गुजरात में कुछ दिन पहले जबरदस्त ड्रामा हुआ. चौंकाने वाले फ़ैसले लेने के लिए चर्चित भाजपा आलाकमान ने एक बार फिर से चिरपरिचित अंदाज में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को अचानक उनके पद से हटा दिया. किसी और को छोड़िए खुद विजय रूपाणी को भी इसका कोई अंदेशा नहीं था. हालांकि, यह एकदम से आश्चर्यजनक बात भी नहीं है क्योंकि गुजरात में कोविड-19 महामारी से निपटने के प्रयासों की स्थिति अन्य विकसित राज्यों की तुलना में काफ़ी बदतर थी.
संयोगवश, जुलाई में किए गये मुख्यमंत्रियों के एक लोकप्रियता सर्वेक्षण में हमने देखा था कि रूपाणी नीचे से तीसरे स्थान पर थे. इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री (येदीयुरप्पा) को बदला गया था, जिनकी रैंकिंग भी काफ़ी खराब थी. इसी तरह उत्तराखंड के पिछले मुख्यमंत्री की रैंकिंग भी खराब रही थी. उत्तराखंड और कर्नाटक में इसी तरह की कार्रवाई के बाद रूपाणी को बदला जाना यह दर्शाता है कि भाजपा आलाकमान जमीन से उठती आवाज़ों को सुन पा रहा है और ज़रूरी सक्रियता दिखाते हुए अलोकप्रिय मुख्यमंत्रियों को लगातार हटा रहा है.
दिल्ली में बैठी मीडिया की तरह ही राजनीतिक विश्लेषकों ने तुरंत रूपाणी को अचानक पद से हटाए जाने के पीछे के कारणों से जुड़े विभिन्न सिद्धांतों की व्याख्या करनी शुरू कर दी और, अपेक्षा के अनुरूप ही, प्राइम टाइम समाचारों के दौरान जानेमाने और ‘अनुभवी’ कहे जाने वाले राजनीतिक पत्रकारों ने जोरदार विश्वास के साथ यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? उन्होंने पूरे देश को ‘सूचित’ करते हुए कहा कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री एक जानमाना पाटीदार नेता ही होगा और इस योग्यता के साथ फिट माने जाने वाले विभिन्न नामों को गिनाने भी लगे. उनमें से कुछ ने तो हमें यह भी बताया कि हो सकता है कि गुजरात में कोई भी अगला मुख्यमंत्री न हो, और वहां जल्द चुनाव हो सकते हैं.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ये सभी ‘विश्लेषण’ एक बार फिर से खोखले साबित हुए. और भाजपा आलाकमान ने पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी. राजनीतिक टिप्पणीकारों के पूरे समूह में लगभग किसी को भी इस तरह की नियुक्ति की उम्मीद तक नहीं थी. उन सबके के बीच की आम सहमति उप मुख्यमंत्री और दिग्गज पाटीदार नेता नितिन पटेल को लेकर बनी थी.
भूपेंद्र पटेल की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के साथ, भाजपा नेतृत्व को शायद यह लगता है कि एक अज्ञात पाटीदार नेता एक ज्ञात पाटीदार या यहां तक कि एक गैर-पाटीदार नेता की तुलना में उस समुदाय के मतदाताओं को लुभाने के लिए पर्याप्त होगा. पर गुजरात के मतदाता इस चयन के बारे में क्या महसूस करते हैं? क्या एक अज्ञात पाटीदार नेता आगामी चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में किसी जाने-माने चेहरे की तुलना में अधिक स्वीकार्य होगा? प्रशनम ने इस बारे में पता लगाने का फैसला किया.
गुजरात के मतदाता: पाटीदार बनाम गैर-पाटीदार
गुजरात के नए मुख्यमंत्री के रूप में भूपेंद्र पटेल के शपथ ग्रहण के तीन घंटे बाद ही प्रशनम ने अपने स्वामित्व वाले प्रौद्योगिकी प्लैटफॉर्म का उपयोग करते हुए गुजरात के सभी जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में 2,232 मतदाताओं के बीच एक सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण के नमूने के रूप में चयनित उत्तरदाताओं का जातिय स्तरीकरण कुछ इस प्रकार था – 26% अनुसूचित जनजाति, 18% पाटीदार, 18% ओबीसी, 8% मुस्लिम, और 31% क्षत्रिय एवम् अन्य हिंदू.
पूछा गया सवाल कुछ इस प्रकार था कि इन नेताओं में से किसे अगले चुनाव के लिए बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार होना चाहिए?
विकल्प के रूप में दिए गये नाम थे: विजय रुपाणी, प्रदीप सिंह जडेजा, भूपेंद्र पटेल, और इनमें से कोई भी नही.
यहां यह याद रखें कि इस सर्वेक्षण का उद्देश्य भाजपा के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री उम्मीदवार का पता लगाना नहीं था, बल्कि इस तथ्य- जिसपर भाजपा के अपने नया दांव लगाया है – का परीक्षण करना था कि क्या गुजरात के मतदाता मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में किसी अज्ञात पाटीदार को किस ज्ञात गैर-पाटीदार नेता की तुलना में ज़्यादा पसंद करते हैं?
इसी कारण से इसमें शामिल नाम अत्यंत सावधानी से और जानबूझकर चुने गए – विजय रूपाणी, एक ज्ञात गैर-पाटीदार बनिया और पूर्व मुख्यमंत्री; प्रदीपसिंह जडेजा, एक जानेमाने क्षत्रिय नेता, तीन बार के विधायक और गुजरात के वर्तमान गृह मंत्री; और नए अज्ञात पाटीदार नेता मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल.
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एक ज्ञात गैर-पाटीदार को किसी अज्ञात पाटीदार से अधिक पसंद किया गया
32% से भी अधिक उत्तरदाताओं ने सर्वेक्षण में दिए गये किसी भी विकल्प के प्रति उत्साह नहीं दिखाया और उन्होंने उपरोक्त में से कोई नहीं/कोई राय नहीं वाला विकल्प चुना.
नोट: राउंडिंग ऑफ के कारण संख्यायों का योग 100 तक नहीं भी हो सकता है.
लेकिन गुजरात के कुल मतदाताओं में से 30% ने इन तीन विकल्पों में से अगले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में विजय रूपाणी को ही पसंद किया, जो राजनीतिक अध्ययनों में अच्छी तरह से स्थापित इसी सिद्धांत को दर्शाता है कि ऐसे सर्वेक्षणों में पद पर बैठे व्यक्ति को हमेशा दूसरों की तुलना में ज़्यादा लाभ रहता है.
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पाटीदार मतदाताओं को लुभाने के लिए किए गये भूपेंद्र पटेल के चयन के बाद पाटीदार मतदाता इस बारे में क्या महसूस करते हैं?
गुजरात में पाटीदार मतदाता मुख्यमंत्री पद के लिए नयी पसंद के प्रति उत्साहित नहीं
नोट: राउंडिंग ऑफ के कारण संख्यायों का योग 100 तक नहीं भी हो सकता है.
लगभग 38% पाटीदार मतदाताओं ने कहा कि वे किसी भी विकल्प के प्रति उत्साहित नहीं हैं. दरअसल मुसलमानों के बाद इस सर्वेक्षण में शामिल गैर-उत्साहित लोगों में पाटीदारों की संख्या सबसे अधिक थी. मुसलमानों की बात समझ में आती है क्योंकि वे वैसे भी भाजपा के मतदाता नहीं हैं. इसलिए, भाजपा के संभावित मतदाताओं में से पाटीदार मतदाता किसी अज्ञात पाटीदार नेता के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप पेश किए जाने के बारे में सबसे अधिक संशय में हैं, जबकि एस सी एसटी ओबीसी, क्षत्रिय और अन्य हिंदुओं के बीच दिए गये नामों में स्पष्ट पसंद उपलब्ध थी
यहां यह भी बताया जाना चाहिए कि 26% पाटीदार मतदाताओं ने नए मुख्यमंत्री को पसंद किया, जबकि केवल 20% ने ही पद पर रहने के अतिरिक्त लाभ के बावजूद रूपाणी को चुना.
इस कारण से इस सिद्धांत में कुछ सच्चाई दिखती है कि किसी विशिष्ट जाति से आने वाला कोई अज्ञात चेहरा भी उस जाति के मतदाताओं को दूसरी जाति के किसी ज्ञात चेहरे की तुलना में आकर्षित करने हेतु बेहतर विकल्प है. विकसित राज्यों में भी जाति की राजनीति अभी भी दिमाग़ों पर राज करती है.
इसके अलावा, एसटी उत्तरदाताओं में से 41% ने रूपाणी को चुना, जबकि ओबीसी मतदाता आश्चर्यजनक रूप से नए मुख्यमंत्री को पसंद करने लगे हैं, शायद ऐसा इसलिए भी है कि उन्होंने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की उतनी परवाह नहीं की जितनी की उन्हें बीजेपी को वोट देने की चाह के प्रति है और इसलिए वे पार्टी आलाकमान की पसंद के साथ ही गए थे. लेकिन क्षत्रिय और अन्य हिंदुओं ने स्पष्ट रूप से नए मुख्यमंत्री की तुलना में रूपाणी और जडेजा को अधिक पसंद किया.
तो, इसे सर्वेक्षण से निकले निष्कर्ष स्पष्ट हैं – पाटीदार वोटों को लुभाने के लिए एक अज्ञात पाटीदार को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने का भाजपा द्वारा लगाया गया दांव अभी भी अप्रमाणित सा ही है क्योंकि अधिकांश पाटीदार उसकी इस पसंद के प्रति उत्साहित नहीं हैं.
लेकिन पाटीदारों को लुभाने के लिए अपनाई गई यह रणनीति लंबे अंतराल में रंग ला सकती है बशर्ते नये मुख्यमंत्री खुद को स्थापित कर सकें और सत्तानशीन होने का अतिरिक्त लाभ उठा सकें क्योंकि पाटीदार मतदाता स्पष्ट तौर पर एक अज्ञात पाटीदार नेता को किसी भी ज्ञात गैर-पाटीदार नेता से ज़्यादा पसंद करते हैं.
पारदर्शिता और ईमानदारी के अपने सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए प्रशनम इस सर्वेक्षण के संपूर्ण रॉ डेटा को विश्लेषकों और शोधकर्ताओं के द्वारा फिर से सत्यापित करने और विश्लेषण करने के लिए यहां उपलब्ध कराता है.
नोट: इस कॉलम को प्रश्नम की टीम के सदस्यों की मदद से लिखा गया है.
राजेश जैन, एआई टेक्नॉलजी स्टार्ट-अप, प्रशनम के संस्थापक हैं, जिसका उद्देश्य रायशुमारी (ओपिनियन गैदरिंग) को अधिक वैज्ञानिक, आसान, तेज और किफायती बनाना है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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