scorecardresearch
Wednesday, 13 November, 2024
होमदेशसर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह कराती जॉर्ज ऑरवेल की किताब '1984' को बेलारूस में किया गया बैन

सर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह कराती जॉर्ज ऑरवेल की किताब ‘1984’ को बेलारूस में किया गया बैन

ऑरवेल की किताब सोवियत यूनियन और पूर्वी यूरोप के सर्वसत्तावादी शासन में 1987 तक बैन थी. बेलारूस को जब आजादी मिली तो वहां भी अलेक्जेंडर लुकाशेंको के नेतृत्व में सर्वसत्तावादी शासन की नींव पड़ी जो आज तक चल रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: बेलारूस ने बुधवार को विश्व प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज ऑरवेल की मशहूर किताब ‘1984’ को बैन कर दिया. एक आदेश जारी कर किताब पर बैन लगाने की बात कही गई है. बेलारूस के सभी बुकस्टोर को आदेश दिया गया है कि वो 19 मई तक ‘1984’ किताब के सभी संस्करणों को हटाए.

एक रिपोर्ट के अनुसार, जॉर्ज ऑरवेल की किताब को बैन करने के आदेश में लिखा गया है कि, ‘जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 के सभी संस्करणों को बाजार से हटाया जाए. वहीं 19 मई तक इस आदेश के पालन को लेकर रिपोर्ट जमा कराई जाए.’

ऑरवेल की किताब सोवियत यूनियन और पूर्वी यूरोप के सर्वसत्तावादी शासन में 1987 तक बैन थी. बेलारूस को जब आजादी मिली तो वहां भी अलेक्जेंडर लुकाशेंको के नेतृत्व में सर्वसत्तावादी शासन की नींव पड़ी जो आज तक चल रही है.

सोवियत संघ के विघटन होने तक बेलारूस उसका हिस्सा हुआ करता था. 25 दिसंबर 1991 को बेलारूस को आजादी मिली थी. बेलारूस पूर्वी यूरोप का एक देश है जिसकी सीमा रूस, यूक्रेन और पौलेंड, लिथुआनिया, लातविया से लगती है.

ऑरवेल की किताब 1984 सर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह करने वाला विश्वविख्यात उपन्यास है. 1984 की कई लाइनें तो अब मुहावरे बन चुके हैं जिनमें ‘बिग ब्रदर इज़ वाचिंग यू, फ्रीडम इज़ स्लेवरी और वॉर इज पीस ‘ है.

ऑरवेल की किताब 1984 दुनियाभर की 65 से ज्यादा भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है. हाल ही में हिंदी में भी ये किताब प्रकाशित हुई है.

जॉर्ज ऑरवेल का जन्म 25 जून 1903 को बिहार के मोतिहारी में हुआ था. उनकी अन्य लोकप्रिय किताबों में ‘एनिमल फार्म, ए मैरी वॉर ‘शामिल है.


यह भी पढ़ें: अब BJP का रुख? चुनावी राज्य गुजरात में क्या है हार्दिक पटेल के इस्तीफे का मतलब


‘1984’ के बैन पर आ रही प्रतिक्रियाएं

बेलारूस के इस कदम पर दुनियाभर से आलोचनात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि बेलारूस में पहले से ही ‘ऑरवेलियन स्टेट’ जारी है.

यूक्रेन के सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज की प्रमुख ओलेक्सेंड्रा मेटविचुक ने बेलारूस के फैसले पर तंज करते हुए कहा कि ये भी अपने आप में एक ‘कलात्मक प्रदर्शन’ है.

बेलारूस की राष्ट्रीय नेता एस त्सिखानौस्काया ने कहा, ‘कोई संयोग नहीं है कि आतंकवाद के ‘प्रयास’ के लिए मौत की सजा का प्रावधान उसी दिन लाया गया जब ऑरवेल की किताब ‘1984’ को बेलारूस में कथित रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया. सह-आक्रामक हमें मूर्ख बनाना चाहता है कि युद्ध शांति है और विरोध को आतंकवाद बताता है. लेकिन मुझे इसमें डर दिखाई देता है, ताकत नहीं.’

यूक्रेन की पत्रकार अनातासिया लपातिना ने ट्वीट कर कहा, ‘साहित्य पर किसी भी तरह का प्रतिबंध भयानक है लेकिन ऐसी किताब पर खासकर जो यूक्रेन के पड़ोसी मुल्क की हकीकत को अच्छी तरह बयां करता है.’

बेलारूस के शीर्ष नेता अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने हाल ही में बेलारूस के क्रिमिनल कोड में संशोधन किया जिसमें आतंकवाद के प्रयास पर मृत्यु दंड देने का प्रावधान जोड़ा गया है.


यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी मामले में हिंदू देवी-देवताओं के वकील हरिशंकर जैन कहते हैं कि ‘सहिष्णुता अभिशाप है’


 

share & View comments