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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशसरकार नैनो यूरिया पर जोर दे रही पर 'गलत धारणा और अधिक लागत' ने किसानों को इससे दूर रखा है: करनाल केस स्टडी

सरकार नैनो यूरिया पर जोर दे रही पर ‘गलत धारणा और अधिक लागत’ ने किसानों को इससे दूर रखा है: करनाल केस स्टडी

किसानों का दावा है कि उन्हें नैनो यूरिया खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि कीमत अधिक होने के बावजूद वे दानेदार यूरिया पसंद करते हैं. इफको ने खेती में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए 3 साल पहले नैनो यूरिया लॉन्च किया था.

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करनाल: हरियाणा के करनाल में 32 वर्षीय गेहूं किसान बलविंदर सिंह स्थानीय प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र से यूरिया की 50 किलोग्राम की बोरी के वजन के नीचे दबे हुए बाहर आते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर एक विजेता का भाव है. उन्हें राहत है कि वह दुकान पर बेची जा रही एक सस्ते विकल्प नैनो यूरिया की बोतलें खरीदे बिना ही अपनी पसंद का उर्वरक प्राप्त करने में कामयाब रहे.

“पिछली बार जब मैं यहां आया था, तो मुझे नैनो यूरिया की बोतलें खरीदने के लिए मजबूर किया गया था,” वह अपनी मोटरसाइकिल में दानेदार यूरिया का दूसरा बैग भरते हुए बताते हैं. “उन्होंने कहा था कि अगर हम बोतलें नहीं खरीदेंगे तो वे हमें नियमित यूरिया नहीं बेचेंगे.”

लेकिन सस्ते विकल्प का उपयोग क्यों न करें? वह अपने चेहरे पर चौड़ी मुस्कान के साथ कहते हैं, “मैंने पिछले साल नैनो यूरिया की बोतलों का उपयोग किया था और उनका मेरी गेहूं की फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, और उनका उपयोग करना भी अधिक महंगा था. इसलिए इस बार मैं जद्दोजहद के बाद बातलें लेने से इनकार करके नियमित यूरिया प्राप्त करने कामयाब रहा.”

जैसे ही वह अपनी ओवरलोडेड बाइक पर चढ़ता है और कुछ हद तक लड़खड़ाते हुए चलना शुरू करता है, यूरिया खरीदने आए अन्य किसान भी इसी तरह के अनुभव साझा करते हैं.

एक का कहना है, ”मुझे बताया गया था कि नैनो यूरिया मेरे पौधों बेहतरीन साबित होगा, लेकिन मैंने उत्पादन में कोई बदलाव नहीं देखा.” दूसरे का कहना है, ”उन्होंने मुझसे यूरिया की बोरियों के बदले नैनो यूरिया की पांच बोतलें खरीदने को कहा.”

एक अन्य किसान का कहना है, ”सामान्य उर्वरक छिड़कने की तुलना में नैनो यूरिया का छिड़काव करने के लिए मजदूरों को नियुक्त करना बहुत महंगा है.”

The IFFCO-operated Pradhan Mantri Kisan Samriddhi Kendra in Karnal | TCA Sharad Raghavan | ThePrint
करनाल में इफको द्वारा संचालित प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र | टीसीए शरद राघवन | दिप्रिंट

ये शिकायतें सिर्फ हरियाणा तक ही सीमित नहीं हैं. जबकि मोदी सरकार और इफको – नैनो यूरिया का मुख्य निर्माता – नैनो यूरिया के लाभों का प्रचार कर रहे हैं, पंजाब, गुजरात और कई अन्य राज्यों के किसानों ने शिकायत की है कि उन्हें दानेदार उर्वरक की बोरियों के साथ यूरिया बोतलबंद यूरिया खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता सुरेंद्र सांगवान करनाल में अपने कार्यालय में दिप्रिंट को बताते हैं, ”हमें हर जगह से किसानों के फोन आ रहे हैं जो शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें नैनो यूरिया खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इफको के दुकानदार कह रहे हैं कि अगर वे साथ-साथ नैनो यूरिया भी नहीं खरीदेंगे तो वे उन्हें नियमित यूरिया की बोरियां भी नहीं बेचेंगे.”

सांगवान आगे कहते हैं, ”हमने इस मुद्दे को राज्य सरकारों के साथ भी उठाया है. हमारा मुख्य तर्क यह है कि, यदि उत्पाद उपयोगी है, तो किसान इसे खरीदेंगे, भले ही यह अधिक महंगा हो, लेकिन उन पर इसे थोपना गलत है.”

इफको ने 2021 में नैनो यूरिया लॉन्च किया था, जो अपनी तरह का पहला, स्वदेशी रूप से विकसित उत्पाद है. इसे एक ऐसे उर्वरक के रूप में प्रचारित किया गया जो पर्यावरण प्रदूषण और इनपुट लागत को कम करते हुए उत्पादकता बढ़ाकर भारत और दुनिया भर में खेती को मूल रूप से बदल देगा.

लेकिन फिलहाल ऐसा लग रहा है कि सस्ता होने के बावजूद किसान इसे नहीं खरीद रहे हैं. लोकसभा में रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चला है कि इस वित्तीय वर्ष के पहले आठ महीनों में भारत में नैनो यूरिया की सिर्फ 138.77 लाख बोतलें बेची गई हैं, जो 2022-23 के 12 महीनों में हुई बिक्री के आधे से भी कम है.

बढ़ी हुई उपज को लेकर किसानों के बीच एक आम ग़लतफ़हमी है

समस्या मोटे तौर पर दोतरफा है – किसानों के बीच जागरूकता की कमी, और नैनो यूरिया के उपयोग से जुड़ी बहुत अधिक श्रम लागत वहन करने का उनका व्यावहारिक अनुभव.

पहला मुद्दा इस धारणा से संबंधित है कि नैनो यूरिया का मुख्य प्रभाव क्या है. इफको के अनुसार, नैनो यूरिया एक “नैनोटेक्नोलॉजी आधारित क्रांतिकारी कृषि-इनपुट है जो स्प्रे के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है”.

नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल की कीमत 225 रुपये है, जबकि दानेदार यूरिया की 50 किलोग्राम की थैली की कीमत 268 रुपये है. वे दोनों एक एकड़ जमीन की सेवा करते हैं.

केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने पिछले महीने लोकसभा को सूचित किया था कि अध्ययनों से पता चला है कि नैनो यूरिया के उचित उपयोग से फसल की पैदावार में 3-8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन वास्तविक प्रभाव यह है कि 20-25 प्रतिशत की यूरिया में बचत हुई है.

करनाल में इफको द्वारा संचालित प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ”पार्टिकुलेट यूरिया के साथ समस्या यह है कि इसमें प्रति क्विंटल 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है. लेकिन होता यह है कि पौधा उर्वरक में मौजूद पोषक तत्वों का केवल 25-30 प्रतिशत ही अवशोषित कर पाता है, और बाकी जमीन और भूजल में चला जाता है, जो धीरे-धीरे इसे जहरीला बना देता है, या नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में हवा में मिल जाता है.”

नैनो यूरिया में प्रति 500 मिलीलीटर में 4 प्रतिशत नाइट्रोजन की सांद्रता होती है लेकिन यह ज्यादा कुशल तरीके से पौधौं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जिससे वायुमंडल में नाइट्रोजन की न के बराबर मात्रा नष्ट होती है.

ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों को इस बारे में प्रभावी ढंग से सूचित नहीं किया गया है, जो अभी भी अपनी फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीदों पर टिके हैं, और अब तक के परिणामों से निराश हैं.

करनाल के ठीक बाहर 10 एकड़ जमीन वाले गन्ना और गेहूं किसान राज कुमार अपने खेत में घूमते हुए कहते हैं, “मैंने पिछले साल एक बार इसका (नैनो यूरिया) इस्तेमाल किया और उत्पादन के मामले में कोई फायदा नहीं देखा.”

वह बताते हैं, “आम तौर पर हम देखते हैं कि नियमित यूरिया का उपयोग करने के 2-3 दिन बाद ही पत्तियां हरी और बड़ी हो जाती हैं, लेकिन नैनो यूरिया के साथ ऐसा नहीं हुआ. और मेरे गन्ने का उत्पादन उतना ही था जितना पिछले साल था.”

प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र के विक्रेता परवीन कुंडू के अनुसार, नैनो यूरिया के बारे में किसानों से यह एक बहुत ही आम शिकायत सुनी जाती है.

कुंडू ग्राहकों से बात करने के बीच में समझाते हुए कहते हैं, “दानेदार यूरिया का पौधों पर 4-6 दिनों के भीतर प्रभाव दिखाई देने लगता है. नैनो यूरिया को पौधे के भीतर सक्रिय होने में लगभग दो दिन लगते हैं, और फिर अगले 17 दिनों में यह धीरे-धीरे प्रभाव डालता है, जिससे पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं. लेकिन इसका मतलब यह भी है कि किसान जो लगभग रातों-रात हरियाली चाहते हैं, वह नहीं होगी.” यह ऑफ सीजन है, इसलिए उर्वरक खरीदने वाले किसानों की कतार लंबी नहीं है, जिससे उन्हें समझाने का समय मिल गया.

कुंडू का कहना है कि, उनके अनुभव के मुताबिक, नैनो यूरिया की मांग 2021 में लॉन्च होने के बाद से केवल “50-50” के आसपास रही है. यानी, इसके लॉन्च के बाद से तीन वर्षों में, केवल लगभग आधे किसानों को नैनो यूरिया के उपयोग से कोई लाभ हुआ है.

उन्होंने इन आरोपों का भी जोरदार खंडन किया कि किसानों के विरोध के बावजूद उन पर नैनो यूरिया थोपा जा रहा है.

वे कहते हैं, “किसी भी नए उत्पाद के लिए जागरूकता पैदा करने में समय लगता है, और हम बस यही कर रहे हैं कि जब भी किसान दानेदार यूरिया खरीदने आएं तो उन्हें नैनो यूरिया के बारे में सिखाएं. उनके लिए बोतलें खरीदने की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन हम उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करते हैं.”

जागरूकता के प्रयास बहुत छोटे स्तर के हैं

जब कुंडू बोल रहे थे, चार किसानों ने केंद्र में प्रवेश किया और यूरिया व डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट, जो बीज के अंकुरण को तेज करने के लिए उपयोग किया जाता है) की बोरियां मांगीं. इंतज़ार करते समय, वे दुकान की दीवारों पर लगे कई पोस्टरों को देखते हैं, जो नैनो यूरिया के लाभों के बारे में बता रहा था.

फिर वे नैनो यूरिया और नई नैनो डीएपी की बोतलों से भरी एक शेल्फ की ओर मुड़ते हैं. जहां एक किसान को ऐसा लगता है कि वह उत्पाद को पहचान रहा है, वहीं अन्य तीन सूनी निगाहों से देखते हैं.

A poster in Hindi explaining the benefits of IFFCO’s nano urea, hanging in the Pradhan Mantri Kisan Samriddhi Kendra in Karnal | TCA Sharad Raghavan | ThePrint
करनाल में प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र में लटका हुआ इफको के नैनो यूरिया के लाभों के बारे में बताने वाला हिंदी में एक पोस्टर | टीसीए शरद राघवन | दिप्रिंट
A display shelf in the Karnal Pradhan Mantri Kisan Samriddhi Kendra featuring both granular as well as nano fertilisers | TCA Sharad Raghavan | ThePrint
करनाल में प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र में एक डिस्प्ले शेल्फ जिसमें दानेदार और नैनो उर्वरक दोनों शामिल हैं टीसीए शरद राघवन | दिप्रिंट

जब कुंडू दुकान के पीछे से यूरिया की बोरी लेकर लौटता है, तो किसान उससे पूछते हैं कि उन बोतलों में क्या है. कुंडू धैर्यपूर्वक समझाते हैं. फिर भी, किसानों को इस पर विश्वास नहीं होता और वे दानेदार यूरिया की बोरियां लेकर चले जाते हैं.

इफको के तकनीकी प्रभाग से और कुंडू के सहयोगी कहते हैं, “सरकार ने विभिन्न स्थानों पर, कई अलग-अलग फसलों पर कई परीक्षण किए हैं. हम जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.”

बाद में, जब दिप्रिंट ने अन्य किसानों से बात की, तो सरकार के जागरूकता अभियान की एक स्पष्ट तस्वीर सामने आई.

अपने बरामदे में चाय पीते हुए और पास के उनके खेत की तरफ बढ़ रहे पशुओं के एक झुंड की ओर नजर बनाए हुए 13 एकड़ की जोत वाले किसान ईशम सिंह कहते हैं, “भले ही उन्होंने सरपंच के खेत पर परीक्षण किया हो, लेकिन किसी को भी इसके बारे में पता नहीं चला. वे उन लोगों को प्रदर्शन के लिए बुलाते हैं जिन्हें वे जानते हैं, लेकिन व्यापक रूप से जनता को पता नहीं चलता है.”

दिप्रिंट ने जिन किसानों से बात की उनमें से किसी को भी नैनो डीएपी के बारे में पता नहीं था, जो कि एक नया नैनोटेक्नोलॉजी-आधारित उर्वरक है और जिसे इस साल 1 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अंतरिम बजट भाषण में लॉन्च किया था.

दिप्रिंट ने दिल्ली में इफको मुख्यालय के एक वैज्ञानिक से बात की, उनके अनुसार, वे मौजूदा 4 प्रतिशत के बजाय 20 प्रतिशत प्रति 500 मिलीलीटर की सांद्रता के साथ नैनो यूरिया पेश करने जा रहे हैं.

वैज्ञानिक कहते हैं, “शायद इससे किसानों को नैनो यूरिया की प्रभावकारिता का कुछ प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा.”

नैनो यूरिया में श्रम लागत काफी पड़ती है

गेहूं और गन्ने जैसी फसलों के लिए उर्वरक आमतौर पर तीन बार डाला जाता है. पहली बार तब जब पौधा अभी छोटा होता है और उसकी पत्तियां अभी तक निकली नहीं होती हैं. इफको के अनुसार, इस राउंड में दानेदार उर्वरक या रेग्युलर यूरिया का प्रयोग किया जाना चाहिए.

इफको के के अनुसार, अगले दो राउंड में – जब पत्तियां पूरी तरह से निकल आती हैं – तब नैनो यूरिया का उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि यह पत्तियों के माध्यम से बहुत अच्छे से अवशोषित होता है.

उपयोग से पहले नैनो यूरिया को पानी में मिलाया जाता है. इसका अनुपात 2-4 मिलीलीटर नैनो यूरिया और 1 लीटर पानी का होता है. इसका मतलब है कि नैनो यूरिया की एक बोतल से लगभग 200-250 स्प्रे करने लायक घोल तैयार हो सकता है. किसान इस मिश्रण को टैंक में भर लेते हैं और उसे अपने कंधों पर लादकर स्प्रे गन से पौधों पर छिड़काव किया जाता है.

A typical 16-litre nano urea tank and spray pump | TCA Sharad Raghavan | ThePrint
एक सामान्य 16-लीटर नैनो यूरिया टैंक और स्प्रे पंप | टीसीए शरद राघवन | दिप्रिंट

यहीं पर नैनो यूरिया के साथ दूसरा मुख्य मुद्दा सामने आता है – इसके उपयोग से जुड़ी उच्च लागत और असुविधा.

करनाल के एक अन्य गेहूं किसान सुंदर सिंह कहते हैं, “सामान्य यूरिया के मामले में मजदूर इसे खेतों में छीटने के लिए प्रति बोरी केवल 50-70 रुपये लेते हैं और कभी-कभी हम खुद भी कर लेते हैं.जबकि नैनो यूरिया के छिड़काव के लिए मजदूर प्रति बोतल 180 रुपये तक चार्ज करते हैं.”

दानेदार यूरिया का एक बोरी और नैनो यूरिया की एक बोतल से एक एकड़ खेत पर छिड़काव किया जा सकता है. नैनो यूरिया की कीमत दानेदार यूरिया की तुलना में भले ही कम है, लेकिन नैनो यूरिया से जुड़ी बढ़ी हुई मजदूरी की लागत काफी महत्वपूर्ण है.

इफको के कुंडू स्वीकार करते हैं, “एक मुख्य शिकायत मजदूरी का अधिक होना हो सकती है. सरकार इस श्रम लागत को कम करने के लिए विभिन्न प्रयास कर रही है, लेकिन निश्चित रूप से सब्सिडी सबसे प्रभावी होगी.”

शायद सब्सिडी काम कर जाएगी, लेकिन जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के मुताबिक, इस सब्सिडी को दानेदार यूरिया पर सब्सिडी से मुकाबला करना होगा.

गुलाटी ने दिप्रिंट को बताया, ”जब मैं पंजाब गया और किसानों से बात की, तो उन्होंने कहा कि उन पर नैनो यूरिया थोपा जा रहा है और उन्हें इसे खरीदना होगा, भले ही वे इसका इस्तेमाल न करें. यूरिया के साथ समस्या यह है कि जब आप दानेदार यूरिया पर 90 प्रतिशत सब्सिडी देते हैं, तो किसान कुछ और क्यों इस्तेमाल करेगा?”

उन्होंने आगे कहा, “यह जागरूकता पैदा करने और इस योजना को लागू करने की एक लंबी प्रक्रिया है, शायद थोड़ा फायदा दिखाने और थोड़ा नुकसान के बारे में बताने की जरूरत है. यदि तकनीक वास्तव में अच्छी है, तो इसे आगे बढ़ना चाहिए.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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