नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे की सिविल सर्वेंट्स (लोक सेवकों) के साथ हुई सार्वजनिक झड़पें, जो पिछले एक हफ्ते में खबरें बनीं थी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं द्वारा अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से फटकारे जाने का एकमात्र उदाहरण नहीं हैं.
यह फेहरिस्त काफी लंबी है और अधिकारियों के साथ लगातार बदतमीजी हो रही है,चाहे भाजपा वहां सत्ता में हो या नहीं. सत्ता के गलियारों में यह चर्चा भी आम है कि भाजपा नेता – पार्षदों से लेकर मंत्रियों तक – कथित तौर पर ‘शत्रुतापूर्ण’ रवैया रखने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों की सूची गृह मंत्रालय तथा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को भेज रहे हैं.
सीतारमण द्वारा जिला कलेक्टर जितेश पटेल की खिंचाई किये जाने के बाद, राज्य की सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने एलपीजी सिलेंडरों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगाईं, जिसमें इसके साथ 1,105 रुपये की बड़ी हुई कीमत प्रमुख रूप से दिखाई गई थी, और इस तरह से उसने सोशल मीडिया के जरिये भाजपा पर जोरदार हमला बोला.
निशिकांत दुबे के मामले में, यह भाजपा सांसद कथित तौर पर देवघर हवाई अड्डे पर तैनात हवाई यातायात नियंत्रण के अधिकारियों को एक चार्टर्ड उड़ान को निर्धारित समय से आगे उड़ान भरने की मंजूरी प्रदान करने हेतु मजबूर करने के लिए ख़बरों में आये थे. दुबे और उनके साथ के आठ अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद उनके और देवघर के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री के बीच ट्विटर पर बहसबाजी भी हुई.
दुबे ने भजंत्री पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से कार्रवाई करने का आरोप लगाया है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वह हेमंत सोरेन के गुर्गे हैं. चूंकि मैं मुख्यमंत्री की आलोचना करता हूं और हर बार उन्हें बेनकाब करता हूं, इसलिए वह सिर्फ मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए ऐसा [मेरे साथ हिसाब बराबर करना] कर रहे है. ‘
अपनी ओर से, अधिकारियों और सिविल सर्वेन्ट्स ने दावा किया है कि राजनेताओं द्वारा अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से निशाना बनाने की प्रवृत्ति ‘हतोत्साहित’ करने वाली और प्रशासनिक सेवा के लिए ‘हानिकारक’ है. उन्होंने कहा कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है, इस बारे में पहले से ही नियम बने हुए हैं.
जुलाई में, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक डॉक्टरों के तबादलों में उनसे परामर्श नहीं किये जाने को लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव, चिकित्सा और स्वास्थ्य, अमित मोहन प्रसाद से नाराज हो गए थे. नौकरशाही में हाल ही में हुई फेरबदल के दौरान प्रसाद को कम महत्वपूर्ण माने जाने वाले एमएसएमई विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था.
इसके अगले महीने, अगस्त में, नोएडा के सांसद महेश शर्मा ने भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी के गुंडों द्वारा कथित तौर पर एक हाउसिंग सोसाइटी में जबरन प्रवेश किये जाने के बाद गुस्सा दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गृह सचिव अवनीश कुमार अवस्थी की खिंचाई की थी. शर्मा ने कथित तौर पर नोएडा के पुलिस आयुक्त आलोक सिंह से मीडिया के सामने अपमानजनक तरीके से बात की थी.
इसी महीने, मध्य प्रदेश के मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया और ब्रजेंद्र सिंह यादव ने सार्वजनिक रूप से मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस पर ‘निरंकुश’ रूप से प्रशासन चलाने का आरोप लगाया था. फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बीच-बचाव का कदम उठाना पड़ा और उन्होंने उन्हें (मंत्रियों को) सलाह दी कि वे अपनी शिकायतों को सार्वजनिक रूप से जाहिर न करें.
लेकिन यह इस मामले का अंत नहीं था. बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी नौकरशाही पर अपना गुस्सा निकाला.
अगस्त महीने में पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी और उन्हें उन सिविल सर्वेन्ट्स और पुलिस अधिकारियों की एक सूची सौंपी थी जो ममता बनर्जी सरकार के लिए ‘काम’ करते हैं. उसी महीने, गुजरात के भाजपा विधायक किशोर कनानी ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि अधिकारी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और उन्होंने पिछले 25 वर्षों में कोई ख़ास काम नहीं किया है.
उधर असम में अधिकारियों के एक समूह ने मई महीने में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को भाजपा विधायक कौशिक राय के खिलाफ पूरे असम सिविल सेवा कैडर की ईमानदारी पर सवाल उठाने के लिए एक पत्र लिखा था. राय ने कथित तौर पर एक सर्कल अफसर को ‘चावल चोर’ कहा था और कहा था कि उनके ‘शरीर में कीड़े लग जायेंगें’.
हरियाणा के कुछ भाजपा विधायक मई में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष को इस बारे में आगाह करने के लिए ख़बरों में आये थे कि राज्य के प्रशासन पर ‘बाबूडम’ (नौकरशाही के वर्चस्व) का खतरा मंडरा रहा है.
भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता और हरियाणा के मंत्री देवेंद्र सिंह बबली ने भी अगस्त में राज्य की नौकरशाही के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए थे. बबली ने राज्य प्रशासन पर ड्रग माफिया को संरक्षण देने और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था.
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सर्वशक्तिशाली सीएमओ, अहंकार और ‘जी हुजूरी ‘ वाली संस्कृति
उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री ने अपने सहयोगियों का बचाव करते हुए कहा कि काम करवा पाना कठिन हो गया है, खासकर ऐसे माहौल में जब अधिकारी तब तक हिलने-डुलने को भी तैयार नहीं होते जब तक कि उन्हें ‘लखनऊ से फोन नहीं आ जाता.’.
उन्होंने कहा, ‘[अधिकारियों के प्रति गुस्से का] मुख्य कारण लोगों के प्रति हमारी जवाबदेही है. वे [सिविल सर्वेन्ट्स] चुनाव नहीं लड़ते. हमें एक निर्वाचन क्षेत्र में एक लाख से अधिक लोगों की समस्या का समाधान करना होता है. जब मुख्य और प्रमुख सचिवों के साथ सारी सत्ता सीएमओ में केंद्रित होती है, तो अधिकारी तब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं करते जब तक उन्हें लखनऊ से फोन नहीं आता.‘
इस भाजपा नेता का कहना था कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि हर समस्या के लिए मुख्यमंत्री को फोन नहीं कर सकते.
भाजपा नेता ने कहा, ‘नई सत्ता व्यवस्था के तहत अधिकांश विधायक और सांसद शक्तिहीन हैं. योगीजी ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों के साथ हर लोकसभा क्षेत्र का दौरा करना शुरू कर दिया है. उन्होंने अधिकारियों से विधायकों, सांसदों की चिंताओं को दूर करने या कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहने को कहा है. अभी और भी काम करने की जरूरत है.’
उन्होंने दावा किया कि श्रीकांत त्यागी वाले मामले में नोएडा के सांसद द्वारा राज्य के गृह सचिव को फोन किये जाने के बाद ही प्रशासन हरकत में आया. उन्होंने कहा, ‘जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही नौकरशाही से कहीं अधिक होती है.’
मध्य प्रदेश के एक कैबिनेट मंत्री ने भी माना कि सीएमओ के इर्द गिर्द सत्ता के केंद्रीकरण के परिणामस्वरूप सिविल सर्वेन्ट्स निर्वाचित प्रतिनिधियों की बात नहीं सुनते.
उन्होंने महेंद्र सिंह सिसोदिया और ब्रजेंद्र सिंह यादव का जिक्र करते हुए कहा, ‘सत्ता और अधिकार का कोई विकेंद्रीकरण नहीं है. अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए संरक्षक मंत्री की अवधारणा बनाई गई है, लेकिन इसके बावजूद अधिकारी मुख्य सचिव और सीएमओ से सन्देश प्राप्त होने तक किसी की नहीं सुनते हैं. जब मंत्रियों के पास भी तबादलों और नियुक्ति का फैसला करने की शक्ति नहीं है, तो फिर संरक्षक मंत्रियों को नियुक्त करने की आवश्यकता ही क्या है? यह एक और तथ्य है कि [ज्योतिरादित्य] सिंधिया जी के मंत्रियों को खुलकर बोलने की आजादी है. हमें नहीं.’
इस बीच रांची के भाजपा सांसद संजय सेठ ने दावा किया कि झारखंड की प्रमुख सचिव वंदना डडेल ने पिछले साल एक सर्कुलर जारी किया था कि केवल विधायक ही विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे. ऐसा इसलिए किया गया था ताकि ‘स्थानीय सांसदों को जगह न मिल सके.’
सेठ ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रोटोकॉल के अनुसार, सांसद विधायकों से ऊपर हैं. यह [आदेश] इस बात को सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया था कि सांसदों को कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं किया जाए क्योंकि भाजपा के पास झारखंड से अधिक लोकसभा सदस्य हैं. यह राजनीतिक प्रतिशोध का मामला है. अधिकारी सत्ताधारी दल के आसान शिकार बन जाते हैं.’
जिन दो सिविल सेवकों से दिप्रिंट ने बात की उनके इन टकरावों के बारे में अपने अलग विचार थे.
रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने याद करते हुए बताया कि कैसे पीयूष गोयल रेल भवन में अपने कार्यकाल के दौरान अधिकारियों को ‘फटकार’ लगाया करते थे. इस अधिकारी ने कहा, ‘गोयल के लिए अधिकारियों को केवल यह दिखाने के लिए फटकारना सामान्य बात थी कि वे मेहनती नहीं हैं तथा उन्हें और अधिक झुकने की जरूरत है … कई सारे अधिकारियों ने उनके काम करने के रवैये के बारे में शिकायत करते हुए पीएमओ को गुमनाम पत्र लिखे थे.’
एक आईएएस अधिकारी ने कहा कि अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने से किसी का भी हित नहीं सधता. उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों का सार्वजनिक रूप से अपमान और तिरष्कार नहीं किया जाना चाहिए. यह उनके अधिकार को चुनौती देता है. कुछेक को छोड़कर ये सभी लोगों की सेवा करने की कोशिश कर रहे हैं. यदि किसी राजनेता या अधिकारी द्वारा (नियमों का) उल्लंघन किया जाता है, तो इस मुद्दे से निपटने या उसे हल करने करने के लिए भी नियम बने हैं. फिर ऐसा सार्वजनिक विवाद क्यों? यह मनोबल गिराने वाला है.’
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी टी. आर. रघुनंदन ने कहा कि राजनेता उस समय ‘तुच्छ’ दिखते हैं जब वे अपने कर्तव्यपालन के लिए वहां मौजूद अधिकारियों पर हमला करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हाल फ़िलहाल में, वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री, राज्य के मंत्री और सांसद सार्वजनिक रूप से अधिकारियों पर हमले कर रहे हैं. यह अपने पीछे एक बुरा अनुभव छोड़ जाता है. राजनेता जब ऐसा करते हैं तो वे स्वयं असुरक्षित नजर आते हैं. यह सेवा के मनोबल को भी प्रभावित करता है. उन्हें डर लगने लगता है. बहुत सारे मेधावी और समर्पित अधिकारी हैं. वे वरिष्ठ राजनेताओं की तरफ से किये जा रहे इस तरह के व्यवहार के लायक नहीं हैं.’
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