scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशग्रेट निकोबार पर सरकारी विजन में एयरपोर्ट और टाउनशिप शामिल, लेकिन कुछ विशेषज्ञ इसे ‘नासमझी’ मान रहे

ग्रेट निकोबार पर सरकारी विजन में एयरपोर्ट और टाउनशिप शामिल, लेकिन कुछ विशेषज्ञ इसे ‘नासमझी’ मान रहे

प्रोजेक्ट संबंधी रिपोर्ट पर एक सार्वजनिक चर्चा का आयोजन किया गया. इस प्रस्तावित प्रोजेक्ट के तहत एक लगभग निर्जन और दूरवर्ती द्वीप को एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह और टूरिस्ट सेंटर बनाने की तैयारी की जा रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह स्थित ग्रेट निकोबार द्वीप के समग्र विकास’ के संदर्भ में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) पर चर्चा के लिए गुरुवार को एक सार्वजनिक चर्चा का आयोजन किया गया. प्रोजेक्ट के तहत व्यापक स्तर पर निर्जन और दूरवर्ती ग्रेट निकोबार द्वीप को एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट और टूरिस्ट हब के तौर पर विकसित करने पर विचार-विमर्श चल रहा है.

सार्वजनिक चर्चा स्थायी पर्यावरणीय प्रभावों वाली बड़ी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया का एक हिस्सा है. इसके जरिये सुनिश्चित किया जाता है कि स्थानीय समुदायों और पर्यावरण संगठनों को परियोजना को लेकर अपनी चिंताओं को मुखर ढंग से उठाने के लिए एक मंच दिया जाए.

तमाम पर्यावरण संगठनों, शोधकर्ताओं और नागरिकों ने अंडमान और निकोबार प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण समिति से लिखित तौर पर कहा था कि हैदराबाद स्थित विमता लैब्स द्वारा तैयार की गई ईआईए रिपोर्ट को संशोधित किया जाए. इनमें से कुछ आग्रह पत्र दिप्रिंट ने हासिल किए हैं.

ईआईए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि उचित पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली के साथ प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को सख्ती से लागू किया जाए तो प्रस्तावित एकीकृत परियोजना समाज के लिए फायदेमंद होगी और खासकर ग्रेट निकोबार द्वीप (जीएनआई) और साथ ही देश के आर्थिक विकास में भी सहायक साबित होगी,’ रिपोर्ट में किए गए इस दावे पर सार्वजनिक चर्चा के दौरान व्यापक स्तर पर सवाल उठाए गए.


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार ने राज्यों के लिए EC रैंकिंग प्रणाली का किया बचाव , कहा- ‘सुरक्षा उपायों को नुकसान नहीं होगा’


प्रोजेक्ट का विजन

यह प्रोजेक्ट नीति आयोग के उस विजन का हिस्सा है जिसके तहत 72,000 करोड़ रुपये के अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एयरपोर्ट, थर्मल पावर प्लांट और द्वीप पर करीब 6.5 लोगों की आबादी बसाने के उद्देश्य के साथ टाउनशिप का निर्माण किया जाना है. अभी इस द्वीप की आबादी करीब 8,000 है. इनमें शोम्पेन जनजाति के 237 आदिवासी और निकोबारी जनजाति के 1,094 लोग शामिल हैं.

2021 की शुरुआत में नीति आयोग ने ‘लिटिल अंडमान द्वीप के सतत विकास’ शीर्षक से एक विजन डॉक्युमेंट सर्कुलेट किया था, जिसमें ग्रेट निकोबार द्वीप और साथ लिटिल अंडमान दोनों को विकसित करने का प्रस्ताव था. इसमें कहा गया था कि ‘देश के आर्थिक और रणनीतिक लाभ के लिए इन द्वीपों के विकास के साथ इनकी समृद्ध जैव-विविधता बनाए रखने और मूल जनजातीय समूहों का संरक्षण सुनिश्चित करना जरूरी है.’

विजन डॉक्युमेंट के मुताबिक, योजना के चार उद्देश्य थे—भारत के लिए दो नए ग्रीनफील्ड तटीय शहरों का निर्माण, शहरों को मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित करना, दो शहरों को हांगकांग, सिंगापुर और दुबई जैसे वैश्विक शहरों के साथ प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना, और रणनीतिक रूप से अहम जगह और द्वीपों की नैसर्गिक विशेषताओं को आगंतुकों के सामने अनूठे ढंग से पेश करना.

हरियाणा स्थित इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म, एईसीओएम को नीति आयोग की तरफ से काम पर रखा गया और उसने मार्च 2021 में एक ‘प्री-फीजीबिलिटी रिपोर्ट’ तैयार की. इसने प्रोजेक्ट के लिए जगहों का पता लगाया और दक्षिणी तट के किनारों पर द्वीप के विकास की योजना बनाई, साथ ही कहा कि ‘इस प्रोजेक्ट के जरिये अपेक्षाकृत कम सामाजिक और पर्यावरणीय लागत पर ज्यादा सामाजिक-आर्थिक मूल्यों को बढ़ाया जा सकेगा.’

इसके बाद, केंद्र सरकार की तरफ से नियुक्त विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने 25 मई 2021 को रेखांकित किया कि प्रस्तावित स्थानों को परियोजना की ‘मुख्य रूप से तकनीकी और वित्तीय व्यवहार्यता’ को ध्यान में रखकर चुना गया, जबकि ‘पर्यावरणीय पहलू को ज्यादा वेटेज नहीं दिया गया है.’

ग्रेट निकोबार द्वीप को जानवरों की 1,700 से अधिक प्रजातियों के लिए जाना जाता है, और यह देश में जैव विविधता वाले सबसे बड़े इलाकों में से एक है, जिसका बड़ा हिस्सा प्राकृतिक, घने जंगलों वाला है.

ईएसी ने ‘पर्यावरणीय संवेदनशीलता के संदर्भ में’ इसका आकलन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए परियोजना की संदर्भ शर्तों को मंजूरी दी है. संदर्भ शर्तें उन मानदंडों को रेखांकित करती हैं जिनका पालन ईआईए के लिए आवश्यक है. 1,200 पेज की ईआईए रिपोर्ट को तैयार करने के बाद गत 27 दिसंबर को अंडमान और निकोबार राज्य सरकार की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया था.

क्या कहती है ईआईए रिपोर्ट

ईआईए रिपोर्ट के मुताबिक, यह परियोजना 910 वर्ग किलोमीटर वाले इलाके वाले द्वीप के 166 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली होगी, जिसके लिए कम से कम 130.75 वर्ग किलोमीटर घने जंगल क्षेत्र को डायवर्ट करना होगा. भूमि का करीब 84.1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र यानी एक बड़ा हिस्सा आदिवासी आबादी के लिए आरक्षित है जिसे डिनोटिफाई करना होगा.

परियोजना के सबसे विवादास्पद पहलुओं में ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल की स्थापना है, जो गैलाथिया खाड़ी में प्रस्तावित, जहां विशाल लेदरबैक कछुए की लुप्तप्राय प्रजाति पाई जाती है.

ईआईए रिपोर्ट के मुताबिक, टर्मिनल को खाड़ी के पश्चिमी किनारे की बजाय ‘पूर्वी क्षेत्र जहां लेदरबैक कछुओं के ठिकाने के बारे कोई जानकारी नहीं है’ में प्रस्तावित किया गया है और ‘ब्रेकवाटर को भी इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि कछुए प्रजनन के लिए बिना किसी बाधा इस जगह पर आ सकें.’ कछुओं को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए एक डिफ्लेक्टर लगाने के प्रस्ताव के साथ ही इस पर एक पायलट स्टडी की सिफारिश भी की गई है कि यह डिफ्लेक्टर कितना प्रभावी होगा.

ईआईए रिपोर्ट के मुताबिक, टर्मिनल निर्माण के बाद कछुओं के लिए प्रवेश मार्ग ‘काफी हद तक’ छोटा हो जाएगा, क्योंकि खाड़ी का मुहाना केवल 3.8 किलोमीटर चौड़ा है. इसने सुझाव दिया कि निर्माण कार्य नवंबर से फरवरी (कछुओं के प्रजनन काल) तक रोक दिया जाए और रोशनी और ध्वनि को मद्धिम रखा जाए ताकि कछुओं की गतिविधियों में किसी तरह का ‘दखल’ न हो. इसने कछुए को ठिकानों के आसपास अन्य विकास कार्यों का हवाला देते हुए बंदरगाह निर्माण को उचित ठहराया. हालांकि, इस तरह की किसी साइट का कोई उल्लेख नहीं किया गया है और विशाल लेदरबैक कछुए भारत में और कहीं नहीं बल्कि एकमात्र इसी जगह पर पाए जाते हैं.

विशाल लेदरबैक कछुआ विश्व स्तर पर लुप्तप्राय प्रजाति है, और ग्रेट निकोबार द्वीप दुनिया में उसके कुछ ठिकानों में से एक है. भारत सरकार ने 1 फरवरी 2021 को राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना जारी करने के दौरान इसे तटीय विनियमन क्षेत्र की पहली अनुसूची में शामिल किया था.

ईआईए रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बंदरगाह निर्माण के दौरान खाड़ी के तट पर खुदाई आदि के दौरान प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंच सकता है. इसके समाधान के लिए सुझाव दिया गया कि मूंगों को एक वैकल्पिक स्थान पर प्रत्यारोपित किया जा सकता है, जिसके बारे में कहा गया है कि यह काम ‘आसानी से’ हो सकता है. हालांकि, रिपोर्ट में वैकल्पिक साइट या प्रस्तावित प्रत्यारोपण प्रक्रिया के बारे में कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है.

ईआईए ने यह भी कहा कि टाउनशिप, एयरपोर्ट और थर्मल पावर प्लांट सभी घने जंगल वाले क्षेत्रों में प्रस्तावित हैं, जिसके निर्माण से निश्चित तौर पर जैव विविधता ‘काफी’ प्रभावित होगी. इसमें कहा गया है कि प्रभावित जानवर और पक्षी या तो नई जगह पर बसाए जाएंगे या फिर वे खुद ही सघन वनस्पतियों वाले क्षेत्र की ओर पलायन कर जाएंगे.

थर्मल पावर प्लांट द्वीप पर शोम्पेन बस्ती के सबसे नजदीक प्रस्तावित है. ईआईए रिपोर्ट में कहा गया है कि शोम्पेन आबादी और बाहरी लोगों के बीच कोई भी बातचीत ‘पूरी तरह अवांछित’ है, क्योंकि एक तो इससे उनके बीमारी के चपेट में आने का जोखिम है और दूसरे वे बाहरी दुनिया के साथ जुड़ने का कोई इरादा नहीं रखते हैं.

इस समस्या से निपटने के उपाय के तौर पर ईआईए रिपोर्ट में सुझाया गया है कि निर्माण मजदूरों के लिए आवास संरक्षित क्षेत्र से दूर बनाया जाना चाहिए, और अगर जरूरत पड़े तो इस क्षेत्र को ‘कंटीली बाड़ से घेरा जा सकता है.’


यह भी पढ़ें: वो 7 मानदंड जिनके जरिए मोदी सरकार पर्यावरण मंजूरी देने के मामले में राज्यों की रैंकिंग करेगी


‘सूचना का अभाव, कोई जोखिम मूल्यांकन नहीं किया’

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में जमशेदजी टाटा स्कूल ऑफ डिजास्टर स्टडीज की डीन जानकी अंधारिया ने 20 जनवरी को प्रदूषण समिति को भेजी अपनी प्रस्तुति में कहा, ‘यद्यपि ईआईए मसौदे में इस क्षेत्र में कई स्थानों पर भूकंप की घटनाओं को दर्ज किया गया है लेकिन परियोजना पर ईआईए रिपोर्ट के मसौदे में इसे लेकर कोई जोखिम मूल्यांकन नहीं किया गया. इससे यह पता ही नहीं चलता कि आपदा प्रतिक्रिया के लिए कैसा तंत्र काम करेगा.’

अंधारिया ने 2004 की सुनामी के बाद द्वीप प्रशासन के साथ काम किया था.

उनकी दलीलों में कहा गया है, ‘यदि भविष्य में कोई और बड़ा भूकंप आया तो बुनियादी ढांचे पर किया गया पूरा निवेश तो जोखिम में होगा ही, इसके कारण तेल और रसायनों के रिसाव से अपनी जैव समृद्धता के दुनियाभर में ख्यात और हमारी यह अनूठी प्राकृतिक संपदा पर एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा टूट पड़ेगी.

पर्यावरणविद् देवी गोयनका की अगुआई वाले एक गैरसरकारी संगठन कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट ने भी अपनी तरफ से विस्तृत राय रखी, जिसमें कहा गया कि ‘ईआईए रिपोर्ट के मसौदे में कई टीओआर का अनुपालन नहीं किया गया है.’ इनमें तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना पेश नहीं किया जाना और द्वीप पर मेगापोड्स की मौजूदगी पर अधूरी रिपोर्ट ही दिया जाना शामिल है.

संगठन की तरफ से यह भी कहा गया, ‘बहुत अचरज की बात है कि ईआईए मसौदा तैयार करने के लिए कंसल्टेंट्स की टीम में पारिस्थितिकी और जैव विविधता पर केवल एक विशेषज्ञ ही शामिल रहा है.’

16 सदस्यीय टीम में से केवल प्रो. के.बयापू रेड्डी को पारिस्थितिकी और जैव विविधता में विशेषज्ञता हासिल थी. ईआईए की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक बाकी सभी इंजीनियर और भूवैज्ञानिक थे.

दिसंबर 2021 में पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ कल्पवृक्ष की तरफ से प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि समग्र विकास के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए न केवल द्वीपों संबंधी पर्यावरणीय मानदंडों की अनदेखी की गई बल्कि कई अन्य उपाय भी किए गए जैसे जनवरी 2021 में गैलाथिया खाड़ी को डिनोटिफाई कर दिया गया और आदिवासियों के लिए संरक्षित क्षेत्र को डिनोटिफाई के लिए समिति का गठन कर दिया गया.

अंडमान और निकोबार में दो दशकों तक काम करने वाले एक सामाजिक पारिस्थितिकीविद् और संरक्षणवादी मनीष चंडी ने ईआईए रिपोर्ट को ‘बकवास’ बताया और दिप्रिंट से कहा कि बंदरगाह बनने से ‘निश्चित तौर पर’ समुद्र तट का वह क्षेत्र प्रभावित होगा जहां कछुए अंडे देने के लिए आते हैं, इसके अलावा मौसमी ज्वारीय धाराओं के मद्देनजर अन्य प्रजातियों पर भी इसका गंभीर असर पड़ेगा.

वह कहते हैं, ‘इससे कछुओं का यहां आना जाहिर तौर पर कम होगा, और इसमें उनके प्रजनन काल के दौरान आवाजाही रोकने की सिफारिश की गई है लेकिन इसे कैसे मुमकिन बनाया जाएगा? सिर्फ काम रुकने से कछुओं का घोंसला नहीं बन जाएगा. समुद्र तट पर प्रजनन के लिए कछुओं का आना और भी बहुत-सी चीजों पर निर्भर करता है. यह तो कुछ इस तरह है जैसे किसी हेलीपैड पर बड़ी-सी छतरी लगा दी जाए और फिर यह उम्मीद की जाए कि हेलीकॉप्टर उससे बचकर सुरक्षित जमीन पर उतर आएंगे. हम किसे बेवकूफ बना रहे हैं? पर्यावरणीय खतरों को कम करके आंकने के उपाय और भी चिंताजनक हैं और लुप्तप्राय लेदरबैक समुद्री कछुओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं देते हैं.’

चंडी ने शोम्पेन लोगों के साथ भी बड़े पैमाने पर काम किया है और केंद्र शासित राज्य की सरकार की कई आदिवासी कल्याण समितियों में काम कर चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘कांटेदार तार लगाने का प्रस्ताव हास्यास्पद है. वे किसे बाहर रखने की कोशिश कर रहे हैं? क्या वे जंगली जानवर हैं? याद रखें कि यह उनके जंगल हैं, और उन्होंने साफ तौर पर इन्हें नैसर्गिक रूप में छोड़ देने और वहां प्रवेश न करने का अनुरोध किया है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: 1,260 से घटकर 150 ही रह गए ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, ट्रांसमिशन लाइनें क्यों बनीं ‘सबसे बड़ा खतरा’


 

share & View comments