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Thursday, 10 October, 2024
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होटल कर्मचारी से सीरियल प्रोटेस्टर तक – कौन हैं मराठा आरक्षण आंदोलन के नए चेहरे मनोज जरांगे-पाटिल

जालना में अपनी भूख हड़ताल के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद मराठा कार्यकर्ता जरांगे-पाटिल सुर्खियों में आ गए और उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को बैकफुट पर ला दिया.

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मुंबई: माथे पर टीका और आमतौर पर गले में भगवा दुपट्टा पहनने वाले एक दुबले-पतले व्यक्ति, मनोज जरांगे-पाटिल महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में एक अपेक्षाकृत एक ऐसे व्यक्ति थे जिसके बारे में कोई जानता नहीं था. ऐसा 1 सितंबर तक था, लेकिन पुलिस लाठीचार्ज ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया, जिससे वे राज्य भर में मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बन गए.

एक गौरवान्वित मराठा, सिलसिलेवार प्रदर्शनकारी और कभी कांग्रेस कार्यकर्ता रहे, जरांगे-पाटिल को बड़े पैमाने पर केवल मराठवाड़ा क्षेत्र में ही जाना जाता था, खासकर जालना जिले में, जहां उन्होंने मराठा आरक्षण की वकालत करते हुए कई आंदोलनों और भूख हड़तालों का नेतृत्व किया था. जरांगे-पाटिल के करीबी सहयोगियों ने दिप्रिंट को बताया कि उनका विरोध हमेशा शांतिपूर्ण था, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प महत्वपूर्ण ज़मीनी समर्थन जुटाने में कामयाब रहा.

अपने पिछले प्रदर्शनों की तरह, जरांगे-पाटिल ने 29 अगस्त को अतरावली-सरती गांव में भूख हड़ताल शुरू की. हालांकि, 1 सितंबर की शाम को स्थिति में भारी बदलाव आया, जब पुलिस ने उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती कराने का प्रयास किया. इससे उनके समर्थकों के साथ झड़प हो गई और पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे पुलिस पर बर्बरता के आरोप लगे और शिवसेना-भाजपा सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी.

लेकिन मराठा आरक्षण के संबंध में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के आश्वासन और भूख हड़ताल समाप्त करने की उनकी अपील के बावजूद, जरांगे-पाटिल अपना अनशन जारी रखे हुए हैं, जो गुरुवार को उनके स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद दसवें दिन तक पहुंच गया.

उन्होंने इस सप्ताह अंतरवाली सरती गांव में संवाददाताओं से कहा, “जब तक मेरी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, मैं अपना विरोध प्रदर्शन बंद नहीं करूंगा.”

उनके करीबी लोगों के अनुसार, यह अडिग रुख जरांगे-पाटिल की विशेषता है.

उनके करीबी दोस्त और जरांगे-पाटिल के मराठा सक्रियता संगठन शिवबा संगठन के राज्य प्रमुख गणेश शिंदे ने कहा, “इस तरह के विरोध उनके लिए नए नहीं हैं. उन्होंने हमेशा समर्पण और ईमानदारी से काम किया है. उनका केवल एक ही उद्देश्य है- मराठा समुदाय के लिए आरक्षण प्राप्त करना, और वह अपना लक्ष्य हासिल होने से पहले पीछे नहीं हटेंगे.

गणेश शिंदे ने कहा कि जरांगे-पाटिल का जमीनी स्तर का दृष्टिकोण, जिसमें घर-घर तक पहुंच शामिल है, कई लोगों को प्रभावित करता है. उन्होंने कहा, “यही कारण है कि उन्हें इतना समर्थन प्राप्त है क्योंकि लोग उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं.”

दिप्रिंट ने जरांगे-पाटिल से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

महाराष्ट्र की लगभग 33 प्रतिशत आबादी वाले मराठा लगभग चार दशकों से नौकरियों और शिक्षा के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं. 2018 में, महाराष्ट्र विधानमंडल ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) श्रेणी के तहत मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण देने वाले कानून को मंजूरी दे दी, लेकिन इस निर्णय को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और यह एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है.

इस बीच, जरांगे-पाटिल जैसे कुछ मराठा नेता मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में रखकर कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की वकालत कर रहे हैं. जरांगे को अपनी भूख हड़ताल ख़त्म करने के लिए मनाने की सरकार की कोशिशों के बावजूद, वह इस बात पर अड़े हुए हैं कि हड़ताल तब तक जारी रहेगी जब तक कि सभी मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र नहीं मिल जाते.


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होटल कर्मी से कांग्रेसी और फिर कार्यकर्ता

40 वर्षीय जरांगे-पाटिल के करीबी सहयोगियों ने उनकी शुरुआत और मराठा कार्यकर्ता बनने की उनकी यात्रा के बारे में बताया.

बीड जिले में एक किसान परिवार में जन्में, उन्होंने अपने शुरुआती साल वहां के मटोरी गांव में बिताए और 12वीं कक्षा तक अपनी शिक्षा पूरी की.

बेहतर अवसरों की तलाश में, वह बाद में पड़ोसी जालना जिले में स्थानांतरित हो गए और वहां कुछ समय के लिए एक होटल में काम किया. कहा जाता है कि वहां अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपनी सराहनीय कार्य नीति के कारण कुछ कांग्रेस सदस्यों का ध्यान आकर्षित किया था.

शिंदे ने कहा, “अंततः उन्हें कांग्रेस के जालना जिला प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया.”

हालांकि, जरांगे-पाटिल का कार्यकाल अल्पकालिक साबित हुआ और उन्होंने चुनाव लड़ने का मौका मिलने से पहले ही पार्टी छोड़ दी.

मराठा संगठन संभाजी ब्रिगेड के एक नेता ने इसके लिए जेम्स लेन की 2003 की विवादास्पद पुस्तक शिवाजी: हिंदू किंग इन इस्लामिक इंडिया के आसपास विरोध प्रदर्शनों की प्रतिक्रिया पर जरांगे-पाटिल का कांग्रेस से मोहभंग होने को जिम्मेदार ठहराया.

छत्रपति शिवाजी के वंश के संबंध में इस पुस्तक के विवादास्पद सवालों ने राज्य में मराठों के बीच आक्रोश फैला दिया था, जिसके परिणामस्वरूप भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीओआरआई) – जो पुस्तक के रिसर्च में जुटी हुई थी – में मूल्यवान पांडुलिपियों को नष्ट करने जैसी बर्बरता हुई. इस प्रकरण के कारण कई गिरफ्तारियां हुईं.

संभाजी ब्रिगेड के जरांगे-पाटिल के सहयोगी ने कहा, “वह बहुत परेशान हो गए और सरकार ने उस समय जो रुख अपनाया, वह उन्हें मंजूर नहीं था और इसलिए उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला किया और इसके बजाय खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया.”

हालांकि इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया और लेन ने इसके विवादास्पद हिस्सों के लिए माफ़ी भी मांगी, जरांगे-पाटिल ने कभी भी राजनीति के बजाय सक्रियता को जारी नहीं रखा.

वह वर्तमान में जालना के मखला गांव के निवासी हैं, जहां वह अपनी पत्नी, तीन बच्चों और माता-पिता के साथ रहते हैं. जबकि उनके परिवार के सदस्य अभी भी कृषि में लगे हुए हैं, जरांगे-पाटिल शिवबा संगठन नामक एक संगठन चलाते हैं, जो मुख्य रूप से मराठा आरक्षण के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करने पर केंद्रित है.

मराठवाड़ा में हुए मशहूर

जरांगे-पाटिल की सक्रियता और स्थानीय अनुयायियों को 2011 में अधिक गति मिलनी तब शुरू हुई जब उन्होंने जालना के शाहगढ़ में शिवबा संगठन की स्थापना की.

उस वर्ष, उन्होंने मराठा आरक्षण के समर्थन में शाहगढ़ में 13 दिनों की भूख हड़ताल की, इसके बाद जालना के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय के बाहर आठ-नौ दिनों की भूख हड़ताल की.

गणेश शिंदे ने बताया, “हमने अपने समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर जालना में कई विरोध प्रदर्शन और भूख हड़तालें कीं. इनमें से साल 2013 में छत्रपति संभाजी नगर में कलेक्ट्रेट ऑफिस के सामने किया गया हमारा प्रदर्शन काफी यादगार है. उस वक्त रैली के लिए लगभग 50,000 लोग एकत्र हुए थे.”

कम से कम मराठवाड़ा क्षेत्र में तो, जरांगे-पाटिल की लोकप्रियता आने वाले सालों में काफी बढ़ गई. उन्होंने मराठा आरक्षण के लिए लोगों को एकजुट करने के लिए जमीनी स्तर पर अभियान चलाने के अलावा कई विरोध प्रदर्शनों और भूख हड़तालों का नेतृत्व किया.

फिर, 2016 में, कुख्यात कोपर्डी सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले ने मराठा विरोध की लहर पैदा कर दी जिसमें एक मराठा लड़की पर बेरहमी से हमला किया गया था और फिर उसकी हत्या कर दी गई थी. जरांगे-पाटिल इन आंदोलनों में भी सबसे आगे थे.

गणेश शिंदे ने कहा, “फिर जो कुछ हुआ उसे वह सहन नहीं कर सके. और यह भी आरोप है कि हमारे संगठन के कार्यकर्ता अदालत गए और उन आरोपियों की पिटाई की.”

जब 2016-17 में मराठा क्रांति मोर्चा के बैनर तले मुंबई में विरोध प्रदर्शन हुआ, तो जरांगे-पाटिल ने मराठवाड़ा से मराठों को एकजुट किया और उन्हें विरोध प्रदर्शन के लिए राज्य की राजधानी तक ले गए.

उनके सहयोगियों ने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों और मराठा आरक्षण की मांग के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित करने के बाद, जरांगे-पाटिल को खुद को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए अपनी कुछ एकड़ कृषि भूमि भी बेचनी पड़ी.

हालांकि, मराठा आरक्षण मुद्दे ने 2018 में कानूनी रास्ता अख्तियार कर लिया, लेकिन जरांगे विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में लगे रहे.

2021 में, उन्होंने जालना जिले में लगभग तीन महीने के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया.

संभाजी ब्रिगेड नेता ने कहा, “हर बार विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल से परिणाम नहीं निकलते. अधिकांश समय राजनेता केवल आश्वासन ही देते हैं. लेकिन कई बार उनकी भूख हड़ताल ने प्रभाव डाला है, और इससे उन्हें जारी रखने की ताकत मिलती है.”

उन्होंने कहा, आज तक जरांगे-पाटिल ने मराठा आरक्षण के समर्थन में भूख हड़ताल सहित 35 से अधिक मार्च और आंदोलनों का नेतृत्व किया है.

इन कार्यों के माध्यम से, जरांगे-पाटिल मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठा आरक्षण आंदोलन में प्रमुखता से उभरे. स्थानीय नेता होने के बावजूद, उन्हें अगस्त 2022 में मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा बुलाई गई एक बैठक में भी आमंत्रित किया गया था, जहां राज्य भर के विभिन्न मराठा समूहों ने समुदाय के लिए आरक्षण और कल्याण पहल पर चर्चा की थी.

हालांकि, तब से प्रगति सीमित रही है.


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एक ‘जीत’ या कोई अन्य गतिरोध?

जरांगे-पाटिल और अन्य कार्यकर्ता मराठों के लिए कुनबी जाति प्रमाण पत्र की मांग कर रहे हैं, जो उन्हें ओबीसी का दर्जा देगा. उनका तर्क है कि इस क्षेत्र के मराठा मूल रूप से तत्कालीन हैदराबाद प्रांत के तहत कुनबी जाति का हिस्सा थे, जब यह क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा नहीं था. इस क्षेत्र के महाराष्ट्र का हिस्सा बनने के बाद, समुदाय ने अपना ओबीसी दर्जा खो दिया और इसे मराठा के रूप में वर्गीकृत किया गया.

ऐसा लगता है कि चल रहे आंदोलन ने इस संबंध में सरकार की ओर से कुछ हलचल पैदा कर दी है.

बुधवार रात पत्रकारों से बात करते हुए, मुख्यमंत्री शिंदे ने घोषणा की कि कैबिनेट ने फैसला किया है कि मराठवाड़ा क्षेत्र के वे मराठा जो निज़ाम युग के खुद को कुनबी सिद्ध करने वाले ऐतिहासिक राजस्व या शिक्षा संबंधी दस्तावेज पेश कर सकते हैं, वे कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के पात्र होंगे. सीएम शिंदे ने जोर देकर कहा, “यह मौजूदा ओबीसी कोटा में बदलाव या संशोधन किए बिना पूरा किया जाएगा.”

उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश संदीप शिंदे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय पैनल, निज़ाम-युग के दस्तावेजों में कुनबी के रूप में मान्यता प्राप्त मराठों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया स्थापित करेगा. उन्होंने कहा कि पैनल एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देगा.

इस बीच, अंतरवाली-सरती गांव में विरोध स्थल पर, जरांगे-पाटिल गुरुवार को संशय में दिखे.

उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, “मैं एक समिति नियुक्त करने के सरकार के फैसले का स्वागत करता हूं लेकिन हममें से कई लोगों के पास पैतृक रिकॉर्ड नहीं हैं, इसलिए इससे हमें कोई फायदा नहीं होगा.” “निर्णय को उसी के अनुसार बदला जाना चाहिए – तब तक हम चुपचाप अपना विरोध जारी रखेंगे.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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