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रविवार, 20 अप्रैल, 2025
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दिल्ली के दमघोंटू प्रदूषण पर अहम बैठक छोड़ पोहे-जलेबी खाने में व्यस्त गौतम गंभीर

आपको बता दें कि जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता वाली इस समिति में कुल 31 सदस्य हैं, जिसमें से दो पद खाली हैं. लेकिन इस मीटिंग में महज़ चार सदस्य पहुंचे थे.

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नई दिल्ली: पूर्वी दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद गौतम गंभीर की सोशल मीडिया पर किरकिरी हो रही है. प्रदूषण से जुड़ी संसदीय समिति की एक बैठक में मौजूद नहीं रहने को लेकर गौतम गंभीर को ट्रोल किया जा रहा है और ट्रोलिंग का आलम ये है कि ट्विटर पर #ShameOnGautamGambhir पहले नंबर पर ट्रेंड कर रहा है.

वहीं गौतम गंभीर ने बवाल मचता देख एक बयान जारी किया है और अपने काम के जरिए उन्हें जज करने की बात कही है.

दरअसल, प्रदूषण पर शहरी विकास मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति की शुक्रवार को एक बैठक हुई. इसमें हाउसिंग और अर्बन अफ़ेयर के प्रतिनिधि, डीडीए, एनडीएमसी, सीपीडब्ल्यूडी, एनबीसीसी और दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों को मौजूद रहना था. लेकिन इस मीटिंग को स्थगित करना पड़ा.

मीटिंग इसलिए स्थगित की गई क्योंकि दिल्ली नगर निगम के तीनों कमिश्नर, डीडीए के वाइस-चेयरमैन, पर्यावरण मंत्रालय के सचिव और सह-सचिव इसमें मौजूद नहीं थे. बताया जा रहा है कि समिति ने इन अधिकारियों के रवैये का गंभीर संज्ञान लिया है.

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने बैठक में शामिल न होने के पीछे ये कारण दिया है कि संयुक्त सचिव सुप्रीम कोर्ट में चल रहे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई में शामिल थे, इसलिए वो इसमें शामिल नहीं हो पाए. इसके बारे में विस्तृत जानकारी शहरी विकास मंत्रालय को भेज दी गई.

आपको बता दें कि जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता वाली इस समिति में कुल 31 सदस्य हैं, जिसमें से दो पद खाली हैं. लेकिन इस मीटिंग में महज़ चार सदस्य पहुंचे थे. आपको ये भी बता दें कि प्रदूषण की ऐसी जानलेवा स्थिति के बीच गंभीर इंदौर में भारत-बांग्लादेश के बीच चल रही टेस्ट सीरीज़ की कमेंट्री कर रहे हैं. इस बारे में जब दिप्रिंट ने गंभीर का पक्ष जानना चाहा तो जवाब मिला की उनका ऑफ़िस जल्द ही बयान जारी करेगा.

सिर्फ गंभीर ही नहीं बल्कि इस बैठक से राज्यसभा सांसद एमजे अकबर और भाजपा सांसद हेमा मालिनी समेत तमाम लोग ग़ायब थे. वहीं, मौजूदा 29 सदस्यों में से महज़ चार ने मीटिंग में हिस्सा लिया जिनमें आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी शामिल थे.

आप के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने पूर्व दिग्गज क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण के एक ट्वीट को रीट्वीट करके सवाल किया है कि क्या दिल्ली के सांसद ऐसे होने चाहिए जो प्रदूषण पर संसदीय समिति की अहम बैठक से गायब होकर जलेबी पोहा खा रहे हों?

दिल्ली के तिलक नगर से आप विधायक जरनैल सिंह ने गंभीर द्वारा एक नवंबर को किए गए एक ट्वीट को कोट करके उनपर हमला किया. इस ट्वीट में गंभीर ने प्रदूषण के मामले में नाकाम रहने को लेकर केजरीवाल सरकार को घेरते हुए लिखा था, ‘दिल्ली का दम घुट रहा है और केजरीवाल प्रेस कॉन्फ्रेंस करने में व्यस्त हैं.’

ताज़ा ट्वीट में जरनैल सिंह ने लिखा, ‘दिल्ली का दम घुट रहा है और गंभीर जलेबी-पोला खाने में व्यस्त हैं.’ इसके बाद सिंह ने संसदीय समिति की मीटिंग के जानकारी देते हुए लिखा कि इसमें गंभीर को मौजूद रहना था लेकिन वो इस मीटिंग से नदारद रहे.

हालांकि, इन सबके बीच पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का बयान आया है कि मंत्रालय प्रदूषण की गंभीर स्थिति को लेकर बेहद चिंतित है. उन्होंने तमाम एजेंसियों से आपसी सहयोग पर भी बल दिया है. इस बीच प्रदूषण पर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से शहर भर में प्रदूषण से निपटने वाले टावर लगाने को कहा है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के 600 पार होने की बात कहते हुए सरकारों से पूछा कि ऐसे में लोग सांस कैसे लेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से ये भी बताने को कहा है कि क्या ऑड-ईवन से प्रदूषण की वर्तमान स्थिति में कोई सुधार हुआ. इसके जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा, ‘ऑड-ईवन से प्रदूषण 15 पतिशत तक कम हुआ है और अगर किसी तरह की कोई छूट नहीं दी जाए तो ये और कारगर साबित होगा.’ हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ऑड-ईवन प्रदूषण का हल नहीं हो सकता.

दिल्ली सरकार ने इस दौरान प्रदूषण की गंभीर स्थिति का ठीकरा पराली जलाए जाने पर फोडा. इस दौरान सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा कि कारों से होने वाला प्रदूषण महज़ तीन प्रतिशत है. वहीं, सभी गाड़ियों को मिलाकर 28 प्रतिशत तक प्रदूषण होता है. कूड़ा गिराए जाने और निर्माण कार्य जैसी गतिविधियों को भी प्रदूषण का अहम कारण बताया गया.

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के मुख्य सचिवों को हाज़िर होने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि इन राज्यों ने प्रदूषण के कारकों से निपटने के कारगर उपाए नहीं किए.

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