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Wednesday, 13 November, 2024
होमदेशटमाटर से लेकर गेहूं तक के पूर्वानुमान में राजा टोडर मल के जमाने वाली पद्धति समस्या बनी

टमाटर से लेकर गेहूं तक के पूर्वानुमान में राजा टोडर मल के जमाने वाली पद्धति समस्या बनी

गेहूं के निर्यात पर भारत का यू-टर्न, सम्राट अकबर के वित्त मंत्री द्वारा 4 शताब्दी पहले तैयार की गई एक प्राचीन फसल पूर्वानुमान पद्धति से प्राप्त गलत अनुमानों का नतीजा है.

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नई दिल्ली: थरवमत नंद कुमार को वह दिन याद है, जब वह लगभग 16 साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) पहुंचे थे.

जाने से कुछ दिन पहले झारखंड के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव कुमार को दिल्ली में रिपोर्ट करने और खाद्य एंव सार्वजनिक वितरण सचिव के रूप में कार्यभार संभालने के लिए एक एसओएस कॉल आया था. तब देश गेहूं के संकट से गुजर रहा था. कमी के संकेत साफ नजर आ रहे थे और सार्वजनिक स्टॉक घट रहा था.

उस समय मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार पहले ही गेहूं आयात करने का फैसला कर चुकी थी.

56 साल के कुमार जब पीएमओ में ब्रीफिंग के लिए गए, तो उन्हें एक अधिकारी ने सलाह दी, ‘सिर्फ कृषि मंत्रालय के गेहूं उत्पादन अनुमानों के भरोसे मत रहना. व्यापारियों से बात करना, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के मूल्य संकेतों पर नजर रखना और कोई भी निर्णय लेने से पहले अपना होमवर्क और शोध जरूर करना.’

कुमार ने पूरी शिद्दत के साथ इस सलाह का पालन किया. लेकिन अब लगता है कि जिस मंत्रालय में उन्होंने एक बार सेवा की थी, वह 2003 और 2006 के दौरान अपने उठाए गए गलत कदमों से कुछ भी सीख पाने में विफल रहा है. उस समय भारत ने सार्वजनिक स्टॉक को कम करने के लिए गेहूं का निर्यात किया था और बाद में मजबूरी वश आयात का सहारा लेना पड़ा.

2022 मार्च में, रिकॉर्ड तोड़ भीष्ण गर्मी के बाद गेहूं फिर से चर्चा में है. भंयकर गर्मी और लू से फसल झुलस गई. लेकिन फसल की यह हालत फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद हुई, जिसने गेहूं की वैश्विक कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई पर धकेल दिया. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक, विश्व स्तर पर गेहूं की कीमतें मई में पिछले सालों से 56 फीसदी ज्यादा थीं.

फरवरी के मध्य में, कृषि मंत्रालय ने रिकॉर्ड 111.3 मिलियन टन (दूसरा अग्रिम अनुमान) फसल उत्पादन का अनुमान लगाया था.

कुमार फिलहाल केरल में रहते हैं. उन्होंने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘यह वह संख्या थी जिसका इस्तेमाल खाद्य और वाणिज्य मंत्रालयों ने निर्यात को आगे बढ़ाने सहित महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने के लिए किया गया. और जैसा कि हम अब जान गए हैं कि वे संख्याएं सटीक नहीं थीं.’

मध्य अप्रैल में, भारत के खाद्य और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत 10-15 मिलियन टन गेहूं का निर्यात करने और रूस-यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई आपूर्ति के एक खाली हिस्से को भरने का लक्ष्य बना रहा है. एक महीने से भी कम समय में भारत को यह महसूस हो गया कि फसल का उत्पादन अनुमान से कम है और इसके बाद उसे यू-टर्न लेना पड़ा.

कुमार के अनुसार, ‘हमारे कृषि डेटा सिस्टम को सटीक बनाए जाने की तत्काल जरूरत है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, एक अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उपज अनुमानों को निर्धारित करने की प्रणाली अभी भी 450 साल पहले की मुगल सम्राट अकबर के वित्त मंत्री, राजा टोडर मल द्वारा विकसित एक प्राचीन पद्धति पर निर्भर है, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान सुधार कर अपनाया गया था.

और सिर्फ गेहूं नहीं बल्कि कपास और टमाटर जैसी फसलों की उपज का अनुमान भी गलत हो सकता है.


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‘गलत समय पर इस्तेमाल किया गया गलत डेटा’

खाद्य मंत्रालय ने अपनी खाद्य सुरक्षा योजनाओं के लिए पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रहने के बाद – सार्वजनिक खरीद लक्ष्य से 25 मिलियन टन कम – सरकार ने 13 मई की शाम को निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया.

इसका मकसद घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति पर काबू पाना था, जो अप्रैल में सालाना आधार पर 8.4 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी.

19 मई को, कृषि मंत्रालय ने गेहूं उत्पादन अनुमान को संशोधित कर 106.4 मिलियन टन (तीसरा अग्रिम अनुमान) कर दिया.

संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग की विदेश कृषि सेवा ने प्रमुख गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों के दौरे के बाद, मई के अंत में इस संख्या को और भी कम-99 मिलियन टन- कर दिया.

मौजूदा समय में व्यापार अनुमान 90 और 100 मिलियन टन के बीच मंडरा रहा है. किसी को भी सटीक उत्पादन की संख्या नहीं पता है.

कुमार ने कहा, ‘भारत एक डिजिटल एग्रीस्टैक का निर्माण कर रहा है और इसके लिए हमारे पास ड्रोन, रिमोट सेंसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी तकनीकें हैं. फिर भी हम लोकल पटवारी (राजस्व अधिकारी) की संदिग्ध ईमानदारी पर निर्भर है, जो अक्सर फील्ड में जाए बिना डेटा रिकॉर्ड करते हैं. उपज के आकलन के लिए फसल काटने के प्रयोगों का केवल एक अंश ही वास्तव में जमीन पर होता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘ यह गलत समय पर इस्तेमाल किए गए गलत डेटा का मामला है.’

पैदावार का अनुमान लगाने के लिए कटाई की गई अनाज की मात्रा को रिकॉर्ड करने के लिए विशिष्ट साइज के रेंडमली चुने गए भूखंडों पर फसल काटने के प्रयोग (सीसीई) किए जाते हैं. दरअसल क्रॉप कटिंग या फसल कटाई प्रयोग द्वारा फसल की औसत पैदावार निकाली जाती है और क्रॉप कटिंग के आधार पर ही क्षेत्र के कृषि उत्पादन के आकड़े तैयार करके शासन के भेजे जाते हैं.

कृषि मंत्रालय के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय के अनुसार, अनाज और दालों की पैदावार का अनुमान लगाने के लिए 2016-17 में राज्य सरकारों ने लगभग 14 लाख सीसीई किए थे. प्रक्रिया के दौरान टेक्निकल गाइडेंस और सैंपल जांच राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराई जाती है.

इसके अलावा, केंद्रीय मंत्रालय फिलहाल अधिक सटीक अनुमानों के लिए FASAL (कृषि उत्पादन के पूर्वानुमान के लिए अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि-आधारित अवलोकन) और चमन (जियो-इन्फॉर्मेटिक्स का उपयोग करते हुए बागवानी मूल्यांकन और प्रबंधन) परियोजना पर काम कर रहा है. लेकिन परिणाम आने बाकी है.

पहले उद्धृत अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस साल गेहूं भले ही सुर्खियों में रहा हो, लेकिन कपास का भी हाल कुछ ऐसा ही है. कृषि मंत्रालय ने बोए गए क्षेत्र का ज्यादा अनुमान लगाया, लेकिन आपूर्ति में तेज गिरावट के कारण पिछले साल की तुलना में कीमतों में उछाल आया.

अधिकारी ने कहा, ‘जब उपज अनुमानों की बात आती है, तो बजट इतना कम होता है कि स्थानीय राजस्व अधिकारी शायद ही कभी सीसीई के लिए फील्ड में जाते हों, उपग्रहों या रिमोट सेंसिंग से सहायता प्राप्त ग्राउंड ट्रुथिंग का शायद ही कोई इस्तेमाल होता हो. निर्णय लेने वाले अभी भी राजा टोडर मल द्वारा विकसित प्रणाली पर भरोसा करते हैं.’

1556 और 1605 के बीच भारत पर शासन करने वाले मुगल सम्राट अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल को फसल उत्पादन और कीमतों के गहन सर्वेक्षण के बाद राजस्व संग्रह प्रणाली को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है.

एक प्राचीन प्रणाली पर ज्यादा निर्भरता का मतलब यह भी है कि किसानों के पास रोपण निर्णय लेते समय विश्वसनीय कमोडिटी इंटेलिजेंस नहीं है.

हैदराबाद स्थित फार्म सप्लाई चेन स्टार्टअप अवर फूड के मुख्य राजस्व अधिकारी अरशद परवेज ने कहा, ‘एक मजबूत फ्यूचर मार्किट के न होने से किसान अक्सर प्रतिस्पर्धी फसलों के बीच से उपज के लिए किसी एक या ज्यादा को चुनने के लिए उनकी पुरानी कीमतों पर भरोसा करते हैं. जबकि इन कीमतों में उच्च अस्थिरता होती है’

अप्रैल के आकड़े फरवरी 2023 में जारी होंगे

कृषि मंत्रालय के अनुसार, वास्तविक फसल कटाई प्रयोग किए जाने से पहले प्रमुख फसलों के उत्पादन का अग्रिम अनुमान काफी हद तक क्षेत्र के आंकड़ों पर निर्भर करता है.

उदाहरण के तौर पर, इस साल अप्रैल-मई में काटे गए गेहूं के अंतिम उत्पादन अनुमान फरवरी 2023 में जारी किए जाएंगे. जोकि खाद्य प्रबंधन और व्यापार नीति निर्णयों के लिए काफी देरी से मिलने वाले आंकड़े हैं.

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के नई दिल्ली कार्यालय में रिसर्च फेलो अविनाश किशोर ने कहा, ‘फसल उत्पादन के अग्रिम अनुमान सबसे अच्छा संकेत दे सकते हैं … हम इस विश्वास के साथ काम करते हैं कि छोटी- मोटी त्रुटियां अंततः एक दूसरे की पूरक बन जाएंगी.’

उन्होंने कहा, ‘हमारी पूरी डेटा प्रणाली अनाज के लिए डिज़ाइन की गई है, हालांकि मूल्य के संदर्भ में बागवानी, दूध और पशुधन खाद्यान्न से कहीं आगे निकल गए है. फिर भी, इनका डेटा संग्रह बेहद खराब है’

किशोर ने अनउपलब्ध या खराब-गुणवत्ता वाले डेटा के कई उदाहरण दिए. मसलन गर्मी का महीना दूध उत्पादन में तेजी से गिरावट और सर्दियों का महीना वृद्धि के लिए जाना जाता है. लेकिन दूध उत्पादन पर गर्मी के असर का कोई अनुमान नहीं है. इसलिए यह साफ नहीं है कि मौजूदा गर्मी मवेशी उत्पादकता को कैसे प्रभावित कर रही है.

इसी तरह से कम समय में ज्यादा उपज देने वाली बागवानी फसलों का उत्पादन अनुमान त्रुटियों से जूझ रहा है, जैसे आम और टमाटर. यही कारण है कि जल्द खराब होने वाली वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के लिए बार-बार होने वाला दर्द है.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक साल में टमाटर की खुदरा कीमतों में औसतन 146 फीसदी (5 जून को) की बढ़ोतरी हुई है. यह किसानों को अधिक उपज के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे भविष्य में कीमतों में गिरावट आने की संभावना बढ़ जाएगी और फिर कुछ महीने बाद सड़क किनारे टमाटर फेंके जाएंगे.

किशोर ने कहा , ‘हमारे पास मूल्य श्रृंखलाओं या गोदामों में लाने-ले जाने या पड़ोस के विक्रेता के ठैले पर कितना खाद्य बर्बाद होता है, इसका कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है. जब एक केला अधिक पक जाता है, तो उसे कम कीमत पर बेचा जाता है. वहां मूल्य का नुकसान मात्रा के नुकसान से बड़ा है.’ वह आगे कहते हैं, ‘भारत को निर्यात पावर हाउस बनने के लिए, इन डेटा अंतरालों पर ध्यान देने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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