scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमदेश2036 तक GDP में 4.7% का उभार, 2047 तक 1.5 करोड़ नए रोजगार: भारत में नेट-जीरो के असर पर रिपोर्ट

2036 तक GDP में 4.7% का उभार, 2047 तक 1.5 करोड़ नए रोजगार: भारत में नेट-जीरो के असर पर रिपोर्ट

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में ये भी पाया गया, कि डीकार्बनाइज़ेशन की अदला-बदली में कई चीज़ें होंगी, जैसे कि 2060 तक घरेलू खपत में कमी हो जाएगी.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत का 2070 तक कार्बन न्यूट्रलिटी की ओर परिवर्तन, 2036 तक सालाना जीडीपी में 4.7 प्रतिशत का इज़ाफा कर सकता है, और 2047 तक 1.5 करोड़ नए रोज़गार पैदा कर सकता है- ये ख़ुलासा न्यूयॉर्क-स्थित थिंक टैंक एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है.

संस्थान के उच्च-स्तरीय नीति आयोग की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में आगे कहा गया कि इस परिवर्तन के लिए निवेश के तौर पर कम से कम 10.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की ज़रूरत होगी. आयोग में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रूड, पूर्व यूएन महासचिव बान की-मून, अर्थशास्त्री डॉ अरविंद पानगढ़िया, और अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम में ग्लोबल हेड एंड डायरेक्टर क्लाइमेट बिज़नेस, विवेक पाठक शामिल थे.

रिपोर्ट में कहा गया कि अगर भारत की नेट-ज़ीरो महात्वाकांक्षा को आगे बढ़ाकर 2050 तक ले आया जाए, तो 2032 तक सालाना जीडीपी का लाभ बढ़कर 7.3 प्रतिशत तक हो सकती है. रिपोर्ट में कंसल्टेंसी कैंब्रिज इकॉनोमेट्रिक्स तथा एक ग्लोबल रिसर्च ग़ैर-मुनाफा संस्था- विश्व संसाधन संस्थान की मॉडलिंग रिसर्च का सहारा लिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार: ‘विभिन्न नीतिगत पैकेजेज़ के ज़रिए 2030 की अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के बाद, भारत 2070 तक कार्बन न्यूट्रलिटी के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होगा, और अपनी अर्थव्यवस्था को काफी हद तक डीकार्बनाइज़ कर चुका होगा’.


यह भी पढ़ें: सरकार वन क्षेत्रों में तेल, गैस के लिए खुदाई करना चाहती है, लेकिन भारतीय वन्यजीव संस्थान सतर्क


रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब इसी साल नवंबर में सीओपी27 का आयोजन होने जा रहा है, जहां वैश्विक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल किए जाने पर चर्चा जारी रहने की संभावना है. पिछले साल ग्लासगो में सीओपी26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि 2070 तक भारत नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल कर लेगा- एक ऐसा संकल्प जिसे भारत के अधिकारिक जलवायु लक्ष्यों, या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में शामिल नहीं किया गया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

एनडीसी एक जलवायु कार्य योजना है जिसका उद्देश्य उत्सर्जन को घटाना और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनना है. पेरिस समझौते के तहत- जो ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री से ‘काफी नीचे’ रखने के लिए एक समझौता है- देशों को हर पांच साल पर अपने एनडीसीज़ में संशोधन करना होगा.

शुक्रवार को भारत ने अपने नए जलवायु लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) को पेश कर दिए. इन लक्ष्यों में जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता (जीडीपी के प्रति यूनिट कार्बन उत्सर्जन) को 45 प्रतिशत घटाकर 2005 के स्तरों से नीचे लाना, और 2030 तक 50 प्रतिशत बिजली सप्लाई क्षमता को ग़ैर-फॉसिल स्रोतों से स्थापित करना शामिल हैं.

हालांकि नेट-ज़ीरो को यूएनएफसीसीसी में भारत की आधिकारिक प्रस्तुतियों में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन उसमें ये ज़रूर कहा गया है कि संशोधित लक्ष्य ‘2070 तक नेट-ज़ीरो के दीर्घ-कालिक लक्ष्य तक पहुंचने की दिशा में बढ़ाया गया एक क़दम है’.

‘डीकार्बनाइजेशन से उपभोक्ता क़ीमतों में इज़ाफा हो सकता है’

रिपोर्ट में ये भी पता चला कि डीकार्बनाइज़ेशन के फायदों के लिए कुछ अदला-बदली करनी होगी. मसलन, अगर इस परिवर्तन को केवल घरेलू स्रोतों से वित्त-पोषित किया जाएगा, तो भारतीय परिवार औसतन पहले से बदतर होंगे.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘2060 तक घरेलू खपत में 167 बिलियन डॉलर तक की कमी हो जाएगी, क्योंकि वस्तुओं की क़ीमतों तथा करों में इज़ाफा हो जाएगा, जिनमें अतिरिक्त निवेश के लिए धन जुटाने के वास्ते कार्बन कर भी शामिल होंगे. डीकार्बनाइज़ेशन से होने वाली ऊर्जा की अच्छी ख़ासी बचत के बावजूद, उपभोक्ता क़ीमतों के बढ़ने से कुल खपत में कमी आती है’.

उसमें आगे चलकर ये भी कहा गया, कि अगर भारत और दूसरे देशों ने अपनी सभी मौजूदा प्रतिबद्धताओं को क्रियान्वित कर दिया, तो उसके परिणामस्वरूप कम से कम 1.6 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वॉर्मिंग हो जाएगी.

सीओपी26 में पीएम मोदी के नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के ऐलान के साथ, एक मांग की गई थी कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, विकसित देशों से कम से कम 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर्स की फंडिंग चाहिए होगी. विकसित देशों ने 2020 तक जलवायु वित्त के लिए 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स मुहैया कराने का वादा किया था- ऐसा वादा जो अभी तक पूरा नहीं हुआ.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार के नए एनर्जी बिल का उद्देश्य भारत में कार्बन ट्रेडिंग शुरू करना, गैर-जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाना है


 

share & View comments