सोनीपत: अप्रैल के दूसरे हिस्से में, सोनीपत ज़िला कलेक्टर श्याम लाल पूनिया और उनकी पत्नी और बेटी कोविड से संक्रमित हो गए. पूनिया को 19 से 27 अप्रैल के बीच, एक हफ्ते से ज़्यादा अस्पताल में रहना पड़ा, लेकिन उनकी हालत अपनी पत्नी और बेटी से ज़्यादा स्थिर थी.
पूनिया की पत्नी सुमन को सीने में जकड़न के बाद, स्वास्थ्य संबंधी और जटिलताएं पैदा हो गईं थीं, जबकि दंपत्ति की आठ साल की बेटी हिताश्री, 19 से 24 अप्रैल के बीच, पांच दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रही. तीनों को पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर),चंडीगढ़ में भर्ती कराया गया था.
पूनिया का 10 साल का बेटा यष्मित, परिवार का अकेला सदस्य था, जो बीमारी की चपेट में नहीं आया था.
शायद कोई भी पूनिया को दोष नहीं देता, अगर अपने ठीक होने, और बीमार पत्नी व बेटी के साथ रहने के लिए, वो काम से छुट्टी ले लेते. लेकिन हैरत की बात ये है कि सोनीपत डीसी, ने अपने सहकर्मियों के साथ संपर्क बनाए रखा, और अपने बिस्तर से भी ज़िले में, महामारी प्रबंधन के उपायों का जायज़ा लेते रहे.
पूनिया कहते हैं कि ये मुमकिन ही नहीं था, कि ऐसे समय वो ग़ायब हो जाते- जब ज़िला एक स्वास्थ्य संकट से दोचार था. पूनिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसे समय पर हम क्या करते हैं, उसी से हमारा वेतन जायज़ ठहरता है. सोनीपत को मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी. दूसरे, अस्पताल के अपने बिस्तर से, मैं और क्या कर सकता था? इसलिए मैंने सुनिश्चित किया कि मेरी टीम हमेशा प्रेरित रहे, और उसके सामने नए नए रास्ते खुलते रहें’.
हालांकि उनके अंदर का पिता चिंतित बना रहा. उन्होंने कहा, ‘चिंता तो होती है’.
पूनिया को 27 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी मिली, और 28 अप्रैल को वो शारीरिक रूप से काम पर लौट आए. 29 अप्रैल को डीसी फिर से सक्रिय हो गए, और महामारी की स्थिति से निपटने में, शहर की तैयारियों का जायज़ा लेना शुरू कर दिया, जिनमें शमशान घर और सिविल अस्पताल भी शामिल थे.
यही कारण है कि सोनीपत में, ज़िले की कोविड स्थिति के बारे में पूछने पर, पहली चीज़ जो आप सुनते हैं, वो ये कि स्थिति जितनी भी ख़राब हो गई हो, डीसी पूनिया हमेशा मैदान में जमे थे, हमेशा बस एक फोन की दूरी पर.
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सोनीपत की दूसरी लहर
सोनीपत में कोविड की दूसरी लहर 3 अप्रैल के आसपास आई, जब पॉजिटिविटी रेट तेजी से बढ़नी शुरू हुई. ज़िला अधिकारियों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 3 अप्रैल को 5.95 प्रतिशत से बढ़कर, 25 अप्रैल तक पॉजिटिविटी रेट तेज़ी से बढ़कर 54.71 प्रतिशत पहुंच गई थी.
सरकारी डेटा के अनुसार, 2 अप्रैल को 49 नए मामले दर्ज हुए थे, जो अगले दिन 3 अप्रैल को बढ़कर 72, और 15 अप्रैल तक 492 तक पहुंच गए. 3 मई को दर्ज किए गए, नए पॉज़िटिव मामलों की संख्या 1,187 थी.
दूसरी लहर के दौरान ज़िले में 222 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं.
संकट से निपटने के लिए, सोनीपत में दूसरी लहर के दौरान, टेस्टिंग को भी लगातार बढ़ाया गया है- 1 से 3 मई के बीच ज़िले में 9,659 टेस्ट किए गए, जबकि 19 से 22 मई के बीच ये संख्या 18,171 पहुंच गई.
संकट से निपटने के लिए, अप्रैल से पूनिया की अगुवाई में ये ज़िला, युद्ध-स्तर पर काम कर रहा है. और आख़िरकार, ऐसा लग रहा है कि बीमारी में, कुछ कमी आने के संकेत दिख रहे हैं. ज़िले में सकारात्मकता दर जो 1-3 मई के बीच 32.56 प्रतिशत थी, 19 से 22 मई के बीच घटकर 6.41 प्रतिशत पर आ गई. 24 मई को ज़िले में कुल एक्टिव मामलों की संख्या 1,227 थी.
ज़िले में तैयारियां
जब दूसरी लहर आई, तो पहली चीज़ ये हुई कि ज़िले में, मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता बढ़ा दी गई. दूसरी लहर की शुरूआत में, 24 अप्रैल को ज़िले का ऑक्सीजन कोटा 9 मीट्रिक टन था. 2 मई तक इसे बढ़ाकर, 13 एमटी कर दिया गया.
ज़िला ऑक्सीजन नोडल अधिकारी, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘बॉटलिंग प्लांट्स और अस्पतालों में ऑक्सीजन ऑडिट्स की सहायता से, हम हर रोज़ दो-तीन मीट्रिक टन ऑक्सीजन, बचाने में कामयाब रहे हैं. इससे हमें अस्पतालों में ऑक्सीजन सपोर्ट वाले बिस्तर बढ़ाने में सहायता मिली है, जो 605 से बढ़कर 950 हो गए हैं’.
जिले ने एक नया ऑक्सीजन प्लांट भी लगाया गया और दूसरे को चालू किया है. प्रशासन ने सोनीपत के गेटवे इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर जोगेंद्र गहलावत की मदद मांगी, जिन्होंने प्रति मिनट 200 लीटर ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता वाला पीएसए ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने में मदद की. ये प्लांट पीएम केयर्स पहल के अंतर्गत, ज़िला अस्पताल को दिया गया था, लेकिन इसके उपकरण फरवरी से ऐसे ही रखे हुए थे.
उसके बाद से हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने, राज्य के दूसरे ज़िलों, जैसे जींद, करनाल, फरीदाबाद और हिसार को निर्देश जारी किए हैं, कि प्रोफेसर गहलावत की निगरानी में, ऑक्सीजन प्लांट्स लगाए जाएं.
बीपीएस खानपुर में 1,000 लीटर प्रति मिनट उत्पादन क्षमता का, एक और प्लांट स्थापित किया गया है, जिसके लिए ज़िले के उद्योग संघ ने, कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड से पैसा दिया है. सोनीपत अब इस स्थिति में है, कि जीटी रोड पर स्थित अस्पतालों, और बहादुरगढ़ तथा गन्नौर जैसे पड़ोसी शहरों के साथ, अपनी अतिरिक्त ऑक्सीजन सप्लाई साझा कर सकता है.
बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) आयुक्त इकबाल सिंह चहल के विकेंद्रीकरण मॉडल से सीख लेते हुए, पूनिया ने भी कई नोडल अधिकारी नियुक्त किए, और उन्हें अपनी योजनाओं पर काम करने के लिए, कुछ हद तक स्वायत्त कर दिया. हर ऑक्सीजन प्लांट और हर अस्पताल में, एक नोडल अधिकारी है, जो डीसी को अपने निगरानी क्षेत्र की, ताज़ा स्थिति से अवगत रखता है, और दिन में दो बार एक वर्चुएल शीट में जानकारी भरता है.
26 अप्रैल को ज़िले में एक कोविड कंट्रोल रूम भी बना दिया गया, जिसमें तीन समर्पित लैंडलाइन नंबर दिए गए, जिनसे एंबुलेंस बुक करने, ऑक्सीजन सिलिंडर का बंदोबस्त करने, टीकाकरण पर परामर्श, और ख़ून चढ़ाने आदि के काम में, लोगों की सहायता की जा सकती है. कम से कम 50 अध्यापक कंट्रोल रूम में, वॉलंटियर के तौर पर काम कर रहे हैं, जो चौबीसों घंटे खुला रहता है, और जहां 30 कंप्यूटर ऑपरेटर्स, तीन सीनियर सुपरवाइज़िंग और तीन डॉक्टर मौजूद रहते हैं.
सोनीपत में, घर पर आइसोलेशन में रह रहे मरीज़ों के लिए, एक टेली-परामर्श सेवा भी है, जिसे खानपुर मेडिकल कॉलेज के, 120 मेडिकल छात्र संभालते हैं.
पूनिया ने कहा, ‘अभी तक, हमने क़रीब 14,000 कॉल्स की हैं, और कम से कम 100 मरीज़ों को, जिनके वाइटल्स बिगड़ रहे थे, विशेष कोविड स्वास्थ्य केंद्रों को भेजा है. टेली-परामर्श के द्वारा त्वरित चिकित्सा सहायता मुहैया कराकर, हमने कम से कम 100 लोगों की ज़िंदगियां बचाईं हैं.
ज़िले में 53 टीमें गठित की गईं हैं, जिनका काम गांवों में जाकर जांच करना, और हॉटस्पॉट गांवों में आइसोलेशन केंद्र खोलना था. साथ ही ग्रामीण सोनीपत में टेस्टिंग को सुचारू रूप से चलाने के लिए, गांवों में समन्वय समितियां भी गठित की गईं.
1 मई के बाद से ज़िले के स्वास्थ्य ढांचे में, अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन सुविधा के साथ, अतिरिक्त 450 बिस्तर बढ़ाए गए हैं, और तीसरी लहर की तैयारी के मद्देनज़र, बच्चों के लिए भी 500 बिस्तरों की व्यवस्था करने की योजना है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है, कि वो संभावित रूप से बच्चों को ज़्यादा प्रभावित करेगी.
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पूनिया की प्रशंसा
उस समय का उल्लेख करते हुए जो पूनिया परिवार ने, कोविड से लड़ते हुए अस्पताल में बिताया, सोनीपत डीसी के एक सहकर्मी ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसे दबाव के समय भी, सर ने काम करना बंद नहीं किया, बस ज़रा मेरा व्हाट्सएप इतिहास देखिए…उन्होंने महाराष्ट्र से एक ऑक्सीजन प्लांट, और राजस्थान से गैस सिलिंडर्स के बारे विचार साझा किए…देश के बाक़ी हिस्सों से और भी नए नए विचार लिए. एक समय तो मैंने उनसे कहा, कि वो इसे बंद करें और अपना ख़याल रखें, लेकिन कोई उन्हें काम करवाने से नहीं रोक सकता था.
‘मैं ऐसा अपने बॉस की प्रशंसा में नहीं कह रहा, लेकिन किसी को ऐसे प्रेरित होकर काम करते देखना, जो थकन का ज़रा भी आभास न होने दे, जो कभी चिड़चिड़ा नहीं होता…हमारे लिए काम करना आसान कर देता है,’ ये कहना था एक सहकर्मी का, जो एसडीएम गन्नौर और सोनीपत के ऑक्सीजन नोडल अधिकारी भी हैं.
राजस्थान के एक किसान के बेटे डीसी पूनिया, 2010 के मणिपुर काडर से हैं, और मणिपुर के चूराचांदपुर तथा थूबाल ज़िलों के डिप्टी कमिश्नर भी रह चुके हैं, जहां उन्होंने विद्रोहियों के खिलाफ काम किया, और वहां के दूर-दराज़ इलाक़ों में, बेहतर प्रशासनिक ढांचा स्थापित कराने में सहायता की.
हरियाणा में उनकी पहली तैनाती दिसंबर 2019 में दादरी में हुई. उन्होंने एक साल पहले डीसी सोनीपत का चार्ज संभाला, जो ज़िले के लिए विशेष रूप से उथल-पुथल भरा समय था, जब उन्हें न सिर्फ ज़िले में महामारी की स्थिति, बल्कि नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ चल रहे, किसानों के आंदोलन को भी संभालना था.
पूनिया ने कहा, ‘हमने अपनी ओर से किसानों के साथ सहयोग करने की भरसक कोशिश की है. हालांकि उन्होंने हमें जांच अभियान नहीं चलाने दिया, लेकिन हमने प्रदर्शन स्थल पर एक टीकाकरण अभियान चलाया है, और वहां पर पैरासिटेमॉल के हज़ारों पत्ते, तथा एक लाख मास्क वितरित किए हैं. हम हर संभव तरीक़े से उनसे संपर्क बनाए रखने की कोशिश करते हैं’.
डीसी अपनी आलोचना से भी उतने ही अविचलित हैं, जितने प्रशंसा से स्थिर हैं.
दिप्रिंट की उस ख़बर के बाद भी, जिसमें कोविड मौतों के सरकारी आंकड़ों, और अंतिम संस्कार किए गए शवों की संख्या में, अंतर की बात की गई थी, उन्होंने दिप्रिंट के पत्रकारों के साथ बातचीत से बचने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा, ‘मेरे साथियों ने मुझे वो ख़बर दिखाई, जो कुछ आलोचनात्मक नेचर की थी, लेकिन मैंने उनसे कहा कि ये तो आपका काम है…इसका मतलब ये नहीं है कि मैं आपका फोन उठाना बंदकर दूंगा, या आपको सहयोग नहीं करूंगा’.
जहां काम के प्रति उत्साह के लिए, उनकी सराहना की जाती है, वहीं पूनिया अपनी सख्ती के लिए भी जाने जाते हैं. 13 मई की रात को हरियाणा मल्टी स्पेशिएलिटी अस्पताल के दौरे पर, डीसी ने पाया कि अस्पताल में कोविड नियमों की अवहेलना हो रही थी, लोगों से ज़्यादा पैसा लिया जा रहा था, और कोविड तथा ग़ैर-कोविड मरीज़ों का इलाज, एक ही वॉर्ड में किया जा रहा था. अगले ही दिन अस्पताल को, कोविड अस्पतालों की सूची से हटा दिया गया.
लोगों के लिए उपलब्ध रहना और काम के प्रति उत्साह, उनके लिए कोई नई बात नहीं हैं. सोनीपत डीसी ने बताया कि अपने 10 वर्षों के करियर में, उन्होंने 30 दिन की भी छुट्टी नहीं ली है. उनकी सबसे लंबी छुट्टी इस साल अप्रैल में थी, जब वो कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती थे.
उन्होंने कहा कि उनके ज़्यादा घंटे काम करने का कारण ये है, कि डेस्क पर फाइलों का ढेर लगने से, उन्हें बेचैनी होने लगती है. उन्होंने कहा, ‘कुछ पता नहीं कब आपका तबादला हो जाए, इसलिए मैं अपना काम उसी दिन निपटाता हूं, और कोशिश करता हूं कि दिन भर में, ज़्यादा से ज़्यादा काम सिमट जाए. मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता, कि डेस्क पर रखी फाइलें मुझे घूरती रहें. किसी और के ऑफिस में भी, जब मैं फाइलें भरी हुई देखता हूं…तो मुझे बहुत असहज सा लगने लगता है’.
लेकिन, पूनिया भले ही कड़ी मेहनत को सामान्य काम बताते हों, सोनीपत अपने नए डीसी की सराहना करते नहीं थकता- वो फोन उठाते हैं, समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहते हैं, और ऑफिस में नहीं बैठे रहते, बल्कि हमेशा बाहर ज़मीन पर नज़र आते हैं.
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