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Friday, 15 November, 2024
होमदेश'हम खौफ में जी रहे हैं, बिलकिस बानो अभी सदमे में',गुजरात दंगे की पीड़िता को सता रही सुरक्षा की चिंता

‘हम खौफ में जी रहे हैं, बिलकिस बानो अभी सदमे में’,गुजरात दंगे की पीड़िता को सता रही सुरक्षा की चिंता

बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने दिप्रिंट से कहा, 'उनके स्वागत की खबरे सुनकर हमारा दिल बैठ गया. बिलकिस के दिल में बहुत डर पैदा हो गया है. हमें अपनी सुरक्षा को लेकर खतरा महसूस हो रहा है.'

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नई दिल्ली: जिस दिन देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहा था उसी दिन गुजरात में गैंग रेप के 11 आरोपियों को रिहा कर दिया गया. ये वही आरोपी हैं जिन्होंने 2002 गोधरा कांड में बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप किया था और उनके परिवार के 14 लोगों की हत्या कर दी थी. इन 11 लोगों की रिहाई की सिफारिश गुजरात सरकार ने की है. बता दें कि इन लोगों को हत्या करने के आरोप में साल 2008 में उम्रकैद की सजा दी गई थी.

मरने वालों में बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी भी शामिल थी जिसे आरोपियों ने मार दिया था. मारे गए 6 लोगों के शव कभी नहीं मिल पाए. अब गुजरात के एक पैनल की सिफारिश पर इन्हें सजा में छूट दे दी गई है.

अब 11 दोषियों की रिहाई पर बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘हमें मीडिया के जरिए ही यह खबर मिली और जब आगे हमने तफ्तीश की तो पता चला कि यह सच है. मैंने जब बिलकिस को यह बताया तो वह स्तब्ध रह गईं.’

‘उनके स्वागत की खबरें सुनकर हमारा दिल बैठ गया. बिलकिस के दिल में बहुत डर पैदा हो गया है. हमें अपनी सुरक्षा को लेकर खतरा महसूस हो रहा है.’

इस मामले पर बिलकिस ने भी अपना बयान जारी किया है और कहा है, ‘मैं सुन्न और ख़ामोश सी हो गई हूं.’

घटना के 20 साल बाद भी बिलकिस बानो का परिवार किसी स्थायी पते के साथ नहीं रह रहा है और अब जब 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया है तो उनमें डर बढ़ गया है. याकूब कहते हैं, ‘अब ज्यादा डर बढ़ गया है हमें अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना पड़ेगा.’

जेल एडवाइजरी कमेटी के प्रमुख और पंचमहन के डीएम सुजल मायात्रा ने कहा, ‘सजा में छूट का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है और इसके लिए उन्होंने तीन महीने पहले आवेदन दिए थे. वे 14 साल की सजा काट चुके हैं. किसी भी दूसरे केस की तरह ही इस मामले में भी वक्त से पहले रिहाई और छूट पर विचार किया गया. यह फैसला कैदियों के व्यवहार और दूसरे आचरण के आधार पर किया जाता है. इनकी सजा में छूट की सिफारिश राज्य सरकार के पास भेजी गई और सोमवर को हमें इन्हें रिहा करने का आदेश मिला.’

जेल एडवाइजरी की इस कमेटी में 8 सदस्य होते हैं. इसका प्रमुख होता है डीएम.

बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने इस पर कहा, ‘हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उन्होंने (दोषियों)  अपना आवेदन कब भेजा और राज्य सरकार ने किस फैसले पर विचार किया. हमें कभी किसी प्रकार का नोटिस नहीं मिला और हमें इस बारे में बताया भी नहीं गया. ऐसा कोई तरीका नहीं था जिससे हम इस बारे में पहले से जान सकते थे.’

अपनी आगे की रणनीति पर याकूब कहते हैं, अभी हम इस पर विचार करेंगे कि आगे क्या करना है.

किस आधार पर रिहाई

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जून को सभी राज्यों को एक पत्र लिखा था जिसमें बताया गया था कि भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के चलते कुछ चुनिंदा श्रेणियों में सजा काट रहे आरोपियों को सजा माफ करके रिहा किया जाएगा. कैदियों को तीन चरणों में रिहा करने का प्रस्ताव था. पहला 15 अगस्त 2022, दूसरा 26 जनवरी 2023 और तीसरा 15 अगस्त 2023 में होगा.

केंद्रीय गृह मंत्रालय के पत्र में यह भी जिक्र था कि किन श्रेणियों के कैदियों को छूट नहीं दी जाएगी. इसमें बलात्कार के दोषी और उम्र कैद की सजा भुगत रहे कैदी शामिल थे. हालांकि, प्रशासन का कहना है कि इन सभी क़ैदियों को साल 1992 की माफ़ी नीति के तहत रिहा किया गया है.

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि जेल में ’14 साल पूरे होने’ और ‘उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह’ जैसे कारकों की वजह से सजा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया.’

रिहा किए गए 11 आरोपियों का फूल-माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया. 15 अगस्त को जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को रिहा किया गया.

इन लोगों की रिहाई के बाद बिलकिस के साथ हुई दरिंदगी की यादें अब लौट आई हैं, वे न चाहते हुए भी पुरानी चीजों को याद कर रही हैं. हालांकि याकूब ने कहा कि पूरा देश आज कह रहा है कि बिलकिस के साथ जो हुआ था वह बहुत गलत था.

विपक्षी पार्टियां भी इस मामले में बीजेपी सरकार पर हमला बोल रही हैं. राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘5 महीने की गर्भवती महिला से बलात्कार और उनकी 3 साल की बच्ची की हत्या करने वालों को ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान रिहा किया गया.

नारी शक्ति की झूठी बातें करने वाले देश की महिलाओं को क्या संदेश दे रहे हैं? प्रधानमंत्री जी, पूरा देश आपकी कथनी और करनी में अंतर देख रहा है.’

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि पीएम मोदी यह बताएं कि जब वह महिलाओं की सुरक्षा, आदर और सशक्तीकरण की बात करते हैं तो क्या वह ख़ुद इन बातों में भरोसा करते हैं.

बिलकिस बानो के साथ क्या हुआ था

28 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में लगाई आग के बाद दंगे भड़क गए थे जिस दौरान दाहौद जिले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो अपने लगभग तीन साल की बेटी और 14 परिवार के सदस्यों के साथ गांव भाग गईं.

इसके दो दिन बाद 3 मार्च को परिवार ने छापरावाद जिले में शरण ली. इस दौरान 20-20 लोगों की भीड़ ने डंडे और तलवारे लेकर उन पर हमला कर दिया चार्जशीट के मुताबिक बिलकिस को पहले पीटा गया और फिर उसके साथ बलात्कार किया गया. इस दौरान उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की हत्या कर दी गई.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि तीन घंटे बाद जब बिलकिस को होश आया तो उसने एक आदिवासी महिला से कपड़े मांगे और लिमखेड़ा पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुंची थी. वहां कांस्टेबल सोमा भाई गोरी ने उनकी शिकायत दर्ज की. जिसे बाद में अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन साल की सज़ा मिली.

बाद में जांच के लिए उन्हें एक सार्वजनिक अस्पताल ले जाया गया, जिसके बाद बिलकिस को गोधरा राहत शिविर भेजा गया. इस बीच, उनका मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट में गया, जिसने इस घटना की सीबीआई से जांच कराने के आदेश दिए.

केस लड़ते हुए बिलकिस को मौत की धमकी मिलने लगी जिसके बाद बिलकिस ने गुजरात के बाहर मुकदमे को ट्रांसफर करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. वहां, उन्होंने बताया कि किस तरह महज दो साल में उन्होंने 20 घरों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा. अगस्त 2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले की सुनवाई गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दी.

15 साल बाद न्याय

21 जनवरी 2008 को, सीबीआई विशेष अदालत के न्यायाधीश यूडी साल्वी द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत, एक गर्भवती महिला के साथ बलात्कार की साजिश रचने और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के लिए 13 पुरुषों को दोषी ठहराया गया था.

सात अन्य को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया और मुकदमे के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई. इनमें से ग्यारह को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

बिलकिस ने ट्रायल के दौरान सभी दोषियों की पहचान की और बताया कि इनमें से ज्यादातर को वह जानती थी, इनमें से कई लोगों ने उसके परिवार से दूध खरीदा है.

इसके दस साल बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने मई 2017 में सामूहिक बलात्कार मामले में 11 लोगों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास को बरकरार रखा.

बिलकिस बानो को साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 50 लाख का मुआवजा और चपरासी की नौकरी देने की बात कही थी. उन्हें मुआवजे की राशि तो मिल गई लेकिन बिलकिस का कहना था कि चपरासी की नौकरी उनके पति को मिलनी चाहिए. अब सरकार इस गुजारिश पर विचार कर रही है.


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