जींद: ‘संसद के पहले दिन ही जयश्री राम और अल्लाह हू अकबर के नारों से आहत हुई हमारी पंचायत ने तय किया कि समाज का बंटवारा रोका जाए. हमारी खेड़ा खाप पंचायत के अंतर्गत 24 गांव आते हैं. 29 जून को हुई मीटिंग में करीब 20 सदस्यों ने सर्वसम्मति से फैसला लिया कि अब छोटे स्तर से ही इस बंटवारे को खत्म करना पड़ेगा. यानी कि जातिवादी सरनेम हटाने होंगे.’ दिप्रिंट से बात करते हुए खाप के प्रधान सतबीर पहलवान ने बताया.
दरअसल हरियाणा के जींद की खेड़ा खाप पंचायत ने जातिवाद खत्म करने के लिए एक नई पहल शुरू की है. पंचायत ने भूषला नाम के एक गांव में मीटिंग बुलाकर कहा है कि लोग ऐसे सरनेम का इस्तेमाल नहीं करें जिससे की लोगों की जाति का पता चलता हो.
सतबीर पहलवान के मुताबिक जींद के उचाना हलके में पड़ने वाले इन 24 गांवों मे करीब 1 लाख 6 हज़ार लोग रहते हैं. हरियाणा की जनसंख्या लगभग ढ़ाई करोड़ है. उनका मानना है कि अगर ये कदम 24 गांवों में सफल होता है पूरे प्रदेश में इस अभियान को चलाएंगे.
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क्या होती है खाप पंचायत
एक गोत्र या एक बिरादरी के सभी गोत्र के लोग मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं. यह पंचायात 5 गांवों की भी हो सकती है और 20-25 गांवों की भी. खाप पंचायतें ग्रामीण परिवेश में एक तरह से कोर्ट का काम करती हैं. गांवों के मसले पहले इन्हीं पंचायतों के पास आते रहे हैं और फिर पुलिस और कोर्ट के पास. इंग्लिश नें इन्हें कंगारू कोर्ट की संज्ञा भी दी गई है. हरियाणा में कंडेला खाप, महम चौबीसी खाप, बिनैन खाप जैसी कुछ प्रसिद्ध खाप पंचायतें हैं. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में खाप पंचायतों का वर्चस्व कम करते हुए कहा था कि दो बालिग लोगों की मर्जी से हुई शादी में खाप कोई दखल नहीं दे सकतीं. उससे पहले खाप पंचायतें भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कैंपेन चलाकर राष्ट्रीय मीडिया में छाई रही थीं.
गौरतलब है कि हरियाणा में खाप पंचायतें कभी इज़्ज़त के नाम पर हो रही ऑनर किलिंग्स तो कभी जातिवादी फैसले सुनाने को लेकर कुख्यात रही हैं.
संसद में लगे नारों से आहत होकर उठाया यह कदम
सतबीर पहलवान बताते हैं, ‘हम अपने इस छोटे से कदम से देश के नेताओं को बताना चाहते हैं कि जयश्री राम या अल्लाह हू अकबर से नहीं संविधान से देश चलेगा. इसलिए हम जातीय दंभ को खत्म करने की शुरुआत करना चाहते हैं. हम बीमार होते हैं, सुख में होते हैं या फिर दुख में होते हैं तो हमारे काम तो 36 बिरादरी के लोग ही आते हैं. अब अपने सरनेम बताकर दंभ भरने का जमाना नहीं है.’
लेकिन क्या खाप पंचायतें विजातीय विवाह को भी स्वीकार करेंगी के सवाल पर सतबीर कहते हैं, ‘हमने विजातीय विवाह का विरोध नहीं किया है. गोत्र में होने वाले विवाहों की मनाही है. शादी के मामले में भी अब नानी या दादी के गोत्र देखने छोड़ दिए हैं. पहले 4 गोत्र मिलाए जाते थे. हमने कई गोत्र हटाकर सिर्फ दो गोत्र रखे हैं. मुझे खुद कितनी बार विजातीय विवाहों का निमंत्रण आया है. अगर लड़का-लड़की मर्जी से शादी कर रहे हैं तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है.’
खेड़ा खाप के एक अन्य सदस्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को जोर शोर से चलाया है. बेटी होने पर पुरुस्कार भी बांटे हैं. हमने शादियों में गोली चलाने पर प्रतिबंध लगाया है.’
शादी को लेकर पूछे गए सवाल पर वो कहते हैं, ‘अपने गांव की सीमा से लगते गांवों को छोड़कर कहीं भी शादी की जा सकती है. पहले जितने कठोर नियम नहीं रहे. बदलाव धीर-धीरे आ रहा है.’
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सरनेम गोत्र की बजाय गांव का नाम लगाएं
इस फैसले के बाद आने वाली मुश्किलों पर इसी पंचायत के सतबीर बताते हैं, ‘अभी ये बात तय नहीं की गई है कि सरकारी कागजों में सरनेम बदले जाएंगे कि नहीं. अगली मीटिंग में फैसले लिए जाएंगे. गोत्र की बजाय गांव का नाम भी जोड़ सकते हैं.’
‘अगर लोग सोशल मीडिया पर बने अपने अकाउंट्स के सरनेम भी बदल लें तो भी बड़ी बात होगी.’ बरसोला गांव के 26 वर्षीय अनूप कहते हैं.
गौरतलब है कि हरियाणा में लोकसभा चुनावों के दौरान 36 बिरादरी के बिगड़े रिश्ते पर खूब बहस हुई थी. राजनीतिक जानकार कह रहे थे कि सत्तारूढ़ पार्टी ने राज्य में वर्चस्व रखने वाले जाट समुदाय की राजनीति खत्म कर दी है. आगामी विधानसभा चुनाव में भी ये मुद्दा फिर से गर्माएगा. गौरतलब है कि 2016 में हुए जाट आंदोलन में हुई हिंसा ने मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की छवि एक गैर जाट नेता के रूप में स्थापित कर दी थी. ऐसे में कुछ लोग खाप पंचायत का ये फैसला राज्य में हो रही राजनीतिक हलचलों से जोड़कर भी देख रहे हैं.