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Sunday, 22 December, 2024
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‘गैंगस्टर टू पॉलिटिशियन’, मुख्तार अंसारी: मऊ से 5 बार विधायक का रहा है कांग्रेस और सेना से भी नाता

अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद सबसे अधिक जो नाम चर्चा में आया है वह है मुख्तार अंसारी. हालांकि, दोनों की जीवनी में काफी अंतर है लेकिन दोनों ही गैंगस्टर से राजनेता बने और बाद में अपने जीवन का एक लंबा समय जेल में बिताया.

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नई दिल्ली: गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद जिस व्यक्ति का नाम सबसे अधिक आजकल चर्चा में हैं वह है मुख्तार अंसारी. मुख्तार भी अतीक की तरह गैंगस्टर से नेता बने हैं. मऊ सदर सीट से पांच बार विधायक रहे मुख्तार आजकल उत्तरप्रदेश के बांदा जेल में बंद है. आइए नजर डालते हैं मुख्तार के जीवन पर.

काफी प्रतिष्ठित परिवार के आते हैं मुख्तार अंसारी

30 जून 1963 को  मुख्तार का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में हुआ था. मुख्तार के पिता का सुबानुल्लाह अंसारी और माता का नाम बेगम राबिया था. मुख्तार के पिता अपने क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित कम्युनिस्ट नेता थे. इलाके में उनकी प्रतिष्ठा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह गाजीपुर नगर पालिका के अध्यक्ष का चुनाव निर्दलीय जीते थे. मुख्तार के दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे और साल 1926-27 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले वह मुस्लिम लीग में भी रह चुके थे.  मुख्तार के दादा जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कुलपति भी रह चुके हैं. उनकी लोकप्रियता का पता इससे चलता है कि पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में उनके नाम से ‘अंसारी रोड’ और दक्षिणी दिल्ली में उनके नाम पर ‘अंसारी नगर’ है. मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी थे जिन्हें बाद मरणोप्रांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी को  ‘नौशेरा का लड़ाई’ में उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है. इसके अलावा पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के परिवार से ही हैं.

मुख्तार का शुरुआती जीवन

अगर बात मुख्तार के शुरुआती जीवन की करें तो मुख्तार की शुरुआती पढ़ाई गाजीपुर से ही हुई. गाजीपुर के पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मुख्तार ने छात्र राजनीति में कदम रखा. इसी दौरान मुख्तार का सामना राजनीति के साथ-साथ आपराधिक दुनिया से हुआ. मुख्तार ने अपना ग्रेजुएशन 1984 में पूरा किया था.

अगर बात मुख्तार के आपराधिक इतिहास पर करें तो सबसे पहले मुख्तार का नाम साल 1987 में एक हत्या के मामले में सामने आया. मंडी परिषद की ठेकेदारी के झगड़े में सच्चिदानंद राय की हत्या हुई और इसमें मुख्तार का नाम सामने आया. उसके बाद साल 1988 में रामनारायण राय की हत्या हुई जिसमें भी मुख्तार का नाम सामने आया.  साल 1991 में मुख्तार पुलिस की गिरफ्त में आया, लेकिन गिरफ्तारी के दौरान वह दो पुलिस वालों को गोली मारकर फरार हो गया था. बाद में पुलिस मुख्तार के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं जुटा सकी थी जिसके कारण उन्हें छोड़ दिया गया था. इसके बाद आते हैं 2005 में. 2005 में दो महत्वपूर्ण घटना हुई. 2005 के सितंबर में मऊ में दंगा भड़का जिसमें मुख्तार बंधुओं का नाम सामने आया. बाद में दोनों को इसका आरोपी बनाया गया. मऊ दंगे के वक्त ही मुख्तार की एके-47 के साथ खुली जीप में तस्वीर वायरल हुई थी. मऊ दंगे के बाद मुख्तार अंसारी ने 25 अक्तूबर 2005 को गाजीपुर में सरेंडर किया था. बता दें कि मुख्तार के सरेंडर करने के एक महीने बाद ही बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी. गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से विधायक कृष्णानंद राय को 29 नवंबर 2005 को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. कृष्णानंद राय ने मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी को 2002 के विधानसभा चुनाव में हराया था. साथ ही कृष्णानंद राय उस वक्त मुख्तार के सबसे बड़े दुश्मन ब्रजेश सिंह की मदद भी कर रहे थे. कृष्णानंद राय के साथ छह और लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में मुख्तार का नाम सामने आया. इस हत्याकांड के लिए मुख्तार ने जेल में बैठकर शूटर मुन्ना बजरंगी की मदद ली थी जिसकी साल 2018 में उत्तरप्रदेश के बागपत जेल में हत्या कर दी गई थी.  इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय की साल 2006 में रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. इस हत्याकांड में भी मुख्तार का नाम सामने आया था.

इसके बाद 2008 में अंसारी पर धर्मेंद्र सिंह की हत्या करने और साल 2009 में कपिलदेव सिंह की हत्या के आरोप भी लगे. जेल जाने के बाद मुख्तार पर 10 हत्याओं के आरोप लगे.

अभी भी मुख्तार पर हत्या, फिरौती, जानलेवा हमला, दंगे करवाने के करीब 50 से अधिक मामले सिर्फ उत्तरप्रदेश में दर्ज है.

कोर्ट में एक पेशी के दौरान मुख्तार अंसारी  | फाइल फोटो: ANI

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मुख्तार का राजनीतिक इतिहास

मुख्तार के राजनीतिक इतिहास की बात करे तो सबसे पहले साल उसने 1995 में गाजीपुर सदर विधानसभा सीट से जेल में रहते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे हार का मुंह देखना पड़ा था. यह चुनाव हारने के बाद मुख्तार 1996 में बीएसपी में शामिल हो गया और बीएसपी ने उसे गाजीपुर का जिला अध्यक्ष बना दिया. 1996 में ही मुख्तार मऊ सदर सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचा और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव तक वह वहां से चुनाव जीतता रहा. जिसमें वह दो बार 2002 और 2007 के निर्दलीय चुनाव भी जीता. साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के साथ अपना रिश्ता खत्म कर लिया. मुख्तार ने अपना आखिरी तीन चुनाव जेल में बंद रहते हुए जीता था. 2022 में मुख्तार ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बड़े बेटे अब्बास अंसारी  को सौंप दिया.

मुख्तार अंसारी पर ‘पोटा एक्ट’ लगाने वाले पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार के आतंक को याद करते हुए करते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि कैसे उनके ऊपर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया गया था जब उन्होंने मुख्तार पर ‘पोटा एक्ट’ लगाया था. बाद में शैलेंद्र को इतना परेशान किया गया था कि उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.

मुख्तार और बृजेश सिंह की दुश्मनी

अगर मुख्तार अंसारी की बात हो और उसमें बृजेश सिंह का नाम न आए तो बात पूरी नहीं हो सकती. मुख्तार अंसारी और पूर्वांचल के एक और गैंगस्टर बृजेश सिंह के बीच की दुश्मनी के किस्से हमेशा चर्चा में रहे हैं. लेकिन अगर हम इसके इतिहास को जानेंगे तो यह काफी पुराना रहा है.

1970 का दशक था. उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार कई नई योजनाएं ला रही थी. इन योजनाओं के ठेके के लिए ठेकेदारों के बीच संघर्ष शुरू हुआ. ठेके हथियाने के लिए यूपी में कई ठेकेदारों ने बदमाशों को शरण देना शुरू कर दिया. उस वक्त उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल में दो बड़े गैंग सक्रिय थे जिन्हें सबसे अधिक ठेकेदारी मिलती थी. एक था मकनु सिंह गैंग और दूसरा साहिब सिंह गैंग. मुख्तार जब कॉलेज में पढ़ता था उस वक्त उसका जुड़ाव मकनु सिंह गैंग के साथ हुआ. कहा जाता है कि मुख्तार का एक दोस्त था साधु सिंह, जिन्होंने उसकी पहचान मकनु गैंग में करवाई. उसी समय साहिब सिंह गैंग में एक नाम काफी बढ़ रहा था- ब्रजेश सिंह का. शुरू में तो मुख्तार और बृजेश के बीच कोई दुश्मनी नहीं थी लेकिन साल 1990 आते-आते दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. लेकिन आखिर क्यों ?

दरअसल उस वक्त पूर्वांचल में एक और नया पनप रहा था जिसका नाम था त्रिभुवन सिंह. त्रिभुवन सिंह साहिब सिंह गैंग का सदस्य था और बाद में उसकी दोस्ती बृजेश से हो गई. बृजेश को साहिब सिंह के गैंग में त्रिभुवन ने जुड़वाया.

बता दें कि त्रिभुवन और मुख्तार में पहले से दुश्मनी थी. मुख्तार ने कथित तौर पर त्रिभुवन के भाई और परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या करवा दी थी.

बृजेश सिंह का साहिब गैंग में जुड़ना मुख्तार को अच्छा नहीं लगा क्योंकि त्रिभुवन मुख्तार का दुश्मन था. इसके साथ ही ब्रजेश और मुख्तार की शुरू हुई कभी न खत्म होने वाली दुश्मनी.

साल 2001 में ब्रजेश गुट ने उसरी चट्टी गांव के पास मुख्तार के काफिले पर हमला किया. इसमें दोनों ओर से कई राउंड गोलियां चली. इस गैंगवार में कुल 3 लोगों की हत्या हुई और मुख्तार घायल हो गया था. हालांकि इस हमले में मुख्तार अपनी जान बचाने में सफल रहा, लेकिन इस घटना के बाद दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए.

इस घटना के कुछ दिन बाद ही ब्रजेश ने साथ पकड़ा विधायक कृष्णानंद राय का, जिन्होंने साल 2002 में मुख्तार के भाई अफजल अंसारी को हराकर चुनाव जीता था. मुख्तार को यह बात पसंद नहीं आई और 2005 में मुख्तार ने कृष्णानंद राय की हत्या करवा दी. इस घटना के बाद ब्रजेश अंडरग्राउंड हो गया. साल 2008 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे उड़ीसा के भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया.

अभी मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में बंद है. गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद की शनिवार की रात हत्या हो जाने के बाद जेल में मुख्तार की सुरक्षा काफी कड़ी कर दी गई है. मुख्तार जिस जेल में है उसके बाहर पीएसी जवानों को अलर्ट पर रखा गया है.  जेल अधीक्षक ने अतीक अहमद की हत्या के बाद कहा था कि जेल के चप्पे-चप्पे में निगरानी बढ़ा दी गई है. सभी सुरक्षाकर्मियों को अलर्ट पर रखा गया है. सबकी छुट्टी भी कैंसिल कर दी गई है.


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