गुरुग्राम: गुरुग्राम का खेड़की दौला टोल प्लाजा एक बार फिर खबरों में है. 21 जून की सुबह 8:50 पर इस टोल प्लाज़ा पर काम करने वाली ललितपुर की युवती संतोषी कुमारी के साथ एक स्थानीय युवक ने मारपीट की. सीसीटीवी कैमरा में कैद हुई इस घटना में युवक संतोषी को नाक पर मुक्का मारते हुए नजर आ रहा है.
इस घटना के बाद खेड़की दौला पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करा दी गई. एफआईआर के मुताबिक, ‘युवक ने संतोषी से कहा कि वो यहां का लोकल है. आरसी मांगने पर उसने कहा कि उसे यहां सब जानते हैं. उसने ये भी कहा कि मैं वही हूं जिसने यहां गोली चलाई थी. उसके बाद वो संतोषी से गाली गलौच करने लगा. युवक सिकोहपुर का रहने वाला है.’
#WATCH Kherki Daula Toll Plaza employee hit by a car driver early morning today; case registered, accused absconding #Gurugram pic.twitter.com/AwdXxxOFNn
— ANI (@ANI) June 21, 2019
एफआईआर के मुताबिक युवक ने संतोषी को बलात्कार की धमकी भी दी. टोल कंट्रोलर सुषमा राउत ने दिप्रिंट को बताया, ‘लड़की को हम अस्पताल लेकर गए और इलाज करवाया. वो अभी ठीक है. पुलिस थाने में भी शिकायत दर्ज करा दी गई है.’
दिप्रिंट ने इस टोल प्लाजा पर काम करने आए अलग-अलग राज्यों के युवक व युवतियों से बात की थी. रोजाना होने वाली गाली गलौच और मार पिटाई को लेकर उन्होंंने अपने अनुभव हमसे साझा किए.
यूपी के अरुण को इस फील्ड में आए हुए काफी समय हो गया है. वो पहले मेरठ व सांपला में काम करते थे और अब गुरुग्राम में नौकरी कर रहे हैं. उनके मुताबिक इस टोल प्लाज़ा पर गालियों और मारपीट का जो माहौल बना हुआ है वो उन्होंने कहीं नहीं देखा है.
अरुण को कहीं और काम मिला तो निकल जाएंगे
13 अप्रैल 2019 को जब इनोवा गाड़ी के युवकों ने बूम बैरियर को टक्कर मारी तो अरुण ने भागकर गाड़ी को रोकना चाहा. लेकिन गाड़ी वालों ने स्पीड तेज़ की तो अरुण गाड़ी के बोनट पर चढ़ गए. दोपहर की तपती दोपहरी में उन्हें तीन किलोमीटर तक बोनट पर लटकाकर रखा गया. इस दौरान अरुण की जान भी जा सकती थी. इस टोल प्लाज़ा पर मार–पीट की ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं और अपनी जान जोखिम में डालने वाली इस नौकरी में उनकी पगार मात्र आठ हज़ार रुपए है. हालांकि पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया है और तहकीकात कर रही है.
अरुण के मुताबिक, ‘लोगों के इस व्यवहार के पीछे शराब इसका एक कारण हो सकता है. वो लोगों का बिगड़ैल होना इसका कोई कारण नहीं मानते. उनके छोटे भाई भी इसी टोल प्लाजा पर काम करते हैं. उनका कहना है कि अगर उन्हें इस गाली और मार–पीट वाली नौकरी से बेहतर काम करने की जगह मिली तो वो वहां काम करेंगे. अरुण के पिताजी गांव में खेती करते हैं.’
प्रोजेक्ट हेड– ऐसा माहौल किसी और टोल प्लाज़ा पर नहीं है
इस टोल का टेंडर स्काईलार्क और मिलेनियम सिटी एक्सप्रेसवे प्राइवेट लिमिटेड के पास है. यहां के प्रोजेक्ट हेड राजेंद्र सिंह भाटी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं इससे पहले महाराष्ट्र के कई हिस्सों में काम कर चुका हूं. लेकिन इस तरह का माहौल बाकी किसी टोल प्लाज़ा पर नहीं है.’
राजेंद्र सिंह राजस्थान के जयपुर से आते हैं. उनका 13 अप्रैल की घटना को लेकर कहना है– ‘इस रूट पर 31 गांवों को छूट है. हम उनसे सिर्फ आरसी मांगते हैं. लेकिन इन गांव के रिश्तेदारों और भाईचारे के चक्कर में रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और नारनौल के आस–पास के गांवों के लोग भी आरसी या फेकआइडी दिखाकर निकलने की कोशिश करते हैं.’
पास में बैठी टोल कंट्रोलर सुषमा राउत ने फेक आईडी से भरा एक बॉक्स दिखाते हुए जोड़ा, ‘सबसे ज़्यादा ये दबंगई दिल्ली पुलिस और लोकल लोग करते हैं. हम ड्यूटी पर तैनात गाड़ियों या सरकारी काम पर लगी गाड़ियों को तो जाने देते हैं. लेकिन कॉन्सटेबल टोल नहीं भरना चाहते हैं. कई बार वो बदतमीज़ी पर उतर आते हैं.’
लोगों को कंट्रोल करने के लिए लड़कियों को लाया गया, पर नतीजा वही
वो आगे कहती हैं, ‘हमारे पार 30 लड़कियों और करीब 200 लड़कों का स्टाफ है. यहां तीन शिफ्ट में काम होता है. ए शिफ्ट में रात के 12 बजे से सुबह के 8 बजे तक, बी शिफ्ट में सुबह के 8 बजे से शाम के 4 बजे तक और सी शिफ्ट में शाम के 4 बजे से रात के 12 बजे तक ड्यूटी होती है. लड़कियों को दिन की शिफ्ट बी में ही बुलाया जाता है.’
कंपनी ने लड़कियों को भर्ती करने से पहले सोचा था कि इससे गाली–गलौच में कमी आएगी. लोग लड़की को देखकर ठीक तरीके से बात करेंगे. लेकिन ऐसा कुछ होता प्रतीत नहीं हो रहा है. लड़कियों के साथ ज़्यादा बदतमीजी की जाती है. ऐसे में टोल कलेक्ट करने वाले रूम के बाहर उनके साथ एसडीओ के तौरपर एक लड़का हमेशा तैनात रहता है. लगभग हर तीसरी गाड़ी का आदमी लड़कियों को अपने से किसी सीनियर आदमी को बुलाने के लिए कहता है.
25 लेन और 2 फास्ट टैग वाला ये टोल एनएच 8 के अंतर्गत आता है. कार के लिए 65 रुपए का टोल भरना होता है तो एमएवी और बस के लिए 195. वहीं, एलसीवी के लिए 95 रुपए का टोल भरना होता है.
कुछ लड़कियां सीनियर को बुलाती हैं, कुछ बचाव में गालियां वापस देती हैं
संतोषी की उम्र 21 साल है और वो झांसी से यहां काम करने आईं हैं. वो कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए कमरों में ही रहती हैं जहां खाना–पीना फ्री है. संतोषी की पगार दस हज़ार रुपये महीना है. इसके साथ ही वो यूपी के एक प्राइवेट कॉलेज से बीए की पढ़ाई कर रही हैं. यहां के माहौल के बारे में बताते हुए कहती हैं, ‘रोज़ के गाली गलौच से कैसे बुरा नहीं लगेगा. शुरू में तो बहुत बुरा लगा. लेकिन सीनियर्स पूरा साथ देते हैं. जब लगता है कि मामला हाथ से जा रहा है तो मैं किसी सीनियर को बुला लेती हूं. संतोषी ने बताया कि हरदिन करीब सात से आठ मामलों में बहसबाज़ी होती है और उन्हें किसी सीनियर को बुलाना पड़ता है.’
वहीं, बनारस की सोनी (21) का भी कुछ ऐसा ही कहना है. सोनी के माता–पिता किसान हैं. बारहवीं के बाद वो आगे पढ़ने का अभी सोच नहीं रही हैं. यहां वो डेढ़ साल से काम कर रही हैं. उनके मुताबिक, ‘लोकल लोग ज़्यादा बदतमीज़ी करते हैं. जब मैं आरसी मांगती हूं तो आधार कार्ड दिखाते हैं. फिर टोल मांगने पर धमकाने लग जाते हैं. दिन में सात–आठ बार गाली–गलौच हो ही जाती है. लेकिन सोनी बाकी लड़कियों की तरह सिर्फ गाली खाने में विश्वास नहीं रखतीं. वो कहती हैं कि वो वही गालियां वापस सुना देती हैं जो सामने वाला उन्हें सुना रहा होता है.‘
सुषमा राउत ने बताया, ‘पांच दिनों की ट्रेनिंग के बाद ही इन लड़कियों को टोल कलेक्टर के तौर पर बैठाया गया था. शुरुआत में अफसरों की गाड़ी देखकर थोड़ा सहम सी जाती थीं, लेकिन धीरे–धीरे सीख गई हैं. सुषमा ने ये भी बताया कि कंपनी के कर्मचारियों को भी टोल टैक्स में कोई छूट नहीं दी जाती है. उन्होंने एक रोचक बात बताई कि लड़कियां जब खुद कार ड्राइव कर रही होती हैं, तब तो टोल टैक्स दे देती हैं, पर जब किसी पुरुष के साथ बैठी होती हैं तो वो भी उतनी ही आक्रामक हो जाती हैं.’
काम करनेवाले ज़्यादातर कम आय परिवारों के हैं
22 साल की शुषमा कुमारी दिल्ली से ही हैं. पिताजी गुज़र चुके हैं. घर में मम्मी और दो बहनें हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से ओपन से ग्रेजुएशन की है. अब दोनों बहनों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी उनपर आ गई है. सलोनी भी खेड़की धौला में बने कंपनी के गेस्ट हाउस में बाकी लड़कियों के साथ ही रहती हैं. महीने में एक बार घर भी चली जाती हैं.
टोल कलेक्टर के तौर पर शुषमा कुमारी पिछले साल से यहां काम कर रही हैं. दिप्रिंट से अपने अनुभव को साझा करते हुए बताती हैं, ‘पहले तो एक मामला ऐसा होने पर मेरे दो-तीन दिन खराब हो जाते थे, मैं रोती थी. ऐसे झगड़ने की आदत नहीं थी और ना ही गाली खाने की. लेकिन हर रोज़ सात–आठ मामले ऐसे घट ही जाते हैं फिर धीरे-धीरे आपको आदत भी होने लगती है.’
ये सारी लड़कियां अपने घरों से दूर रहकर, दस हजार की पगार पर इस टोल पर काम कर रही हैं. सभी अपने घरों की वित्तीय जिम्मेदारी उठा रही हैं या फिर मदद कर रही हैं. लड़कियों का एज ग्रुप 21- 30 का है. ज्यादातर लड़के–लड़कियां यहां पतले कद–काठी के हैं. इनके शरीर से दुबले-पतले हैं और यह कुपोषित दिखते हैं. जो गांव–देहात से यहां काम करने आए हैं और किसान परिवारों से आते हैं.
सबसे ज्यादा परेशान पुलिसवाले और कारवाले करते हैं
धीरज कुमार 24 साल के हैं और हरियाणा के ही महेंद्रगढ़ से आते हैं. वो एसडीओ( स्पेशल ड्यूटी ऑफिसर) के तौर पर टोल कलेक्टर रूम के बाहर खड़े रहते हैं. धीरज ने दिप्रिंट को अपने रोजाना के काम के बारे में बताया,’ हर दूसरी गाड़ी वाला टोल नहीं भरना चाहता है. लड़कियों को तो कुछ समझते ही नहीं. मेरे साथ बहस करके फिर टोल देते हैं. कई बार बात हाथापाई तक पहुंच जाती है. आर्मी वाले भी फेक आइडी इस्तेमाल करके टोल से बचना चाहते हैं. कई बार तो लेन पर इतना ट्रैफिक लगा देते हैं कि कुछ गाड़ियों को हमें निकालना पड़ता है.’
प्रोजेक्ट हेड के मुताबिक,’ लोग टोल मांगने को स्वाभिमान से जोड़कर देखते हैं. कई बार तो अपने बगल में बैठे व्यक्ति के सामने हवा बनाने के लिए भी लोग तू–तू मैं–मैं पर उतर जाते हैं. लेकिन इसके साथ ही दस से बीस प्रतिशत लोग ऐसे भी आते हैं जो प्रोफेशनल हैं. टोल को जिम्मेदारी समझते हैं. उनके साथ कोई बहसबाजी नहीं होती.’
राजेंद्र सिंह भाटी ने बताया कि सबसे ज्यादा बदतमीजी कार वाले करते हैं. बाकी वाहनों से निपटना आसान है. कार वाले ज्यादा परेशानी खड़ी करते हैं.
प्रवीण फोगाट यहां के सुपरवाइजर हैं और हरियाणा के ही चरखी–दादरी से आते हैं. उन्होंने बताया कि बहुत सारा स्टाफ हरियाणा से है और झड़प भी लोकल्स से ही होती है. टोल क्लेक्टर के तौर पर काम करने वाली लड़कियों में से 20 को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत लाया गया है. टोल कलेक्टर के अलावा लेन असिस्टेंट, ट्रैफिक मास्टर, टोल सुपरवाइजर जैसी पोस्ट हैं. यहां काम करने वाले लोग हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, यूपी और मध्यप्रदेश से हैं.
(यह खबर 15 अप्रैल 2019 को पब्लिश की गई थी जिसे अपडेट किया गया है.)