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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकेरल में तैयार GM रबर का पहले विरोध करते रहे, दुनिया के पहले फील्ड ट्रायल के लिए असम पहुंची

केरल में तैयार GM रबर का पहले विरोध करते रहे, दुनिया के पहले फील्ड ट्रायल के लिए असम पहुंची

प्राकृतिक रबर मूल रूप से गर्म आर्द्र अमेजन के जंगलों में पाई जाती है और स्वाभाविक तौर पर अन्य स्थानों के अनुकूल नहीं है. लेकिन जीएम किस्म में एक जीन का इस्तेमाल किया गया है जो इसे अत्यधिक गर्म या ठंडे तापमान में भी खराब नहीं होने देता.

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नई दिल्ली: दुनिया का पहला आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) रबर प्लांट असम में गुवाहाटी के बाहरी इलाके स्थित रबर बोर्ड के सरुतारी अनुसंधान फार्म में लगाया गया है. इसे देशभर में रबर की खेती की दिशा में एक बड़ी सफलता कहा जा सकता है.

जीएम रबर प्लांट विकसित करने का श्रेय केरल स्थित रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (आरआरआईआई) को जाता है, जो केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की निगरानी में काम करने वाले रबर बोर्ड के अंतर्गत आता है.

जीएम रबर के पौधे, जिसे दुनिया में इस तरह का पहला पौधा बताया जा रहा है, को एमएनएसओडी (मैगनीज युक्त सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज) जीन की अतिरिक्त प्रतिकृतियां डालकर संशोधित किया गया है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह जीन नए विकसित रबर प्लांट को जलवायु की अत्यधिक प्रतिकूल स्थितियों जैसे बेहद गर्म और ठंडे तापमान के साथ-साथ सूखे जैसी स्थितियों में खराब न होने में सक्षम बनाता है.

नई फसल में रबर की परिपक्वता अवधि कम होने की उम्मीद है, जिससे उपज में कम समय लग सकता है.

यह देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में रबर के उत्पादन को और बढ़ावा देगा, क्योंकि मूल रूप से तो प्राकृतिक रबर गर्म आर्द्र अमेजन के जंगलों में पाई जाती है और स्वाभाविक तौर पर पूर्वोत्तर के ठंडे वातावरण के अनुकूल नहीं है, हालांकि भारत में रबर का अधिकांश उत्पादन इसी क्षेत्र में होता है.

जीएम रबर का विकास असम और मिजोरम जैसे गैर-पारंपरिक रबर उत्पादक राज्यों को अपना उत्पादन बढ़ाने में मदद करने के लिहाज से जरूरी है.

नई फसल से कैसे बढ़ेगा उत्पादन

रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक जेम्स जैकब के अनुसार, एमएनएसओडी जीन अत्यधिक तापमान जैसे गर्मी या भीषण सर्दी के कारण पौधों में पहुंचने वाली घातक ऑक्सीजन को हटा देता है, जैसा कि पूर्वोत्तर के वातावरण में होता है और जिससे पौधे का विकास बाधित होता है.

उन्होंने बताया, ‘प्राकृतिक रबर मूलत: अमेजन में होती है और यह पूर्वोत्तर के अनुकूल नहीं है, लेकिन लंबे समय की कीमत पर इसे यहां उगाया जा रहा है क्योंकि अत्यधिक सर्दियों वाली जलवायु, जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, के कारण रबर के छोटे पौधों के विकास की गति धीमी पड़ जाती है. इसलिए पूर्वोत्तर में इसकी फसल को पकने में केरल की तुलना में लंबा समय लगता है जो अपेक्षाकृत कुछ उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है.’

जैकब ने बताया कि केरल में रबर प्लांट सातवें साल में रबर निकालने के लिहाज से तैयार हो जाते हैं, जबकि पूर्वोत्तर में आठ साल से अधिक समय लगता है.


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उन्होंने कहा, ‘नई जीएम फसल के साथ हमें उम्मीद है कि पूर्वोत्तर में सर्दियों के समय भी पौधे केरल की तरह ही सामान्य रूप से बढ़ते रहेंगे, जिससे परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक कम हो जाएगी. हमने महाराष्ट्र में फील्ड ट्रायल के भी आवेदन किया है जहां हम 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक ज्यादा तापमान में फसल का परीक्षण कर सकते हैं.’

जैकब ने कहा कि जीएम रबर फसल के फील्ड ट्रायल के नतीजों के आकलन में कुछ साल लगेंगे, इसके शुरुआती परिणाम सर्दी के समय दिसंबर-जनवरी के महीनों में आने की उम्मीद है.

जीएम रबर का नया पौधा विकसित करने में शामिल रहे विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों के महीनों के दौरान रबर के अविकसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है, यही स्थिति मिट्टी के सूखने में भी होती है. यही कारण है कि पूर्वोत्तर में फसल को पकने में अधिक समय लगता है.

एमएनएसओडी जीन में पौधों को ज्यादा ठंड या सूखे जैसे गंभीर पर्यावरणीय प्रतिकूल प्रभावों से बचाने की क्षमता है.

व्यापक स्तर का प्रोजेक्ट

रिपोर्टों के मुताबिक, ‘रबर बोर्ड ने ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) की तरफ से पांच साल के लिए शुरू किए गए 1,100 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत पूर्वोत्तर में 2 लाख हेक्टेयर में रबर प्लांट लगाने की पहल की है.

यद्यपि इस महीने सीमित स्तर पर खेती शुरू हुई है, लेकिन खेती के पहले वर्ष में पूरी परियोजना 10,000 हेक्टेयर से शुरू होगी.

जीएम रबर के फील्ड ट्रायल के विस्तार के लिए एटीएमए की तरफ से 50,000 रुपये/हेक्टेयर के आधार पर वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी जो क्रेडिट-लिंक्ड स्कीम जरिये या प्लांटेशन संबंधी सामग्री के लिए सीधे भुगतान के रूप में होगी. सामग्री मुख्यत: केरल की नर्सरियों से मिलेगी जहां आरआरआईआई स्थित है (कोट्टायम में).

हालांकि, नई जीएम फसल की व्यावसायिक खेती की शुरुआत प्रस्तावित फील्ड ट्रायल पूरी तरह सफल रहने के बाद ही शुरू हो सकती है, जिसमें तमाम आवश्यक मंजूरियों के साथ कम से कम 10-15 साल लगने की उम्मीद है.

विकास की लंबी यात्रा

आखिरकार जीएम रबर के फील्ड ट्रायल की शुरुआत एक दशक से अधिक समय की देरी के बाद हो पाई है क्योंकि पहले केरल सरकार ने पर्यावरण और ‘कृषि-जैव विविधता’ पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव का हवाला देते हुए परियोजना का विरोध किया था.

रिपोर्ट बताती हैं कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने 2010 में ही कोट्टायम में जीएम रबर के फील्ड ट्रायल की अनुमति दे दी थी. हालांकि, तत्कालीन एलडीएफ सरकार ने इससे इनकार कर दिया था. उस समय कृषि मंत्री मुलक्कारा रत्नाकरण ने केंद्र से यह कहते हुए मंजूरी रद्द करने का अनुरोध किया था कि राज्य जीएम फसलों से मुक्त रहना चाहता है.

इससे जीएम रबर की फसल विकसित करने को बड़ा झटका लगा क्योंकि केरल की कुल कृषिभूमि के 20 फीसदी से अधिक क्षेत्रफल में प्राकृतिक रबर की खेती होती है और देश का 84 प्रतिशत से अधिक उत्पादन में यहीं होता है. इसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों असम, त्रिपुरा और मेघालय का नंबर आता है.

हालांकि, दुनिया के पहले जीएम रबर पौधे को रोपे जाने के बाबत मीडिया से बातचीत में रबर बोर्ड के अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक केएन राघवन ने कहा, ‘जीएम रबर में प्रयुक्त एमएनएसओडी जीन रबर के पौधे से ही लिया गया था. इसकी प्रतिकृतियों को लैब में बड़ी संख्या में तैयार किया गया और फिर से रबर के पौधों की कोशिकाओं में डाला गया. इसके बाद तैयार हुए पूर्ण रूप से विकसित पौधों को ही खेतों में लगाया गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत में पौधों की ऐसी कोई प्रजाति नहीं है जो प्राकृतिक रबर से प्रजनन कर सके. इसलिए, जीएम रबर के जीन से किसी भी अन्य देशी प्रजाति के प्रभावित होने का खतरा नहीं है, सामान्य रूप से जीएम पौधों के खिलाफ पर्यावरण समूहों की तरफ से इसी तरह की चिंता जताई जाती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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