धनखड़ के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.

लेकिन महिलाओं की शादी की नई उम्र पर पुरुषों का अडिग विरोध, सिर्फ मुसलमानों के सवाल पर ठहर जाता है. उनका कहना है कि अगर इस क़ानून को मुसलमानों पर भी लागू किया जाता है, तो वो इसे मंज़ूर कर लेंगे.

खाप सदस्य रामफल ने ज़ोर से कहा, ‘फिर तो हम राज़ी हैं, अगर मुसलमान भी जल्दी शादी करके ज़्यादा बच्चे पैदा करने से रोके जाएंगे, तो हमें कोई दिक़्क़त नहीं’.


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‘3 साल का गैप 100 साल जैसा लगता है’

लेकिन जींद से कोई 200 किलोमीटर दूर, कुछ मुस्लिम प्रतिनिधियों ने 21 दिसंबर को मेवात में नूह के फिरोज़पुर झिरका ब्लॉक में एक बैठक की, जिसमें कुछ शीर्ष उलेमा ने ऐलान किया कि नया क़ानून न तो महिलाओं के हित में है और न ही समाज के.

ग्रुप की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘समुदाय में साक्षरता बढ़ने के साथ, महिलाओं की शादी पहले ही एक अच्छी उम्र में की जाती है, लेकिन कभी कभी शादी की क़ानूनी उम्र से पहले ही, लड़की की शादी कर देना अच्छा रहता है. ये कानून नुक़सानदेह है’.

फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट.

सामाजिक कार्यकर्त्ता साबिर क़ासमी, जो नूह बस स्टैंड पर अपने ऑफिस में बैठते हैं, ने कहा, ‘हमारा मज़हब हमें इजाज़त देता है कि पहली माहवारी होने के बाद लड़की की शादी कर दें, जब वो जन्म देने के लिए तैयार हो जाती हैं. पूरी मेवात बेल्ट में, लड़कियों की 15-17 की उम्र में शादी कर दी जाती थी. लेकिन अब हमने उसे बढ़ाकर 16-18 कर दिया है. ये नया क़ानून समाजी उसूलों के खिलाफ है, और महिलाओं के विकल्पों के भी खिलाफ है’.

जहां जींद और हरियाणा के दूसरे हिस्सों में, युवा महिलाएं मज़बूती के साथ नए क़ानून के समर्थन में खड़ी हो रही हैं, वहीं नूह में महिलाओं वही कह रही हैं, जो उनके मर्द कहते हैं.

11 साल की मुमताज़ की मां 30 वर्षीय रशीदा, शादी के मामले में सरकार के दख़ल से नाराज़ थीं.

उन्होंने कहा, ‘लड़की सयानी हो जाए तब शादी कर देनी चाहिए. हम 16 की उम्र तक आते आते शादी की सोचने लगते हैं, 21 साल तक तो बूढ़ी हो जाएगी छोरी. 100 साल आगे की बात कर रही है सरकार’.

हलीमा और आमिर ने भी, जिन्होंने कुछ दिन पहले ही अपनी 18 साल की बेटी इस्माइल की मंगनी की है, इसी तरह के विचार ज़ाहिर किए. जब दिप्रिंट की टीम घाघस गांव में उनके घर पहुंची, तो इस्माइल अपनी मां के पीछे छिपी हुई थीं, और उसके हाथों पर अभी भी मेहंदी लगी हुई थी.

नूह की इस्माइल जिनकी हाल ही में शादी हुई है | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट.

‘हम तीन साल इंतज़ार नहीं कर सकते. ये सौ साल जैसा लगता है. हमारी बेटियों को ख़ुद को बुरे प्रभावों से बचाने की ज़रूरत है’.

इस्माइल के अभिभावक | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट.

स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि साल के इस समय, मुसलमान आमतौर पर शादियां आयोजित नहीं करते. इस क़ानून का डर उन्हें अब जल्दबाज़ी में अपनी बेटियों की शादी करने को मजबूर कर रहा है.

परिवार अब शादी के नए नए तरीक़े अपना रहे हैं. निकाह फोन पर किए जा रहे हैं, और दुल्हनों को भव्य बारातों के बिना एक कार में उनकी ससुराल भेजा जा रहा है. इससे उन्हें ऐसी शादियों पर प्रशासन की कार्रवाई से बचने में सहायता मिलती है.


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मेरठ का विरोधी नज़रिया, मुश्किल से

इस बीच, उत्तर प्रदेश के मेरठ में सेल्फी विद डॉटर आंदोलन के संस्थापक सुनील जगलान ने 25 दिसंबर को एक लाडो पंचायत का आयोजन किया. इसमें 700 से अधिक महिलाओं ने शिरकत की, जिनमें 7 साल तक की बच्चियां शामिल थीं, जिन्होंने 65 वर्षीय महिला के साथ खापों और मेवात के उलेमा के विचारों का विरोध किया.

सभी आयु वर्ग की महिलाओं ने संकल्प किया कि वो ऐसे उम्मीदवारों को वोट नहीं देंगी, जो बिल का विरोध कर रहे हैं.

जगलान ने कहा, ‘ये खाप पंचायतों के विपरीत है जिसका एक पुरुष चेहरा है. लाडो पंचायत में महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक आज़ादी, और मौलिक आधिकारों पर ज़ोर दिया जाता है. महिलाएं अग्रणी भूमिका निभाती हैं, हम केवल आयोजक हैं’.

खापों ने ‘अपने प्रगतिशील विचारों से समाज को भ्रष्ट करने के लिए’ जगलान और उनके वॉलंटियर्स पर निशाना साधा. मेरठ की हाशिमपुरा बस्ती में, 21 वर्षीय इक़रा और कुछ दूसरी महिलाएं, लाडो पंचायत में सैकड़ों महिलाओं के साथ शामिल हुईं.

हाशिमपुरा, मेरठ में इकरा और उनके साथियों का झुंड | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट.

23 साल की आफरीन ने, जिसकी तीन साल पहले शादी हुई थी, मंच पर माइक लेकर अपने अनुभव साझा किए, ‘छोटी उम्र में हम शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से शादी के लिए तैयार नहीं होतीं. कम उम्र में गर्भ धारण करने से बहुत सी महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं. महिलाओं से जुड़े मामलों के बारे में कोई चर्चा नहीं करता’.

मेरठ में, स्थानीय लोगों का कहना है कि मुस्लिम समुदाय में, महिलाओं की शादी की औसत उम्र क़रीब 20 साल है.

45 वर्षीय सगीना ने कहा, ‘दूसरे इलाक़ों के विपरीत, जहां साक्षरता दर ख़राब है, हम अपनी बेटियों को पढ़ाई के लिए भेजना पसंद करते हैं’. उनकी 13 साल की बेटी अलीशा भी लाडो पंचायत में मौजूद थी. लेकिन यहां भी, शादी की क़ानूनी उम्र बढ़ाने की वकालत करने के बावजूद, मोबाइल फोन्स का इस्तेमाल, भागने की घटनाएं और लैंगिक आज़ादी के विषयों पर मर्दों के बीच भी बातचीत रहती है.

इस आशंका का जवाब देते हुए हाशिमपुरा मोहल्ले की 20 वर्षीय निवासी इल्मा ने कहा, ‘किसी की भी ज़िंदगी में पढ़ाई और जीवन साथी का चुनाव बराबर अहमियत के फैसले होते हैं. मुझे नहीं लगता कि हमें उन लड़कियों को शर्मिंदा करना चाहिए, जिनके जीवन साथी होते हैं’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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