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Friday, 22 November, 2024
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भारत का ग्रीन हाइड्रोजन का सपना: व्यवसाय तो बढ़ा, लेकिन लागत और सुरक्षा चिंता का विषय

ग्रीन हाइड्रोजन को 'भविष्य के ईंधन' के रूप में निर्माण करने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले महीने 19,744 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च के साथ 'राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन' को मंजूरी दी.

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नई दिल्ली: भारत निकट भविष्य में मिलने वाले ग्रीन हाइड्रोजन के अवसर को छोड़ना नहीं चाहता है, लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ बनने की हमारी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए हमें सब कुछ ज़ीरो से शुरू करना होगा.

इस समय भारत में इस क्षेत्र में कुछ ही निर्माता हैं, जो पानी से हाइड्रोजन को डिस्टिल करते हैं, जिनमें से कुछ ही के पास इलेक्ट्रोलाइज़र बनाने का दशकों का अनुभव है.

पिछले महीने, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ग्रीन हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव के अनुसंधान, उत्पादन और निर्यात के लिए 19,744 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च के साथ ‘राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ को मंजूरी दी थी.

रिलायंस, अडाणी और लार्सन एंड टर्बो समेत बड़ी औद्योगिक कंपनियों ने इस मिशन में अपना योगदान दिया है.

भारत को उन्नत ग्रीन हाइड्रोजन अवसंरचना वाले देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करके उनके बीच अपनी जगह बनानी होगी.

हाइड्रोजन काउंसिल की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के सदस्यों का एक ऊर्जा समूह है जिसमें चीन इलेक्ट्रोलाइज़र (200 मेगावाट पर) सबसे आगे है और यूरोप में इस क्षेत्र में प्रस्तावित निवेश का अधिकतम हिस्सा (लगभग 30 प्रतिशत) है.

सुरक्षा, उत्पादन की लागत और अस्थिर ईंधन को समायोजित करने के लिए मौजूदा प्रणालियों को फिर से तैयार करने के बारे में सोचना भी जरूरी है, जिनका कभी भी कल्पना किए जाने वाले पैमाने पर उपयोग नहीं किया गया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि हाइड्रोजन अपनी शुद्ध अवस्था में नहीं होने पर बेहद ज्वलनशील हो सकता है और इसके अंतिम उपयोग की चुनौतियां भारत में इसकी संभावनाओं को धूमिल कर सकती हैं.

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के आशावादी लोगों में पुणे स्थित नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी H2E पावर सिस्टम्स के सीईओ सिद्धार्थ मयूर शामिल हैं.

मयूर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ”हम जैसी छोटी कंपनियां स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाने की प्रेरणा से प्रेरित हैं. बड़े लोग पैसा तो लगाते हैं मगर उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए इस पर ध्यान देने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा, ”भारत के ग्रीन हाइड्रोजन बुनियादी ढांचे का निर्माण बेहद सहयोगी होने जा रहा है. इस व्यवसाय में पहले से मौजूद लोगो से हम बात कर रहे हैं. हां, चुनौतियां हैं, लेकिन चीज़े काम कर रही हैं और हम आगे बढ़ रहे हैं.”


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बाधाओं के साथ सनराइज क्षेत्र आगे

ग्रीन हाइड्रोजन को ‘भविष्य के ईंधन’ के रूप में देखा जाता है, जिसका अर्थ दुनिया के कुछ सबसे अधिक कार्बन-गहन उद्योगों को डीकार्बोनाइज करना है. ये दुनिया को शुद्ध-शून्य उत्सर्जन में लाने की क्षमता रखता है, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को सीमित करने के लिए एक आवश्यक घटक है.

ग्रीन हाइड्रोजन के लिए सरकार के जोर ने चिंतन तिवारी के व्यवसाय को नया जीवन दिया है. तिवारी पूर्वी इलेक्ट्रोलाइज़र के प्रबंध निदेशक हैं, जो देश में ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्रों के सबसे पुराने निर्माताओं में से एक है.

इस्टर्न इलेक्ट्रोलाइज़र में एक ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट | फोटो: सिमरिन सिरूर/दिप्रिंट

पिछली बार उनके लिए व्यापार में उछाल 1980 के दशक में आया था, जब हाइड्रोजन से युक्त वेजिटेबल ऑइल को ट्रांस फैट जिसे ‘डालडा’ ब्रांड नाम से जाना जाता था – को देसी घी के स्वस्थ विकल्प के रूप में बाज़ार में उतारा गया था. हाइड्रोजनीकृत तेल उन कुछ प्रक्रियाओं में से एक है जो ग्रीन हाइड्रोजन पर निर्भर करती हैं.

1994 में, जब विज्ञान ने निर्णायक रूप से ट्रांस फैट को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और अमेरिका में 30,000 मौतों के लिए ज़िम्मेदार घोषित किया था, तो हाइड्रोजेनेटेड तेल की लोकप्रियता गिर गई और इसके साथ ही तिवारी का व्यवसाय भी घटने लगा.

उन्होंने कहा, ”कोविड -19 महामारी मेरे व्यवसाय के लिए हानिकारक साबित हुई, लेकिन अब ऐसा लगता है कि उद्योग धीरे-धीरे पटरी पर आ रही हैं. अब इसमें (ग्रीन हाइड्रोजन में) लोगों की रूचि बढ़ रही है और इसमें इतनी सारी संभावनाएं हैं जिन पर पहले ध्यान नहीं दिया गया था.”

तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि ईस्टर्न इलेक्ट्रोलाइजर चिली को रेडीमेड ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट का भारत का अब तक का पहला निर्यात होगा, जहां प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रित रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किए जाने की संभावना है.


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ग्रे VS ग्रीन हाइड्रोजन

हाइड्रोजन को इसके उच्च कैलोरी वैल्यू के कारण ऊर्जा का एक विपुल स्रोत माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह तेल, गैस और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में प्रति किलो बहुत अधिक ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है.

पेट्रोल, डीजल और अन्य रसायनों को बनाने के लिए कच्चे तेल को डीसल्फराइज करने के लिए, तेल रिफाइनरियों में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है. इसका उपयोग उर्वरकों के उत्पादन में भी किया जाता है, जहां इसे प्राकृतिक गैस से निकाला जाता है और अमोनिया बनाने के लिए नाइट्रोजन के साथ मिलाया जाता है.

समस्या यह है कि इन उद्योगों में हाइड्रोजन का उपयोग करने का सबसे सस्ता तरीका कोयले या गैस के गैसीकरण के माध्यम से होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने वाली प्राथमिक ग्रीनहाउस गैस है.

इस तरह से उत्पादित हाइड्रोजन को ‘ग्रे हाइड्रोजन’ कहा जाता है.

भारत प्रतिवर्ष 5 से 6 मिलियन मीट्रिक टन ग्रे हाइड्रोजन की खपत करता है. सरकार का कहना है कि ग्रे हाइड्रोजन को ग्रीन कॉउंटरपार्ट के साथ बदलने से 2030 तक उत्सर्जन में 50 मिलियन मीट्रिक टन की कमी हो सकती है.

ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन एक आकर्षक संभावना बन गया है क्योंकि इसके निष्कर्षण और दहन का परिणाम नगण्य है.

इसकी प्रक्रिया वही है जो ज्यादातर बुनियादी रसायन विज्ञान की किताबों में होती है, पानी का इलेक्ट्रोलिसिस, लेकिन रेनेवेबल स्रोतों से उत्पन्न बिजली के साथ. हालांकि, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में प्रयुक्त इलेक्ट्रोलाइज़र कुछ समान होते हैं, लेकिन केमिस्ट्री की किताबों में इनके बेहतर डायग्राम होते है.

तिवारी की फर्म ने जो प्लांट डिजाइन किए हैं वे कॉम्पैक्ट मशीन हैं. उनके पास बिजली के तारों का एक बड़ा नेटवर्क है जो पानी को डीओनाइज़ करता है, इलेक्ट्रोलाइज़र को शक्ति देता है, गैस को सुखाता है, इसे ठंडा रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि यह मिश्रण या रिसाव न करे. इसका परिणाम हाइड्रोजन है जो 99.9 प्रतिशत शुद्ध है और सुरक्षा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करता है.

कोई अन्य विकल्प नहीं है – 4 से 6 प्रतिशत ऑक्सीजन के साथ मिश्रित होने पर हाइड्रोजन अत्यंत ज्वलनशील हो जाता है.

प्लांट जितने प्रभावशाली हैं, वे इस समय ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की सीमाओं को भी प्रकट करते हैं.

तिवारी के एक प्लांट में प्रति घंटे 30 क्यूबिक मीटर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने की लागत 360,000 डॉलर है.

उन्होंने बताया, ”जो पश्चिम में इसकी लागत का एक अंश है क्योंकि मैं इसे बनाने के लिए आयातित और स्वदेशी दोनों भागों का उपयोग करता हूं.”

1 किलो ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की वर्तमान लागत 5.5 डॉलर और 6 डॉलर के बीच है जो बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए बहुत महंगा है. इसे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए, इसकी कीमत लगभग 1-2 डॉलर प्रति किलोग्राम तक गिरनी चाहिए.

तिवारी ने कहा, ”हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के लिए प्लांट बनाने वाली कंपनी भारत में निर्मित होने वाला सबसे बड़ा सिंगल-स्टैक प्लांट बनाएगी जो ‘एक घंटे में 500 क्यूबिक मीटर हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सक्षम होगा.”

हाइड्रोजन में अच्छा ग्रेविमीट्रिक ऊर्जा घनत्व है, लेकिन जब वॉल्यूमेट्रिक ऊर्जा घनत्व की बात आती है, तो यह उतनी अच्छी नहीं है, जिसका अर्थ है कि अन्य ईंधन की तुलना में इसे बहुत बड़ी मात्रा में वैल्यू की आवश्यकता होती है.

ऊर्जा सलाहकार माइकल लिब्रीच ने पिछले साल ब्लूमबर्गएनईएफ लेख में लिखा था, ”वॉल्यूमेट्रिक आधार पर, हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व जेट ईंधन का एक चौथाई है और एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) का केवल 40 प्रतिशत है.”

इसका कम आयतन घनत्व इसके भंडारण को कठिन बना देता है. यह एक उच्च दर पर संकुचित है – सीएनजी की तुलना में बहुत अधिक और विशेष कंटेनरों में संग्रहीत किया जाता है जो दबाव का सामना कर सकते हैं, लेकिन बनाने की बात आये तो ये काफी महंगे हैं.

भंडारण की चुनौतियों से बचने के लिए, रिफाइनरियों या उर्वरक कारखानों में ‘साइट पर’ ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट भी स्थापित किए जा सकते हैं, जो कारखानों को उनकी आवश्यकता होने पर हाइड्रोजन की आपूर्ति करते हैं.

लेकिन, यहां भी चुनौतियों का एक और समूह उभर कर सामने आता है.

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के फेलो हेमंत माल्या ने कहा, ”इस बारे में एक बड़ी बहस है कि ग्रीन हाइड्रोजन की परिभाषा क्या होनी चाहिए या ग्रीन हाइड्रोजन कितना ‘ग्रीन’ होना चाहिए.”

ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर करता है, जो असंगत आपूर्ति वाले परिवर्तनशील स्रोत हैं.

समाधान के रूप में एक ऐसी रिन्यूएबल एनर्जी स्टोरेज प्रणालियों का निर्माण करना है जो पीक ऑवर्स के दौरान अतिरिक्त उत्पादन को स्टोर कर सके. यह पूंजीगत व्यय उत्पादन की लागत को और भी अधिक बढ़ा देगा, क्योंकि बैटरी स्टोरेज सिस्टम अभी भी विकसित हो रहे हैं.

एक दूसरा समाधान नवीकरणीय स्रोत को ग्रिड से जोड़ना है, ताकि जब नवीकरणीय स्रोत नहीं हो पाता है तो यह प्लांट को बिजली की आपूर्ति कर सके.

माल्या ने कहा, ”हमारा ग्रिड ज्यादातर जीवाश्म-ईंधन आधारित है, ऐसे ऑपरेशन से उत्पादित हाइड्रोजन ग्रीन हाइड्रोजन नहीं हो सकता.”

उन्होंने आगे कहा, ”हमारा प्रस्ताव है कि हाइड्रोजन पूरी तरह से ग्रीन न हो, क्योंकि लागत अभी बढ़ेगी. इसके बजाय, इसे अलग-अलग मूल्य निर्धारण के साथ ग्रिड से जोड़ा जाना चाहिए.”

हाल के एक पेपर में, CEEW ने पहले ‘टर्काइज़ हाइड्रोजन’ के लिए एक बाज़ार बनाकर ग्रीन हाइड्रोजन में संक्रमण की उच्च लागत को कम करने का सुझाव दिया है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उच्च तापमान पर मीथेन का थर्मल अपघटन शामिल होता है, जो मौजूदा तरीकों की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन के साथ हाइड्रोजन का उत्पादन करता है.

CEEW पेपर के अनुसार, टर्काइज़ हाइड्रोजन की कीमत केवल 1.6 डॉलर प्रति किलोग्राम है, जो इसे प्रतिस्पर्धी बनाता है.

माल्या ने कहा, ”हम जो कह रहे हैं, वह मांग पैदा करना है, भविष्य में फिरोज़ा हाइड्रोजन के साथ पांच से सात साल में इसका बाजार बनाया जा सकता है. एक बार जब यह पैमाना हासिल हो जायेगा, तभी ग्रीन हाइड्रोजन आ सकता है और मूल्य प्रतिस्पर्धा ला सकता है. आखिरकार ग्रीन हाइड्रोजन ग्रे या टर्काइज़ से सस्ता होगा और इसलिए यह एक सहज ट्रांजीशन है.’


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‘हमें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए’

19,744 करोड़ रुपये के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत, भारत ने ‘ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप’ के लिए 17,490 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के अलावा, इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू निर्माण को बढ़ाना शामिल है.

बाकी को पायलट परियोजनाओं की स्थापना के बीच विभाजित किया गया है जो ग्रीन हाइड्रोजन (1,466 करोड़ रुपये), अनुसंधान और विकास (400 करोड़ रुपये) और मिशन कॉम्पोनेंट्स (388 करोड़ रुपये) इस प्रकार है.

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से आगे बढ़ते हुए, मयूर की H2E रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में बड़े सपनों के साथ अपने पहले कुछ कदम बढ़ा रही है.

कंपनी ‘स्टैक’ के लिए एक निर्माण इकाई स्थापित करने के बीच में है – एक ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट का सबसे महंगा हिस्सा जो न केवल पानी को दो तत्वों में विभाजित करने का भारी काम करता है, बल्कि संयंत्र की परिचालन सुरक्षा और स्थिरता भी सुनिश्चित करता है.

मयूर ने कहा, ”हम यह सुनिश्चित करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को एक साथ रख रहे हैं कि स्टैक बनाने में लगने वाले प्रत्येक हिस्से को यहां बनाया जा सके.” उसके लिए, प्रक्रिया को किकस्टार्ट करने के लिए सब्सिडी बेहद उपयोगी रही है और उत्पादन से जो चुनौतियां उभर सकती हैं, वे भविष्य के लिए भी समस्याएं पैदा कर सकती हैं.

लेकिन तिवारी जैसे पुराने जानकार के लिए, जिनकी विशेषज्ञता ग्रीन हाइड्रोजन में रुचि बढ़ने के बाद से मांग में रही है, कोई नीति न होना उस नीति से बेहतर है जो ‘अनजाने में बड़े निगमों को लाभ पहुंचाती है’ जो इस क्षेत्र में कदम रख रहे हैं.

उन्होंने सलाह देते हुए कहा, ”मुझे नहीं लगता कि ग्रीन हाइड्रोजन (आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा) बनाने से कोई बड़ा लाभ होने वाला है, क्योंकि आपूर्ति श्रृंखला वैश्विक है. हमें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए.”

उन्होंने कहा, ”उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं अच्छी हैं, लेकिन वे बड़े निगमों को लाभान्वित करने के लिए तैयार हैं जिनके पास पूंजी है. ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट्स के आपूर्तिकर्ता बड़े निगम शामिल होने का श्रेय लेने में प्रसन्न हैं, लेकिन वे सभी संविदात्मक जोखिमों को एमएसएमई पर धकेल देते हैं. जोखिम उठाने की क्षमता के अनुपात में जोखिम उठाया जाना चाहिए, लेकिन इसके लिए कोई नीति नहीं है.”


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समस्याएं

2021 के ब्लॉग में, ग्लासगो में स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय में पावर नेटवर्क्स डिमॉन्स्ट्रेशन सेंटर के एक ऊर्जा शोधकर्ता, शिवप्रिया भगवती ने उत्पादन, वितरण और अंतिम उपयोग के हर चरण में बाधाओं की एक चेकलिस्ट का सह-लेखन किया.

बाधाओं में इलेक्ट्रोलाइज़र का कम जीवनकाल, हाइड्रोजन की थोड़ी सी भी सांद्रता के साथ पाइपलाइनों का भंगुर होना, और हाइड्रोजन के परिवहन और भंडारण के लिए आपूर्ति श्रृंखला का विकास शामिल है.

ब्लॉक में आगे कहा गया कि ‘ग्रीन हाइड्रोजन में ऊर्जा क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के लिए एक लीवर के रूप में कार्य करने की क्षमता है, विशेष रूप से हीटिंग और हेवी-ड्यूटी परिवहन के साथ ऐसी जगह में जहां जाना मुश्किल होता है. क्षमता को अधिकतम करने के लिए और (व्यावसायीकरण के लिए), चुनौतियों को संबोधित करने की आवश्यकता होगी.

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का एक रोडमैप, जिसे पिछले महीने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था, इंगित करता है कि मिशन एक साथ चुनौतियों का समाधान करने और उन्हें जल्द से जल्द हल करने का प्रयास करेगा.

योजना के अनुसार, मिशन ‘ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग के लिए 2023-24 के अंत तक सभी आवश्यक (सुरक्षा) मानकों और नियमों की अधिसूचना की सुविधा प्रदान करेगा.’ यह ऑटोमोबाइल से लेकर शिपिंग तक की कई पायलट परियोजनाओं की देखरेख भी करेगा.

मंत्रालय के दस्तावेज के अनुसार, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ”2027 तक ग्रीन हाइड्रोजन या अन्य ग्रीन हाइड्रोजन-व्युत्पन्न ईंधन पर चलने के लिए कम से कम दो जहाजों को फिर से तैयार करेगा.”

दस्तावेज़ कहते हैं, ”हाइड्रोजन-ईंधन वाले वाहनों और अन्य अनुप्रयोगों के संचालन की अनुमति देने के लिए सभी नियामक प्रावधानों (या मौजूदा नियमों में संशोधन) को मिशन की अधिसूचना के 12 महीनों के भीतर अधिसूचित किया जाएगा.”

मंत्रालय ‘पायलट आधार पर चरणबद्ध तरीके से’ हाइड्रोजन ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहनों को तैनात करने का भी प्रस्ताव करता है.

माल्या के अनुसार, नीति की सफलता इस बात में निहित है कि उत्पादन से जुड़ी योजना को कैसे ठीक किया जाता है.

उन्होंने कहा, ”अगर इसे अच्छी तरह से क्यूरेट किया जाता है और अगर यह ग्रे और ग्रीन हाइड्रोजन के बीच पूंजी-प्रीमियम अंतर (या लागत) को पाटता है, तो हम एक स्वस्थ विनिर्माण आधार की आशा कर सकते हैं. कच्चे माल के रूप में हाइड्रोजन पर निर्भर उद्योगों पर खरीद दायित्वों को अनिवार्य करके, नीति को मांग-पक्ष के उपायों को मजबूत बनाने के लिए भी काम करना चाहिए. अंत में, अंतिम उपयोग के मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है, लेकिन इसमें कुछ समय लग सकता है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः अलमिना खातून)


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